नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक
'आप बंगलोर जा रही हैं?'
'जी हां.' मोहिनी ने एक छोटा-सा उत्तर दिया तो सोहित ने कहा कि,
'शुक्र है, यह दुनियां बनाने वाले का. आप कुछ तो बोलीं. वरना मैं तो समझा था कि, आपने मुझे पहचाना ही नहीं?'
'इतने साल गुज़र गये, कैसे पहचान लेती?'
?- मोहिनी समझ चुकी थी कि, यह युवक उसे इकरा समझकर ही बात कर रहा है. इसलिए वह उसकी बातें पहले सुन लेना चाहती थी.
'मैं, अपनी मां के बहुत कहने पर लड़की देखने जा रहा हूँ, लेकिन अब उसे पसंद नहीं करूंगा.'
'क्यों?'
'आपको तो मालुम ही है तो फिर दोबारा क्यों सुनना चाहती हैं?'
'मुझे, अच्छा लगता है,'
'?'- सोहित ने उसे ध्यान से देखा. सोचा, फिर बोला कि,
'आपको तो मालुम है कि, स्कूल में पढ़ते हुए, एक दिन मैंने कक्षा में कह दिया था कि, मैं, आप ही से अपना विवाह करूंगा. मेरी इस बात से, मेरे अपने घर में तो किसी ने कुछ ध्यान ही नहीं दिया था. सबने सोचा था कि, बच्चा है. आठवीं क्लास में पढ़ता है, अभी क्या जाने कि, शादी-ब्याह क्या होता है. लेकिन, मुझे दूसरे छात्रों ने बताया था कि, मेरी इस बात को, तुम्हारे मुहल्ले, तुम्हारे घर और अन्य परिवार वालों ने बहुत ही गम्भीरता से लिया था और फिर दूसरे दिन से ही तुम्हारा स्कूल आना बंद करवा दिया था. शायद तुम्हारे घरवाले नहीं चाहते थे कि, उनकी लड़की कहीं अंतरजातीय विवाह न कर ले. इसीलिये, उन्होंने तुम्हारी शादी भी कर दी थी. मगर, बाद में मुझे इतना बुरा तुम्हारी शादी करने का नहीं लगा था जितना कि, यह जानकर लगा था कि, तुम्हारा विवाह निहायत ही किसी कबाड़ी जैसे इंसान से कर दिया गया है.'
'?'- मोहिनी चुपचाप सुन रही थी. लेकिन, सोहित उसे चौंककर देखते हुए बोला कि,
'मुझे, आश्चर्य है कि, इतने गरीब घर में रहते हुए तुम आज हवाई जहाज में यात्रा कर रही हो? क्या तुमने अपनी दूसरी शादी की है?'
'ऐसा ही समझ लीजिये.'
'?'- सोहित चुप हो गया.
'?'- मोहिनी भी चुप ही रही.
उसे चुप देखकर सोहित ने एक संशय से, भेदभरी नज़र से मोहिनी को देखते हुए कहा कि,
'लेकिन, तुम्हारे शौहर, पतिदेव. . .?'
'वे फोत हो चुके हैं.'
'हे, भगवान ! उनकी दिवंगत आत्मा को शान्ति मिले.'
'?'- मोहिनी सुनकर चुप हो गई.
तभी हवाई जहाज में 'बोर्डिंग' के लिए सूचना हो गई तो मोहिनी अपना छोटा-सा कैरियर को पकड़कर लाइन में खड़ी हो गई. सबसे पहले, बिज़नेस क्लास के यात्रियों को बुलाया गया तो मोहिनी सोहित को पीछे छोड़कर आगे चली गई.
'?'- सोहित ने उसे प्रथम क्लास में हवाई यात्रा करते देखा तो स्वत: ही उसके मन-मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के बनते-बिगड़ते अतिवाहिकीय रूप नाचने लगे. वह तब यह सोचने लगा कि, कहीं उसने किसी गलत युवती को इकरा समझ कर कोई गलती कर दी है? सचमुच, उसने कोई भी गलती नहीं की थी. वह क्या जाने, आसमान के चमत्कार? नीली दुनियां में रहनेवालों के नियम, रहन-सहन और कायदे-नियम आदि के बारे में वह क्या जाने? क्या कभी ऐसा हुआ है कि, किसी के पास, इस संसार में अपना जीवन, अपनी उम्र पूरी करने के लिए, शरीर किसी दूसरे का मिले और उस शरीर में आत्मा किसी अन्य की निवास करे? ऐसा कभी क्या हो भी सकता है? अगर हो भी सकता है तो करने वाला कौन है?
बहुत से धार्मिक ग्रन्थ, इस बात पर ज़ोर तो देते हैं कि, इस संसार में, आत्माएं तो हैं. वे भटकती भी हैं, लेकिन ऐसी आत्माओं को दुष्ट-आत्माएं या बद-रूहें, प्रेतात्माएं, भूतनी, पिशाच, जिन्न आदि ही कहा जाता है और यह संसार में रहनेवाले मनुष्यों, स्त्रियों, बच्चों आदि को सताया करती है- सबसे बड़ी बात तो यह है कि, यह दुष्ट-आत्माएं, पापियों के राजा 'शैतान' और ईश्वर से विरोध करनेवाले किसी क्षुब्ध देवदूत/फरिश्ते की समर्थक आत्माएं होती हैं.
उपरोक्त कथन केवल धर्म-ग्रंथों में ही लिखा है, परन्तु, बुद्धिजीवी और समझदार लोग ऐसी बातों को बेहूदगी ही कहकर अपने दिमाग से बाहर कर देते हैं. मगर सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि, मोहिनी जैसी स्त्रियों के साथ हुई घटनाओं के बारे में किसी को कैसे समझाया जाए? इनके द्वारा सुनी, देखी और भुगती हुई घटनाओं को आज का मनुष्य सहज ही विश्वास नहीं कर पाता है.
इस संसार में दोबारा, इकरा के शरीर के साथ, जन्म लेने के पश्चात- फिर से संसार में अपना जीवन, अपने प्रेमी मोहित के साथ जीने की लालसा रखे हुए, अब तक मोहिनी का वास्ता ना जाने कितने ही लोगों से पड़ चुका था. उनमें उसे अच्छे इंसान तो इक्का-दुक्का ही मिले थे, वरना कोई उसके शरीर का लालची मिला था तो कोई उसे अपना शत्रु ही समझने लगा था.
सो, अपनी ज़िन्दगी के इस पथ पर हाथ-पांव मारते हुए आज जब उसकी मुलाक़ात सोहित से हुई तो वह चौंक अवश्य ही गई थी. हांलाकि, वह सोहित के बारे में ज़रा भी कुछ नहीं जानती थी, परन्तु वह इकरा को जानता था और इकरा की शक्ल और बदन मोहिनी इस्तेमाल कर रही थी- इसलिए अब मोहिनी को सोहित और इकरा की कहानी समझ में आने लगी थी. मोहिनी यात्रा पूरी करके अपने होटल के इस कमरे में तो आ गई थी, और उससे दोबारा मिलने की ख्वाइश रखते हुए सोहित ने भी उसका सम्पर्क नंबर और पता आदि ले रखा था. मोहिनी ने अपना सम्पर्क-सूत्र सोहित को इसलिए भी दे रखा था क्योंकि उसने माँगा था. अगर वह देने से इनकार कर देती या नहीं देती तो सोहित की तो परेशानी बढ़ ही जाती साथ ही वह भी एक पल के लिए चैन से नहीं रह सकती थी. मोहिनी, अब तक तो यह बात अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि, खुद मोहिनी की वास्तविक पहचान के साथ, इकरा बनकर रहने में उसे परेशानियां तो आनी ही हैं. शायद इसीलिये उसको, आसमान के मालिक ने उसे पहले ही से आगाह भी कर दिया था.
जब से मोहिनी ऐअर पोर्ट से अपने होटल में आई थी. दूसरे दिन उसे अपनी कम्पनी के लिए एक मींटिंग में भी जाना था और फिर तीसरे दिन वापस अपने घर पर लौटना था. तब से मोहिनी, एक-के-बाद-एक करके, इन्हीं सारी बातों की सोच में डूबी हुई थी. उसके सामने होटल का आदमी कॉफ़ी का प्याला और कुछ स्नैक्स खाने के लिए रखकर जा चुका था. तभी, मोहिनी का फोन उसके सामने ही खामोशी के 'मोड' में थर-थराने लगा तो उसने उठाकर बोला कि,
'हलो?'
'मैं, सोहित बोल रहा हूँ.' दूसरी तरफ से आवाज आई.
'जी . . .कहिये?'
'मैं, आपसे मिलना चाहता ?
'जरुर मिलिए. मैं भी यही सोच रही थी.' मोहिनी बोली.
'सच में?'
'मैंने भी हां बोला है. मिलना भी जरूरी है. आपको, विश्वास नहीं हो पा रहा है क्या?'
'नहीं. . .नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.'
'तो, फिर कब आ जाऊं?' सोहित ने पूछा.
'कल तो मेरी मीटिंग है. आज शाम को मैं, खाली रहूँगी.'
'तो फिर कहाँ पर आ जाऊं में? होटल पर या फिर. . .?'
'यहीं मेरे होटल में आ जाइये. बंगलौर के बारे में मुझे ज्यादा कुछ नहीं मालुम है. पहली बार ही आई हूँ.' मोहिनी बोली तो सोहित ने कहा कि,
'ठीक है, शाम को मिलता हूँ, मैं.'
फोन कट गया तो मोहिनी ने निश्चिन्त होकर कॉफ़ी का प्याला उठाया और उसका एक सिप लिया, तो कड़वी काली काफी के बदमिजाज़ ने उसके दिमाग के समस्त सोये हुए तारों को झंकृत कर दिया.
फिर शाम की बढ़ती हुई धुंध और शहर की चमकती हुई रोशनियों के मध्य जब सोहित ने उसे सफ़ेद गुलाब के ताज़े फूलों से महकता हुआ गुलदस्ता लाकर दिया तो मोहिनी देख कर दंग रह गई. मुहब्बत करनेवालों को किसी भी सरहद की कोई परवा नहीं होती है. यह सोचकर वह सोहित का दमकता हुआ मुखड़ा देखने में जब काफी देर तक खो गई तो सोहित ने उसे चिताया. वह बोला कि,
'कहाँ खो गई अचानक से? क्या, इससे पहले गुलदस्ता नहीं देखा था ?'
'देखे तो बहुत हैं, मगर किसी ने दिया, आज पहली बार है.'
'इसका मतलब, मैं बहुत 'लकी' हूँ.'
'?'- तब मोहिनी केवल मुस्कराकर रह गई.
'भगवान के कर्तव्य भी कभी-कभी कितने अजीब होते हैं?' सोहित ने बात-चीत के सिलसिले को आरम्भ किया.
'कैसे अजीब? मैं कुछ समझी नहीं?' मोहिनी ने पूछा.
'यही कि, देखो, हम दोनों कितने ही वर्षों के बाद अचानक से आ मिले हैं. कभी सोचा भी नहीं था?'
'आपने लड़की देख ली है?'
'जी हां देख ली है.'
'पसंद की?'
'पसंद तो मैंने वर्षों पहले ही कर ली थी.'
'मैं, बंगलौर वाली लड़की की बात कर रही हूँ?' मोहिनी बोली.
'मैं भी उस लड़की के बारे में ही कह रहा हूँ , जो बंगलौर में ही बैठी हुई है.' सोहित कहते हुए मुस्कराया.
'ठीक है. आप यूँ नहीं मानेगे.'
'आप अच्छी तरह से जानती ही हैं तो पूछने की क्या आवश्यकता है?'
'आप मेरे बारे में क्या जानते हैं?' मोहिनी ने बात गम्भीर की तो सोहित ने कहा कि,
'जब तक आपके साथ पढ़ा था, वह तो मुझे सब मालुम है. उसके बाद का कुछ पता नहीं, आज फिर से मुलाक़ात हुई है . . .बस इतना ही?'
'इतने वर्षों तक आपने शादी नहीं की. . ?'
'करना नहीं चाही थी.'
'किसी से कोई चक्कर आदि भी नहीं चला . . '?'
'नहीं.'
'चला नहीं, अथवा किसी ने कोई अवसर नहीं दिया?'
'?'- ऐसी भी कोई बात नहीं.'
'मेरे शौहर की मौत नहीं हुई थी, बल्कि, उनकी हत्या की गई थी.'
'?'- सोहित मोहिनी को आश्चर्य से घूरने लगा.
'आश्चर्य करने की जरूरत नहीं है आपको. यह सच है.'
किसने किया था उनका मर्डर?' सोहित बोला.
'इकरा हामिद गुलामुद्दीन ने.'
'नही, इकरा ने किया था. अपने शौहर का गला घोंट कर.'
'आप मज़ाक तो नहीं कर रही हैं क्या?"
'जी नहीं.'
'मुझे ज़रा भी विश्वास नहीं है आपकी बातों पर. आप ऐसा कर ही नहीं सकती हैं.'
'आप ठीक कहते हैं, मैं सब कुछ कर सकती हूँ, लेकिन. . .'
'क्या?'
'आपसे इकरा बनकर प्यार नहीं कर सकती हूँ.'
'इकरा बनकर. . .?'
'हां, इकरा ही बनकर. क्योंकि, मैं इकरा नहीं हूँ.'
'आपका कहने का आशय. . .?'
'मैंने आपसे झूठ बोला था.'
'तो फिर. . .?'
'मेरा नाम मोहिनी व्यास है, मगर मैं इकरा हामिद गुलामुद्दीन का बदन इस्तेमाल कर रही हूँ.'
'आपकी बातें तिलस्मी लगती हैं.' सोहित के चेहरे की अब तक सारी रंगत उड़ चुकी थी.
मैं जानती हूँ. यही तो सबसे बड़ी परेशानी है, मेरे साथ. मैं अगर आपको अपनी सारी कहानी अक्षर 'अ' से 'ज्ञ' अंत तक बताऊंगी तो आप भी मुझे किसी दूसरी दुनिया का समझने लगेंगे.' मोहिनी बोली तो सोहित उससे बोला कि,
'आपने तो मुझे बेहद रोमांचित ही कर दिया है. अब तो आपकी सारी कहानी बगैर सुने नहीं जानेवाला हूँ, मैं यहाँ से.'
'तो ठीक है. अब सारी बातें खाना खाने के बाद ही होंगी.' मोहिनी ने कहा.
उसके बाद वे दोनों खाने की मेज के सामने बैठे हुए थे. सोहित ने जब मोहिनी की प्लेट देखी तो उसे देखते हुए बोला,
'आपका सारा खाना तो 'वेजी' है?'
'मैं, मांस आदि नहीं खाती हूँ.'
'स्कूल में तो आप अपने घर से बिरियानी, पुलाव और मटन, कोफ्ते, कबाब आदि खूब लेकर आती थीं?'
'इसीलिये तो कहती हूँ कि, मैं मोहिनी हूँ, इकरा नहीं. इकरा का केवल मेरे पास बदन ही है.'
'?'- सोहित के हाथ से 'स्पून' गिरा तो लगा कि, जैसे उसके हाथों से सारे तोते भी उड़ चुके हैं. वह घोर आश्चर्य के मोहिनी का मुख देखने लगा. घबरा चुका था वह. उसकी समझ में नहीं आया कि, वह सामने बैठी इस सुंदर युवती को अब मोहिनी समझ कर उससे दूर भागे अथवा इकरा मानकार अपने बिछुड़े हुए प्यार की गरिमा को ध्यान में रखते हुए अपने गले से लगा ले.? उसने यह भी सोचा कि, इकरा से अचानक भेंट हो जाने के बाद अपने दिल में न जाने कितने ही दिल के अरमानों को सजाकर वह जिस लड़की को देखने गया था, उसे एक प्रकार से नकारकर यहाँ आया था, मगर समय की इस आग के पलीते में जलती हुई बाज़ी को देख कर वह क्या सोचे और क्या फैसला अपने भविष्य के लिए करे? यहाँ तो सारा माजरा ही दूसरा था. इकरा तो मांस, चिकिन, अंडे, कबाब सब ही कुछ खाती थी और यह पूरी तरह से शाकाहारी है- कोई तो भेद है, जो उसे नहीं मालुम है? इसलिए, जब तक मोहिनी बनाम इकरा, की वह सारी कहानी नहीं सुन लेगा- जब तक उसके अतीत के बारे में सब कुछ पता नहीं चल जाएगा, तब तक कोई भी ठोस फैसला करना भी मुनासिब नहीं होगा.
