Guldasta - 15 in Hindi Poems by Madhavi Marathe books and stories PDF | गुलदस्ता - 15

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गुलदस्ता - 15

गुलदस्ता १५

Guldasta

  निसर्ग एक अनुठा जादुगर है, उसी के सान्निध्य में अशांत मन शांती खोजता है। हरियाली, झरने, फुल, पंछी, पौधे, नदी समंदर, आकाश, पहाड, अपने सकारात्मक उर्जासे मन शांत कर देते है। ऐसेही निसर्ग की सुंदरता पर कुछ पंक्तिया......

         ९१

नीले नीले आसमान पर,

संध्या की छाया गहराई

डुबते सुरज की किरणोंने 

सुनहरी लालिमा फैलाई

अबुजसा हुवा वातावरण

एक सन्नाटा छा गया

अंधेरे की दस्तक सुनकर

सुरज मुडकर चला गया

लौट गई सारी दुनिया

अपने अपने घरोंदो में 

रात का काजल लगाकर

सपन सलोने खाब्बों में

छाया गहरा अंध:कार

अनगिनत तारे झिलमिलाने लगे

तुटते तारोंकी पुकार

अंतरिक्ष मे गुँजने लगी

टुटे तारे से अपने

मन की बात बताने लगी

तेजदान का वो दिया

बिरहन आँखों में समाने लगी

..............................

              ९२

प्रार्थना करती रही, पुराण सुनती रही

भगवान तेरे प्यार में जोगनसी फिरती रही

कही भी मिल जाए तू

रास्ते निहारती रही

हर पंथ, धर्म, कर्म के

पथ पथ पे गुनगूनाती गई

अब रुक जाऊँगी एक जगह

मैं ना राह चलूँगी तेरी

इतने में कही से आवाज आयी

इसी में है भलाई तेरी 

जिस क्षण तू थम जाएगी

उसी क्षण में मेरे लाखों रुप पाएगी

चलने का नाम जिंदगी है और

रूकी जिंदगी परमात्मा की राह है

...................................

              ९३

अपने जिंदगी के किताब में

कभी पन्ने पलटकर देखो,

तो ऐसा लगता है

एक कहानीसी चल रही है

कभी उथल पुथल 

कभी मोद के फवाँरे

गुगगूनाती धुप में

चाय के चुसकारे 

घनघोर अंधेरावाला पन्ना

अब तो नही डराता 

बाद मे चाँदनी टिमटिमाती है

यह अनुभव था मेरा

कभी कभी कितने पन्ने

एक से ही लगते रहते है

लेकीन कुछ पन्नों के बाद

जिंदगी का रुख बदलता है

कितने अक्षरों में उलझती

धुप छाँव दिखती रही

अब तो जीवन बीत गया

किताब सिमटती गई  

......................

       ९४

दुनिया के मेले में

अनगिनत अनजाने चेहेरे

मिलते है

कोई तो हो अपने जैसा

चिराग लेकर

ढुँढते हे

सबकी होगी यही समस्या

कोई न मिलता

अपने जैसा

क्युं की सबको लगता हे

मैं ही हुं एक अकेला धरतीपर

सबसे अच्छा

..............................

        ९५

खुशनुमा जिंदगी के

रास्ते कितने छोटे लगते है

दर्द के साये से

वही रास्ते लंबे हो जाते है

खुशनुमाँ जिंदगी में

गुनगुनाती धुप चेहरेपे मुस्कान लाती है

दर्द के साये में

वही धुप चिलचिलाती है

खुशनुमाँ जिंदगी में

सभी लोग प्यारे, मुस्काते लगते है

 दर्द के साये में

वही लोग भेडियाँ बन जाते है

खुशनुमाँ जिंदगी में

जीवन चलता जाता है

दर्द के साये में

परमात्मा बाहे फैलाता है

कभी भी कुछ नित्य

नही रहता, ये बात

वो ही बतलाता है

...................

