(भाग 15)
अब तक आपने पढ़ा कि वह भयानक चेहरे वाली आत्मा शोभना के शरीर में प्रवेश कर लेती है,औऱ रघुनाथ पर हमला करने लगती है इसी बीच किटी अपनी माँ को पुकारती है। शोभना सामान्य होकर मूर्छित हो जाती है।
अब आगें...
रघुनाथ ने शोभना को सावधानीपूर्वक पलंग पर पहले से गहरी नींद में सो रहे गोलु के पास लेटा दिया। किटी भी शोभना के सिरहाने जाकर चुपचाप खड़ी हो गई।
रघुनाथ अब तक ख़ौफ़ज़दा था। उसने किटी को भी शोभना के पास लेटा दिया। रघुनाथ ने शोभना के दाएं-बाएं लेटे हुए अपने दोनों मासूम बच्चों को सरसरी निगाहों से प्यार से देखा। फ़िर उनसे नजरें हटाकर शोभना की ओर देखा। उसकी आँखों में करुणा के साथ डर भी उतर आया था...
"कहीं उस आत्मा ने शोभना के शरीर को तो अब अपना घर नहीं बना लिया..."
इस विचारभर से रघुनाथ सिहर उठा। उसे अपना हलक सूखता हुआ सा महसूस हुआ। प्यास से उसके होंठ सूख गए थे। त्वचा की रुख़ी सी परत उसके होठों पर जम गई थी।
सुबह होने ही वाली थीं। रघुनाथ ने घड़ी पर नज़र डाली...पौने चार बज रहे थें। रात बीत चूंकि थी। रघुनाथ ने चेन की सांस ली। पण्डितजी के मुताबिक आत्मा की शक्तियां सिर्फ़ रात को ही अधिक प्रभावशाली होती है। अब ख़तरा टल गया था।
रघुनाथ के हाथ-पैर शिथिल हो गए थे। उसमें अब इतनी हिम्मत भी नहीं बचीं थी कि वह उठकर किचन में जाकर पानी पी आए। वह आँख मुंदकर गोलू के पास पड़ी खाली जगह पर लेट गया। उसकी सांस अब भी धौकनी की तरह चल रही थीं। प्यास से गला सूखे जा रहा था और नींद का उससे मानो कोई वास्ता ही न था।
वह यूँही लेटा रहा। सहसा उसे महसूस हुआ कि कोई उसे घूर रहा है। कोई हैं जो उसके ठीक पास खड़ा हुआ है। उसने झटके से आँखे खोलीं..पर वहाँ कोई नहीं था। उसने अपने बगल में सो रहे बीवी, बच्चों की ओर देखा। वह भी सो रहें थें। गहरी सांस छोड़ते हुए रघुनाथ फ़िर से अचेत सा बिस्तर पर लेट गया। इस बार फ़िर से उसे यही महसूस हुआ कि उसके पास कोई खड़ा हुआ है। उसने बिना आंखे खोले करवट बदल ली। अब तो उसे लगा जैसे कोई उसके चेहरे के ठीक सामने ही आ गया है। उसने इस बार हौले-हौले अपनी पलकें ऊपर उठाते हुए आँखे खोंलना शुरू किया तो उसकी आँखें डर से फ़टी की फटी रह गई...
वह औरत ठीक रघुनाथ के सामने थी। वह मुस्कुरा रही थीं। उसकी मुस्कान चेहरे को औऱ अधिक भयानक बना रहीं थीं।
रघुनाथ बुरी तरह से चीख़ पड़ा। लगा जैसे कोई शेर दहाड़ रहा हो या हाथी चिंघाड़ रहा हों...
उसकी चीख़ सुनकर बच्चों सहित शोभना की नींद टूट गई। दोनों बच्चें डर कर अपनी माँ से लिपट गए।
शोभना ने दोनों को दुलारा फ़िर बच्चों से अलग होकर उठकर पलंग के उस तरफ़ गई जिधर रघुनाथ करवट लेकर सोया हुआ था।
जब शोभना रघुनाथ के नजदीक पहुंची तो उसे रघुनाथ शांतभाव से सोया हुआ दिखाई दिया। शोभना ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा औऱ दबी आवाज़ में उसे पुकारा -" रघु..!"
रघुनाथ ने कोई उत्तर नहीं दिया। जस का तस सोया रहा। शोभना ने मन ही मन सोचा - " जरूर कोई डरावना सपना देख रहें होंगे औऱ गहरी नींद में चीख़ पड़े।"
आश्वस्त होकर शोभना पुनः अपनी जगह पर आकर बच्चों को खुद से चिपटाकर सो गई।
करवट लिए सोए हुए रघुनाथ ने झटके से अपनी आँखें खोलीं। उसकी अंगारों सी धधकती हुई आंखों से प्रतिशोध की लपटें साफ़ दिखाई दे रहीं थी और चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर रहीं थीं।
शेष अगलें भाग में...
तो क्या अब उस आत्मा ने रघुनाथ के शरीर पर अपना कब्जा कर लिया है ? यदि ऐसा है तो शोभना अब इस नई मुसीबत से कैसे निबट पाएंगी ?