Horror Marathon - 19 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 19

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हॉरर मैराथन - 19

भाग 19

वाह मीनू क्या कहानी सुनाई है। मजा आ गया। भगवान की शक्ति और पुरातत्व और पुराने लोगों की सभ्यता को जोड़कर अच्छी कहानी तैयार की तुमने। अशोक ने कहा।

हां बहुत अच्छी कहानी थी। राघव और साहिल ने कहा।

वैसे हमारी शीतल मेडम के क्या हाल है, वो अब तक सो ही रही है। मानसी ने कहा।

सोने दो यार उसे। वैसे भी उसे कहानियां सुनकर डर लग रहा था। राघव ने कहा।

फिर भी एक बार देख लो, सो रही है या मोबाइल पर चैट कर रही है। अशोक ने कहा।

जंगल में कहां नेटवर्क मिलने वाला है जो चैट करेगी। सो ही रही होगी। मीनू ने कहा।

फिर भी एक बार देख लेने में क्या हर्ज है। साहिल ने कहा।

ओके मैं देखकर आती हूं। मानसी ने कहा। फिर मानसी उठी और शीतल के टेंट में जाकर उसने देखा शीतल आराम से सो रही थी। मानसी फिर वापस आई और उसने कहा वो सो आराम से सो रही है। चलो अब अगली कहानी कौन सुना रहा है।

तू ही सुना दे। टर्न का वेट मत कर। साहिल ने कहा।

चलो ठीक है मैं ही सुना देती हूं अगली कहानी। इसके साथ ही मानसी ने अपनी कहानी शुरू की।

फुलपाईगुड़ी गाँव एक छोटा किन्तु प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण कस्बा हैं। जिसके हर घर के पास एक छोटा तालाब हैं, तालाब में खिलें कमल के फूल बेहद खूबसूरत लगते हैं। यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं मछलीपालन है। यहाँ के लोग खुशमिजाज व मिलनसार हैं। एक दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होते हैं व सहयोग के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। यहाँ के लोग मीठी बोली सुनकर पिघल जाते हैं।

फुलपाईगुड़ी की रात में आवाजाही कम ही रहती है। एक्के-दुक्के लोग ही रात को दिखाई देते हैं। ऐसे ही एक रात देबोर्षि अपने घर जा रहा था। गाँव में सभी लोग लगभग 9 बजे तक सो जाया करते थे। देबोर्षि गाँव के बाहर एक अशासकीय कम्पनी में नौकरी करता था। कम्पनी से वह रात 11 बजे छूटता था। रोज रात करीब 12 या 12ः30 बजे तक वह गाँव की सीमा में प्रवेश कर लेता था।

फुलपाइगुड़ी यूँ तो दिन में अपने नैसर्गिक सौंदर्य से सबका मन मोह लेता। किन्तु रात्रि के समय बड़ा भयानक लगता था। पेड़ो की पंक्तियों के बीच सुनी सड़कें, हवाओं का शोर, उल्लू व गीदड़ की आवाजें हृदय को विदीर्ण कर देने वाली लगती थी। सड़कों पर पड़े सूखे पत्ते जब हवा से सरकते तो ऐसा लगता मानो कोई साथ चल रहा हो। देबोर्षि तेज गति से चल रहा था.. तभी उसे किसी की मीठी आवाज सुनाई दी।

नोमोश्कार (नमस्कार) केमोन आछेन..? (कैसे हों..?)

यह सुनकर भी देबोर्षि अनसुना करते हुए चलता रहा। वहीं मीठी आवाज फिर से आई...

अपने कुन जागे जाज्चेंन..? (तुम कहाँ जा रहें हों..?)

इस बार देबोर्षि मीठी आवाज के बहकावे में आ गया। वह मुस्कुराकर पलटा। उसने देखा एक सुंदर नवयुवती खड़ी थी। वह मुस्कुरा रही थी।

देबोर्षि के पास आकर कहने लगी। क्या मैं आपके साथ चल सकती हूँ ..?

देबोर्षि : जी जरूर... वैसे आप इतनी रात को कहाँ जा रहीं हैं ?

नवयुवती : मैं काम से लौटकर अपने घर जा रहीं हूँ।

देबोर्षि : जी मैं भी।

कुछ कदम दोनों एक साथ चले। फिर अचानक देबोर्षि जड़वत हो गया। किसी भी तरह की गति कर पाने में वह असमर्थ था। उसने देखा कि नवयुवती एक भयंकर चेहरे वाली चुड़ैल बन गईं हैं, जिसका आधा चेहरा जला हुआ था। उसके दो लंबे बड़े दांत होंठ से बाहर निकले हुए थे। उसके पैरों के पंजे पीछे और एड़ी आगे की तरफ थी।

निशि डाक : कामी पुरूष... जब तक मैं सुंदर थी तब तक काम वासना से ग्रसित इस अवसर की तलाश में थे कि कैसे मेरे साथ संभोग करके खुद को तृप्त करो ? अब अचानक चेहरे के भाव क्यों बदल गए।

बोलो मेरी सच्चाई जानकर भी मुझसे विवाह करोगें ?

देबोर्षि ने न मैं सिर हिला दिया। उसकी न सुनते ही निशि डाक ने अपने दोनों दाँत देबोर्षि की गर्दन में गढ़ा दिए व उसका रक्तपान करने लगीं। शरीर का सारा रक्त पी लेने के बाद भयानक हँसी हँसती हुई वह अदृश्य हों गई। देबोर्षि का रक्तविहीन शरीर सफेद पड़ गया।

सुबह जब लक्कड़हरा लकड़ी काटने के लिए जंगल आया तो देबोर्षि को देखकर भाग गया। उसने गाँव पहुँचकर शोर मचाना शुरू कर दिया। निशि डाक ने एक और युवक को मार डाला। भयभीत हो गाँव वाले झुण्ड बनाकर उस स्थान पर पहुँचे जहाँ देबोर्षि का मृत शरीर पड़ा था। शरीर परिजनों को सौंप दिया गया। देबोर्षि की माँ विलाप करने लगी।

हाय रे मेरे फूटे भाग्य...! हजारों बार उससे कहा कि कोई भी जब तीसरी बार आवाज दे तब ही पीछे मुड़ना। दो बार पुकारे जानें पर किसी भी बात का जवाब मत देना।

समय बीतता हैं और इस तरह की घटनाएं आए दिन घटित होतीं रहती हैं।

एक समय की बात हैं। रमोला रात करीब 12 बजे गाँव की सुनी सड़क पर ट्राली बैग लिए अपनी धुन में चली जा रही थी। उसके ट्रॉली वाले बैग के पहिए की रगड़ शांत वातावरण में गूंज रही थी। तभी उसे पीछे से अपने पति की आवाज आई।

तुमी जीओ ना (मत जाओ)।

रमोला खुश होकर, पीछे मुड़कर देखती हैं। उसके होश उड़ जाते हैं। सामने भयानक चेहरे वाली निशि डाक खड़ी थी। उसने रमोला के पति की आवाज में ही कहा- तुम मुझे छोड़कर मत जाओ रमु... यह कहकर निशि डाक हँसने लगीं। उसकी भयंकर हंसी सन्नाटे में गूंज उठी।

रमोला : निडर खड़ी रही। वह निशि डाक से बोली। इतना स्वांग रचाने की आवश्यकता नहीं थीं। यूँ ही मुझे अपना शिकार बना लेतीं।

हँसती निशि डाक के चेहरे के भाव बदल गए। वह सुंदर रूप में आ गई और रमोला के नजदीक आकर उसके सर पर हाथ रखते हुए बोली।

तुम्हें क्या दुःख हैं ? इतनी रात को अकेली क्यों चली आई।

रमोला : दोया कोरे (प्लीज) मुझे मार डालो।

ऐसा कहकर रमोला रोने लगी। निशि डाक ने अपनी आँख बंद की और रमोला के बीते कल को देखा।

निशि डाक : पति और ससुरालवालों द्वारा सताई हुई हो। ससुराल से निकाल दिए जाने पर अपनी माँ के घर जा रहीं हो। रमोला सिसकियां लेती रही। उसने कुछ न कहा।

निशि डाक बोली तुम घबराओ नहीं अपने घर जाओ सब ठीक हो जाएगा।

रमोला : (आश्चर्यचकित होकर) ‘‘मैंने तो सुना था तुम्हारे पुकारे जाने पर यदि कोई पलटकर देख ले तो तुम उसका शिकार कर लेतीं हों‘‘

निशि डाक : मैं सिर्फ उन्हीं लोगों का शिकार करतीं हुँ जो धनलोभी हैं और कामी हैं।

रमोला : इसकी कोई खास वजह हैं?

निशि डाक : हाँ...

रमोला : क्या मैं वजह जान सकतीं हूं ?

निशि डाक अपनी आपबीती रमोला को सुनाने लगी।

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