Horror Marathon - 3 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 3

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हॉरर मैराथन - 3

भाग 3

खुशी मैं तुम्हारी पड़ोसन हूं। दरवाजा खुला था इसलिए सीधे तुम्हारे पास चली आई। तुम भी मेरी तरह अकेली रहती हो, इसलिए सोचा तुम्हें कंपनी दे दूँ। वैसे भी ऐसे समय तुम्हें यूं उदास नहीं रहना चाहिए। बच्चे की सेहत पर असर पड़ता हैं। खुशी को उनका चेहरा जाना पहचाना सा लगा। पर याद नहीं आ रहा था कि उन्हें कहां देखा है।

अब तो रोज माधव के जाते ही खुशी की पड़ोसन आ जाती और माधव के घर आने के थोड़ी देर पहले ही चली जाती। खुशी भी अब पहले की तरह दिखने लगी वह खुश रहती और अब उसे घर में किसी भी तरह का कोई डर नहीं लगता। न ही कुछ दिखाई देता न कुछ सुनाई देता। अब खुशी को भी समझ आ गया था कि मेरा ही वहम था।

ऐसे ही नौ माह बीत गए और खुशी ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया। खुशी ने माधव को पड़ोसन के बारे में बता दिया था दोनों ने हॉस्पिटल में उनके आने का इंतजार किया। माधव को जरूरी काम के चलते ऑफिस जाना पड़ा । थोड़ी देर बाद ही खुशी की पड़ोसन आ गई। खुशी ने उनसे कहा मेरे हसबैंड आपसे मिलने के लिए काफी समय तक आपका इंतजार करते रहे फिर ऑफिस चले गए। कोई बात नहीं फिर कभी मिल लेंगे कहकर मिसेज शर्मा ने बच्चे को अपनी गोद मे ले लिया। बच्चे को देखकर वो इतनी खुश थी जैसे बच्चा उनका अपना ही हो। बहुत देर तक वो बच्चे को अपने सीने से लगाये रही, नर्स के कहने पर उन्होंने बच्चे को खुशी की गोद मे दे दिया।

बच्चे को लेकर उनका जो उतावलापन था वह खुशी को अजीब लगा। पर मिसेज शर्मा ने खुशी की बहुत सेवा की थी, उसका ख्याल बड़ी बहन की तरह रखा। इसलिए खुशी ने उनसे कुछ न कहा, न कुछ पूछा। खुशी को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई थीं। हॉस्पिटल से आने के बाद भी मिसेज शर्मा ने खुशी की बहुत देखभाल की। बच्चे से उनको विशेष लगाव हो गया था। एक दिन बच्चे को खूब आशीर्वाद देकर रोने लगी। खुशी को उसका व बच्चे का कैसे ध्यान रखना हैं सारी बातों की हिदायत देने लगीं। इस पर हँसते हुए खुशी ने कहा आप तो ऐसे कह रही हैं जैसे अब कभी नहीं आएगी। मिसेज शर्मा बुदबुदाते हुए बोली - हाँ मेरी मुक्ति जो हो गई हैं।

अगले दिन से एक सप्ताह तक मिसेज शर्मा नहीं आई। खुशी को चिंता हुई उसने माधव को शर्मा जी के घर भेजा। माधव जब शर्मा जी के घर पहुँचा तो दरवाजा मिसेज शर्मा ने ही खोला।

माधव- आप ही मिसेज शर्मा हैं?

मिसेज शर्मा- जी हाँ, कहिए क्या बात हैं?

माधव- खुशी ने आपको याद किया हैं, आप घर नहीं आई तो उसे आपकी फिक्र हो रही थीं।

मिसेज शर्मा- कौन खुशी ? मैं तो कभी आपके घर आई ही नहीं।

माधव इतना सुनकर आश्चर्य करता हुआ अपने घर लौट आया। तो देखा हॉल में घर के पुराने मालिक बैठे हुए थे। माधव को देखकर उन्होंने खड़े होकर माधव की ओर हाथ बढ़ाते हुए माधव का अभिवादन किया। माधव भी हँसते हुए उनसे गले मिलकर बोला कहिए कैसे याद आई शर्मा जी ?

शर्मा जी- याद तो रोज ही करते हैं आज एक काम के सिलसिले में इस शहर आया था सोचा आपसे मिल लूँ और आपके घर से मेरी अमानत लेता चलूँ।

माधव- आपकी अमानत?

