"सोनू ! ओ सोनू ! पदमा ने रसोईघर से ही सोनू को आवाज़ लगाई
"आया मम्मी!" मां की आवाज सुनते ही खेलना छोड़ सोनू ने रसोई घर की तरफ दौड़ लगाई
"सोनू बेटा ! तुम्हारे स्कूल की परीक्षाएं कब खत्म हो रही हैं ?"
"हमारी परीक्षाएं तो दस अप्रैल तक खत्म हो जाएंगी। टीचर ने कहा ग्यारह अप्रैल से छुट्टियां शुरू हो जाएंगी " सोनू ने खुश होते हुए कहा "पर क्यों मम्मी!"साथ ही सवाल भी किया
"बेटा ! तुम्हारी दिल्ली वाली मौसी के देवर की शादी है पंद्रह अप्रैल को"
"अरे वाह ! मतलब इन छुट्टियों में हम मौसी के घर दिल्ली चलेंगे ! वाह, मजा आ जाएगा, कुकू गाड़ी में मैं सबसे ऊपर वाली सीट पर चढ़कर बैठ जाऊंगा" सोनू ने इतने में सब सोच भी लिया
"नहीं बेटा! इस बार हम लोग रेलगाड़ी से नहीं चलेंगे"
"रेलगाड़ी से नहीं चलेंगे ! तो फिर कैसे चलेंगे ?" सोनू हैरत में पड़ गया
"तुम्हारे पापा कह रहे थे सोनू कभी हवाई जहाज में नहीं बैठा है ना, इसलिए इस बार हम हवाई जहाज से चलेंगे"
"हवाई जहाज से !" सोनू हैरत से मां की तरफ देखने लगा
"हां बेटा! पापा ने तो ऐसा ही कहा" पदमा मुस्कुराकर सोनू के हैरत भरे चेहरे को देखने लगी
"हवाई जहाज में!! मैं इतना ऊपर हवाई जहाज में उडूंगा, बादलों के बीच में! वहां से सूरज कितना पास दिखेगा।" सोनू मन में सोचने लगा "सूरज इतना पास होगा तो गर्मी भी बहुत ज्यादा लगेगी ! नहीं.. नहीं मैं पापा से कहूंगा रात वाले हवाई जहाज में चलें, फिर तो चाँद भी दिखेगा, बड़ा सा गोल चमकता चाँद और साथ में तारे भी तो दिखेंगे। और हां ! हो सकता है तारों के बीच से कोई परी भी दिख जाए। वह भी तो रात को निकलती है ना। मैं सब दोस्तों को जहाज का समय बता दूंगा। उस समय वो लोग घर के बाहर आ जाएंगे और मैं ऊपर से उन्हें देखते हुए टा टा करूंगा"
"सोनू! किन ख्यालों में खो गए, खेलना नहीं है ?" मां की आवाज सुनते ही सोनू ख्यालों की दुनिया से बाहर निकल आया
"मम्मी! पक्का ना हम लोग हवाई जहाज से चलेंगे?"
" हां बेटा!"