'?'- बड़ी देर से सोहित को चुप बैठे देख, सोचते हुए, मोहिनी ने उसे कुरेद दिया. बोली,
'ऐसा, मैंने क्या कह दिया है कि, आप अचानक ही न जाने कहाँ खो-से गये हैं?'
'आपने तो बहुत कुछ ही नहीं कहा है, ब्लॉक बहुत ही कहा है। यहां तक की, मुझे भी अब मंझधार में लाकर पटक दिया है' सोहित ने मानो शिकायत-सी की.
'घबराइये मत. झील का पानी है. हमेशा एक ही जगह पर ठहरा रहता है. कहीं भी बहकर नहीं जायेंगे.'
'तो फिर. . .?'
'मेरे साथ आयेंगे तो आपको दरिया बनना पड़ेगा, ताकि उसकी धाराओं के प्रवाह में हमदोनों, बहुत दूर चले जायें.'
'आप, अपने बारे में बहुत कुछ बताने वाली थीं?'
हां. मैंने कहा था.'
'तो, फिर शुरू हो जाइए?' सोहित ने आग्रह किया.
तब, मोहिनी ने सोहित को अपने बारे में सब कुछ बताया. उसे बताया कि, उसका जन्म कैसे एक सनातन धर्म पर विश्वास और आस्था रखने वाले घर में हुआ था. उसके मां-बाप, भाई-बहन और अन्य रिश्ते-नातेदार 'राजा के गाँव' नामक एक गाँव के रहने वाले हैं. अपनी कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उसकी भेंट अपनी ही कक्षा में साथ पढ़नेवाले छात्र उस मोहित से हुई थी जो अपने गाँव में एक जमींदार का धनी लड़का था. बाद में उसकी मोहित के साथ यह दोस्ती प्यार में बदल गई तो आगे चलकर यह बात विवाह जैसा पवित्र बंधन लेकर सबके सामने आई तो मोहित के परिवार वालों ने पहले तो इसका विरोध किया, मगर बाद में हमदोनों की जिद के सामने वे राजी हो गये.
लेकिन, इसी स्थान पर आकर मोहित और मैं, दोनों ही धोखा खा गये थे. मोहित के पिता ने, अपने भाई और दोनों लड़कों के साथ साज़िश करके, मुझे अपनी ही कार में, मेरी ही साड़ी से गला घोंटकर मार डाला और मेरी लाश को, अंग्रेज गोरों के कब्रिस्थान में बनी एक सौ साल से भी अधिक पुरानी कब्र में दबा दिया था. मेरे मरने के बाद सारी बात यहीं आकर समाप्त नहीं हुई थे. मेरे जाने के बाद मोहित हर समय उदास रहता, हमेशा उन स्थानों पर आकर मुझे ढूंढा करता, जहां पर हम दोनों हमेशा मिला करते थे.
मरने के बाद, मैं आत्माओं के संसार में, ऊपर नीले आकाश में पहुंची. यह वह जगह थी, जहां पर मैंने देखा था कि, अकाल मृत्यु से मरे हुए लोगों की आत्माएं बड़ी ही शान्ति के साथ रहा करती हैं. मगर मुझसे मोहित का दुःख देखा नहीं गया और मैंने वहां के राजा से विनती की कि, मुझे एक बार फिर से संसार में मोहित के पास भेज दिया जाए. उसने मुझे इकरा के बदन में उसे दफनाने से पहले भेज दिया क्योंकि, मेरा अपना शरीर भूमि में दब कर सड़-गल कर नष्ट हो चुका था. . . .
. . .इतना सब कहते हुए मोहिनी ने जब अपनी सारी कहानी समाप्त की तो सोहित उसे सुनकर दंग नहीं बल्कि, एक अजीब से कौतुहूल और रहस्यमय डर से भर गया. उसकी समझ में नहीं आया कि, वह किस पर विश्वास करे और किस पर नहीं? अगर, मोहिनी के साथ जुड़ी यह सारी घटनाएँ और उसकी कहानी सच है तो वह किससे प्यार करता है- अपनी स्कूल की चंचल, सुंदर और मोहक इकरा से अथवा, इकरा के बदन के साथ मोहिनी की आत्मा से? यह सब सोचते ही सोहित के शरीर में नहीं बल्कि, उसकी आत्मा पर पसीने आ गए।
-क्रमश: