Horror Marathon - 25 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 25

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हॉरर मैराथन - 25

भाग 25

अरे यार ये तो कहानी है। कहानी में कुछ भी हो सकता है। साहिल ने कहा।

हां, पर कुछ तो तर्क रखता यार। भूत-पिशाच भी पढ़ने के लिए कह रहे हैं। राघव ने कहा।

तुने सुना नहीं वो लड़की ने असफलता के कारण आत्महत्या की और भूत होने के बाद भी लोगों को सफल होने के लिए प्रेरित कर रही थी। कहानी का मर्म यह है कि असफलता से कभी डरो मत, जब तक सफलता ना मिले तब तक प्रयास करते रहो। एक दिन सफलता तुम्हारे कदमों को जरूर चुमेगी। मीनू ने कहा।

बिल्कुल सही कहा मीनू तुमने। मुझे तो अच्छी लगी यह कहानी। मानसी ने कहा। इतना कहने के साथ मानसी एक बार चीख पड़ी।

इस बार अशोक ने पूछा- अरे तुझे चीखने की बीमारी हो गई है क्या, बार-बार चीख रही है।

मानसी ने फिर अपने दाएं हाथ को बाएं हाथ से पकड़कर कहा- यार इस बार फिर मेरा हाथ किसी ने पकड़ा था।

मानसी की बात सुन मीनू ने कहा- यार जंगल में वो सैनिकों वाली कहानी सच तो नहीं है ना। हम वैसे भी भूतों की कहानी सुन और सुना रहे हैं, कहीं इसलिए ये हमें परेशान तो नहीं कर रहे हैं।

तू भी कैसी बातें कर रही है मीनू। भूत वगैरह कुछ नहीं होता है। कहानी सुनने के कारण अभी हमारा दिमाग उस ओर ही चल रहा है, इसलिए सभी को ऐसा लग रहा है कि हमारे आसपास भूत है। छोड़ों ये सब और अब ये बताओ अगली कहानी कोई सुना रहा है या फिर सोने के लिए चले। साहिल ने कहा।

मानसी ने कहा मैं ही एक और कहानी सुनाती हूं। इसके बाद मानसी ने अपनी कहानी शुरू की।

वैष्णव टेक्नोलॉजी एंड साइंस कॉलेज के छात्र-छात्राओं का एक ग्रुप केन्टिंन में बैठा वीकेंड की प्लानिंग कर रहा था।

मोंटी- ऐसी जगह चलो जहां रिवर राफ्टिंग हो या जहां प्राकृतिक सौंदर्य हो।

शैली- नो-नो किसी हिस्टोरिकल प्लेस चलते हैं।

सरगुन- नहीं यार सच अ बोरिंग प्लेस... किसी हिल स्टेशन चलते हैं।

राघव- एडवेंचरस प्लेस चलो।

सभी की पसन्द अलग-अलग होने के कारण किसी भी एक स्थान के लिए कोई भी सहमती नहीं बन पाई। अंततः सभी ने अपनी पसंदीदा जगह के नाम की पर्ची बनाई। सारी पर्चियों को अपनी मुट्ठी में लिए राघव ने अच्छे से मिक्स किया फिर उछाल दिया।

राघव : सरगुन इनमें से किसी एक पर्ची को उठाओ। सरगुन ने एक पर्ची उठाई, और उसे खोलकर नाम पड़ा- भानगढ़।

अपनी क्रॉस फिंगर को खोलकर शैली खुशी से उछल पड़ी।

मोंटी- अरे शैली तू पागल हैं क्या ? ये कैसा नाम लिख दिया। पता भी हैं वो किला हॉन्टेड हैं ?

शैली- हाँ पता हैं, तभी तो वह किला विजिट करना हैं। और फ्रेंड्स किला सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के पास घने जंगलों से घिरा हुआ हैं और अरावली की पहाड़ी पर स्थित हैं, तो वहाँ मोंटी का प्राकृतिक सौंदर्य भी मिलेगा, सरगुन का हिल स्टेशन भी और राघव हॉन्टेड प्लेस से ज्यादा एडवेंचरस और कौन सी जगह होंगी भला... ?

सभी शैली की बात से सहमत हो गए और भानगढ़ जाने की तैयारी करने लगे। वह दिन भी आ गया जब सभी भानगढ़ की सैर पर निकल पड़े। भानगढ़ की सीमा पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का साइनबोर्ड लगा था जिस पर हिंदी में निर्देश लिखे हुए थे-

‘सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद भानगढ़ की सीमाओं में प्रवेश करना सख्त वर्जित है। जो कोई भी इन निर्देशों का पालन नहीं करेगा उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी‘‘।

निर्देश को पढ़कर राघव हंस दिया। कमाल हैं सरकारी संगठन भी मिथक में यकीन करता हैं।

शैली- ये मिथक नहीं है। भानगढ़ सच में एक भूतिया जगह हैं जो शापित है। यहाँ रात रुकने वाले लौटकर नहीं आते। यहां की राजकुमारी पर एक तांत्रिक मोहित हो गया था और उन्हें वशीकरण के द्वारा पा लेना चाहता था। वह अपने कार्य में असफल हुआ और उसकी मृत्यु हो गई। मरने से पहले उसने श्राप दिया कि यहां के सभी लोगों की मृत्यु हो जाएगी और उनकी आत्मा यहाँ भटकेगी।

राघव- ओ कम ऑन... वेल लेट इट बी... लेट्स गो टू विजिट दी हॉन्टेड फोर्ट भानगढ़।

सभी ने भानगढ़ की सीमा में प्रवेश किया। किला वाकई में अद्भुत था, किले में बनें मंदिर की दीवारों, स्तम्भ को देखकर यहीं लगता कि यह अपने जमाने में बेहद खूबसूरत व भव्य रहा होगा। किला को घूमने में पूरा दिन बीत गया। सूर्योस्त होने से पहले ही ए.एस.आई. वाले किले को खाली करने का कहने लगे। एक-एक करके पर्यटक किला छोड़कर जाने लगे।

राघव ने सरगुन से कहा- सरगुन क्यों न हम कहीं छिप जाए और आज की रात किले में बिताए... ?

सरगुन- न बाबा न... मुझे अभी मरना नहीं है।

राघव : तुम भी किन दकियानूसी बातों पर यकीन कर रहीं हो... मुझसे प्रेम करती हों तो मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकतीं।

सरगुन : अगर प्रेम की परीक्षा ही देनी हैं तो ठीक हैं, चलो कही छिप जाए।

दोनों सबकी नजरों से छुपते-छुपाते किले में बने मंदिर में छुप गए। सूर्यास्त हो गया था। अब किले में सिवाय राघव और सरगुन के कोई नहीं था। शाम को यहां परिंदा भी पर नहीं मारता।

सांय-सांय की हवा और झिंगुर का शोर भयानक लग रहा था। डरते हुए सरगुन राघव से लिपट गई।

सरगुन : रघु मुझे बहुत डर लग रहा है।

राघव : स्वीटी, साइंस की स्टूडेंट और 21 वी सदी की होकर भी डर रही हो।

सरगुन : कुछ बातों के आगे विज्ञान भी कुछ नहीं कर पाया है।

राघव : ओह हो... अब मेरा मूड खराब मत करो।

जरा देखों तो दूर-दूर तक फैला सन्नाटा, मद्धम चाँदनी, खुला आकाश, टिमटिमाते तारें... और सिर्फ तुम और मैं... हाऊ रोमांटिक...

जंगल में मंगल तो सुना ही होगा न तुमने...

आज एक और वाक्य इतिहास में दर्ज हो जाएगा -

किले में दो दिल मिले... सरगुन को अपनी बाँहो में भरकर राघव ने कहा।

दिन को तो किले की भव्यता देख ली। चलों रात को भी इसकी सैर करते हैं और उचित जगह मिलने पर दो जान एक बदन हो जाते है। एक दूसरे का हाथ थामे दोनों भानगढ़ की गलियों में घूमने लगे।

राघव : सरगुन समझ नहीं आता एक पूरा शहर यूं वीरान क्यों हो गया ? इतनी सुंदर जगह को छोड़कर लोग पलायन क्यों कर गए?

सरगुन : (राघव के कंधे पर सिर को टिकाकर) कुछ और बात करो न प्लीज...

राघव : जो हुक्म रानी साहिबा...

दोनों अपनी मस्ती में चले जा रहें थे कि उन्हें भीड़ का शोर सुनाई दिया। दोनों ने चौंकते हुए एक दूसरे की ओर देखा।

शोर ऐसा था जैसे कहीं बाजार लगा हुआ है और लोग खरीददारी कर रहे हों। बतियाते लोग, महिलाओं की हंसी, खनकती चूड़ियां, तराजू की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रहीं थीं।

घनघोर अंधेरा हो गया था। मोबाईल की टॉर्च जलाकर राघव इधर-उधर देखने लगा। तभी उसे सामने से दौड़कर आता एक बैल दिखा जो तेज गति से उसकी ओर आ रहा था। उसने सरगुन का हाथ छोड़ दिया और डर के कारण उसका मोबाइल भी हाथ से छूट कर गिर गया। बैल उसके नजदीक आते ही गायब हो गया।

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