Wo Maya he - 89 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 89

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वो माया है.... - 89



(89)


साइमन बेसब्री से कुलभूषण के मैसेज का इंतज़ार कर रहा था। पैंतालीस मिनट हो गए थे। पर मैसेज नहीं आया था। उसने सोचा कि पाँच मिनट और देख लेता है। पाँच मिनट पूरे होने के बाद भी मैसेज नहीं आया तो उसने कुलभूषण के फोन पर कॉल की। फोन उठा नहीं। वह समझ गया कि कुलभूषण मुश्किल में है। उसने फौरन कंट्रोल रूम को आदेश दिया कि हुसैनपुर के थाने को उस लोकेशन पर टीम भेजने को कहे। उसने यह भी कहा कि टीम का लीडर उससे संपर्क करे। उसके बाद उसने अपने ड्राइवर को फोन किया। उससे कहा कि वह गाड़ी तैयार रखे।

हुसैनपुर के थाने में एक टीम आदेश का इंतज़ार कर रही थी। आदेश मिलते ही वह टीम बताई गई लोकेशन के लिए निकल गई। इस टीम को इंस्पेक्टर नासिर अहमद लीड कर रहा था। उसने साइमन से संपर्क कर बात की। साइमन ने उसे कुलभूषण के मैसेज के बारे में बताया। उसने बताया कि वहाँ पहुँच कर अपनी कार्यवाही करे। जो भी हो उसकी सूचना उसे दे। उसने कुलभूषण का वॉइस मैसेज भी उसे भेज दिया।

ललित और पुनीत दोनों ही बहुत गंभीर थे। उन्हें डर था कि उनके पास जो शख्स बेहोश पड़ा है उसे खोजते हुए पुलिस वहाँ ना आ जाए। दोनों सोच रहे थे कि कुलभूषण को किस तरह ठिकाने लगाना है। उसे जल्दी ठिकाने लगाकर दोनों वहाँ से निकल जाना चाहते थे। ललित ने कहा,
"इसे मारकर बगल में पड़े मैदान में गाड़ देते हैं। उसके बाद दोनों यहाँ से चले चलते हैं।"
पुनीत ने कहा,
"तुम्हारी बात ठीक है। पर हम जाएंगे कहाँ ?"
ललित ने कुछ सोचकर कहा,
"मैं सोच रहा था कि हम दोनों कुछ दिनों के लिए अपने अपने घर चले जाते हैं। अनुष्ठान के अंतिम पड़ाव में अभी एक महीने से अधिक समय है। जब अनुष्ठान का समय आएगा तो एक दूसरे से संपर्क करके सब तय कर लेंगे। फिलहाल हम दोनों का यहाँ से जाना ही ठीक रहेगा।"
ललित की बात सुनकर पुनीत भी कुछ सोच में पड़ गया। उसे सोच में पड़े हुए देखकर ललित ने कहा,
"क्या सोचने लगे तुम ?"
"मैं सोच रहा था कि हमें यहाँ से जाने से पहले अपनी सारी निशानियाँ मिटानी होंगी।"
ललित समझ गया कि वह क्या कहना चाहता है। उसने कहा,
"ऊपर कमरे में जो कुछ है उसके आधार पर पुलिस को शक हो जाएगा कि हम यहाँ कोई अनुष्ठान की तैयारी कर रहे थे। उस सारे सामान को हटा देते हैं। यह अभी कुछ और समय बेहोश रहेगा। इसके हाथ पैर बांध देते हैं। होश में आ भी गया तो कुछ कर नहीं पाएगा। हम दोनों ऊपर चलकर कमरे से सारा सामान हटा देते हैं। फिर इसे ठिकाने लगा देंगे।"
ललित और पुनीत ने कुलभूषण के हाथ पैर बांध दिए। दोनों ऊपर कमरे में चले गए।

नासिर अहमद अपनी टीम के साथ उस गली के बाहर पहुँच गया था जहाँ पर मकान था। वहाँ पहुँच कर उसने साइमन को सूचना दी। साइमन ने कहा कि वह सावधानी बरतते हुए मकान की तरफ बढ़े। कहा नहीं जा सकता है कि अंदर कितने लोग होंगे। नासिर को अपनी टीम के साथ साथ कुलभूषण की हिफाज़त का भी ध्यान रखना है।
टीम में नासिर के अलावा कुल चार लोग थे। सभी सादी वर्दी में थे। नासिर ने सबको कॉल पर जोड़ लिया। उसने दो लोगों को गली के दूसरी तरफ भेजा जहाँ मकान का पिछला हिस्सा था। खुद तीन लोगों के साथ मकान के अगले हिस्से की तरफ बढ़ गया। जो दो लोग पिछले हिस्से में गए थे उनमें से एक ने बताया कि पीछे की दीवार बहुत ऊँची है। उस पर चढ़ पाना संभव नहीं है। इसलिए वह अपने साथी के साथ मकान के बगल में पड़े मैदान की तरफ से जाकर कोशिश करता है।
नासिर ने कहा कि एक आदमी पीछे की तरफ रुके और दूसरा साइड में जाकर तैनात रहे। अगर अंदर से कोई भागने की कोशिश करे तो उस पर नज़र रखे। वह सामने से अंदर जाने की कोशिश कर रहा है। नासिर ने अपने दोनों साथियों से कहा कि पहले वह गेट फांदकर अंदर जाता है। उसके बाद वह दोनों अंदर आएं।

ऊपर के कमरे में एक छोटी सी मिट्टी की मूर्ति थी। यह मूर्ति हाथ से बनाई गई थी। मूर्ति बहुत अजीब सी थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी का कमर से ऊपर तक का आधा शरीर हो। मूर्ति के पीछे की दीवार पर काले रंग से उसी तरह की खोपड़ी का निशान बना था जैसे स्टीकर में था। मूर्ति के सामने लोहे का एक हवन कुंड रखा था। उसमें राख भरी थी। ललित और पुनीत अपने अपने काम में लगे थे। ललित ने सबसे पहले दीवार पर बने खोपड़ी के निशान को गीले कपड़े से साफ करना शुरू किया। पुनीत ने हवन कुंड की राख को एक प्लास्टिक बैग में भरते हुए कहा,
"मुराबंध देव की मूर्ति को उस आदमी की लाश के साथ ही मिट्टी में गाड़ देंगे। अंतिम चरण के बाद तो हमारे देवता की पूरी मूर्ति बनेगी।"
ललित ने अपना काम करते हुए कहा,
"बिल्कुल अंतिम चरण के बाद देव की मूर्ति पूरी हो जाएगी और हमारी सारी इच्छाएं भी।"
राख को प्लास्टिक बैग में भरने के बाद पुनीत ने मूर्ति के आसपास पड़े सूखे फूलों को भी उस बैग में भर दिया। उसके बाद वह भी ललित की मदद करने लगा।

नासिर सावधानी से गेट फांदकर अंदर गया। उसके दोनों साथी भी एक एक करके अंदर आ गए। तीनों मेनडोर के पास पहुँचे। उसे धक्का दिया तो वह खुला हुआ था। तीनों अंदर चले गए। सबसे पीछे एक कमरे में कुलभूषण बेहोश पड़ा था। वहाँ कोई और नहीं था। नासिर ने अपने एक साथी से कहा कि वह वहीं रुके। वह दूसरे साथी के साथ बाहर जाकर देखता है। बाहर आकर उसने देखा कि ऑटो के बगल से एक रास्ता अंदर की तरफ गया है। नासिर अपने साथी के साथ पिछले हिस्से की तरफ बढ़ गया। उसे ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां दिखाई पड़ीं। वह अपने साथी के साथ ऊपर चढ़ गया।

