(भाग 5)
रघुनाथ ने शोभना को झंझोड़ते हुए कहा - " क्या हो गया है तुम्हें..? होश में आओ..हम लोग जबसे से यहाँ शिफ़्ट हुए हैं, तबसे ही तुम अपनी मनगढ़ंत कहानियों को सच मानकर वही देख रही हो जो तुम्हारा मन तुम्हें दिखा रहा है। दोनों बच्चे हॉल में बैठकर मजे से अपनी खिचड़ी खा रहे हैं।"
शोभना बहुत ज़्यादा घबराई हुई थी, लड़खड़ाती जुबान से बोली - " म..म..म..मेरा यक़ीन करो। अभी यहाँ किटी थीं। उसके बाल बिखरें हुए थे और उसने मुझ पर हमला बोल दिया था।"
रघुनाथ - " यहाँ कोई भी नहीं है शोभना। तुम्हें फ़िर से वहम हो गया। तुम सारा दिन यहीं सोचविचार करती रहती हो इसीलिए तुम्हें भ्रम हो रहा है। हेलुसिनेशन है ये और कुछ भी नहीं।"
शोभना - " कोई हेलुसिनेशन नहीं है ! यहाँ इस घर में वह औरत और बिल्ली रहते हैं। यह घर उसी का है। उसने मुझसे कहा भी की वह मालकिन है यहाँ की।"
रघुनाथ ने हैरानी से शोभना को देखा और कहा -"शोभना तुम ऐसी बातें कर रही हो ? मुझें तो यकीन ही नहीं हो रहा ! तुम कबसे ऐसे अंधविश्वास को मानने लगी हो ? अनपढ़ों के जैसी बाते कर रही हो। इतनी पढ़ीलिखी होकर भी इन सब बातों पर यक़ीन करती हो। भूतपिशाच ये सब सिर्फ़ काल्पनिक बातें हैं। असल में आज तक किसी ने नहीं देखा।"
शोभना - "आप तो बजरंगबली के भक्त हैं न.? रोज़ हनुमान चालीसा पढ़ते हैं। चालीसा में भी तो आता है कि 'भूतपिशाच निकट नहिं आवै'..
भूतपिशाच होते हैं तभी तो निकट न आने की बात कही गई है। काल्पनिक होते तो ऐसा लिखा ही क्यों जाता ? भगवान शिव को भूतभावन क्यों कहते..उनके गण भी तो यहीं होते हैं। इस तरह की घटनाओं को अनुभव करने वाला व्यक्ति अनपढ़ ही होगा यह जरूरी नहीं है। भूत डिग्री देखकर थोड़ी न दिखते हैं। न ही शिक्षा कोई ऐसी विधा है जिसको प्राप्त कर लेने से भूतप्रेत नहीं दिखते। आई सा हर विथ माय ओन आईज ! ट्रस्ट मी !"
शोभना की बात सुनकर रघुनाथ कुछ भी नहीं कह पाए।
वह कुछ देर चुप ही रहें फिर प्यार से शोभना को समझाते हुए कहते हैं - " मुझें तुम पर पूरा यक़ीन है ; लेकिन मैं भूत पर यकीन नहीं करता हुँ। फिर भी हम किसी अच्छे से पंडित से इस विषय में बात करके उन्हें यहाँ लेकर आएंगे। यह तो हुई तुम्हारी तसल्ली वाली बात। मेरी तसल्ली के लिए तुम्हें कल मेरे साथ डॉक्टर अनिरुध्द के क्लीनिक पर चलना होगा।"
शोभना - " ठीक है !"
रघुनाथ ने मुस्कुराते हुए कहा - " अब में भगवान की छबि को रखों और चलों! भूतों ने खिचड़ी का मज़ा किरकिरा कर दिया।"
शोभना के मन को भी हल्की सी राहत महसूस हुई, वह मज़ाक करते हुए बोली - " भूतों ने मेरे दिमाग का दही कर दिया और आपको अपनी खिचड़ी की पड़ी है।"
रघुनाथ हँसकर बोले - " कल से तुम भूतों के लिए दही जमा दिया करना तो वो तुम्हारें दिमाग का दही नहीं बनायेगे। "
रघुनाथ अपनी बातों से शोभना को यह यकीन दिला देते हैं कि वह जो कुछ भी देख या सुन रहीं हैं, वह उसका वहम ही है।
शेष अगलें भाग में....