Prem Gali ati Sankari - 96 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 96

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प्रेम गली अति साँकरी - 96

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उस दिन वाकई गैदरिंग में बहुत मज़ा आया |

Guten tag ---आते ही उसने मुस्काकर कहा था |

हम सब उसका मुँह देखने लगे थे,हमारी समझ में कहाँ से आता बंदा क्या बोल रहा था लेकिन अम्मा ने उसी तरह,उसी लहज़े में उसे जवाब दिया और खिलखिलाकर हँस पड़ीं थीं |बड़े दिनों बाद अम्मा को इतना खिलखिलाकर हँसते देखा था|

“सीधा सा ‘हैलो’कह रहा है ये अपनी भाषा यानि जर्मन में वैसे इतना बुद्धू तो वहाँ कोई नहीं था कि अल्बर्ट क्या कह रहा थयह समझ न पाते लेकिन उन्ही शब्दों में उत्तर देना तो कठिन ही था न क्योंकि हमारे परिवार में से अम्मा के अलावा कोई भी इस भाषा से वाकिफ़ नहीं था और अम्मा के द्वारा बोले गए शब्दों का उच्चारण भी नहीं कर सकते थे |वैसे अम्मा भी कितना जानती थीं ---गिनती के दो/चार शब्द !

“Wie geht es dir…..”अम्मा ने फिर अपना ज्ञान दिखाया |

“अब ये क्या है अम्मा ?”मैंने भुनभुन किया तो अल्बर्ट ही बोल उठा ;

“इट्स टू सिम्पल ----मीन्स ,हाऊ आर यू ---मतलब आप कैसे हैं ?”उसने हँसते हुए कहा था|

सिम्पल उसके लिए था न या फिर जो वहाँ पर जर्मन जानते थे उनके लिए था,भला हमारे लिए कैसे हो सकता था?फिर भी सबके रहते तक चेहरों पर आनंद की लहर पसरी रही थीं ,वातावरण खूब आनंदमय रहा था|

बंदा इंग्लिश,हिन्दी सब भाषाएँ जानता था और हँसते–हँसते हम सबको बना रहा था|मजे की बात यह थी कि अम्मा उससे पहली बार मिलीं थीं और उसकी पार्टी में शामिल हो गईं थीं |फिर तो अल्बर्ट बिना समय गँवाए सबमें ऐसे घुलमिल गया जैसे न जाने सबसे कब से परिचित हो|खूब बढ़िया हिन्दी,खूब गप्पें मारअल्बर्ट से मिलने से पहले हम सब उसके बारे में जो तरह तरह की अटकलें लगा रहे थे वे बिलकुल ही  निराधार निकलीं|

हम सब अल्बर्ट को देखकर खुश हो गए थे,बहुत अच्छा इंसान था वह,खूब हँसमुख और हर बात को पॉज़िटिव लेने वाला|सबसे ही उसकी ऐसी मित्रता हो गई कि किसी को लगा ही नहीं कि वह पहली बार सबसे मिल रहा था|उसने बताया कि उसे सितार सीखने में बहुत रुचि है|अम्मा ने उसे बताया कि उनके कुछ शिष्यों ने जर्मनी में एक छोटा ‘कला-केंद्र’शुरू किया हुआ है,वे उनसे अल्बर्ट का कॉन्टैक्ट करवा देंगी|उसे पता चल गया था कि अम्मा एक बार जर्मनी जाकर आईं थीं |उसने फिर से अम्मा से कहा कि वे अब आएं जर्मनी |अम्मा ने जब उससे कहा कि वह शुरू तो करे सितार सीखना | उसका खिला चेहरा आनंद से और भी खिल उठा था| मेरे सामने सुंदर किन्तु सपाट चेहरे वाले प्रमेश बर्मन का चेहरा आ खड़ा हुआ|वह एक सितार का गुरु था और इतना सपाट था कि मुझे जाने क्यों बार-बार लगता था कि वह कला के क्षेत्र में आकर इतना सपाट कैसे रह सकता था |मैंने अपने मित्रों में ,अपने पहचान वालों में इतना सपाट बंदा नहीं देखा था जितना मैं उसके बारे में सोचती,उतना ही मुझे भीतर से अजीब सा लगता|हाँ,मैंने ऐसे भी तो लोग देखे थे जो बड़ा हाई क्लास समझते थे अपने आपको,थे भी लेकिन मिलकर हुआ क्या?

कभी-कभी मुझे यह भी महसूस होता था क्या उसके अलावा अब मेरे लिए कोई चौयस नहीं रह गई थी?उत्पल कहीं से भी दृष्टि बचाकर मुझ पर नज़र फेंक देता|मुझे अच्छा-खासा दिखाई दे रहा था|एक मूक समझौता था मेरा स्वयं से |कितना दोगला होता है आदमी!किसी और को क्यों कुछ कहना चाहिए,खुद को कहो  न !