अपना काम निपटा कर ललित और पुनीत ने नीचे जाने का फैसला किया। पुनीत ने एक हाथ में प्लास्टिक बैग और दूसरे में मूर्ति पकड़ रखी थी। ललित ने कमरे का दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खोलते ही उसके होश उड़ गए। सामने दो आदमी गन ताने खड़े थे। ललित ने दरवाज़ा बंद करने की कोशिश की तो नासिर ने उसे खींचकर एक लात मारी‌। वह गिर पड़ा। नासिर कमरे के अंदर घुस गया। उसका साथी भी अंदर आ गया। नासिर और उसके साथी ने ललित और पुनीत को गन प्वाइंट पर एक तरफ कर लिया। नासिर ने मकान के बाहर खड़े अपने साथियों को गेट के पास आने के लिए कहा।
नीचे जो पुलिस वाला था उसने कुलभूषण के हाथ पैर खोले उसे होश में लेकर आया। कुलभूषण को यह जानकर तसल्ली हुई कि पुलिस मदद के लिए आ गई है।
नासिर और उसका साथी ललित और पुनीत को लेकर नीचे आए। नासिर ने उनसे गेट खोलने को कहा। ललित ने गेट खोला। नासिर अपने साथियों और कुलभूषण के साथ उन दोनों को हुसैनपुर पुलिस स्टेशन ले गया।

ललित और पुनीत की गिरफ्तारी एक बड़ी सफलता थी। साइमन इंस्पेक्टर हरीश के साथ हुसैनपुर पुलिस स्टेशन पहुँचा। उसने नासिर और उसकी टीम को इस सफलता की बधाई दी। कुलभूषण को शाबाशी दी कि उसने अपनी सूझबूझ से ललित और पुनीत को पकड़वा दिया। वह और इंस्पेक्टर हरीश पूछताछ के लिए ललित और पुनीत को शाहखुर्द ले गए। शाहखुर्द पहुँचते पहुँचते सुबह के लगभग चार बज गए थे। साइमन और इंस्पेक्टर हरीश दोनों ही बहुत थके हुए थे। इसलिए उन्होंने तय किया कि घर जाकर कुछ देर आराम करते हैं।

साइमन जब पुलिस स्टेशन जाने के लिए निकला तो उसे आज की सुबह बहुत खुशनुमा लग रही थी। इसका कारण था कि आज वह बहुत खुश था। उसे जिन दो हत्याओं के केस के लिए विशेष जांच अधिकारी के तौर पर भेजा गया था अब उनके रहस्य पर से पर्दा उठने वाला था। उसने अपने मन में प्रार्थना करके ईश्वर को धन्यवाद दिया। उसके बाद अपनी गाड़ी में बैठकर निकल गया।
पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल ने भी पूरे उत्साह से साइमन का अभिवादन किया। सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"मुबारक हो सर....हम पुष्कर और चेतन की हत्या की गुत्थी को सुलझाने के बहुत नज़दीक हैं। दोनों से पूछताछ की जाएगी तो सब सामने आ जाएगा।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"सर बीते बहुत समय से मन में एक बोझ था। आज मन बहुत खुश है। बस अब जल्दी से सारा सच पता करके सच्चाई लोगों के सामने लानी है।"
साइमन ने कहा,
"तो फिर देर किस बात की। उन दोनों से पूछताछ का इंतज़ाम करो।"
"सर वह हो गया है। बस आपका इंतज़ार कर रहे थे।"
साइमन इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल के साथ उस कमरे की तरफ चल दिया जहाँ ललित और पुनीत को पूछताछ के लिए बैठाया गया था।

ललित और पुनीत कमरे में बैठे थे। दोनों एकदम चुप थे। उन दोनों के मन में बहुत कुछ चल रहा था‌। ललित ने कहा,
"पुनीत क्या पुलिस को सबकुछ पता है ?"
पुनीत ने कहा,
"पता नहीं.... लेकिन हमारे पास से मुराबंध देव की जो मूर्ति मिली है उसके बारे में कल हुसैनपुर के उस इंस्पेक्टर नासिर ने पूछा था। मैंने उसे कुछ नहीं बताया था। उसने कहा था कि भले ही अभी कुछ ना बोलो। पर साइमन जब पूछताछ करेगा तो सब बताना पड़ेगा।"
ललित ने बड़े उदास स्वर में कहा,
"हमारी सारी मेहनत बेकार हो गईं पुनीत। मुराबंध देव का आशीर्वाद अब हमें नहीं मिल पाएगा।"
उसी समय साइमन ने इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल के साथ कमरे में प्रवेश किया।