भाग 1
मॉम... मॉम... मैं जा रही हूं। मेरे सभी दोस्त मेरा इंतजार कर रहे होंगे। मीनू ने अपने बैग में अपना सामान रखते हुए तनुजा से कहा।
अरे बेटा पर ये नाश्ता तो करते जाओ। पता नहीं तुम लोग कब पहुंचोगे और कब कुछ खा पाओगे। तनुजा ने किचिन से निकलते हुए मीनू से कहा।
नहीं मॉम मैं वैसे भी बहुत लेट हो गई हूं। नाश्ता करने के चक्कर में और देर हो जाएगी और फिर मानसी मुझे इतना सुनाएगी कि मेरा मूड ही ऑफ हो जाएगा। मीनू ने एक सेंडविच उठाते हुए कहा।
वैसे कौन जा रहा है तुम्हारे साथ ? तनुजा ने पूछा।
मैं हूं, मानसी है, साहिल, अशोक, राघव और शीतल। मीनू न सेंडविच खाते हुए नाम गिनाए और बाहर को दौड़ लगा दी।
ठीक है पर कब तक आओगे ये तो बता दो ? तनुजा ने भागती मीनू के पीछे जाते हुए कहा।
दो या तीन दिन का ट्रिप है मॉम। जल्दी ही आ जाएंगे, आप चिंता मत करना। मीनू घर के मुख्य दरवाजे से बाहर निकलते हुए तनुजा की आंखों से ओझल हो गई।
हे भगवान ये लड़की भी ना किसी तूफान मेल से कम नहीं है। जब जाना था तो थोड़ा जल्दी उठ जाती। जाना भी है और नींद भी पूरी करना है। फिर मेरे लिए हाय तौबा मचा गई। तनुजा धीरे-धीरे बुदबुदाते हुए फिर किचिन में पहुंच गई थी।
दूसरी ओर मीनू ने टेक्सी पकड़ी और घर से कुछ दूर स्थित एक रेस्टोरेंट पर पहुंच गई। रेस्टोरेंट पर पहले से मानसी, साहिल, अशोक, राघव और शीतल मौजूद थे। मीनू को देखते ही मानसी ने कहा-
लो आ गई हमारी लेट लतीफ मेडम।
सॉरी-सॉरी यार थोड़ा सा लेट हो गई। मीनू ने टेक्सी से उतरते हुए कहा। फिर उसने टेक्सी वाले को पेमेंट किया और फिर अपना बैग लेकर उन सभी के पास आ गई।
मीनू थोड़ा नहीं तुम पूरे एक घंटा बीस मिनट लेट हो। हम सभी यहां समय पर आ गए थे। तुम्हारे कारण अब सभी रतनगढ़ पहुंचने में लेट हो जाएंगे।
यार सॉरी कहा ना, देर हो गई। मीनू ने लगभग चिढ़ते हुए मानसी से कहा।
अरे यार अब ये बहस छोड़ों, चलो अब निकलते हैं। अशोक ने कहा।
हां, यार वैसे भी लेट हो गए हैं। पहुंचते हुए शाम हो जाएगी। राघव ने कहा।
हम सब तो रेडी है, मानसी और मीनू ने पूछ लो इनका हो गया हो तो सभी चले। शीतल ने कहा।
यार तू मुझे क्या सुना रही है, जिसकी वजह से लेट हुए हैं उसे बोल। मानसी ने कहा।
चलो भी यार। मैं ड््राइव करता हूं। मैंने रास्ता देखा भी है तो कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। इतना कहते हुए साहिल ओपन जीप की ड््राइविंग सीट पर आकर बैठ गया था।
जीप तेजी से रतनगढ़ के जंगलों की ओर बढ़ रही थी। अशोक, राघव, मीनू और मानसी पीछे की ओर बैठे थे, जबकि शीतल साहिल के पास वाली सीट पर बैठी हुई थी। ये सभी एक साथ एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं। मौसम में हल्की ठंडक थी, इसलिए इन सभी ने घूमने का प्लान बनाया था। पहले मनाली जाने का प्लान बना था, परंतु घर से दो या तीन दिन के ट्रिप की इजाजत मिलने के कारण सभी ने रतनगढ़ के जंगलों में जाने का प्लान फानइल किया था। प्लान तैयार हो जाने के बाद सभी दोस्त रतनगढ़ के सफर पर चल दिए थे।
गाना गाते-बजाते हुए इनका सफर जारी था। रास्ते में एक ढाबे पर रूककर इन सभी ने खाना भी खाया और फिर अपने सफर की ओर बढ़ गए थे। रतनगढ़ पहुंचते हुए इन्हें शाम हो गई थी। अंधेरा होने को था, इसलिए सभी रतनगढ़ के जंगलों की ओर निकल गए। करीब दो एकड़ में फैला यह जंगल काफी शांत था। हालांकि इस जंगल के बारे में एक किवदंती थी कि इस जंगल में भूत होते हैं। कहा जाता है कि कई वर्षो पहले यहां जंगल नहीं हुआ करता था, यहां एक बड़ी सी नदी बहा करती थी। इस नदी के दोनों किनारे पर दो राज्य हुआ करते थे। एक बार उन दोनों राज्यों की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें हजारों सैनिकों की मौत हो गई थी। कहा यह भी जाता है कि युद्ध में सैनिकों के खून के कारण नदी का पानी भी लाल हो गया था। उन सैनिकों की आत्माएं अब भी इस जंगल में घूमती है।
जंगल में पैदल सफर करते हुए अशोक ने इस कहानी को याद करते हुए साहिल से कहा- यार साहिल अगर तुझे उस युद्ध का कोई सैनिक मिल गया तो तू क्या करेगा ?
शीतल जिसे इस किवदंती के बारे में कोई जानकरी नहीं थी, उसने अशोक से पूछा- कौन सा युद्ध, कौन सा सैनिक।
फिर अशोक ने शीतल को पूरी कहानी बताई, जिससे शीतल डर गई और उसने कहा- तुम लोगों ने पहले क्यों नहीं बताया कि यहां कोई भूत रहते हैं।
मीनू ने कहा- अरे यहां कोई भूत नहीं रहते हैं। बस लोगों ने ऐसे ही कहानी बना रखी है। भूतों के पास जंगल में रहने का ही काम बचा है क्या ?
शीतल ने कहा, पर सच में भूत हुए तो ?
तो फिर तू उनसे दोस्ती कर लेना, जैसे हम लोगों से की है फिर वो तुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। मानसी ने कहा।
अरे छोड़ों ना यार तुम लोग भी ना किस बात में उलझ गए हो। देखों वो जगह कैसी है ? हम वहीं अपने टेंट लगा लेते हैं। राघव ने कहा।
सभी उस जगह पर पहुंच गए थे, जो राघव उन्हें दिखा रहा था।
हां, ये परफेक्ट हैं। यही टेंट लगा लेते हैं। साहिल ने कहा।
ठीक है तो मैं, अशोक और साहिल टेंट लगाते हैं, तब मीनू, मानसी और शीतल तुम लोग खाने के लिए कुछ तैयार कर लो। आसपास बहुत लकड़ियां भी है तो तुम लोगों का काम आसानी से हो जाए। राघव ने कहा।
राघव, अशोक साहिल टेंट लगाने में व्यस्त हो गए और मानसी, मीनू और शीतल खाना बनाने लगी। जल्द ही टेंट भी लग गए और खाना भी तैयार हो गया। फिर साहिल ने बैग से बियर निकाली और पीने लगा। फिर सभी ने थोड़ी-थोड़ी पी और फिर खाना खाकर आग जलाकर उसके आसपास बैठ गए। कुछ देर त कवे दो टीम बनाकर अंताक्षरी खेलते रहे। इसी बीच मानसी ने कहा-
यार गाना गाने में कुछ मजा नहीं आ रहा है। सभी वहीं पुराने से गाने याद आ रहे हैं। कुछ एक्साइटमेंट होना चाहिए।
जंगल के बीच में तुझे और क्या एक्साइटमेंट चाहिए। जंगल अपने आप में रोमांच से भरा है। अशोक ने कहा।
अरे यार, कुछ भी। मेरा कहने का मतलब है कि कुछ ऐसा, जिससे मजा आ जाए। मानसी ने कहा।
तो तू ही बता दें कि क्या करना चाहिए। मीनू ने कहा।
आइडिया, कहते हैं ना इस जंगल में भूत रहते हैं। तो चलो उन भूतों को उनकी ही कहानी सुनाते हैं। मानसी ने उत्साह के साथ कहा।
भूतों को भूतों की कहानी सुनाते हैं मतलब ? साहिल ने कहा।
वैसे तुझे यहां कौन सा भूत नजर आ रहा है, जिसे तू कहानी सुनाने जा रही है। राघव ने कहा।
अरे, मेरा मतलब हैं कि यहां भूत रहते हैं तो हम एक-दूसरे को भूतों की कहानी सुनाते हैं। जिसकी कहानी सबसे ज्यादा डरावनी होगी, उसके लिए यह ट्रिप फ्री। मतलब उसका पूरा खर्च बाकि पांच लोग उठाएंगे। कैसा लगा मेरा आइडिया ? मानसी ने कहा।
आइडिया बुरा तो नहीं है, पर ये कौन तय करेगा कि किसकी कहानी सबसे ज्यादा डरावनी थी ? साहिल ने कहा।
सभी अपनी ओर से ईमानदार रहेंगे। तो पता चल ही जाएगा। कोई झूठ नहीं बोलेगा कि उसे कहानी सुनते हुए डर नहीं लगा था।
बकवास आइडिया। मैं ना तो कोई सुनगी और ना ही सुनाउंगी। शीतल ने कहा।
मुझे पता था कि तू यह बात जरूर बोलेगी, इसलिए इसका भी एक तरीका है, जो इस प्लान से बाहर होगा वो इस ट्रिप का पूरा खर्च उठाएगा। मानसी ने कहा।
तुने तो शीतल को फंसा दिया मानसी। अब तो इसे कहानी सुनना भी होगी और सुनाना भी होगी। अशोक ने हंसते हुए कहा।
तो फिर सबसे पहले कहानी कौन सुनाएगा ? मीनू ने कहा।
सभी के नाम की पर्ची डाल देते हैं, जिसका नाम सबसे पहले आएगा, वहीं सुनाएगा। मानसी ने कहा।
सभी ने जल्द ही सभी के नाम की पर्ची बना ली और फिर एक पर्ची उठा ली। सबसे पहले शीतल का ही नाम निकलकर आया था। भूतों के नाम से शीतल को यूं भी डर लगता था, फिर वो जंगल के बीच बैठी हुई थी। उसका बुरा हाल था, परंतु ट्रिप का खर्च उठाने से बचने के लिए उसका वहां बैठे रहना मजबूरी सा था। सभी ने ताली बजाकर शीतल को चियर किया। फिर शीतल ने अपनी कहानी शुरू की।
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