Hotel Haunted - 39 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 39

Featured Books
Categories
Share

हॉंटेल होन्टेड - भाग - 39

गेट के सामने पहुंचकर मैंने Door Knock किया, कुछ ही सेकेंड में अंदर से आवाज आई.. "Come in" आवाज सुनते ही जैसे मेने गेट खोला और अंदर गया ही था की तभी ma'am का फोन बजा "एक मिनट श्रेयस..." मैं कुछ कहता उसे पहले ma'am ने मुझे रोक दिया।

"sure ma'am" कहते हुए मैं वहीं खड़ा रहा, मैम किसी से फोन पर बात कर रही थी।
"हां....शर्मा जी of course, कैसी बातें कर रहे हैं आप, अगर आप नहीं होते तो ये सब कैसे होता?हां हां....सब फिक्स रखिए, I Will Tell You The Fixed Date....That's Not The Issue I Think? हां बाकी सब मैं संभाल लूंगी, No...No मिस्टर शर्मा ऐसे कैसे हो सकता है है, मैं पूरा ध्यान रखूंगी आप चिंता मत कीजिए..... हां पेमेंट का भी....जी..हाँ" मिस ना जाने किससे बातें मैं busy थी, बार-बार यहीं लग रहा था कि किसी तरह जल्दी से मिस. की बात पूरी हो तो Library में वापस जा सकूँ, मैं अपनी सोच मैं खोया हुआ था कि मिस. ने मेरा नाम पुकारा
"हां श्रेयस....बोलो क्या काम था? " मिस. ने मुझसे कहा तो मैं उनके पास पहुंचा और उन्हें चार्ट देते हुए कहा "असल में मिस तृष्टि Available नहीं थी तो ये उसका प्रोजेक्ट है।"

"उह्म्म Okay " जैसे ही मिस. ने प्रोजेक्ट लिया में वहां जाने के लिए निकला की मिस ने मुझे रोक लिया " हाँ मिस। "
"हर्ष और अविनाश से कहना कि आज आखिरी दिन है, उसके बाद प्रोजेक्ट सबमिट नहीं होगें। "
"ओके मिस।" मैंने इतना कहा और उनके रूम से बाहर निकलकर Library की तरफ जाने के लिए निकल गया,मैं जल्दी से चलते हुए Library मैं पहुंचा तो देखा कि आंशिका वहा नही थी फिर आंशिका की बात याद करके हंसी आ गई मैंने अपना बैग उठाया और library से बाहर निकलकर कॉरिडोर मैं चलने लगा।


"श्रेयस..." कानों में आवाज पड़ी तो मैं रुक गया और पीछे मुड़ के देखा तो निधि मेरी तरफ आ रही थी
निधि:- " श्रेयस....अवि मिला तुम्हें?" उसने मेरे आते ही सवाल किया।
"नहीं तो..."
निधि:- "पर तुम अभी-अभी Library से आ रहे हो ना?"
"हा में तो काफी देर से वही पर था।"
"कमाल है हर्ष और अवि तो सुबह से वहीं पर है...फिर कहा चले गए दोनो, फ़ोन भी pick नहीं कर रहे।" निधि अपने आप से ही बात करने लगी और में ये सोचने लगा कि भाई और अवि लाईब्रेरी मैं तो मुझे दिखे नहीं,हम दोनो बाते कर रहे थे की मेरी नज़र सामने खड़ी आंशिका पर पड़ी जो हमारी तरफ ही आ रही थी , उसे देखकर में कुछ कहता उससे पहले ही निधि बोल पड़ी।
"आंशिका तूने मेरे भाई को देखा है क्या?"
"हां वो कॉलेज के बाहर वाली शॉप पर खड़ा है।"
" Thank you आंशिका" कहते हुए निधि उसके गले लग गई "Okay bye कल मिलते हैं "उससे अलग होते हुए उसने कहा और मेरी तरफ देखते हुए " Bye श्रेयस"
"निधि जरा सुनो तो" मैंने उसे कहा और वो पिछे मुड़ गई "भाई और अवि से कहना की प्रोजेक्ट submission का आज last day तो जल्द से जल्द submit करवा दे।"
"Okay Sure" उसने इतना कहा ओर वो चली गई।
"माफ करना श्रेयस" उसके जाते ही आंशिका ने मुझे देखते हुए कहा तो में समझ नहीं पाया कि वो क्यों कह रही है "सॉरी किस लिए? "
"वो तुमने कहा था लाईब्रेरी में इंतज़ार करने के लिए और मैं चली गई।"
"it's okay आंशिका No problem"


