(भाग 17)
अब तक आपने पढ़ा कि शोभना रघुनाथ को ढूंढते हुए स्टोर रूम तक आ जाती है।
अब आगें...
शोभना डरते -सहमते हुए ज़ोर-ज़ोर से धड़कते हुए दिल से स्टोर रूम में दाख़िल होतीं है। रूम में अंधेरा जरूर था पर इतना भी नहीं कि कुछ दिखाई न दे। प्राकृतिक प्रकाश से अंधेरा उतना काला नहीं था जितना रात को रहता है। धीरें-धीरें शोभना कमरें में आगें बढ़ती जा रहीं थीं। वह रॉकिंग चेयर से कुछ एक कदम दूरी पर जाकर ठहर गई। वहाँ उसे कोई भी हलचल होतीं दिखाई नहीं दी। उसने साइड टेबल पर रखें हुए ग्रामोफोन को देखा। उस पर गीत बजने की उम्मीद से उसके कान उसी ओर लगें हुए थें लेक़िन यह उम्मीद भी टूट गई। शोभना का पूरा ध्यान व कान ग्रामोफोन पर केंद्रित था। वह इस बात से अनजान थी कि उसके ठीक पीछे रघुनाथ खड़ा था....
रघुनाथ ने साड़ी पहनी हुई थी। उसकी आँखों में लगा बेतरतीब काजल, उसके बिखरें बाल, माथे पर लगीं बड़ी लाल बिंदी,होठों पर लगी गहरी लाल लिपस्टिक और पूरे चेहरे पर लगा सफ़ेद झक पावडर उसके चेहरे को बड़ा भयानक बना रहा था। वह गर्दन टेढ़ी करके शोभना को देख रहा था। शोभना को अपने पीछे किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। डर के कारण उसकी घिग्घी बंध गई लेक़िन वह भी मानों आज सिर पर क़फ़न बांधकर ही आई थी। दृढ़संकल्प ने उसमें ऊर्जा का संचार कर दिया। वह धीरे से मुड़कर देखती हैं तो उसके चेहरे के एकदम सामने रघुनाथ का डरावना रूप और भयानक चेहरा होता है। शोभना को देखकर वह बड़ी भयंकर हँसी हँसता हुआ उसके सामने से निकल जाता हैं। कमरे में उसकी हँसी कुछ देर तक गूँजती रहीं।
शोभना की स्थिति बड़ी दयनीय थी।महिला की सी चाल चलते हुए अपने पति को उसने दर्दभरी निगाहों से देखा। उसकी आँख आँसुओं से छलछला उठी।
रघुनाथ रॉकिंग चेयर पर जाकर बैठ गया। चेयर से सिर टिकाकर आँख मूंदे हुए वह आराम फरमाने लगा। जैसे शोभना के होने से उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा।
शोभना को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें..क्या न करें..? उसे लगा जैसे उसका सबकुछ उजड़ने जा रहा था।
वह अपने ही विचारों में उलझी हुई थी कि एक आवाज़ गूँजी - " चली जाओ यहाँ से..अब तक मैं बिल्ली के शरीर में रहकर इस घर की रखवाली किया करती थी लेक़िन अब मुझें मानव शरीर मिल गया है। यहीं है मेरा असली घर अब मैं हमेशा यहीं रहूंगी।"
हा ! हा ! हा !
महिला-पुरुष मिश्रित युगल स्वर में अट्टहास करती हँसी एक बार फिर से सुनसान कमरे में गूँज उठी...
शोभना निर्भीक होकर डटी रहीं। जब हँसी थम गई तब वह दृढ़ता से बोली - " आज यहाँ से या तो मैं अपने पति को साथ लेकर जाऊँगी या फ़िर यहीं इस कमरे में प्राण त्याग दूँगी। मैं मौत से नहीं डरती न ही किसी आत्मा का डर हैं। मैं सिर्फ़ परमात्मा से डरती हूँ और मैंने आजतक ऐसा कोई कृत्य नहीं किया है जिसकी वजह से मुझें तुम इतनी कठोर सज़ा दे सकती हो कि मुझसे मेरा पति छीन पाओगी।"
शेष अगलें भाग में...
क्या शोभना सचमुच अपने प्राण अपने ही पति के हाथों गंवा बैठेगी ? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहें।