Horror Marathon - 10 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 10

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हॉरर मैराथन - 10

भाग 10

उज्जवलपुर देशी रियासतों में से एक था। जहां कभी राजा-महाराजा का शासन हुआ करता था। प्राचीन समय में विद्युत की सुविधा नहीं थीं इसलिए रात्रि के समय मशालें जला करतीं थीं। मशालों की रोशनी से अंधेरी रात भी रोशन रहती इसीलिए इस रियासत का नाम उज्ज्वलपुर पड़ गया। उज्जवलपुर यूँ तो अपने राजसी ठाट-बाट के लिए जाना जाता था। पर एक और खासियत इसे विशेष बनाती हैं। वह हैं अमावस्या के दिन गाँव के सभी लोगो का घर से न निकलना। अमावस्या के दिन गाँव की सुनी गलियां, बंद बाजार और सभी घरों के बंद किवाड़ ऐसा दृश्य बना देते मानो इस गाँव में कोई रहता ही न हो।

प्राचीन समय में जो गाँव बिजली न होने के बाद भी रोशन हुआ करता था। वहीं गाँव अब बिजली की पर्याप्त आपूर्ति के बाद भी अमावस्या के दिन घोर अंधकार में रहता। घरों से भी प्रकाश की कोई किरण निकलती दिखाई न पड़ती।

उज्जवलपुर की अमावस्या की रात इतनी भयानक लगतीं जिसकी कल्पना मात्र से रूह कांप जाती। सुनी सड़कें, शान्त वातावरण और सायं सायं करतीं हवाएं दिल दहला देती। हवा के चलने से बरगद के पेड़ के पत्तो की गड़गड़ाहट उस सन्नाटे में भयानक ध्वनि करतीं। सुनसान सड़कों पर कुत्तों के रोने की आवाज गांववालो के ह््रदय में भय पैदा करतीं।

सूर्यवीर हर साल ग्रीष्मकालीन अवकाश में अपने ननिहाल उज्ज्वलपुर आता। और हर वर्ष ही अमावस्या पर गाँव को अंधकार में डूबा देखता। अब वह सजीला नौजवान था जिसकी रुचि अमावस्या का रहस्य जानने की थी। वह अक्सर अपने नाना-नानी से इस विषय में बात करने की कोशिश करता, पर उसके नाना-नानी किसी न किसी बहाने से उसकी बात टाल दिया करते। सूर्यवीर भी कुछ कम शरारती न था। अमावस्या का रहस्य जानने के लिए उसके दिमाग में एक युक्ति सूझी।

अमावस्या की रात्रि थी। सूर्यास्त से पूर्व ही घर के सभी सदस्य भोजन आदि से निवृत हो गए थे। सूर्यास्त होते ही घर के सभी दरवाजे-खिड़कियां बंद कर दिए गए। दरवाजों व खिड़कियों पर पर्दे डाल दिए गए। रात्रि करीब 9 बजे सूर्यवीर ने अपने मोबाईल का टॉर्च ऑन कर दिया। जिसे देखकर घर वाले भयभीत हो गए। वह सूर्यवीर से अनुनय-विनय करने लगें कि वह टॉर्च को तुरन्त बंद कर दे। सूर्यवीर ने टार्च बंद करने की एक शर्त रखी कि उसे अमावस्या का रहस्य बताया जाए।

सूर्यवीर की जिद के आगे नानी ने घुटने टेक दिए, नानी उसे कहानी सुनाने के लिए तैयार हो गई। कहानी सुनाते समय नानी ने पहले भगवान श्री राम का स्मरण किया। सभी ने जय श्री राम के जयकारे लगाएं। नानी गम्भीर स्वर में कहानी सुनाने लगीं।

बात उन दिनों की है, जब देश की स्वतंत्रता के लिए भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए लगभग हर घर से स्त्री-पुरुष भाग लेते थे। जमुनादेवी के पति भागीरथ भी स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। आंदोलन के दमन के लिए अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसाई। भागीरथ के सिर पर गम्भीर चोट आई और उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद जमुनादेवी के जीवन में संकटो की शुरुआत हो गई। बेटा-बहू उन्हें छोड़कर चले गए। अपना गुजारा करने के लिए जमुनादेवी ने चूड़ी की दुकान लगा ली। कुछ भले मानस उनकी सहायता हेतु उनसे चूड़ियां खरीद लेते।

एक समय की बात हैं अमावस्या के दिन सुगना प्रातः काल ही चूड़ियां खरीदने के लिए जमुनादेवी के घर पहुँची। द्वार बंद था। सुगना के द्वार खटखटाने पर जैसे ही जमुनादेवी ने किवाड़ खोला, उनकी सुगना पर नजर पड़ते ही सुगना धड़ाम से गिरी और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। पूरे गांव में यह अफवाह फैल गई कि जमुनादेवी डाकन है। लोग उनके बारे में तरह-तरह की बाते करने लगे। कुछेक तो अपनी मनगढ़ंत कहानियां सुनाकर गाँव वाले के मन में भय पैदा करने लगे।

एक दिन संयोगवश अमावस्या के दिन ही जब जमुनादेवी सुबह अपने घर से जल भरने के लिए निकली, तब उनकी प्रथम दृष्टि पेड़ पर पड़ी। जहाँ बैठी चिड़िया उनकी नजर पड़ते ही जमीन पर आ गिरी और तड़पते हुए दम तोड़ देती है। चौपाल पर बैठे बुधिया ने यह दृश्य देखा और वहां से भाग गया। वह दौड़ता हुआ पूरे गाँव में हाट भरता हुआ यहीं कहता जाता- डाकन ने चिड़िया का शिकार कर लिया।

गाँव वालों ने जब यह सुना तो सभी लोग हाथ में लाठियां लिए हुए एक जगह एकत्रित हुए। सबने तय कर लिया कि आज इस डाकन की जीवनलीला ही समाप्त कर देंगे। सब जमुनादेवी के घर की ओर चल दिये। उनके झुंड का नेतृत्व एक साधु कर रहा था जो कुछ दिन पहले ही गाँव में आया था। और उसने भी गाँव वालों को खूब भरमाया की जमुनादेवी डाकन हैं।

जमुनादेवी कमर पर मिट्टी का घड़ा लिए हुए सामने से आती दिखीं। भीड़ ने उन्हें चारो ओर से घेर लिया। साधु ने उन पर भस्म छिड़क दी। गाँववालों ने जोर जबर्दस्ती करते हुए उन्हें एक पेड़ से बांध दिया। गांववालों ने मानवीयता को शर्मसार करते हुए उस बूढ़ी बेबस महिला पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिए। इस दृश्य को देखकर भोला जो कि 12 वर्षीय बालक हैं, अपने पत्थर फेंकते पिता से पूछने लगा। अम्मा जी को क्यों मार रहें हो ?

भोला का पिता : बेटा यह औरत मनहूस हैं, इसकी नजर पड़ते ही किसी की भी मृत्यु हो जाती हैं। आज ही एक चिड़िया इसकी नजर से मर गई।

भोला : बाबा वो चिड़िया तो मेरे निशाने से मरी थी।

भोला की बात सुनकर अचानक पथराव करने वालों के हाथ रुक गए। सभी भोला की ओर आ गए।

साधु : ये बालक झूठ कह रहा हैं।

भोला : आप स्वयं देख लीजिए कहता हुआ भोला दौड़कर पेड़ के नीचे से मरी हुई चिड़िया को उठा लाया।

चिड़िया के पंख पर भोला की बंदूक के छल्ले का निशान था, लहूलुहान चिड़िया को देखकर गाँव वाले शर्मिंदा हो गए। उन्होंने जमुनादेवी को तुरन्त रस्सियों से मुक्त कर दिया। पर बहुत देर हो चुकी थीं। जमुनादेवी की मृत्यु हो गई।

साधु अब भी मानने को तैयार नहीं था कि जमुनादेवी डाकन नहीं थी। वह गांववालो से बोला सुखिया की औरत भी तो इसकी नजर पड़ते ही मर गई थी। गाँववालों की भीड़ से दूर खड़ा सुखिया सारा तमाशा देखकर व्यथित था। गाववाले सुखिया के पास गए। वह उससे पूछने लगे। सुखिया तेरी औरत की मौत कैसे हुई ?

सुखिया - उसे दिल की बीमारी थी। डॉक्टर ने कह दिया था कुछ दिन की मेहमान है। मरने से एक रात पहले ही उसने मुझसे रंग-बिरंगी चूड़ियां लाने को कहा। मैंने उसे रुपये देकर कहा था कि सुबह की पहली किरण के साथ ही तेरे हाथ रंग-बिंरगी चूड़ी से भर दूंगा। उसका उतावलापन ही उसे अलसुबह जमुनादेवी के घर ले गया। उन्माद के कारण दिल का दौरा पड़ने से उसकी मृत्यु हो गई। यह सुनकर गाँववाले सकते में आ गए। उनसे बहुत बड़ी भूल हो गई थी। उस दिन के बाद से आज तक अमावस्या के दिन सभी लोग घरों में अंधकार करके रहते हैं। गांववालों का मानना हैं कि जमुनादेवी की आत्मा गाँव वालों से बदला लेगी।

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