           ९६

हवाओं ने जो गीत गुनगूनाए 

क्या तू समझ पाया है ?

फिजाओं में जो रंग चढा है

वो तुझपर कभी चढा है ?

सुरज की प्रखर अग्नी में

कभी जलने का मजा लिया है ?

बिजली की चकाचोंध में

कभी अपने आपको देखा है ?

चंद्रमा की दुग्ध शीतलता को

अपने आखों में उतारा है ?

ये सब नही किया है

तो तू जीवन में क्युं आया है ?

..............................

           ९७

जंगल की निर्मम सुंदरता

अबुज शांती, कैसे

आवाज देती रहती है

जिंदगी के कुछ पल यहाँ

बीताओ कहती रहती है

जंगल का अपना एक नाद

जो शांती का ही स्वरूप है

जीव शृंखला की भी

अपनी एक सुहानी कडी है

एक कडी अगर टुट गई

तो जंगल बिखर जाता है

विराने में अपनी कहानी

औरों को बतलाता है

जब तक जीवन में

हरियाली है

जीवन सब रहेगा

विराने में तू हमेशा

अपने आप को

अकेला पाएगा

.................

      ९८

आज फुलवारी तो

बहोत महक उठी है

रंगबिरंगी फुलों की

डालियाँ झुम रही है

पवन दे रहा झोंके

पंछी झूला झुलाए

सुरीली तान लगाकर

अपने प्रीतम को बुलाए

वो भी तो झुल रही

दुसरे डाली में

वही से वो आवाज लगाए

आजा आंगन में

दोनों ना छोडे

अपनी डाल

सिर्फ दोनों तरफसे

निकले तानोंकी बौछार

उतने में हलके से

झुमते, गिर गए

पेडों से फुल

अलविदा कहे

फुलवारी को

जाते दुर दुर

पंछी भी छोड

गया डाली

अपने प्रीतम के पास

गिरते हुए फुलोंने,

उनका दिया साथ

दोनो उड गए

आसमान में

फैलाए पंख पसार

गिरते हुए फुल

निहारे उनको बार बार

........................

       ९९

नन्हे नन्हे चिटीयों की

लाल काली नक्काशी

जैसे चलती फिरती

बेला लहराती

एक पल में

रुकती कोई

दुसरी उसे पार

कर देती है

उन्हे समय को

व्यर्थ गवाँना

मंजूर नही है

किसी ओर को आती

खुशबू अचानक

उस ओर वो मुड

जाती है

पीछे की सेना

उसके साथ चली

जाती हे

क्षणभर में ध्यान आया

नन्हीसी चिटीयाँ  

कितना काम कर रही है

मैंने तो उन्हें देखते

व्यर्थ समय गवायाँ हे

नही .. नही मैंने तो

सीखा है उनसे

कार्यप्रणाली योजना

अपने लक्ष के प्राप्ती हेतु

किस तरह झुंझना

जीवन में हर एक से

सीख मिलती है

बस आँख खुली रखो

तो जीवन से मेहनत की

खुशबू आती है

......................

       १००

कल किसने देखा है

आज मस्ती में रहो

क्षण क्षण के अंतराल में

जीवन की धुन

सुनते रहो

खिल उठेंगे फुल

प्यार के

उसकी महक

महसुस करो

रंग चढ जाएगा

प्यार का

तो उसमें मदहोश

होते रहो

कभी तो आएगा

वो पल जो

आखरी कहलाएगा

उसकी खामोशी

तू बाद में

सुन पाएगा

खुषी भी सुन खामोशी की

प्यार महसुस कर

दुःख दर्द का सन्नाटा

उस क्षण में

अनुभव कर

फिर न तुझे डर लगेगा

आखरी पल तू

देख सकेगा

उसके बाद की जिंदगी में

तु स्वयं अपना कदम रखेगा

..............................