Sukh Ki Khoj - Part - 9 - last part in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सुख की खोज - भाग - 9 - अंतिम भाग

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सुख की खोज - भाग - 9 - अंतिम भाग

रौनक के मुंह से यह सुनकर कि 'तुमने उसे क़सम देने में बहुत देर कर दी' कल्पना चौंक गई। उसने पूछा, तुम यह क्या कह रहे हो रौनक?

"कल्पना उसने तो उनका अंश तुम्हारे शरीर में आते से ही तुम्हारे पापा-मम्मी के घर को छुड़ा लिया था, जो अब तक गिरवी रखा था। पर यह मेरी समझ से बाहर है कि यह बात स्वर्णा कैसे जानती है," रौनक ने प्रश्न किया।

"हे भगवान यह तो मैंने उसे पढ़ाई करते समय स्कूल में यह कहते हुए बताया था कि मेरी पढ़ाई के लिए मेरे पापा ने मकान तक गिरवी रख दिया है। तब से अब तक वह यह बात भूली नहीं। तुमने उसे ऐसा करने ही क्यों दिया रौनक?"

"मैं क्या करता मेरे पास उसका फ़ोन आया था। तब उसने भी मुझे क़सम दी थी कि यह बात मैं तुम्हें नहीं बताऊँ। इसीलिए मैं चाह कर भी तुम्हें नहीं बता पाया लेकिन उसके बाद मैंने उसे और पैसा देने के लिए मना कर दिया। वह मान ही नहीं रही थी तब मैंने उसे कहा ..."

"क्या कहा था तुमने?"

"मैंने कहा था स्वर्णा तुम ऐसा करके तुम्हारी दोस्त को एक ऐसा दुख दे दोगी कि आज जो कुछ भी वह अपनी ख़ुशी से दोस्ती के कारण कर रही है, उसकी वह ख़ुशी दुःख में बदल जाएगी। वह मुझे इसके लिए कभी माफ़ नहीं करेगी, प्लीज समझो। तब उसने कहा, ठीक है और वह मान गई। पहले तो वह नाराज भी हो गई थी, मुझसे झगड़ा भी किया कि रौनक क्या फ़र्क़ पड़ता है यदि मैं थोड़ा-सा कुछ कर दूंगी तो? मैंने उसे कहा था स्वर्णा हम दोनों इतने सक्षम हैं कि ख़ुद के दम पर एक अच्छा जीवन जी सकते हैं। तुम कल्पना के इस प्यार को सौदे में मत बदलो तब वह शांत हुई। मैं जानता था कि तुम स्वर्णा का एक पैसा भी लेना पसंद नहीं करोगी।"

"रौनक तुमने कहा था ना कि ये उनकी दौलत और हमारी मजबूरी का एक अलग ही अंदाज़ है। लेकिन ऐसा नहीं था रौनक, वह उसके बच्चे को एक ऐसी कोख में स्थान देना चाहती थी जहाँ सच में उसे प्यार मिले। उसकी सांसों को अच्छी सांसों का एहसास मिले और तब वह उसी समय नींद से उठ कर बैठ गई क्योंकि तब उसकी आँखों में केवल एक ही चेहरा था, वह चेहरा मेरा था रौनक, वरना कोख खरीदना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। 4-5 करोड़ भी उसके लिए कोई मायने नहीं रखते।"

"हाँ कल्पना उस समय मैं ग़लत सोच रहा था। यह तो तुम्हारी और स्वर्णा की दोस्ती की एक अद्भुत मिसाल है।"

"तुम जानते हो रौनक, स्वर्णा की बेटी के दुनिया में आने के बाद मैंने महसूस किया कि वह पछता रही थी। वह अपनी बेटी को ख़ुद की छाती से लगाकर दूध पिलाना चाहती थी पर वह ऐसा ना कर पाई। मैंने उसकी आँखों में वह प्यास, वह तड़प देखी है और इसीलिए मैं उससे प्रॉमिस लेकर आई हूँ कि अपने दूसरे बच्चे के लिए अब वह किसी की भी कोख उधार नहीं लेगी।"

"अच्छा तो क्या वह मान गई?"

"हाँ बिल्कुल, मैंने उसे समझाया कि भगवान के दिए इस उपहार के सुख को, उस अनुभव को वह पूरा महसूस करेगी।"

इस तरह की बातें करते हुए कल्पना और रौनक एक दूसरे की बाँहों में खो गए।

तभी कल्पना ने कहा, "अब मैं अपने ख़ुद के बच्चे के लिए उसी प्यारे अनमोल एहसास को एक बार फिर से जीना चाहती हूँ," कहते हुए कल्पना ने कमरे की रौशनी को विदाई दे दी और फिर इतनी लंबी जुदाई को मिटा कर वह दोनों एक दूसरे में समा गए। उसी सुख की खोज में जो हर नारी के जीवन का सच्चा और सबसे अधिक कीमती भगवान का दिया उपहार होता है।


रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त