Rishtey.. Dil se dil tak - 27 in Hindi Love Stories by Hemant Sharma “Harshul” books and stories PDF | रिश्ते… दिल से दिल के - 27

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रिश्ते… दिल से दिल के - 27

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 27
[गरिमा जी को आया होश]

जब तक गरिमा जी को होश नहीं आया तब तक प्रदिति और आकृति मंदिर में बैठकर और विनीत जी, रश्मि जी और दामिनी जी गरिमा जी के रूम के बाहर बैठकर उनके लिए तपस्या करते रहे।

बार–बार जब नर्सेज तेज़ी से निकलकर बाहर जाती तो उन तीनों की ही धड़कन रफ्तार पकड़ लेती। वो उससे पूछते तो हर बार एक ही जवाब मिलता कि अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। डॉक्टर्स की बहुत देर की मेहनत, पूरे परिवार की प्रार्थनाओं और भगवान के आशीर्वाद से कुछ घंटों बाद गरिमा जी को होश आया और सबसे पहले उनके मुंह से निकला, "विनीत जी!"

डॉक्टर बाहर आए तो वो तीनों उन्हें घेरकर खड़े हो गए तो डॉक्टर ने उन्हें हाथों से रोककर कहा, "अरे, आप लोग रिलैक्स कीजिए। मिसेज सहगल अब एकदम ठीक हैं और उन्हें होश भी आ गया है।"

फिर डॉक्टर ने विनीत जी की तरफ देखकर कहा, "आप ही मिस्टर विनीत हैं ना?"

विनीत जी ने फुर्ती में गर्दन हिला दी तो डॉक्टर मुस्कुराकर बोले, "जाइए, उन्होंने सबसे पहले आप ही का नाम लिया है।"

उन दोनों ने भी जब डॉक्टर को बेचारगी भरी नजरों से देखा तो डॉक्टर ने मुस्कुराकर उन्हें भी अंदर जाने की इजाज़त दे दी।

विनीत जी ने जैसे ही अंदर कदम रखा उन्हें गरिमा जी को इस तरह हॉस्पिटल बेड पर लेटे देखकर एक बार फिर से उनके ज़हन में वो चौबीस साल पुरानी बातें घूमने लगीं।

दामिनी जी ने जब उनके कंधे पर हाथ रखा तो पहले उन्होंने दामिनी जी की तरफ देखा और फिर गरिमा जी की तरफ।

गरिमा जी को पूरी तरह से होश आ चुका था लेकिन वो बेड पर नज़रें झुकाए बैठी थीं उनको हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वो विनीत जी से नज़रें मिला पाएं।

विनीत जी उनके पास आकर एक स्टूल पर बैठ गए। उन्होंने गरिमा जी के नाम को पुकारा जिससे गरिमा जी की आंखों में को आंसू अब तक रुके थे वो बह गए।

विनीत जी ने गरिमा जी के चहरे को अपनी उंगली से ऊपर किया तो उनकी आंखों में आंसू देखकर विनीत जी का दिल तड़प उठा। यूं तो इतने सालों में गरिमा जी कई दफा रोई होंगी लेकिन तब विनीत जी को इतनी तकलीफ नहीं हुई थी क्योंकि वो उनके सामने नहीं थीं पर अब वो उनकी आंखों में आंसू नहीं देख पा रहे थे।

विनीत जी ने बिना एक पल गवाए गरिमा जी को अपने सीने से लगा लिया। गरिमा जी भी उनके गले लगे फफक पड़ीं।

रश्मि जी और दामिनी जी जोकि पीछे दरवाज़े के पास खड़ी थीं वो भी अपने आंसुओं को चाहकर भी नहीं रोक पाईं।

विनीत जी ने गरिमा जी को खुद से अलग किया और उनके आंसू पोंछते हुए बोले, "नहीं, अब तुम बिलकुल नहीं रोओगी। इतनी सालों से बस यही तो करती आई हो तुम। अब एक भी आंसू नहीं दिखना चाहिए मुझे तुम्हारी आंखों में।"

गरिमा जी ने भी विनीत जी के आंसुओं को पोंछकर कहा, "और ये जो आपकी आंखों से बह रहे हैं उनका क्या?"

विनीत जी ने भी अपनी आंखों को साफ किया।

गरिमा जी ने उनके हाथ को अपने हाथ में लेकर कहा, "क्यों किया आपने ये, विनीत जी? क्यों मेरे लिए इतना बड़ा त्याग किया? क्यों मेरे लिए अपने पूरे परिवार से दूर हो गए आप?"

विनीत जी ने हल्का सा मुस्कुराकर कहा, "गरिमा! तुम्हारी ज़िंदगी मेरे लिए सबसे कीमती थी उसको बचाने के लिए मैंने ये सब किया।"

गरिमा जी की आंखें एक बार फिर से बह आईं वो आगे बोलीं, "इतनी ज़रूरी थी मेरी जान आपके लिए कि आपने इतनी बड़ी तकलीफ सही मेरे लिए, मैंने आपको धोखेबाज तक बोला ना जाने क्या क्या अपशब्द नहीं कहे आपको लेकिन फिर भी आप कुछ नहीं बोले। मैं तो ये सच भूल चुकी थी लेकिन आपको तो सब याद था, हर पल वो… वो सब आपको याद आता होगा, कितनी तकलीफ होती होगी आपको सब सोचकर; फिर भी आपने मेरा साथ छोड़ने के बजाय मेरे लिए इतना सब किया।"

विनीत जी ने गरिमा जी के हाथ पर हाथ रखा और कहा, "गरिमा! हमने सात फेरे लेते हुए एक–दूसरे के वचन दिया था कि हम कभी अलग नहीं होंगे। हां, शरीर से भले ही दूर थे हम लेकिन दिल से हमेशा पास थे। और तुमने ये सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें छोडूंगा, अपनी गरिमा को?"

गरिमा जी ने अपनी नज़रें झुकाकर कहा, "विनीत जी! आपके पास आपकी पत्नी और बेटी है आप उनके साथ चले जाइए। मेरे साथ नहीं रह पाएंगे, मैं… मैं तो वैसे भी उस दरिंदे की दरिंदगी का शिकार हो चुकी हूं। मुझ खुद से ही इतनी घिन आती है तो आपको तो बहुत ही ज़्यादा तकलीफ होगी इसलिए आप प्लीज़ चले जाइए।"

विनीत जी ने फीका सा मुस्कुराकर कहा, "वाह, गरिमा! बस यही प्यार था हमारा? बस इसी दिन के लिए हमने वो कसमें खाई थीं कि कभी एक–दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे? अरे, मैंने गरिमा से प्यार किया था उसके शरीर से नहीं। हां, मानता हूं कि प्यार के लिए आत्माओं के साथ शरीर की ज़रूरत होती है लेकिन सिर्फ शरीर की नहीं। मुझे मेरी गरिमा से प्यार है फिर मुझे ज़रा सा भी फर्क नहीं पड़ता उस सबसे। और खबरदार जो दोबारा ऐसा कहा तो"

विनीत जी ने जैसे ही कहा गरिमा जी झट से उनके गले लग गईं।

उनके गले लगते ही गरिमा जी की नज़र दरवाज़े पर नम आंखों के साथ खड़ी दामिनी जी और रश्मि जी पर पड़ी। उन्हें देखकर गरिमा जी विनीत जी से अलग हुईं और उन दोनों को अंदर आने के लिए कहा।

गरिमा जी एक बार फिर नज़रें झुकाकर और हाथ जोड़कर बैठ गईं और बोलीं, "मां! रश्मि! मैं जानती हूं कि ये माफी काफी नहीं है उन सभी तकलीफों के लिए जो मेरी वजह से आप दोनों को उठानी पड़ीं लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे माफ कर देना।
मां! आपसे आपके बेटे को दूर कर दिया मैंने। मैं सोच भी नहीं सकती कि किस तरह आपने अपने दिल को समझाया होगा, किस तरह अपने दिल को इतना पत्थर का किया होगा… जब मैं विनीत जी को इतना सब बोलती थी तो आपका दिल बार–बार घायल होता होगा, आप हर बार सोचती होंगी कि सारा सच मुझे बता दें पर विनीत जी की कसम आपको हर बार रोक देती होगी। मैं तो सोच भी नहीं सकती कि आप अकेले में बैठकर कितना तड़पती होंगी।"

गरिमा जी को तड़प को देखकर दामिनी जी जल्दी से उनके गले लग गईं और उनके बालों की सहलाते हुए बोलीं, "बस, मेरी बच्ची! बस, तुमने कुछ गलत नहीं किया। तुम्हें सच पता नहीं था इसलिए तुमसे ये हुआ तो तुम खुद को कुसुर्वार मत मानो।"

दामिनी जी उनसे अलग हुईं और उनके आंसू पोंछे।

फिर गरिमा जी ने अपनी उन्हीं नम आंखों से रश्मि जी को देखा तो रश्मि जी उन्हें अपनी उन्हीं नम आंखों को थोड़े गुस्से से दिखाकर बोलीं, "मेरे सामने तो कुछ बोलना भी मत तुम वरना सोच लेना… हां, अब तो तुम्हारी याददाश्त वापस आ चुकी है तो ये भी याद आ गया होगा कि मैं तुम्हारी फ्रेंड थी और फ्रेंड्स गलत बात कहने पर एक_दूसरे को कूट भी देते हैं। कहीं ऐसा ना हो कि इस हॉस्पिटल में मेरे हाथों से तेरी कुटाई हो जाए।"

उनकी बात सुनकर रोते हुए भी सब हँस दिए।

रश्मि जी भी भागकर गरिमा जी के गले लग गईं। दोनों की आंखें एक बार फिर बहने लगीं।

"बहुत मिस किया मैंने तुम्हें।", रश्मि जी ने उनके गले लगे हुए ही कहा तो गरिमा जी ने उन्हें कसकर गले से लगा लिया।

"एक्सक्यूज़ मी!", प्रदिति और आकृति अब भी मंदिर में बैठे प्रार्थना कर रही थीं। किसी को उन्हें कुछ भी बताने का याद ही नहीं रहा। तभी वहां से डॉक्टर निकले तो उन्हें देखकर उन्होंने उन्हें आवाज़ लगाई।

दोनों ने मुड़कर पीछे देखा तो डॉक्टर को देखकर वो झट से अपनी जगह से खड़ी हो गईं और तेज़ी से डॉक्टर के पास आईं।

प्रदिति ने डॉक्टर के कुछ भी बोलने से पहले पूछा, "डॉक्टर! हमारी मां कैसी हैं? वो ठीक तो है ना?"

डॉक्टर कुछ बोलने को हुए कि आकृति भी बोल उठी, "हां, डॉक्टर! बताइए ना, मॉम को जल्दी से होश आ जायेगा ना? वो फिर से एकदम ठीक हो जायेंगी न?"

डॉक्टर उनको शांत कराके बोले, "अरे, मेरी बात तो सुनिए आप दोनों… आपकी मां अब खतरे से बाहर हैं और होश में भी आ गई हैं। मैंने आपको देखा तो सोचा बता दूं, आप उनसे मिल लीजिए।"

उनकी बात सुनकर दोनों की ही खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दोनों ने डॉक्टर को थैंक यू बोला और तेज़ी से गरिमा के पास भाग गईं।

आकृति ने गरिमा जी को होश में देखा तो जल्दी से भागकर उसके गले लग गई। गरिमा जी ने अपनी आंखें बंद करके उसे कसकर गले से लगा लिया।

प्रदिति वहां से तो भागकर आई थी लेकिन दरवाज़े पर आकर उसके कदम ठिठक गए। उसको गरिमा जी को ठीक देखकर तो बहुत सुकून पहुंचा पर मन में अभी भी शंका थी कि गरिमा जी अब उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगी? यही सोचकर वो दरवाज़े पर खड़ी रह गई।

जब गरिमा जी ने अपनी आंखें खोलीं तो दरवाज़े पर खड़ी प्रदिति को देखा। उसे देखकर गरिमा जी के दिल में एक टीस सी उठी। उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने प्रदिति के साथ भी तो कितनी नाइंसाफी की है, एक बांह से तो आकृति लिपटी हुई थी तो उन्होंने मुस्कुराकर अपनी दूसरी बांह फैला दी। प्रदिति के चहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। वो तेज़ी से भागकर गरिमा जी के गले लग गई।

आज वहां सभी के दिल को सुकून पहुंचा था।

गरिमा जी ने उन दोनों को अलग किया। फिर गरिमा जी प्रदिति को देखकर बोलीं, "सॉरी, बेटा! मैंने तुम्हारे साथ भी बहुत गलत किया है। भले ही तुम्हारा जन्म उस तरह से नहीं हुआ जैसे होना चाहिए था लेकिन हो तो तुम मेरी बेटी ही ना, तुम्हें भले ही रश्मि ने मां का प्यार दिया है लेकिन मेरे दिल में जो तुम्हारे लिए नफरत थी वो हर पल तुम्हें तकलीफ देती होगी उसके लिए प्लीज़ मुझे माफ कर दो।"

गरिमा जी ने हाथ जोड़कर कहा तो प्रदिति ने उनके हाथों को नीचे किया और ना में गर्दन हिलाकर फिर से उनके गले लग गई।

माहौल बहुत ही सीरियस हो चुका था इसलिए उसे थोड़ा नॉर्मल करने के लिए आकृति बोली, "मुझे लगा ही था कि दी के आ जाने से मॉम का मेरे लिए प्यार कम हो जायेगा और देखो हो भी गया। मॉम ने मुझे एक बार हग किया और दी को दो बार।" आकृति ने मुंह फुलाकर कहा तो सबकी हँसी आ गई।

गरिमा जी ने फिर से दोनों को गले से लगा लिया।

क्रमशः