Wo Billy - 10 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | वो बिल्ली - 10

Featured Books
Categories
Share

वो बिल्ली - 10

(भाग 10)

अब तक आपने पढ़ा कि रघुनाथ पंडितजी को अपने साथ लेकर घर आता है। पंडित जी तुरन्त घर खाली कर देने की सलाह देते हैं।

अब आगें..

रघुनाथ को हिदायत देने के बाद पंडित जी ने आँगन में ईंट की सहायता से हवन कुंड बनाया। इसके बाद पूरे परिवार को हवन में शामिल होने के लिए बुलाया। सभी लोग आकर अपने -अपने आसन पर बैठ गए। किटी शोभना की गोद में गुमसुम सी बैठी हुई थीं।

पंडितजी हवन कुंड में आम की सूखी लकड़ियां रख रहे थें। हवन कुंड के पास सारी हवन सामग्री (हव्य) रखी हुई थी। सामग्री में गंगाजल, श्रीफ़ल, पुष्प, पुष्पमाला, गंध, जौ, अक्षत, रोली, सूखा नारियल, गाय का घी, कलावा आदि सब रखा हुआ था।

पंडितजी ने आदेशात्मक स्वर में कहा - "अब यजमान सर्वप्रथम श्रीगणेश जी का नाम लेकर श्रीफ़ल अर्पण करें।"

आदेशानुसार रघुनाथ ने नारियल लिया और उसे भगवान को समर्पित करके जैसे ही फोड़ा तो वह अंदर से काला निकला। यह देखकर शोभना किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा गई। उसके चेहरे पर पसीने की महीन बूंदे उभर आई थीं।

पंडितजी ने सुंदर वाणी में आश्वासन देते हुए कहा - " चिंता की कोई बात नहीं है। यदाकदा नारियल इस तरह से निकल जाते हैं। यह एक स्वाभाविक सी बात है। रधुनाथ जी अब आप स्थान देवता के निमित्त पूजन करें। उनसे अपने परिवार की रक्षा हेतु प्रार्थना करें।"

किटी ने टेढ़ी हँसी हँसते हुए कहा - " यह स्थान मेरा है। मैं ही यहाँ की मालकिन हूँ।"

इतना सुनकर वहाँ मौजूद सभी लोगों के चेहरे की हवाईय्या उड़ गई। शोभना को लगा कि किटी उसकी गोद से उछलकर सबकुछ तहस-नहस कर देंगी। जहन में इस विचार के आतें ही शोभना ने किटी पर अपनी पकड़ पहले से अधिक मजबूत कर ली।

हवन शुरू करने के लिए अग्नि प्रज्ज्वलित करने लगें तो दियासलाई हवनकुंड के पास जाते ही बुझ जाती। किटी अब भी मंद-मंद मुस्कुरा रहीं थीं। उसका चेहरा बड़ा ही भयानक लग रहा था। ऐसा जान पड़ता था कि तूफ़ान अभी शांत बैठा हुआ है। कौन जाने वह कब सक्रिय होकर सब कुछ बर्बाद कर दे।

" शायद ! दियासलाई पर पानी पड़ गया है,तभी अधिक देर तक जल नहीं पा रहीं हैं।" - मन को झूठी तसल्ली देते हुए रघुनाथ ने कहा।

"जी, कोई बात नहीं। मेरे पास भी एक पैकेट रखा हुआ है।" - अपने कुर्ते की जेब से माचिसबॉक्स निकालते हुए पंडित जी ने कहा।

पंडित जी ने इस बार जब दियासलाई हवन कुंड में डाली तो लकड़ियाँ धुँ-धुँ करके जल उठी। लकड़ियों के जलते ही किटी सामान्य हो गई।

स्वाहा ! स्वाहा ! की आवाज़ आँगन में गूँज उठीं। आहुतियां समाप्त होने के बाद नैवेध अर्पण किया गया व सभी को प्रसाद वितरित किया गया।

हवन कुंड की अग्नि अब भी मद्धम-मद्धम प्रज्ज्वलित हो रहीं थी। कुंड से निकलता धुँआ चारों दिशा में फैल रहा था। उसकी सुगंध से मन में सकारात्मकता महसूस हो रहीं थीं। पंडितजी को वस्त्र, फल, मिठाई व दक्षिणा देकर विदा कर देने के बाद रघुनाथ सोफ़े पर धँसकर आँख मूंदकर बैठ गया। पंडितजी के कथनानुसार अब जल्द ही घर खाली करने का विचार रघुनाथ को परेशान कर रहा था।

फ़िलहाल सब कुछ सामान्य ही था। किटी गोलू के साथ ड्राइंग बना रही थीं।

चाय लेकर शोभना रघुनाथ के पास जाती है। चाय का प्याला आगें बढ़ाते हुए वह पूछती है - " अब आगें क्या करना है ?"

चाय का प्याला लेते हुए रघुनाथ ने चिंतातुर होकर कहा - " आज तो ऑफिस से छुट्टी ले ली हैं। सोचा तो यहीं है कि जल्दी ही कोई घर ढूंढ लूँ।"

शोभना सोफ़े पर बैठ जाती हैं। अपनी साड़ी के पल्लू से मुँह पोछते हुए कहती है - " क्या इतनी जल्दी कोई घर मिल जाएगा। मुझें तो अब इस घर में एक पल रहना भी सदियों के जैसा लग रहा है। मन में हर पल यहीं डर बना रहता है कि हम एक आत्मा के साथ रह रहे हैं। क्या पता कब वह कुछ अनर्थ कर बैठें। राम जाने वह अब भी यहाँ मौजूद होकर हमारी चर्चा सुन रहीं होगी..!"

रघुनाथ ने चाय का सिप लेते हुए कहा - " तुम मन को शांत रखों। नकारात्मकता से ही बुरी शक्तियों का असर हम पर जल्दी हावी होता है। मन में भगवान का नाम जपती रहो उससे तुम्हें इस परिस्थिति से निपटने की हिम्मत मिलेंगी। मैं जल्दी ही लौट आऊंगा। एक दो लैंडलॉर्ड से बात हुई है। मैं घर देख आता हूँ। तुम अपना औऱ बच्चों का खयाल रखना।"

चाय खत्म करने के बाद रघुनाथ वहाँ से चले गए।

शोभना बच्चों के पास जाकर बैठ गई। वह ड्रॉइंग में व्यस्त बच्चों को देखकर मुस्कुरा देती हैं। गोलू की ड्रॉइंग शीट में झाँककर देखने पर एक खूबसूरत सी सीनरी दिखाई देती है। शोभना शाबाशी देते हुए उसकी पीठ थपथपा देती है। इसके बाद वह किटी की ड्रॉइंग शीट को देखती हैं तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है।

शेष अगलें भाग में....

किटी ने आख़िर ऐसा कौन सा चित्र बनाया था जिसे देखकर शोभना भौचक्की रह गई। जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहिए।