Horror Marathon - 13 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 13

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हॉरर मैराथन - 13

भाग 13

मीनू ने फिर से कुछ चिप्स खाए और फिर से अपनी कहानी को आगे बढ़ाया।

चंद्रशेखर ने पानी की टँकी के पास लंबी सी, घूँघट ओढ़े हुए एक महिला को खड़े देखा। पुष्पशेखर की पत्नी का हुलिया भी लगभग ऐसा ही था, इसलिए चंद्रशेखर ने खाँसकर निकलने के लिए रास्ता मांगा। महिला वही खड़ी रहीं। अब चंद्रशेखर का पारा चढ़ गया। वह बड़बड़ाने लगा। महिला अब अपनी जगह से कुछ कदम पीछे हट गई, लेकिन अब भी उसने चंद्रशेखर का रास्ता रोके रखा।

चन्द्रशेखर कहने लगा जरा भी संस्कार नहीं बचे कि जेठ के सामने से हट जाएं।

इस बार महिला सीढ़ी की ओर हो गई। चंद्रशेखर रास्ता मिलते ही तेजी से निकल गया। उसने पलटकर देखा तो वह दंग रह गया।

महिला चंद्रशेखर की ओर मुंह किये हुए थी, और सीढ़ी चढ़ रही थी। यह असंभव ही था। चंद्रशेखर सीढ़ी की ओर दौड़ा। महिला सीढ़ी के अंतिम छोर पर जाकर खड़ी हो गई। चंद्रशेखर भी तेजी से सीढ़ी चढ़ता हुआ महिला के ठीक सामने एक सीढ़ी नीचे खड़ा हो गया। महिला घूँघट ओढ़े चुपचाप खड़ी रही।

चंद्रशेखर- कौन हो तुम ?

महिला- (डरावनी आवाज में) : तेरी मौत...

चंद्रशेखर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसका संतुलन बिगड़ गया और वह गिर पड़ा, उसका सिर अब महिला के पैरों के पास था। उसने देखा कि महिला के उल्टे पैर थे। सारा माजरा उसको समझ आ गया, पर अब बहुत देर हो चुकी थी। वह बुत बना वैसे ही बैठा रहा। न तो उसकी आवाज निकल रहीं थीं, न ही वह अपनी जगह से हिल पा रहा था।

तभी महिला हवा में उड़ते हुए एक-एक सीढ़ी उतर रहीं थीं। जब वह हवा में उड़ती हुई सीढ़ी पर आती तो बहुत ही भयानक लगतीं। चंद्रशेखर का तो डर के कारण खून ही सुख गया। ऐसा काल उस पर मंडराएगा यह उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। इस बार जब महिला उड़ती हुई आई तो वह सीधे चंद्रशेखर पर हमला बोल देती हैं।

चंद्रशेखर के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं और उसका शरीर सीढ़ियो से लुढ़कता हुआ नीचे की ओर आ जाता हैं। अब तक चंद्रशेखर को न आता देख अनिता भनभनाती हुई तीसरी मंजिल से दुकान की ओर आती है। जब वह सीढ़ी के पास अपने पति को देखती हैं तो विलाप करती हुई, शोर मचाने लगतीं है।

हाय-हाय मेरे पति का ये क्या हाल हो गया ?

उसकी आवाज सुनकर सभी लोग दौड़कर आते है। इस जगह रोशनी न के बराबर ही थीं। क्योंकि कई बार बल्ब लगा देने पर भी बल्ब या तो शॉट हो जाते या फिर टूट जाते। इसलिए यह जगह सिर्फ कबाड़ रखने व दुकान की भट्टी में प्रयुक्त होने वाले कोयले रखने के रूप में इस्तेमाल की जाती थी। चंद्रशेखर के शरीर को उठाकर राजशेखर के घर ले जाया गया। उसके मुंह पर पानी के छींटे दिए गए। पर चंद्रशेखर के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई।

डॉक्टर को कॉल करके बुला लिया गया। डॉक्टर ने नब्ज को देखकर कहा- यह तो मर चुके हैं।

डॉक्टर की बात सुनकर परिवार के लोग सकते में आ गए। राजशेखर सर पर हाथ रखकर धड़ाम से बैठ गए। रूम में सन्नाटा छा गया।

राजशेखर का बेटा अनिरुद्ध बोला- ऐसा कैसे हो सकता हैं ? काका थोड़ी देर पहले ही दुकान से गए। और उन्होंने तो ऐसा कुछ नहीं बताया कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है।

अनिता- रोते हुए... मुझसे फोन पर बोले थे कि भोजन की थाली परोसकर रखना। मैं आ रहा हूँ।

परिवार पर टूटे इस पहाड़ से पूरा परिवार टूट गया। खुशियों जैसे कोसों दूर हो गई। शेखर गुमसुम रहने लगा। वह सबसे एक ही बात कहता। अब मेरी बारी हैं।

समय बीतता हैं। और सभी लोग अपने-अपने कार्यो में व्यस्त हो जाते हैं। शेखर अक्सर अपने बड़े भैया के पास चला जाता और उनसे हमेशा कहता- भाईसाहब आप अपना ख्याल रखा करें। आपको कुछ हो गया तो हम तो अनाथ ही हो जाएंगे। यहीं एकमात्र भाई था जो राजशेखर को अपने पिता के समान मानता और उनका आदर करता। शेखर की पत्नी इस बात से नाराज होकर मायके चली गई।

एक दिन शेखर अपने घर देरी से पहुँचा। कमरे का ताला खोलने के लिए उसने जेब से चाबी निकाली ही थीं कि देखा दरवाजे पर ताला नहीं हैं। वह खुश होकर दरवाजा खोलता हैं। तो देखता हैं उसकी और पीठ किए हुई एक महिला बैठी हैं।

शेखर- ओह! तो तुम्हें आज मेरी याद आ ही गई।

महिला कुछ न बोली ।

शेखर- गंगा एक बात समझ नहीं आई। जब तुम आ ही गई हो तो यह विरोध का काला रंग पहनकर क्यों आई ? लाल जोड़ा ही पहन लेती पगली...।

यह कह कर शेखर ने महिला के दोनों कंधों पर अपने हाथ रख दिये। महिला मुंह नीचे किए हुए चुपचाप बैठी रहीं।

शेखर अब महिला के सामने बैठ गया और कहने लगा- चलो लाल जोड़ा न सही गुस्से से हुआ लाल मुंह ही दिखा दो। यह कहते हुए जैसे ही शेखर ने घूँघट उठाया वह डरकर पीछे की ओर हो गया।

शेखर- कौन हो तुम ? यहाँ क्या कर रहीं हो ?

महिला- मैं इस घर की मालकिन हूं, यहाँ नहीं तो कहाँ रहूँगी ?

महिला हवा के तेज झोंके की गति की तरह शेखर के ठीक सामने उसके सिर पर हवा में लहरा रहीं थी। उसके उल्टे पैर शेखर की आँखों के सामने थे। महिला भूत हैं यह जान लेने पर शेखर का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। महिला शेखर के करीब आ गई उसे सूँघते हुए तेज सांस छोड़ते हुए बोली-

आखिरी समय जिसे याद करना हैं कर लो। अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता।

शेखर- जीने का शौक तो मुझें भी नहीं है। बस एक निवेदन करना चाहूंगा कि मुझे मारने के बाद यह घर छोड़ देना व मेरे बड़े भैया को कोई नुकसान मत पहुंचाना।

शेखर की बात सुनकर महिला के चेहरे के भाव बदल गए। वह पीछे हट गई।

महिला- तुम भाई के लिए क्या कर सकते हो ?

शेखर- उनके लिए अपनी जान दे रहा हूँ तुम्हें...

महिला- तुम इस घर के पहले सदस्य हो जो अपने भाई का सम्मान करते हो। इसलिए तुम्हें बख्श दिया। तुम्हारे दो भाइयों को मैंने ही मारा हैं। वो लालची अपने बड़े भाई के प्रति घृणा का भाव रखते थे।

शेखर- मुझे यह वजह समझ नहीं आई ?

मीनू अपनी कहानी सुना ही रही थी कि शीतल ने कहा- यार मीनू यहां मुझे ऐसे ही इतना डर लग रहा है और तू ऐसी डरावनी कहानी सुना रही है।

यार मुझे तो समझ नहीं आ रहा है कि तू इतना डर क्यों रही है। ये कहानी ही तो है, कोई सच का भूत तो तेरे सामने खड़ा नहीं है। मानसी ने कहा।

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