शर्माजी- जी हाँ आपकी जो डायनिग टेबल हैं इसके नीचे एक हिडन ड्रावर हैं जिसमे मेरी बीवी की तस्वीर हैं, सोचा आपको इस छुपे ड्रावर के बारे में भी बता दूं और अपनी अमानत भी ले लूँ।

माधव - जी जरूर।

इतने में खुशी भी हॉल में आ गई। मिस्टर शर्मा ने एक चाबी जेब से निकाली और ड्रावर को खोलकर उसमे से तस्वीर निकाली। खुशी के चेहरे पर तस्वीर देखकर चमक आ गई वह चहकते हुए बोली- मिसेज शर्मा।

मिस्टर शर्मा- जी भाभी जी सहीं पहचाना, ये मेरी धर्मपत्नी मिसेज शर्मा हैं।

खुशी- कैसी हैं वो ?

पिछले सप्ताह से उन्होंने घर आना ही छोड़ दिया कोई नाराजगी हैं क्या हमसे।

मिस्टर शर्मा- ये आप क्या कह रही हैं?

मेरी धर्मपत्नी का तो स्वर्गवास हो गया हैं, दो साल हो गए हैं। उदास होकर शर्मा जी कहने लगे बच्चों से बहुत प्यार करती थीं पर बदकिस्मती से बच्चे को जन्म देते समय ही प्राण गंवा बैठी। इसी वजह से मैंने यह घर और शहर ही छोड़ दिया था। माधव को पड़ोस की मिसेज शर्मा की बात समझ आ गई और पूरा माजरा भी, कि खुशी सही कहती थी कि इस घर में कोई आत्मा हैं। हवन में विघ्न आने की वजह भी मिसेज शर्मा थीं। जैसे ही खुशी के माँ बनने की खबर मिली उसके बाद से मिसेज शर्मा खुशी के साथ रहीं, और बच्चे के जन्म के बाद उनकी आत्मा तृप्त हुई और उन्हें मुक्ति मिल गई।

खुशी को भी अब मिसेज शर्मा का चेहरा याद आ गया था, उसने उन्हें डायनिग टेबल के यहाँ बैठा देखा था जिन्हें देखकर वह बेहोश हो गई थी। माधव, खुशी और मिस्टर शर्मा तीनों खुश थे.... एक भटकतती आत्मा को मुक्ति मिल गई।

इस तरह शीतल ने अपनी कहानी पूरी की। कहानी पूरी करने के बाद शीतल खामोश हो गई थी। वहीं मीनू, मानसी, राघव, अशोक और साहिल भी चुप बैठे थे। उनके बीच की खामोशी को शीतल ने तोड़ा फ्रेंड्स क्या हुआ कहानी पसंद नहीं आई क्या ?

तभी मीनू ने कहा- यार मैं सोच रही थी कि क्या कोई मां किसी बच्चे के लिए इतनी बैचेन भी हो सकती है। अब देखों ना मिसेज शर्मा को खुशी के बच्चे में शायद अपना बच्चा नजर आया होगा और उन्होंने बच्चे को दुलार और प्यार कर लिया तो उनकी आत्मा को मुक्ति मिल गई।

वो कहते हैं ना सीप में मोती बनने के लिए एक बूंद ही काफी होती है, उसी तहर किसी आत्मा को मुक्ति के लिए उसकी इच्छा की पूर्ति की एक बूंद ही काफी है। बच्चे को प्यार और दुलार ही मिसेज शर्मा के लिए वो बूंद थी, जिससे उनकी आत्मा को मुक्ति मिल गई। साहिल ने कहा।

सच में बहुत अच्छी कहानी थी, मुझे लगा मिसेज शर्मा खुशी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा दें। उसके बच्चे को तकलीफ ना दे, पर वो शायद अच्छी आत्मा थी, इसलिए उन्होंने खुशी को बड़ी बहन की तरह ध्यान रखा। वैसे एक समय मुझे डर भी लग रह था कि जब खुशी ने पहली बार मिसेज शर्मा को डायनिंग टेबल पर देखा था। मानसी ने कहा।

हां मुझे डर था कि कहीं वो आत्मा खुशी को कोई नुकसान ना पहुंचा दे। खासकर जब खुशी मां बनने वाली थी। अशोक ने कहा।

चलो शीतल की कहानी तो पूरी हो गई, अब दूसरी कहानी कौन सुनाएगा। राघव ने सभी पर्चियों की ओर इशारा करते हुए कहा।

फिर से पर्ची उठाई गई और इस बार अशोक का नाम आया। अब अशोक ने अपनी कहानी शुरू की।

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