कलियुग में केवल नाम जप से कल्याण
जीव के कल्याण के लिये शास्त्रों व संत महापुरुषों ने अनेक साधन बताये हैं। सभी साधन ठीक हैं। किसी भी साधन का आश्रय लेकर जीव कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। कहा भी है—
नरव से सिख तक रोये जेते। विधिना के मारग हैं तेते ॥
नाखून से लेकर शिखा पर्यन्त जितने मानव के शरीर में रोयें हैं, भगवान् को पाने के उतने ही मार्ग हैं। कहने का भाव यही है कि प्रभु प्राप्ति के अनेक मार्ग हैं। हर मार्ग पर चलने वाले संत भक्त हुए हैं और सभी को भगवत्प्राप्ति हुई है। अपने भावों के अनुसार सभी ने उस परम तत्त्व को प्राप्त किया है।
जाकी रही भावना जैसी। प्रभू मूरति तिन देखी वैसी।। भावानुसार सभी ने अलग-अलग रूप में उस एक ही परम तत्त्व के दर्शन किये हैं। इसलिए संतो के निज अनुभवों में पर्याप्त अंतर पाया जाता है। वह परमात्मा एक होकर भी अनेक है और अनेक होकर भी एक ही है। जिस प्रकार जल, बर्फ व भाँप तीन होकर भी एक ही जल तत्त्व है और तीनों रूपों में होकर भी एक ही है। जैसे तीनों (जल, बर्फ, भाँप) के नाम, रूप व काम अलग-अलग होकर भी तीनों तत्त्वत: एक ही हैं। इसी प्रकार भगवान् एक होकर भी अनेकों रूपों में भक्त के भावानुसार प्रकट होते हैं। उस एक भगवान् के नाम भी अनेक हैं और उसको प्राप्त करने के साधन भी अनेक हैं।
अधिकार भेद से साधन भेद होता ही है। कलियुग में प्राय: सभी की बुद्धि रजोगुण व तमोगुण से आच्छादित रहती है। रजोगुणी व तमोगुणी स्वभाव होने के कारण जीव कठिन साधन नहीं कर पाता। उसके लिये सरल सा मार्ग होना चाहिये जिस पर वह आसानी से आरूढ़ हो सके। प्रभु प्राप्ति के अनेक साधनों में केवल एक ही ऐसा साधन है जिसको कलियुगी जीव सरलता से कर सकता है। वह है ‘श्री हरि के नाम का जप।’ इससे सरल कोई दूसरा साधन शास्त्रों में नहीं दीखता। इसलिये शास्त्रों व संतो ने इस घोर कलियुग में जीव के निस्तार के लिये हरि नाम जप ही सर्वश्रेष्ठ बताया।
कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिरि सुमिर नर उतरहि पारा।।
गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है—
नहि कलि करम न भगति विवेकू। राम नाम अवलम्बन ऐकू।।
गोस्वामी जी कहते हैं कि इस कलियुग में कर्म (कर्म काण्ड), भक्ति (उपासना काण्ड) व विवेक (ज्ञान काण्ड) ये तीनों नहीं सध पाते। केवल राम नाम का ही एकमात्र अवलम्बन है, सहारा है। राम नाम के सहारे ही जीव का कल्याण हो सकता है।
एक बार गिरनार की सिद्ध मण्डली आकाश मार्ग से श्री तुलसीदास जी का दर्शन व सत्संग का लाभ लेने आई। सिद्ध संतों ने श्री तुलसीदास जी से बड़ी विनम्रतापूर्वक पूछा— “इस घोर कलियुग में भी आपको माया व्याप्त नहीं होती? आप कैसे इस माया से बचे हैं? इसका क्या कारण है? यह योग का प्रभाव है या ज्ञान का या फिर भक्ति का?” श्री तुलसीदास जी ने उत्तर दिया—
योग न भक्ति न ज्ञान बल, केवल नाम अधार।
मुनि उत्तर सुनि मुदित मन, सिद्ध गये गिर नार।।
हमें न योग, न भक्ति और न ही ज्ञान का बल है। बल है तो केवल हरि नाम का। केवल हरि नाम जप के प्रभाव से ही यह सम्भव हुआ है। उत्तर सुनकर सिद्ध मण्डली बहुत ही आनन्दित हुई और अपना समाधान कराकर फिर वापिस गिरनार चली गई।
यद्यपि चारों युगों में नाम का प्रभाव है। परन्तु कलियुग में विशेष है—
चहुँ युग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ। कलि विशेष नहीं आन उपाऊ।।
गोस्वामी जी तो कलियुग के लिये अन्य उपायों का निषेध करते हुए कहते हैं— ‘कलि विशेष नहीं आन उपाऊ।’ यही बात ब्यास देव भी कहते हैं—
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामेव केवलं ।
कलौ नास्तेव नास्तेव नास्तेव गतिरन्यथा ।।
हरि नाम हरि नाम केवल हरि नाम । कलियुग में इसके सिवा दूसरी गति नहीं है, नहीं है।
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्योको महान्गुणः ।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं ब्रजेत् ।।
राजन्! कलियुग दोषों का भण्डार है। इसमें यही एक महान् गुण है कि इस कलियुग में श्रीकृष्ण के नाम कीर्तन मात्र से मनुष्य की सारी आसक्तियाँ छूट जाती है और वह परम पद को प्राप्त हो जाता है।
कृते यद्ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मरवैः।
द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्हरिकीर्तनात्॥
सतयुग में भगवान् विष्णु का ध्यान करने वाले को, त्रेता में यज्ञों द्वारा यजन करने वाले को तथा द्वापर में श्री हरि की परिचर्या (पूजा) में तत्पर रहने वाले को जो फल मिलता है, वही फल कलियुग में हरि नाम का कीर्तन करने से प्राप्त हो जाता है।
ते सभाग्या मनुष्येषु कृतार्था नृप निश्चितम् ।
स्मरन्ति ये स्मारयन्ति हरेर्नाम कलौ युगे ।
हे राजन्! मनुष्यों में वे ही सौभाग्यशाली हैं तथा निश्चय ही कृतार्थ हैं जो कलियुग में हरिनाम का स्वयं स्मरण करते हैं और दूसरों को भी कराते हैं।
हरि नामवश येच घोरे कलियुगे नराः।
त एव कृतकृत्याश्च न कलिर्बाधते हि तान्।।
घोर कलियुग में जो मनुष्य हरि नाम के परायण हो चुके हैं, वे ही कृतकृत्य हैं। कलियुग उन्हें बाधा नहीं देता।
इसलिये आत्म कल्याण की इच्छा रखने वालों को चाहिये कि जितना अधिक-से-अधिक हो सके हरिनाम जप करते रहना चाहिये। इतना सरल साधन होने पर भी जो यह नहीं करते वह आत्मघाती हैं। वह आत्म कल्याण की सीढ़ी पाकर भी उस पर चढ़ने से वंचित रह जाते हैं।
[ हरे कृष्ण हरे राम ]🙏