Horror Marathon - 18 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 18

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हॉरर मैराथन - 18

भाग 18

मीनू ने फिर से कहानी शुरू कर दी।

एक रात मधुकर को म्यूजियम के अंदर से खटपट की आवाज सुनाई दी। वह तेजी से म्यूजियम के अंदर चला गया। म्यूजियम में अंदर प्रवेश करते ही उसकी नजर कांच से बने ताबूत पर पड़ी, जो खाली पड़ा हुआ था। मधुकर का सिर चकरा गया। वह सोचने लगा। शाम को तो ताबूत में ममी थी, अब कहाँ गई ?

वह सोच ही रहा था कि उस पर पीछे से किसी ने हमला बोल दिया। वह जमीन पर गिर पड़ा। जैसे ही उसने उठने का प्रयास किया, उसकी पीठ पर किसी का भारी पैर उसे महसूस हुआ, जिसके लगातार बढ़ते दबाव के कारण मधुकर हिल भी नहीं पाया। तभी किसी ने उसकी कॉलर पकड़कर उसे पलट दिया।

मधुकर की आँखे फटी की फटी रह गई। प्राचीन ममी काल बनकर उसके सर पर खड़ी थी। ममी ने मधुकर को तिनके की तरह चीर दिया और उसके आंतरिक अंगों को निकालकर खाने लगी। अब तो मानव रक्त उसकी जीभ पर लग गया था।

अगली सुबह जब दिन की ड्यूटी देने के लिए मोहन आया तो म्यूजियम के अंदर का मंजर देखकर कांप गया। क्षत-विक्षप्त लाश को देखकर वह चीखता हुआ बाहर आ गया। उसकी चीख से लोग इकठ्ठा हो गए। किसी ने पुलिस को कॉल कर दिया। इसी बीच म्यूजियम प्रशासन के अधिकारी भी आ गए। सायरन बजाती पुलिस की गाड़ी म्यूजियम के बाहर रुकी।

लाश को देखकर पुलिस वाले भी चौंक गए। हवलदार थाना इंचार्ज आशीष से कहने लगा- सर मेरी पुलिस की नौकरी में अब तक का सबसे भयानक केस हैं यह। इतनी बेरहमी से तो कोई अपने खिलोने भी नहीं तोड़ता।

आशीष - ह्म्म्म... कोई बहुत शातिर मर्डरर हैं जिसने इस तरह से हत्या को अंजाम दिया ताकि शक किसी जंगली जानवर पर जाए।

म्यूजियम के सभी अधिकारी व कर्मचारियों के बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने इस मामले की तहकीकात करना शुरू कर दी। म्यूजियम को देखने पर रोक लगा दी गई।

रात को रोज ममी शिकार पर निकलती । मानव रक्त की प्यासी ममी हर दिन किसी न किसी का शिकार कर लेती। आए दिन हो रहीं संदिग्ध हत्याओं ने पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दी। मीडियाकर्मियों का पुलिस मुख्यालय के बाहर हुजूम लग गया। सबका एक ही सवाल की बढ़ते अपराध पर पुलिस क्या कर रहीं हैं ? संजू को इन हत्याओं का सच पता था। इसलिए उसने अपने गाँववासियों की सुरक्षा के लिए पुलिस थाने जाकर सारी सच्चाई बताने की ठानी। वह थाना इंचार्ज आशीष से मिला। उसने अपने साथ घटित हुए वाकये को बताया। और यह भी बताया कि म्यूजियम प्रशासन ने उसकी बात को मजाक समझा।

हालांकि संजू की बात पर आशीष को भी यकीन नहीं हुआ। फिर भी उन्होंने इस पर तहकीकात करने के लिए एक टीम गठित की। टीम प्रमुख स्वयं आशीष ही थे। उन्होंने म्यूजियम प्रशासन की अनुमति से म्यूजियम में कैमरे लगवा दिए। और उनकी टीम सक्रिय रूप से कैमरे में कैद गतिविधियों पर नजर रखती। कैमरे लगाए हुए तीन दिन बीत गए। हवलदार थाना इंचार्ज आशीष से कहने लगा - सर हमने एक गार्ड की बात में आकर अपना कीमती वक्त जाया किया।

तभी कैमरा पर नजर रखने वाला एक पुलिसकर्मी दौड़कर हाँफता हुआ आया।

स..स..सर जल्दी चलिए। कहता हुआ वह कैमरा नियंत्रण कक्ष में चला गया। आशीष व हवलदार भी तेजी से उसके पीछे गए।

कैमरा में लाइव शूट चल रहा था। म्यूजियम में ममी ताबूत से निकलकर बाहर आ गई। म्यूजियम के दरवाजे लॉक थे। ममी बाहर नहीं निकल पाई। आशीष ने यह वीडियो क्लिप म्यूजियम प्रशासन व अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दिखाई। सच को जानकर सभी हतप्रभ रह गए। जल्द ही ममी के आतंक से बचने के उपाय खोजें जाने लगे।

किसी ने कहा फिर से दफना दो। कोई कहता समंदर में बहा दो। अंत में सभी लोग एक निष्कर्ष पर पहुँचे- वैदिक मंत्रों के द्वारा ममी को शक्तिविहीन बना दो। देश के प्रसिद्ध वेदाचार्य को बुलाया गया। उन्होंने दिन के समय ताबूत को तंत्र-मंत्र की शक्तियों द्वारा बांध दिया। रात को सभी लोग कैमरे में नजर गड़ाए ममी के ताबूत को देखने लगे। उनके द्वारा किया गया उपक्रम पूरी तरह से असफल हो गया। ममी ताबूत से बहुत ही सहजता से बाहर निकल गई।

वेदाचार्य व अन्य मौजूद लोग आश्चर्यजनक निगाहों से एक दूसरे की और देखने लगे। वैज्ञानिक उपायों द्वारा भी कई रसायनों का प्रयोग करके ममी को शक्तिहीन करने का प्रयास किया गया जो असफल रहा। आशीष इस बात से चिंतित हो अपने ऑफिस में बैठे हुए पेपरवेट घुमा रहे थे। तभी उन्हें संजू गार्ड की कही बातें याद आ गई। वे एकदम उठ खड़े हुए।

अपनी टीम को लेकर आशीष शिव मंदिर पहुँचे। वहाँ अंकित चिन्हों को उन्होंने बारीकी से देखा। फिर उन्होंने सिक्के ढालने वाले को अपने पास बुलवाया और कहा कि हूबहू ऐसे ही चिन्हों से अंकित तांबे के सिक्कें शाम तक बना कर दो। इसके बाद मूर्तिकार को बुलवाया गया। शिव मंदिर की प्रतिमा को दिखाकर आशीष ने कहा- इस मूर्ति का प्रतिरूप आज शाम तक तैयार करके लाओ।

मूर्तिकार - जी साहब कहकर चला गया।

हवलदार : सर आप क्या कर रहें हैं, मुझें तो कुछ समझ नहीं आया..?

आशीष : एक अंतिम प्रयास....बस देखते जाओ।

मूर्तिकार और टकसाल द्वारा समय पर मूर्ति व सिक्के बना दिये गए।

आशीष अगले दिन का इंतजार करने लगें। हवलदार सर आप अपने काम को अंजाम रात को क्यों नहीं दे रहें ?

आशीष : तुमने नोटिस नहीं किया ? ममी सिर्फ रात को ही सक्रिय रहतीं हैं। वह रात को ही उठती हैं और भोजन की तलाश में भटकती है। प्राचीन काल के लोगों का भी यहीं विश्वास था कि ममी रात को उठकर अपना कार्य करती है। इसीलिए ममी के साथ उसकी जरूरतों का सामान भी रख दिया जाता था।

हवलदार : ओह, उस समय के लोग भी हमसे कई गुना आगे की सोच रखते थे सर।

आशीष : हाँ, खुदाई से निकली वस्तुओं को देखकर तो यहीं लगता हैं कि यह सभ्यता बहुत विकसित थीं।

अगले दिन पशुपतिनाथ की मूर्ति को ममी के ताबूत के सामने रख दिया गया। व ममी के गले में तांबे के सिक्कों का बना हार पहना दिया गया। आशीष का यह प्रयास सफल हुआ। उसकी सफलता पर मीडियाकर्मी उससे एक ही सवाल पूछते- आपने यह कैसे किया?

आशीष - वैदिक मंत्रों का प्रयोग इसलिए असफल रहा क्योंकि ममी जिस सभ्यता की हैं वह वैदिक सभ्यता से पूर्व की सभ्यता हैं। उस समय के लोग वैदिक मंत्रों से परिचित नहीं थे। खुदाई से प्राप्त सिक्को पर जो चिन्ह हैं वहीं उस सभ्यता द्वारा पूजे जाते थे। ये लोग पशुपतिनाथ की पूजा करते थे। हमारी जिसमें भी आस्था होती हैं हम उसी शक्ति से भयभीत होकर नियंत्रित होते हैं। इस ममी पर नियंत्रण इसी की सभ्यता द्वारा पूजी गई शक्ति से सम्भव हुआ हैं। इसके बाद कभी भी प्राचीन ममी उस ताबूत से बाहर नहीं निकली।

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