वो बिल्ली
(भाग 8)
अब तक आपने पढ़ा कि शोभना जब बच्चों के रूम में जाती है,तो उसे वहाँ गोलू सोया हुआ दिखाई देता है लेक़िन किटी नदारद रहती हैं।
अब आगें..
सभी कमरें चेक करने के बाद भी जब किटी कही नहीं दिखी तो शोभना घबरा गई थीं। वह बेतहाशा सी आँगन की ओर भागती है। शोभना जब आँगन में पहुंचती तो उसने देखा, क्यारियों के पास किटी बैठी हुई थी। शोभना जब उसके पास पहुँची तो वह बुरी तरह से चोंक गई ; क्योंकि क्यारी के अंदर वहीं बिल्ली बैठी हुई थीं। किटी उसे देखकर धीमें-धीमें मुस्कुरा रहीं थीं। किटी के हाथ में बड़ी सी चॉकलेट थी। चॉकलेट खून से सनी हुई थी जिससे चूंकर खून की बूंदे टपक-टपक करके ज़मीन पर गिर रहीं थीं। बूंदों के गिरते ही बिल्ली तुरन्त जीभ बाहर निकालती औऱ बूंदों को चट कर जाती। यह दृश्य बड़ा ही भयानक था जिसे देखकर शोभना का कलेजा कांप उठा।
चाकलेट पर खून की परत थीं। शोभना ने किटी के कंधे पर हाथ रखते हुए उसे स्नेह से कहा - " किटी,फेंको इसे ! यह ख़राब है। यह सब देखकर शोभना को उकताई आने लगीं। जब किटी ने शोभना की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो गुस्से से शोभना ने चॉकलेट किटी के हाथ से लेकर दूर फेंक दी। चॉकलेट फेंके जाने से किटी ने रौद्र रूप धारण कर लिया। वह भर्राती हुई आवाज़ से हुँकार भरती हुई खड़ी हो जाती हैं। किटी के बिखरें हुए बाल उसके चेहरे पर हवा के झोंकों से लहरा रहें थे। बालों के पीछे से झाँकती हुई खून की प्यासी आंखे शोभना को इस तरह से घूर रही थी मानों अभी इसी वक्त वह शोभना को कच्चा चबा डालेंगी। यह देखकर शोभना की सांस उखड़ने लगीं। वह चीख़ते हुए दौड़कर अंदर चली जाती हैं। उसकी चीख़ सुनकर रघुनाथ भी तेज़ क़दमो से बढ़ता हुआ उसी ओर आता है जिस ओर से चीखने की आवाज़ सुनाई दी थीं।
रघुनाथ को बेतहाशा सी भागती हुई शोभना अपनी ओर ही आती हुई दिखाई देती है।
शोभना बहुत ज़्यादा घबराई हुई थी। वह रघुनाथ से लिपट जाती है।
शोभना रघुबीर के पास जाकर उससे लिपट कर रोने लगतीं है और सारी बात बताती है। वह घबराई हुई सी एक सांस में लगातार बोलते हुए कहती जाती है - "रघु, मेरी बेटी को बचा लो ! हमारी बच्ची खतरे में है। हम उसके साथ कुछ बुरा नहीं होने देंगे।"
रघुनाथ ने भी घबराते हुए शोभना से पूछा - "हुआ क्या है शोभा ..? किटी कहाँ पर है.?"
रघुनाथ से अलग होते हुए शोभना ने कहा - "रघु,जल्दी से चलों..! किटी आँगन में उस बिल्ली के पास बैठी हुई है।"
दोनों ही तेज़ रफ़्तार से आँगन की ओर जाते हैं, लेक़िन वहाँ न तो किटी थी और ना ही वो बिल्ली।
रघुनाथ ने चारों ओर अपनी नज़र दौड़ाते हुए कहा - "यहाँ तो कोई भी नहीं है।"
शोभना ने यहाँ-वहाँ देखते हुए कहा - " मेरा यकीन करो रघु ! यह मेरा वहम नहीं था। हमारी बच्ची उस औरत के कब्ज़े में है। उस औरत ने हमारी किटी के शरीर पर अपना अधिकार कर लिया है। किटीस बॉडी इज पॉसेस्ट !"
रघुनाथ ने विश्वासभरी निगाहों से शोभना की ओर देखते हुए कहा - " तुम शुरू से ही सही थी शोभना..। काश ! मैंने तुम पर पहले ही यकीन कर लिया होता। कुछ तो गलत हैं इस घर में। जरूर इस घर में नकारात्मक ऊर्जा है। अब जल्दी ही कोई घर देखकर हम शिफ़्ट कर लेंगे। फ़िलहाल तो किटी को ढूंढते हैं।"
दोनों आपस में बातचीत कर ही रहें होते हैं कि उन्हें आँगन से लगें गलियारे से कुछ ठोंकने की तेज़ आवाज़ सुनाई देती है। दोनों चोंककर एक दूसरे का चेहरा देखते हैं क्योंकि उस तरफ़ कभी कोई जाता नहीं था। वहाँ टूटा-फूटा हुआ कबाड़ का सामान रखा हुआ था। अधिकांश सामान तो मकान मालिक का ही रखा हुआ था। दोनों फुर्ती से उस ओर जाते है। वहाँ जो दृश्य उन्हें दिखाई दिया उसे देखकर दोनों के हाथ-पैर फूल गए।
किटी क्रोधित होकर एक चूहें को बुरी तरह से लट्ठ से मार रही थी। बार-बार प्रहार से चूहे का कीमा बन चुंका था।
शोभना को चक्कर सा आ गया। उसने अपने आप को संभालने के लिए रघुनाथ के बांह थाम ली।
रघुनाथ ने शोभना को पकड़ते हुए - " शोभना संभालो अपने आप को।"
शेष अगलें भाग में....
क्या किटी के शरीर के द्वारा अब वह औरत अपने मकान में रहने वाले इन नए किरायेदारों को सबक सिखाएगी ? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहिए।