Horror Marathon - 11 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 11

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हॉरर मैराथन - 11

भाग 11

राघव कर कहानी को सभी बहुत ध्यान से सुन रहे थे। शीतल के चेहरे पर अब डर के भाव नजर आ रहे थे। जंगल के माहौल, रात का समय और भूतों की डरावनी कहानियां उसे और भी अधिक डरा रही थी। दोस्तों की कहानी के साथ ही उसे युद्ध में मारे गए सैनिकों की आत्मा की बात भी बार-बार दिमाग में आ रही थी, जिसके कारण उसका डर और भी अधिक बढ़ जाता था। फिर जंगल में झिंगुरों की आवाजें, हवा चलने के कारण पेड़ के पत्तों की सरसराहट भी उसे डराने का काम कर रही थी। वहीं शीतल को इस हाल में देखकर मानसी के चेहरे पर एक मुस्कान तैर रही थी। ट्रिप के खर्च से बचने के लिए शीतल को उस जगह पर बैठे रहना उसकी मजबूरी सा प्रतीत हो रहा था। अब राघव ने अपनी कहानी को आगे बढ़ाया।

कहानी सुनने के बाद सूर्यवीर की आँखे भर आईं। उसने यह तय किया कि आने वाली अमावस्या की काली अँधेरी रात को दीपों की जगमगाहट से वह उज्ज्वलपुर को रोशन कर देगा। उसकी इस बात का समर्थन घर वालों ने भी किया। शुक्लपक्ष बीतने के बाद जब कृष्णपक्ष शुरू हुए और अमावस्या का दिन आया। तब सूर्यवीर ने दिन में सभी गाँव वालों को एकत्रित कर एक सभा का आयोजन किया।

एक शाम जमुनादेवी के नाम से आयोजित इस सभा में उपस्थित लोग भयभीत हो गए। कुछ लोग सभा छोड़कर जाने लगे। तभी सूर्यवीर ने गांववालों को ललकारते हुए कहा- यहाँ से वहीं लोग चले जाएं जो जमुनादेवी को डाकन मानते है। यह सुनकर गाँव वालों के बढ़ते कदम रुक गए।

सूर्यवीर कहने लगा- हम भारतीय पूरे विश्व में शान्ति के कारण जाने जाते हैं। हम उस भारतमाता की संतान हैं, जो गाय और गंगा को भी माता कहकर बुलाते हैं। चंदा हमारे मामा हैं। बिल्ली हमारी मौसी हैं। हम धरती को भी अपनी माँ समान आदर देते हैं। फिर किन लोगों की प्रेरणा से हमारे अंदर का छुपा मानव मार दिया जाता हैं और हम एक शैतान का रूप धारण कर लेते हैं। कौन हैं वो लोग जो हमारे मन में नफरत का बीज बो देते हैं। ये वहीं लोग हैं जो अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए हमें मोहरों की तरह इस्तेमाल करते हैं। असल में साधु के वेश में हैवान इन लोगो को हम पहचान ही नहीं पाते हैं और इनके बहकावे में आकर कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो मानवता पर कलंक होता हैं।

हमारे पूर्वजों ने भी एक भूल की थीं। एक दुखिया, असहाय, बूढ़ी स्त्री की सहायता करने की बजाय उसे अंधविश्वास के चलते मौत के घाट उतार दिया। आज हम उस भूल का प्रायश्चित करेंगे। यहाँ उपस्थित वही व्यक्ति अपना हाथ ऊपर उठाएं जो धर्म के नाम पर फैले अंधविश्वास, कुप्रथा व कुरीतियों का पुरजोर विरोध करता हैं और आज जमुनादेवी के नाम पर सामाजिक बुराइयों को जलाने की शपथ लेकर एक दीप अपने द्वार पर जलाएगा।

सभी लोग सूर्यवीर की बात का समर्थन करते हुए हम... हम.... करके अपने हाथ ऊपर उठाने लगे। सूर्यास्त के बाद आज उज्जवलपुर के गली-चौबारे, हर द्वार, हर घर दीपों की लड़ियों से जगमगा उठें। आज किसी घर का द्वार बंद न था।

इसी के साथ राघव की कहानी भी खत्म हो गई थी। हर बार की तरह सभी ने राघव की कहानी की भी तारिफ की।

कहानी पूरी होते ही मीनू ने कहा- ओह अंध विश्वास के चलते लोग कितनी बड़ी गलती कर बैठते हैं। एक बुजुर्ग महिला को गांव के लोगों ने अपने अंधविश्वास के चलते मौत दे दी। काश गांव के लोगों ने सभी मौत का कारण पहले ही जान लिया होता तो जमनादेवी कुछ समय और जीवित रह सकती थी।

अंधविश्वास और विश्वास में बहुत मामूली फर्क होता है। धर्म के नाम पर अंधविश्वास तो अक्सर देखने को मिलता है। लोग धर्म के नाम आडंबर रचते हैं और उसका खामियाजा जमनादेवी जैसे लोगों को उठाना पड़ता है। उस साधु ने किस तरह से लोगों को धर्म के नाम अंध विश्वास में दबोच लिया और गांव वालों से एक बुजुर्ग महिला की हत्या करवा दी। साहिल ने कहा।

मानसी, शीतल और अशोक भी कहानी के बारे में सोच रहे थे। तीनों ने ही कहा कि किसी भी घटना या बात पर कोई भी निर्णय लेने से पहले एक बार सच जानने की कोशिश जरूर करना चाहिए।

सभी आपस में राघव की कहानी को लेकर बात कर रही रहे थे कि शीतल को अहसास हुआ कि पेड के पीछै से उसे कोई देख रहा है। एक बार को तो उसने नजर अंदाज कर दिया, परंतु दोबारा उसकी नजर पेड़ के पीछे गई तो उसे फिर वहीं अहसास हुआ कि पेड़ के पीछे कोई है और उसे देख रहा है।

शीतल ने अशोक से कहा कि अशोक मुझे लगता है कि उस सामने वाले पेड़ के पीछे कोई है।

अशोक ने शीतल की बात सुनकर कहा- हम छह लोगों के अलावा इस जंगल में शायद ही कोई हो शीतल। वहां कोई नहीं है।

शीतल ने कहा- नहीं अशोक वहां जरूर कोई है, प्लीज मेरी बात मानों, मैंने वहां किसी को देखा है।

शीतल तू डर रही है, इसका मतलब यह नहीं है कि इस तरह की बातें करके तू सभी को डराएगी। ऐसी बातों से यहां कोई डरने वाला नहीं है। इसलिए ये फालतू के आइडिया लगाना बंद कर दे। मानसी ने कहा।

मानसी मैं मजाक नहीं कर रही हूं ना ही ये सब बंद करने के लिए कोई आइडिया लगा रही हूं, मैंने सच में वहां किसी को देखा है। पहली बार मुझे भी लगा था कि ये मेरा वहम हो सकता है, परंतु दूसरी बार भी मुझे वहां कोई नजर आया है। शीतल ने कहा।

साहिल जो अब तक चुप बैठा था, वो उठा और उस पेड़ के पास पहुंच गया। वहां पहुंचकर उसने पेड़ के नीचे एक छोटे से पौधे को हिलाया और शीतल से कहा- शीतल यहां एक छोटा सा पौधा है और कुछ नहीं है। अगर तुम्हें यकीन नहीं हो रहा है तो तुम खुद भी यहां आकर देख सकती हो।

पर मैंने वहां किसी को देखा था। शीतल ने कहा।

मैं यहां खड़ा हूं शीतल मुझे तो यहां कोई नजर नहीं आ रहा है। ये तुम्हारा वहम ही होगा। ये पौधा हवा से हिला तो तुम्हें लगा होगा कि यहां कोई है। साहिल ने कहा।

साहिल की बात सुनने के बाद शीतल चुप हो गई थी। अब राघव ने कहा चलो अगर वहां कोई नहीं है तो फिर अब हम अपनी अगली कहानी पर आते हैं- अब अगली कहानी कौन सुनाएगा।

वो तो पर्ची ही बताएगी कि अगली कहानी कौन सुनाएगा ? इतना कहते हुए मानसी ने फिर से पर्ची उठाई। इस बार मीनू का नाम पर्ची में निकला था।

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