Band File in Hindi Fiction Stories by Rajeev kumar books and stories PDF | बंद फाइल

Featured Books
Categories
Share

बंद फाइल


बंद फाइल

एक तो बला की उमस, उस पर बिजली महारानी उनुपस्थित, कब तक हाजिर होगी कोई भी नहीं जानता है और उस पर धुल-धक्कड़ भरी फाइलों की साफ-सफाई। अनमने ढंग सेे फाइल पर गंदा कपड़ा पटकते हुए मोहन भीतर ही भीतर विकास पदाधिकारी बाबू पर गुस्साया, ये क्या सुझी पदाधिकारी बाबू को जो आज ही साफ-सफायी का काम दे दिया।
कैबिन के अंदर से आवाज आई ’’ साफ-सफायी जल्दी करो और भी दुसरा काम करना है।ं ’’
’’ जी सर, तुरंत किए देता हूं। ’’ आवाज लगानेे के बाद मोहन सोच में पड़ गया कि मेरे मन की आवाज कहीं उनके कानों में पड़ तो नहीं गयी।
सोच की दुनिया से बाहर आनेे पर मोेहन ने गौर किया कि एक ही फाइल पर लगातार कपड़ा पटकने के कारण फाइल का कवर फट ककर दुर जा गिरा है, जिसके कारण कागजात आजादी का जश्न मनाते- मनाते तीव्र गति से दुर तक फर्श पर बिखर गई। अब मोहन को खुद पर गुस्सा आ रहा था क्योेंकि ढेर सारे पन्नों को वापस फाइल में रखना पड़ रहा था।
खैर मोहन ने कागजात समेटना प्रारम्भ किया।
आठवीं पास मोहन की उत्सूकता कागजात को पढ़ने को हुुई, पहली पंक्ति पढ़ते ही मोहन समझ गया कि यह गाँव के विकास की फाइल है। मोहन खुश हुआ यह सोच कर कि अरे ये तो डुबनियां गाँव के कागजात हैं और लिखा है कि पूरे गाँव में पी.सी.सी सड़क का कार्य पूर्ण। कुछ नाम लिखे हैैं जो रोजगार लाभूूकों के नाम थे। सिचाई के लिए आर्थिक सहायता भी दी गई है।ं
उत्सूक्तावश मोहन ने दुसरा कागज देखा मरैणा गाँव, शीखा गाँव। मोहन मन ही मन सोचा कि काश इस विकास का आर्शिवाद मेरे गाँव को भी मिला होेता।
आखिरी कागजात देेखकर मोहन प्रसन्नता से फुला नहीं समाया, यह देख कर कि मेेरे गाँव धुर्मा का भी नाम लिखा है, मगर अगले ही क्षण मोहन भड़क गया यह देख कर कि उस कागजात में खुद मोहन के घर-परिवार को मिली सरकारी सहायता की बात लिखी हुई थी।
मोहन ने देखा कि सदानंद साव, मेरे चाचा जी को खेती के लिए जो ऋण दिया गया था वो माफ हो गया है। मोेहन को स्मरण हो आया कि मेरे चाचा तो महाजन के कर्ज के बोझ तले दब कर मरे हैं।
मोहन ने देखा कि अगली पंक्ति में खुद मोेहन का नाम लिखा है कि मोहन साव को पढ़ाई के लिए जो ऋण दिया गया था और तय समय पर .ऋण न चुका पाने के कारण घर-जमीन की कुर्की-जब्ती की गई। फिर भी 1,20,000 रूपया अभी बाकि है। मोहन और बौखला गया, मोहन को याद आया कि कैसे उसके पिता ने आगे न पढ़ा पाने में अपनी असमर्थता दिखायी थी।
मोहन के दिल दिमाग पर यह बात धुमड़ गयी कि जिस तरह मुझको दी गयी सरकारी आर्थिक सहायता की बात झुठी निकली, हो न हो अन्य गाँवों को मिली आर्थिक सहायता की बात भी झुठी हो।
मोहन अभी सोच मंे पड़ा ही था कि तभी पदाधिकारी ने घंटी बजाई, मोहन के कैबिन में दाखिल होते ही पदाधिकारी ने कहा ’’ ’ गाँवों का विकास ’ नाम की एक फाइल ढुंढना तो, फाइल उपर भेजनी है, इनक्वायरी के लिए।
मोहन के मन में आया कि भले विकास के दाँवों की पोल खोलुुंगां। फिर अगले ही क्षण मोहन के मन में विचार आया कि कहीं सरकारी दांव पेंच के कारण हमको बकाया राशि का भुगतान न करना पड़ जाए। इस लिए फाइल का न मिलना अच्छा है।
’’ ठीक है ढंुढता हुं। ’’ बोलकर मोहन कैबिन से बाहर निकल गया।

समाप्त