भाग 5
तो क्या उस शीशे में सच में कोई भूत है या कृष्णकांत का कोई वहम था ? मीनू ने अशोक से प्रश्न किया।
मुझे तो लगता है कि इस परिवार पर कोई बड़ी मुसीबत आने वाली है। शीशे का भूत इन सभी को बहुत परेशान करने वाला है। साहिल ने कहा।
यार मुझे तो डर लग रहा है, तुम ऐसी भूत की कहानी का किस्सा लेकर बैठ गए हो, मुझे भी जबरदस्ती उसमें शामिल कर लिया है। देखो रात भी हो रही है, हम जंगल में हैं और फिर ऐसी भूतों की कहानी। शीतल ने डरते हुए कहा।
देख अगर तुझे डर लग रहा है तो तू जाकर सो जा, पर सुबह इस ट्रिप का पूरा खर्च हम सभी को दे देना। हमें कोई प्रॉब्लम नहीं है। मानसी ने कहा।
बस इसी कारण तो यहां चुपचान बैठी हूं। मेरी कहानी कितनी अच्छी थी, उसमें भूत भी था पर वो एक मां थी। अशोक की कहानी देखो, शीशे में अपना ही अक्स नजर आ रहा है, पर वो बुत बनकर खड़ा है। मुझे तो सोचकर ही डर लग रहा है कि अगर ऐसा सच में हो तो मेरी तो उसी समय जान निकल जाएगी। शीतल ने डरते हुए कहा।
अरे तुम लोग भी कहां बातें कर रहे हो, उसे अपनी कहानी तो पूरी करने दो। राघव ने कहा।
हां, हां अशोक आगे बता, फिर क्या हुआ ? क्या रीमा को भी शीशे में कोई अक्स नजर आया ? साहिल ने कहा।
अशोक ने फिर अपनी कहानी शुरू की।
रीमा की नोकझोंक से मधुमिता खीझ गई। मधुमिता के स्वभाव में आए परिवर्तन से रीमा गम्भीर हो गई।
अचानक ही रूम में पसरी शांति को मधुमिता की हँसी ने दूर किया। वह रीमा के कंधों पर अपने दोनों हाथ रखते हुए बोली- मिस रीमा जी आपके चेहरे पर अगर गम्भीरता आ गई तो फिर आपके लाखों फैन का मनोरंजन कैसे होगा ?
रीमा इस बात पर हल्का सा मुस्कुरा दी।
मधुमिता ने कहा- मैं कुछ खाने के लिए लाती हुँ तब तक तुम अपने एक्ट की रिहर्सल कर लो और हाँ मुझे तुम्हारी बेस्ट परफॉर्मेंस देखना हैं। इसलिए कोई भी कमी नहीं होना चाहिए। दर्शक फिदा हो जाने चाहिए। मैं यूं गई और यूं आई- चुटकी बजाते हुए मधुमिता ने कहा।
रीमा को एक्टिंग, मॉडलिंग का शौक था और शौक अब जुनून बन चुका था। वह कई जगह ऑडिशन दे चुकी थीं। उसे कल भी भारत कला केंद्र में एक नाटक में नर्तकी का किरदार अदा करना है।
उसी की प्रैक्टिस के लिए वह शीशे के सामने जा कर खड़ी हो गई। और तरह-तरह के डांस स्टेप्स करके देखने लगी। जब उससे डांस के सही मूव्स नहीं हुए तो वह शीशे पर बिगड़ती हुई बोली- निगोड़ा शीशा ही बेकार हैं सही से छबि नहीं दिखाता।
डांस करते हुए वह इतनी मगन हो गई कि उसे यह दिखाई ही नहीं दिया कि शीशे में उसका प्रतिबिंब बिना किसी हलचल के खड़ा हुआ हैं। जब रीमा के पैर में बंधे घुघरू से एक मनका टूटकर उसके पैर में आ चुभा तब जाकर रीमा के पैर थमे। घुंघरू का पट्टा खोलते समय सहसा उसका ध्यान शीशे की और गया तो वह दंग रह गई। शीशे में वह खुद को गुस्से में खड़ा हुआ देखती हैं। वह उठकर कौतूहल वश शीशे के सामने चली जाती हैं। वह अपने हाथ से नृत्य की मुद्रा बनाकर देखती हैं, पर प्रतिबंध अब भी वैसा ही खड़ा था। रीमा पढ़ी लिखी लड़की थी और विज्ञान के युग पर यकीन करने वाली। उसे शीशा भी किसी टेक्निक से बना लगा। उसने गुस्से में खड़े अपने ही प्रतिबिंब के चेहरे पर जैसे ही अपना हाथ रखा। प्रतिबिंब ने कसकर एक तमाचा जड़ दिया। रीमा गाल सहलाते हुए पीछे हट गई।
तभी हाथ में ट्रे लिए मधुमिता आ गई। ये लीजिए हमारी सुपर डांसर महोदया चाय-नाश्ता तैयार हैं, कहकर जैसे ही उसने रीमा को देखा तो उसके चेहरे की उड़ी हुई रंगत से वह चौंक गई।
मधुमिता - अरे रीमा ! क्या हुआ ?
रीमा - कुछ नहीं तेरे शीशे को मेरा डांस पसन्द नहीं आया, कहकर हँसते हुए उसने ट्रे से चाय का प्याला उठा लिया।
कुछ देर यहाँ-वहाँ की बात करने के बाद रीमा ने यह कहकर मधुमिता से विदा ली- मधु कल अगर तू भारत कला केंद्र नहीं आयी तो फिर अपनी दोस्ती को भूल ही जाना।
रात के 2 बज रहे थें। चारों और सन्नाटा था, सिर्फ घड़ी की टिक-टिक की आवाज आ रहीं थीं। मधुमिता को आज नींद नहीं आ रहीं थीं। फिर भी मुंह पर चादर ओढ़े आँख बंद करके लेटी रहीं।
तभी उसे हल्की सी फुसफुसाहट सुनाई दी। वह वैसे ही लेटी रहीं। गौर से आवाज को सुनने लगीं।
अब उसे बीच-बीच में हँसने की आवाज भी आने लगी। चादर की ओट से जैसे ही उसने मिचमीची आँखों से देखा तो उसके तोते उड़ गए।
शीशे के सामने एक नौजवान खड़ा था। वह खुद से ही बातें कर रहा था। मधुमिता को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह सपना देख रही हैं या हकीकत।
तभी बाहर यशोधरा वॉशरूम के लिए आई और उनके आने की आहट पाते ही नौजवान शीशे में समा गया।
यह दृश्य देखने के बाद मधुमिता की नींद और होश दोनों ही हवा हो गए। उसकी पूरी रात जागते हुए कटी। सुबह ठंडी हवा के झोंको से उसे नींद आ गई। करीब 10 बजे माँ ने दरवाजा खटखटाया।
अरे मधु आज ऑफिस नहीं जाना है क्या ?
अलसाई आवाज से मधु बोली- नहीं माँ , आज छुट्टी ली हैं।
मधुमिता जैसे ही उठकर बैठी, रात के सभी दृश्य उसके सामने दिखने लगे। उसने तुरंत रूम छोड़ दिया। माँ के पास गई।
माँ- क्या सच में भूत होते हैं ?
यशोधरा- होते ही होंगे। तुम उन्हें भी अपने घर बुला लेना। कबाड़ ला-ला कर घर को भूतिया तो बना ही दिया हैं अब जैसा घर वेसे सदस्यों को भी ले आओ।
मधुमिता कुछ न बोली और माँ के रूम में चलीं गई। आज वहीं नहाई और तैयार होकर भारत कला केंद्र रवाना हो गई। उसने तय कर लिया कि रीमा को सारी बात बताऊंगी।
चंद मिनटों में ही वह कला केंद्र पहुँच गई। रीमा मंच के पीछे बने कक्ष में थीं। मधुमिता ऑडिटोरियम में आगे वाली कतार में जाकर बैठ गई। रीमा की परर्फोमेंस चौथे नंबर पर थीं। मधुमिता का मन बेचैन था, वह जल्द ही रीमा से मिलना चाहतीं थीं। उसने किसी भी परफॉर्मेंस को ठीक से नहीं देखा। रीमा की परफॉर्मेंस अनाउंस होते ही उसकी जान में जान आई। परफॉर्मेंस खत्म हुई, ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मधुमिता के मन को भी कुछ सुकून मिला। वह ऑडिटोरियम से बाहर आ गई। थोड़ी ही देर में रीमा भी वहाँ आ गई।
फैंटास्टिक परफॉर्मेंस- कहकर मधुमिता ने रीमा को गले से लगाकर बधाई दी।
रीमा- गम्भीर होकर बोली- मधु तुमसे बहुत जरूरी बात करनी हैं, चलो केटिंन में।
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