" फिर तो मैं अभी जाकर सब दोस्तों को बता आता हूं" बोलते ही सोनू बाहर की तरफ दौड़ा
सोनू पदमा और उमेश की इकलौती संतान है। सात साल हो गए सोनू को पैदा हुए, फिर उसके बाद उन्हें दूसरी संतान न हुई।
सोनू दोस्तों को बताने के लिए बाहर आया , मगर बात कैसे निकाले ! अगर सीधे-सीधे बताएगा तो सब सोचेंगे सोनू फेंक रहा है, लेकिन बताना भी जरूरी है, पर बताऊं कैसे ! अभी सोनू सोच ही रहा था कि इतने में ऊपर आकाश में हवाई जहाज उड़ने की आवाज आयी सबकी नजर ऊपर आसमान की तरफ गयी। सब बच्चे उसे देख कर खुशी से टा टा करने लगे। बस सोनू को मौका मिल गया अपनी बात कहने का
"अप्रैल में मैं भी हवाई जहाज में जाऊंगा" सोनू ने इतराते हुए कहा
सब सोनू की तरफ मुड़े
"सच ! तू हवाई जहाज में जाएगा !" दीपू ने हैरत से कहा
"हां!" सोनू ने इतराते हुए जवाब दिया
"पर कहां जाओगे?" बबन ने पूछा
"दिल्ली! मेरी मौसी के घर शादी है। मम्मी ने बताया पापा कह रहे थे, सोनू कभी हवाई जहाज में नहीं गया है ना इसलिए इस बार हम लोग हवाई जहाज में चलेंगे" सोनू ने स्टाइल मारते हुए कहा
"अरे वाह सोनू! तुम हवाई जहाज में जाओगे! फिर हम सबको आकर बताना ऊपर से हमारा शहर कैसा लगता है! और हवाई जहाज उड़ते समय तुम्हें डर लगा या नहीं ?" मूले ने कहा
अभी सोनू कुछ कहता इससे पहले ही गोप ने कहा "अरे दिल्ली कितना दूर है! अभी बैठे नहीं कि बस पंद्रह मिनट में पहुंच गए दिल्ली। जब तक ये कुछ सोचे समझे तब तक तो दिल्ली आ भी जाएगा। पता भी है जहाज कितनी तेजी से उड़ता है ? मुंबई से दिल्ली पहुंचने में ज्यादा टाइम नहीं लगता "
"तू तो ऐसे कह रहा है जैसे हवाई जहाज में गया हो! " सोनू ने चिढ़ते हुए कहा
"गया नहीं तो क्या हुआ मुझे सब पता है"
"यह गोप तो जहाज का नाम सुनते ही जलने लगा है। जले तो जले हुहु..."मुंह थोड़ा टेढ़ा करते हुए सोनू मन में सोचने लगा "पर हां! मैं तुम लोगों को समय और तारीख बता दूंगा उस समय तुम लोग यहीं रुकना। मैं ऊपर से तुम सबको टा टा करूंगा "
बबन ने कहा "देखो दोपहर को मत जाना, क्योंकि दोपहर को मम्मी धूप में घर से बाहर नहीं निकलने देगी"
"नहीं, मैं पापा को मना करूंगा कि दोपहर को ना चले, क्योंकि गर्मी भी होगी और सूरज इतने पास होगा तो गर्मी भी बहुत लगेगी, इसलिए मैं पापा से कहूंगा कि रात को चले" रात में परी वाली बात सोनू ने जानबूझकर नहीं बताई उसे लगा शायद गोप को फिर कुछ बोलने का मौका ना मिल जाये
"रात को !मगर रात को तुझे इतनी ऊपर से अंधेरे में हम देखेंगे भी ?" गोप ने कहा "हम क्या, तुझे तो कुछ भी नहीं दिखेगा"
गोप की बात सुनकर सोनू सोच में पड़ गया। पर वह अपनी कशमकश ज़ाहिर नहीं करना चाहता था "ठीक है, वक्त आने पर देखेंगे। मैं पापा से टाइम और तारीख पूछ कर बता दूंगा" कहकर सोनू घर चला गया।
शाम को जैसे ही उमेश घर आया सोनू दौड़ते हुए आकर उसके गले लग गया
"पापा! हम मौसी के पास हवाई जहाज में चलेंगे?"
" हां बेटा!" बोलते हुए उमेश ने सोनू के गाल पर प्यार किया। वापसी में सोनू ने भी अपने पापा के गालों पर प्यार किया।
"हम किस समय चलेंगे?"
"जिस समय तुम कहोगे तब चलेंगे"
सोनू सोच में पड़ गया, अगर वह दोपहर को कहता है तो गर्मी होती है, फिर चांद और परियां भी नहीं देख पाएगा, पर रात को कहता है तो दोस्तों को ऊपर से टा टा कैसे करेगा
"क्या सोच रहे हो सोनू!"
"पापा! अगर हम दोपहर को चलेंगे तो सूरज पास होने की वजह से ज्यादा गर्मी पड़ेगी ना ?"
"तो फिर हम सुबह जल्दी वाले जहाज में चलेंगे, उस समय तो गर्मी नहीं लगेगी ना " उमेश ने मुस्कुराते हुए कहा
"अरे हां! हम सुबह वाले जहाज में चलेंगे" सोनू के चेहरे पर मुस्कान आ गई मगर दूसरे ही पल वह फिर सोच में डूब गया
"अब क्या सोचने लगे?"
"पापा! अगर हम सुबह को चलेंगे तो फिर मैं परी रानी को कैसे देख पाऊंगा ?"
"मैं समझा नहीं, परी रानी को कैसे देख पाओगे मतलब !"
"मतलब, मैंने सोचा था कि अगर हम रात वाले जहाज में चलेंगे तो चांद सितारे तो दिखने में आएंगे ही, हो सकता है तारों के बीच में परी रानी भी दिख जाए। मम्मी कहानियों में अक्सर सुनाती है , ऊपर आकाश में परियां रहती हैं, और वह रात को उड़ती हैं। पर अगर हम सुबह चलेंगे तो उस समय परियां तो नहीं दिखेंगी" सोनू ने मासूमियत से कहा
सोनू के इस मासूम सवाल पर उमेश को हंसी आ गई "तो फिर ऐसे करते हैं, यहां से सुबह वाले जहाज में चलते हैं और वापस लौटते समय रात वाले जहाज से आएंगे, फिर तो ठीक है "
सोनू के चेहरे पर मुस्कान अब देखने लायक थी
"थैंक यू पापा!" बोलते हुए उसने उमेश के दोनों गालों पर प्यार किया और जोर से उसको गले लगा लिया।
उमेश ने भी उसे प्यार किया फिर गोद से उतारते हुए पिछवाड़े पर हल्की थपकी मारते हुए कहा "घूमने की बातें बहुत हो गई, अब जाकर पढ़ाई करो"
सोनू दौड़ते हुए अपने कमरे में चला गया । पदमा तब तक उमेश के लिए चाय ले आई
"सोनू जहाज में चलने की बात सुनकर बहुत खुश हुआ है" पदमा ने कहा
"हां वह तो दिख ही रहा है। मेरे पास भी ज्यादा छुट्टियां नहीं बची इसलिए सोचा जहाज से आना-जाना करने पर यह दो दिन भी बच जाएंगे। इसलिए तो जहाज में चलने का सोचा"
"पापा! एक बात पूछना भूल गया"
दोनों का ध्यान सोनू की तरफ गया। पदमा सोच में पड़ गई कि सोनू ने सुन लिया है उसके पापा के पास छुट्टियां ना होने की वजह से वे लोग जहाज से जा रहे हैं।
"क्या हुआ बेटा!"
"हम मुंबई से दिल्ली क्या दस पंद्रह मिनट में पहुंच जाएंगे?"
"नहीं बेटा! मुंबई से दिल्ली दो घंटे से ज़्यादा लगते हैं"
सोनू की आंखों में खुशी आ गई और वह वापस अपने कमरे में चला गया
"पापा को छुट्टियां नहीं है इसलिए वह जहाज में चल रहै हैं " सोनू सोचने लगा फिर दूसरे ही पल में उसके आगे दोस्तों का चेहरा आ गया "तो क्या हुआ ! वजह चाहे जो भी हो , पापा मुझे जहाज में ले चल रहे हैं मेरे लिए इतना ही काफी है"
इम्तिहान खत्म होते ही जाने के एक दिन पहले से ही मम्मी ने हिदायतें देनी शुरू कर दी। "जहाज में मस्ती मत करना, ऐसा मत करना, वैसा करना" पर यह सब बातें तो सिर्फ सोनू के कान सुन रहे थे सोनू का ध्यान तो जहाज, दोस्तों और परियों में था।
"मम्मी! जहाज का समय कौन सा है?"
"सुबह को है बेटा ! साढ़े नो बजे "
"मैं अभी दोस्तों को बता कर आता हूं" बोलकर सोनू बाहर चला गया। सोनू को आता देख सब बच्चे खेलना छोड़ सोनू की तरफ आने लगे
" तुम किस समय जाओगे ?" दीपू ने पूछा
"सुबह को साढ़े नो बजे का समय है" सोनू ने इतराते हुए कहा
"वाह! हम यहीं खड़े रहेंगे, तुम ऊपर से हमें देखना" बबन ने सोनू के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा
"हां पक्का, यहीं रुकना" बोलकर सोनू गोप की तरफ देखने लगा। शायद गोप फिर से दस पंद्रह मिनट वाली बात कहें। तब वह बता सके कि दस पंद्रह मिनट नहीं लगते पर गोप ने ऐसा कुछ कहा ही नहीं। सोनू के मन में उलझन होने लगी
"डरना मत जहाज उड़ते समय" गोप ने कहा
"डरूंगा क्यों! मैं क्या छोटा बच्चा हूं ?" सोनू को मौका मिल गया अपनी बात कहने का। "डरते बच्चे हैं। तुझे पता है मेरे बोलने से ही पापा ने सुबह वाले जहाज की टिकट बनवाई है ,और वापसी में रात वाले जहाज की है। मैं अगर बच्चा होता तो वह मेरी बात क्यों मानते ? और हां दूसरी बात, तुम उस दिन कह रहे थे ना दस पंद्रह मिनट में दिल्ली आ जाएगा , तो दिल्ली दस पंद्रह मिनट में नहीं दो घंटे से भी ज्यादा समय बाद आता है"
"दो घंटे !!" मूले की आंखें हैरानी से फैल गयी
" तू हवाई जहाज में फोटो भी निकालना" बबन ने कहा
"हां हां जरूर, अच्छा मैं चलता हूं, मम्मी के साथ मुझे अपने कपड़े भी पैक करने हैं और तुम लोग सुबह को यहीं रुकना" बोलकर सोनू चला गया।
सुबह सवेरे ही वो लोग एयरपोर्ट पहुंच गए। इतना बड़ा एयरपोर्ट और कांच से बाहर रुके हुए जहाज देखकर सोनू बहुत खुश था। काफी बार फिल्मों और टीवी में देखा था उसने , लोग जहाज में सीढ़ियां चढ़कर नीचे वाले लोगों को टा टा करते। "मैं भी ऐसा ही करूंगा, सीढ़ियां चढ़कर पीछे मुड़कर सबको टा टा करूंगा" यह सोचते हुए उसे किसी हीरो जैसी फीलिंग आने लगी और वह मुस्कुराने लगा।
इतने में उमेश ने कहा "चलो गेट खुल गई है"
सब लाइन लगाकर टिकट दिखाते हुए एक तरफ जाने लगे। सोनू भी मां पापा के साथ जाने लगा। आगे उमेश पीछे सोनू मां का हाथ पकड़कर चल रहा था। टिकट दिखाकर वह गली नुमा बने हुए कॉरिडोर में चलने लगे, जिसमें दोनों तरफ से शीशे लगे हुए थे। बाहर न जाने कितने जहाज खड़े थे। सोनू जहाज देखकर खुश होता हुआ आगे बढ़ने लगा। पर यह क्या !! यह तो सीधा जहाज के अंदर पहुंच गया। सब अपनी अपनी सीट ढूंढकर उस पर बैठने लगे। सोनू भी पापा के साथ अपनी सीट पर पहुंचा
"मैं खिड़की से बैठूंगा" सोनू ने ज़ोर से कहा
उमेश ने मुस्कुराते हुए सोनू को खिड़की वाली सीट पर बिठाया। सोनू हीरो वाली फीलिंग टूटने की वजह से थोड़ा मायूस तो था, मगर खिड़की वाली कुर्सी पर बैठकर वह उस गम को भुलाने की कोशिश करने लगा। थोड़ी देर में जहाज भर गया, दरवाजे बंद हो गए। धीरे धीरे जहाज ज़मीन पर रेंगने लगा। यह देख सोनू बहुत खुश हुआ
"मम्मी! जहाज चल रहा है" सोनू ने खुश होते हुए कहा
पदमा मुस्कुराई, इतने में एक लड़की आकर सामने रुकी और जहाज में जो अनाउंसमेंट हो रही थी वह उसे इशारों में समझाने लगी। सोनू को कुछ समझ में ना आया, वह बाहर देखने लगा। जहाज रनवे पर चल रहा था। सोनू की बेताबी बढ़ने लगी, जब दो-तीन मिनट तक जहाज रनवे पर ऐसे ही रेंगता रहा उससे सब्र न हुआ
"पापा! यह जहाज रोड पर क्यों चल रहा है! हवा में नहीं उड़ता क्या ? हम ऐसे ही दिल्ली पहुंच जाएंगे"
उमेश को हंसी आ गई "नहीं बेटा! तुम पहली बार जहाज में बैठे हो ना इसलिए कैप्टन तुम्हें सारा एयरपोर्ट घुमा कर फिर ले चलेगा"
"मुझे एयरपोर्ट नहीं घूमना है, आप कैप्टन से कहो, वह जल्दी जहाज को उड़ाए, मेरे दोस्त वहां इंतजार कर रहे होंगे, मुझे उन्हें ऊपर से टाटा करना है"
" दोस्त इंतजार कर रहे होंगे! पर कहां ?"
"घर के बाहर, मैं उनसे कह कर आया हूं मैं साढ़े नो बजे घर के ऊपर से जाऊंगा, तुम यहीं रुकना" सोनू मुस्कुराते हुए कहने लगा
सोनू की मासूमियत पर उमेश को हंसी आ गई "अच्छा बाबा! कहता हूं कैप्टन से वह तुझे एयरपोर्ट न दिखाते हुए जल्द जहाज को उड़ाए"
इतने में जहाज में स्पीड पकड़ी और सोनू ने डर के मारे मम्मी का हाथ पकड़ लिया। देखते ही देखते जहाज उड़ने लगा। सोनू बड़ी उत्सुकता से बाहर देखने में मग्न हो गया। रास्ते, छोटी-छोटी गाड़ियां देखते ही वह चिल्लाया
"मम्मी यहां से गाड़ियां कितनी छोटी लग रही है न "
"श श श श सोनू! धीरे बात करो" उमेश ने कहा
"वह देखो बिल्डिंग भी कितनी छोटी लग रही है और वो देखो समंदर "
"सोनू ! धीरे बात करो" उमेश ने कड़क आवाज में कहा
मगर सोनू तो अपनी खुशी में था। किंतु जब कुछ मिनटों तक समंदर खत्म ही नही हुआ और जहाज ऊपर बादलों के बीच पहुंच गया तब सोनू से रहा न गया
"मम्मी! हमारा घर कब आएगा ?"
"आ जाएगा बेटा! तुम बाहर देखते रहो" पदमा ने कहा
"नहीं दिख रहा, बताओ ना हमारा घर कब दिखेगा ? मेरे दोस्त इंतजार कर रहे होंगे"
"सोनू! कितनी शरारत कर रहे हो, तुमसे कहा ना चुपचाप बैठो, नहीं तो इस तरफ आओ मैं खिड़की से बैठता हूं" उमेश ने सोनू को डांटा तो सोनू रोने जैसा होकर बाहर देखने लगा। बाहर कपास के फाहे जैसे बड़े-बड़े गोले देख सोचने लगा "यहाँ ही परियां रहती होंगी। शायद किसी परी को नींद ना आ रही हो और वह बाहर आ जाए। उनसे ही पूछ लूंगा मेरा घर कब दिखेगा। पापा तो बता ही नहीं रहे" पर परी नहीं आई। थोड़ी देर में जब नीचे छोटे-छोटे घर दिखने लगे तो सोनू खुश होकर हाथ हिलाकर जोर से टा टा टा टा बोलने लगा।
उमेश नें अब सोनू को चिल्लाकर कहा "कितनी देर से कह रहा हूं चुपचाप बैठो सुन नहीं रहे, सब क्या सोचेंगे , कितना गंदा बच्चा है जो इतना शोर कर रहा है"
सोनू पिता की डाँट सुनकर एकदम चुप हो गया और बाहर देखने लगा। पर थोड़ी देर में पापा की डाँट भूल सोचने लगा "वापस जाऊंगा तो और कोई कुछ कहे ना कहे पर गोप जरूर कहेगा, "तुम दिखे नहीं !" फिर क्या जवाब दूंगा ?" सोचते सोचते उसको एक तरकीब सूझी "हां, कहूंगा जहाज की खिड़की छोटी होती है ना, इसलिए तुम मुझे नहीं देख पाए, मगर मैंने तुम लोग को ऊपर से देखा था और टा टा भी किया था" वैसे भी हमको नीचे से कहां दिखने आता है कि जहाज में कौन बैठा है, और कौन नहीं " सोनू मन ही मन अपनी इस तरकीब पर खुश हुआ और मुस्कुरा कर बाहर देखने लगा।
शादी की मस्ती में दिन कैसे निकल गए पता ही न चला और वापस आने का दिन भी आ गया। मगर इस बार वापस जाते समय सोनू खुश था क्योंकि वापसी भी जहाज से होनी थी।