मन और भी असहज हो गया था जब पता चला कि प्रमेश की ज़िंदगी में कुछ ऐसा है जो उसके जीवन का अंतरंग भाग है और बहुत सी बातें साझा करने के बावज़ूद भी उसने अभी मुझे तो बताया नहीं था|फिर वही बात!मेरे मन की उथल-पुथल मुझे न तो चुप रहने दे रही थी और न ही कुछ पूछने दे रही थी|

अम्मा से जर्मनी आने का वायदा लिया अल्बर्ट ने !अम्मा ने उसे कहा कि वह सीखना शुरू तो करे जब वह ‘स्टेज परफ़ोर्मेंस’देगा तब ज़रूर आएंगी वे ! लेकिन जाते-जाते मौसी एक प्रश्न से मन में फिर से उथल पुथल मचा गई थीं|जिसको लेकर अम्मा के मन में फिर से सोई हुई हलचल ने उथल-पुथल करनी शुरू कर दी  थी|जब भी मेरे संबंध में कोई बात होती,अम्मा का चेहरा देखने लायक हो जाता था और मुझे बहुत खराब लगता था|

“बेटा ! सैटिल हो जाओ न ----”जैसे कोई बहुत बड़ी बात हो और मैं सैटिल न होकर कोई गुनाह कर रही हूँ|मौसी ने मुझे गले लगाया और एक लंबी साँस खींचकर मुझे मेरी बेचारगी का अहसास करवा दिया|

दिव्य इस बार संस्थान के छात्रों के साथ यू.के पहुँच ही चुका था|पहले डॉली को ले जाने की बात पर अम्मा कुछ खास राजी नहीं थीं,उसको वीज़ा भी नहीं मिल रहा था लेकिन बाद में न जाने कैसे सब कुछ ठीक हो गया और दिव्य बहन को भी अपने साथ ले जा पाया | ऐसा लगने लगा था कि अब सब कुछ धीरे-धीरे वर्तमान पीढ़ी संभालने लगेगी|अगर अम्मा क्रमश:अपने संस्थान को उससे जुड़े लोगों पर छोड़ भी दें तब भी कोई दिक्कत नहीं होगी|

इंसान को इंसान की आदत पड़ जाती है|ये बच्चे हमेशा तो संस्थान में रहते नहीं थे लेकिन फ़्लैट इतने पास थे कि जब भी चाहो संस्थान में चक्कर लगा लो|कभी भी ये लोग संस्थान के प्रांगण में दिखाई दे जाते|अब इनसे हर दिन वीडियो कॉल होती थी|

“कितना बदल गया है ज़माना,पास न होते हुए भी सब पास ही लगते हैं|वैसे तो इतने सालों से अमोल भैया भी तो बाहर ही थे और उनसे भी लगभग रोज़ ही बातें होती रहती थीं लेकिन दिव्य और डॉली से वीडियो पर बात करके उनकी माँ रतनी और बुआ के साथ अम्मा को कितना अच्छा लगा कि उनके चेहरे पे फूल ही खिल गए| एक बार बात करने के बाद तो रोज़ यू.के से वीडियो कॉल की प्रतीक्षा होने लगी|हम सब बच्चों की तरह प्रसन्नता से खिल उठते|

“अमी!बेटा एक बार देखो तो बात करके प्रमेश से---क्या मालूम वह जितना रुड दिखता है,उतना न भी हो ---”

क्या था यह?देखना ,सोचना----देख तो मैं उन्हें सालों से रही थी ,सोच ही नहीं पा रही थी|

“जी,अम्मा ,मैंने उस दिन कहा तो था आपसे कि मैं उनसे बात करती हूँ ,टाइम फिक्स कर लेटे हैं|”मैंने अनमने मन से उन्हें कह दिया |

सितार के गुरुओं में प्रमेश बर्मन सबसे प्रमुख थे और अब कई वर्षों से संस्थान में थे|अब उनके साथ इस विभाग में चार गुरु और थे जो अपने फिक्स दिनों में कक्षा लेने आते थे|न जाने मुझे यह बात क्यों भीतर से कचोट रही थी कि शायद अम्मा प्रमेश को संस्थान में एक महत्वपूर्ण पद पर स्थापित करना चाहती थीं जिससे वे और भी अधिक फ़्री महसूस कर सकें|

न जाने क्यों ,मुझे अम्मा बहुत बार स्वार्थी लगने लगती थीं फिर मैं अपने आपको ही कोसती कि मैं अपनी प्यारी अम्मा के बारे में कैसे ऐसा सोच सकती हूँ ?लेकिन इसमें कोई शक नहीं था कि मैं सोचती तो थी ही|’क्या हम डबल स्टैंडर्ड लोग हैं?’मेरे मन के प्रश्न मुझे बेकार ही मानसिक बीमार बना देते थे|

प्रमेश से मिलना मुझे जरूरी लगा और मैंने कार्यक्रम बना ही लिया कि मुझे यह जानना ही चाहिए कि उसका वास्तव में भीतरी स्वभाव कैसा है?मैं और वह क्या सचमुच ही अपना जीवन साथ में बिताने के बारे में सोच सकते हैं?