"आज तो चांद, सितारे और हो सकता है आसमान में परियां भी दिख जाएं " मगर साथ ही याद आ गई पापा की डाँट भी। "अब परी भी दिखेगी तब भी पापा को नहीं बताऊंगा। भले वह ना देख पाए" सोचते हुए उससे मुंह टेढ़ा किया "पर मम्मी को धीरे से दिखा दूंगा, और मम्मी को भी मना करूंगा कि पापा को ना बताएं" दोस्तों को क्या कहना है क्या नहीं, जहाज में क्या करना है, क्या नहीं सोचते- सोचते वो लोग एयरपोर्ट पहुंच गए। टिकट दिखाकर अंदर जाने लगे मगर यह क्या ! अब वो सीधा जहाज में नहीं गए बल्कि बस में चढ़े। बस में चढ़कर सोनू सोच में पड़ गया "कहीं पापा ने झूठ तो नहीं कहा ? हवाई जहाज बोलकर बस में ले जा रहे हों " उससे रहा न गया उसे मां से पूछ लिया
"मम्मी! हम तो जहाज में चलने वाले थे ना ?"
"हां बेटा! उसमें ही चलेंगे, यह बस, जहाज तक छोड़ेगी"
सोनू ने पापा के डर से दूसरा सवाल न किया। इतने में बस जहाज के सामने रुकी और जहाज पर सीढ़ियां लगी हुई देखकर सोनू के चेहरे पर मुस्कान आ गई। सीढ़ियां चढ़ते हुए उसे हीरो वाली फीलिंग आई। ऊपर चढ़कर जैसे ही वो पीछे मुड़ा और टा टा करने के लिए हाथ हवा में उठाया तो देखा उसे देखकर टा टा करने वाला तो कोई है ही नहीं। हवा में उठाया हुआ हाथ अपने बालों में घुमाते हुए मां का हाथ पकड़कर वह अंदर चला गया। वह वापस खिड़की वाली सीट पर बैठा। आते समय तो जहाज में वह अकेला बच्चा था, मगर इस बार एक और बच्चा था। और वह उनके पास वाली लाइन मैं बैठा था। जैसे ही जहाज ने रनवे पर चलना शुरू किया उस बच्चे ने इंग्लिश में बात की
"मम्मी! इट्स फ्लाइंग "
उसकी मां ने जवाब दिया "नो डिअर! इट्स रनिंग ऑन रनवे"
सोनू ने मुड़कर देखा, सोचने लगा "लगता है यह पहली बार जहाज में बैठा है, यह भी बहुत सवाल पूछ रहा है, इसे पता नहीं कि जहाज में चुपचाप बैठना चाहिए। थोड़ी देर में इसे भी डाँट पड़ेगी " सोचते हुए वह मन ही मन हंसा। मन की हंसी बाहर होंठो तक आ गयी तो उसने अपने दोनों हाथ होठों पर रख लिए और धीरे से हंसने लगा।
जब तक जहाज उड़ता तब तक उस बच्चे ने चार बार वही बात दुहराई और मां ने भी वही जवाब दिया। जैसे ही जहाज उड़ा वह ज़ोर से चिल्लाया
"now it's flying"
मां ने कहा "yess"
मगर सोनू को तो बाहर चाँद, सितारे और परियां देखनी थी, इसलिए उसका सारा ध्यान बाहर था। जहाज के थोड़ा ऊपर उठते ही सारा शहर रोशनी से चमकता हुआ ऐसे दिख रहा था, जैसे छोटे छोटे सितारों के झुंड हों। सोनू की आंखों में खुशी और हैरत थी।
"मम्मी ! वह देखो" उसने धीरे से कहा मगर आधे में ही अपने शब्द खा गया।
"नहीं नहीं ! मैं अब कुछ नहीं कहूंगा। अगर पापा ने फिर से डाँटा तो! इस बच्चे के सामने बेइज्जती हो जाएगी" सोचकर वह वापस बाहर देखने लगा।
मगर पास वाली सीट पर बैठे बच्चे के इंग्लिश में सवाल और उसकी मां के इंग्लिश में ही जवाब चल रहे थे। जैसे ही जहाज ऊपर बादलों के बीच में पहुंचा सफेद कपास के गोले काले हो चुके थे। चारों तरफ अंधेरे के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। कहीं-कहीं छोटे चमकते सितारे देखने में आए।
" गोप सही कह रहा था, अंधेरे में तो कुछ दिख ही नहीं रहा। अच्छा हुआ जो पापा आते समय सुबह को आए, मगर अब अंधेरे में परियां कैसे दिखेंगी ? अरे! मैं भी कितना पागल हूं, परियों के पास तो जादू की छड़ी होती है, उनसे रोशनी करके उड़ती होंगी" सोचकर सोनू फिर खुश होकर बाहर देखने लगा। जब एक घंटा होने आया और बाहर कुछ दिखाई न दिया तो सोनू रोने जैसा हो गया। और इस बार उस बच्चे की शरारतें अभी भी चल ही रही थी। वह बार-बार इंग्लिश में कुछ कहता और उसकी मां जवाब देती। मगर इतनी देर में एक बार भी उसे ना उसकी मां ने डांटा और ना ही उसके पापा ने कुछ कहा।
सोनू सोच में पड़ गया आखिर मां से कहा "मम्मी! ना चांद दिख रहा है, ना ही परियां, और ना ही हमारा घर दिखने आया। आप इस जहाज में क्यों आए !" सोनू रोने जैसा हो गया। उसकी आंखों में आंसू तैर गए। यह आँसूं बाहर कुछ न दिखने के थे या उस बच्चे को डांट ना पडने के या खुद को जाते समय मिली डाँट के थे, पता ना चला।
"बताओ ना मम्मी! इस जहाज में क्यों आए" बोलकर वह हाथ हिलाकर रोने लगा
"सोनू! चुप करके बैठो, यह क्या बचपना लगा रखा है ! सब क्या सोचेंगे ?" बोलते हुए उमेश ने सोनू को आंख दिखाई
सोनू चुप हो गया और भरी हुई आंखों से बाहर देखे लगा। थोड़ी देर में उसके कानों में अपने पापा की आवाज पड़ी
"आपका बच्चा तो बड़ा प्यारा है" उमेश ने इंग्लिश में बात करते हुए उस बच्चे के पापा से कहा था
सोनू के कानों में यह लफ्ज़ बार बार घूमने लगे।
"जो बच्चा इतनी शरारत कर रहा है, इतना शोर कर रहा है पापा उसे प्यारा कह रहे हैं ! और मेरे एक दो सवाल पूछने पर मुझे डाँट दिया। ऐसा क्यों ?" उसके बालमन ने ही उसे जवाब दिया
"हो सकता है वह इंग्लिश में बात कर रहा है इसलिए, मगर क्या इंग्लिश में बात करने से शरारतें माफ की जा सकती हैं ! इंग्लिश में बात करने वाले की सब गलतियां माफ हो जाती हैं? लेकिन दिल्ली वाली मौसी के सारे घरवाले तो मेरी मातृभाषा सुनकर बहुत खुश हुए थे। बार-बार मुझसे बात करने आते और मम्मी से भी तो कहा था "तुम्हारा बेटा कितनी अच्छी मातृभाषा बोल रहा है, हमारे बच्चे तो अपनी मातृभाषा में बोलते ही नहीं" फिर पापा को क्यों इंग्लिश बोलने वाला बच्चा अच्छा लग रहा है ! उसकी शरारतें नहीं दिख रहीं ?"
सोनू ने जहाज में नजर घुमाई सीट के सामने कुछ इंग्लिश में लिखा हुआ था। कुर्सी के पीछे पॉकेट में जो किताब थी वह भी इंग्लिश में थी। पापा इंग्लिश में बात कर रहे बच्चे की तारीफ कर रहे हैं। यह सब देख सोनू सोच में पड़ गया। मगर वह इस सवाल का जवाब किससे ले ! "कि इंग्लिश में बात करना अच्छा है या अपनी मातृभाषा में ?।"