हम दोनों कुछ देर ऐसे ही शांत खड़े रहे, आंशिका इधर उधर देखने लगी शायद वो कुछ सोच रही थी और मैं उसे ही देख रहा था, उसकी सोच को पढ़ने की कोशिश कर रहा था पर तभी उसने मेरी तरफ देखकर कहा "श्रेयस अगर तुम बुरा ना मानो तो क्या मैं तुमसे एक बात पूछ सकती हूं?"
"इसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है? तुम बेज़िजक मुझसे कुछ भी पूछ सकती हो।"
"श्रेयस क्या मैं जान सकती हूं की ऐसी कौनसी वजह है जिसकी वजह से हर्ष तुमसे इतना Rudely बात करता है?"आंशिका की यह बात सुनकर मैं चुप हो गया।
"आंशिका कभी-कभी हम इंसान को ठीक से समझ नही पाते इसलिए हमारे दिमाग़ मैं उसकी एक बुरी Image बना लेते है पर अगर हम अपनी नफरत से बढ़कर उस इंसान के नजरिए से देखें तो हमे उस नफरत की वजह समझ आती है,मेरे और भाई के रिश्ते को लेकर भी सबको यही ग़लत फहमी है।"मैने बात आगे बढ़ते हुए कहा "भाई ऐसा बिल्कुल नहीं है जैसा हम उसको समझते है दरअसल जितना प्यार वो अपनी मां से करता है उतना ही वो मुझसे भी करता है बस अभी भी वो अपने प्यार को जताने से कतराता है,यही वजह थी उस दिन जिसकी वजह से वो अभिनव से भी लड़ पड़ा।" मेरी बात सुनकर आंशिका सोच मैं पड़ गई।
 
 
हम दोनो चलते हुए कॉलेज के बाहर पहुंच गए थे आखिरकार मैने आंशिका से पूछा की हम दोनो कहा जा रहे है?तो उसके जवाब मैं उसने कहा कि "अब यही तक आ गए हो तो क्यों ना मुझे कार तक कंपनी दे दो" उसकी बात सुनकर में मुस्कुरा पड़ा और अपनी गर्दन हा में हिला दी।
"वैसे श्रेयस मुझे नहीं पता था तुम और ट्रिश इतने करीबी दोस्त हो।" चलते हुए हमें कुछ ही मिनट हुए थे की आंशिका ने अपना सवाल किया।
"कुछ रिश्ते बनने के बाद हमे खुद नहीं पता चलता कि कब वो हमारे अपने बन जाते है?" मेरी हुई बात को सुनकर उसने अपनी उसी प्यारी मुस्कान के साथ कहा "कहां से लाते हो इतनी प्यारी बातें?"
"इसमें कोनसी बड़ी बात है कई बार जो हम महसूस करते है वो अपने आप जुबां आ जाता है।"
"वैसे ट्रिश को मेने हमेशा अकेला और चुप - चुप बैठे देखा है, वो कभी ज्यादा किसी से बात नहीं करती,ऐसा क्यों?"
"कई बार हम अपना दर्द छुपाने के लिए दूसरों से कम बोलते हैं,इसी उम्मीद मैं की हमारा दर्द दूसरो से बात न करने की वजह से छुपा रहेगा और शायद एक डर ये भी रहता है कि वो हमारी बातो को नही समझ सकेंगे " यह बात कहते हुए मेरा चेहरा थोड़ा serious हो गया।
 

"श्रेयस क्यों तुम्हारी बातों से लग रहा है कि उसकी life मैं जरूर कुछ ऐसा incident हुआ है जो वो किसी के साथ share करना नही चाहती। "
"आंशिका incident के घाव तो भर जाते हैं, पर कई बार उन घावों को बार बार कुतरने से वो जिंदगी भर का दर्द बन जात है।" मैंने सामने देखते हुए चल रहा था पर आंखो मैं इस वक्त वो दर्द छलक रहा था जो ट्रिश ने मेहसूस क्या था।
"If you don't mind तो क्या तुम मुझे बता सकते हो कि ऐसा क्या हुआ था?"आंशिका इस वक्त मेरी आंखो मैं देख रही थी उसकी आंखें देखकर ऐसा लग रहा था मानो वो भी ट्रिश के दर्द को महसूस कर रही थी,जैसे वो भी उसके दर्द को बांटना चाहती हो पर शायद आंशिका को यह बात कहने से ट्रिश को बुरा न लग जाए इसीलिए मैने बात को घुमाते हुए कहा "फिर कभी बताउंगा और वैसे भी तुम्हारी कार आ गई।"मेरी बात सुनके आंशिका ने हैरानी भरी नजरो से देखा "Aree yaar इतनी जल्दी कैसे पहुंच गए" आंशिका ने भी हल्की आवाज मे कहा जिसे सुनकर मैं हंस पड़ा।


आंशिका के जाते ही मैं पार्किंग मैं अपनी bicycle लेने के लिए गया तो अभिनव वही पर खड़ा होकर किसी से फोन पर बाते कर रहा था "नही नही उस कमिनी को मॉल के पास Construction Site पर ले आना और मेरा इंतजार करना।"इतना कहने के बाद उसने फोन कट कर दिया।उसकी पीठ इस वक्त मेरी तरफ थी इसलिए मैं उसके पीछे खड़ा हूं उसे पता नही था इसलिए मैने धीरे से अपनी bicycle निकालकर उसकी बातो पर ध्यान दिए बिना वहा से निकल गया।


शाम को excercise पूरी करके घर वापस जा रहा था तो देखा की बादल गरज रहे थे, बारिश कभी भी हो सकती थी पर ये ठंडी हवाएं आज दिल को बेहद खुशी दे रही थी, इसी ठंडी हवा को महसुस करते हुए में घर की तरफ बढ़ रहा था कि तभी मेरा फोन बजने लगा.....स्क्रीन पे देखा तो अनजान नंबर था, मेने उठाया।
"हेलो कौन?" इतना कहकर मैं चुप हो गया और सामने वाले की बातें सुनने लगा जैसे जैसे उनकी बातें सुनता गया, मेरी आंखें बड़ी होती चली गई, जिस हाथ में फोन था वो कांपने लगा, मैने जल्दी से अपनी bicycle निकाली और तेज़ी से उस अंधेरी सड़क के चल पड़ा।

में अपनी bicycle तेज़ी से चलाते हुए आगे बढ़ रहा था,घबराहट और डर की वजह से दिल की धड़कने तेज़ी से चल रही थी, मन मैं बस एक ही सवाल था की अचानक से यह सब कैसे हो गया?अभी तक तो सब कुछ ठीक था।मैं जल्दी से आगे बढ़ते हुए एक मॉल के पास पहुंचा तो वहा पर पहले से ही थोड़ी सी भीड़ थी,मैं जल्दी से उस भीड़ मैं घुसा और बीच मैं पहुंचकर देखा तो ट्रिश की मोम वहा पर एक बेंच पर बैठी हुई थी,उनके हाथों और मुंह पर चोट के निशान थे,हाथ मैं एक जगह knife का cut लगा हुआ था जिनसे अभी भी खून बह रहा था।
 
 
मैं सीधा दौड़ते हुए उनके पास पहुंच गया "आंटी आपके साथ यह सब कैसे हुआ? किसने किया और ट्रिश कहा पर है आंटी?" उनकी हालत देखकर मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए मैंने कई सवाल पूछ डाले।मेरी बात सुनकर वो रोने लगी वो कुछ बोलना चाहती थी पर जुबान उनका साथ नहीं दे रही थी?
"श्रेयस....वो..वो बेटा" इतना कहने के बाद उन्होंने एक लंबी सांस ली और कहा "हम लोग बेटा शॉपिंग करके बाहर निकले थे,हम लोग जैसे ही पार्किंग मैं हमारी कार के पास पहुंचे ट्रिश बहुत खुश थी पर पता नही अचानक से कुछ लोग आए,उन्होंने अपना चेहरा ढक रखा था और उनके हाथ मैं hockey sticks और हथियार थे। उन्होंने ट्रिश को बुरी तरह से मारना शुरू कर दिया मैं बही कुछ कर पाती उसके पहले उन्होंने मुझ पर भी हमला कर दिया जिसकी वजह से मैं बेहोश हो गई और वो ट्रिश को अपने साथ वेन मैं ले गए।"इतना कहने के बाद वो जोरो से रोने लगी क्योंकि अब उनमें हिंमत नही बची थी "please श्रेयस मेरी ट्रिश को बचा लो पता नही उन लोगो ने उसके साथ क्या किया होगा अगर मेरी ट्रिश को कुछ हो गया तो में भी नही ज़ी पाऊंगी।"उन्होंने मेरी तरफ हाथ जोडते हुए कहा।
 
 
मैने इनके हाथो को पकड़ते हुए कहा " आंटी आप यह क्या कर रही है शांत हो जाईए ट्रिश को कुछ नही होगा पर पहले आप मेरे साथ चलिए आपको Treatment की सख्त जरूरत है।" मैने अभी इतना ही कहा था की तभी मैंने देखा कि ट्रिश के पापा भी वहा पर पहुंच गए है उन्होंने घूरते हुए मेरी तरफ देखा और ट्रिश की मोम के पास चले गए,इसलिए मैने ज्यादा वक्त नहीं गवाया और अपनी bicycle लेकर ट्रिश को ढूंढने के लिए निकल गया।मेरी समाज मैं कुछ नही आ रहा था दिमाग मैं इस वक्त कई तरह के सवाल घूम रहे थे?डर की वजह से मेरा पूरा चेहरा पसीने से भीग चुका था।मैने पहाड़ों के पीछे ढलते सूरज को और देखा और अपनी bicycle वही पर रोक दी क्योंकि अब धीरे धीरे अंधेरा भी हो रहा था तो बेवजह इधर उधर भागने का कोई मतलब नहीं था।
 
 
मैने अपना फोन निकाला और पापा को फॉन लगाया "श्रेयस मैं अभी तुम्हे ही कॉल कर वाला था तुम अभी तक घर पर क्यों नहीं आए और इस वक्त कहा पर हो?"
"पापा सॉरी पर अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है, मुझे आपकी इस वक्त हेल्प चाहिए।" उसके बाद जो कुछ भी हुआ मैने वो सब पापा को बता दिया मेरी बात सुनने के बाद उन्होंने कहा "okay बेटा तुम tension मत लेना मैं अभी इंस्पेक्टर जावेद से बात करता हूं वो हमारी जरूर मदद करेंगे और हा तुम ट्रिश का नंबर मुझे message कर दो जिसकी वजह से ढूंढने मैं आसानी हो।"
 
 
पापा के कहने के मुताबिक मैने ट्रिश का नंबर उन्हे भेज दिया पर मैं इस तरह शांति से नही बैठ सकता था इसलिए bicycle लेकर ट्रिश को ढूंढने के लिए निकल पड़ा।एक के बाद एक मैने वो सब जगह देख डाली जहां लोगो की भीड़ कम हो या फिर जो जगह abandoned हो पर मुझे ट्रिश कही पर नही मिली।दिल मैं बैचेनी थमने का नाम नहीं ले रहे थी तभी मैं construction area मैं आ गया जहा रात होने की वजह से वो Area विरान पड़ा हुआ था वहा इस वक्त पूरी तरह से शांति छाई हुई थी।मैं एक स्ट्रीट लाइट के नीचे खड़ा था तभी वहा से उस सन्नाटे को चीरते हुए एक वेन गुजरती है जिसे देखकर मेरी आंखें वही पर थम गई।
 
 
Ven मैं कुछ लोग बैठे हुए थे जिन्होंने अपना चेहरा मास्क और कपड़े की मदद से ढका हुआ था उनके साथ एक लड़की भी बैठी हुई थी पर रोशनी ज्यादा न होने की वजह से ठीक से दिखाई नही दे रहा था तभी उस लड़की का हाथ वेन से थोड़ा बाहर निकला तो जैसे मेरी नजर वही पर जम गई उस लड़की के हाथ पर ठीक वैसा ही Bracelet था जो आज सुबह ट्रिश ने पहना हुआ था इसलिए यह बात समझने मैं ज्यादा देर नहीं लगी की यह लड़की कोई और नहीं बल्फी ट्रिश ही है।मैने जल्दी से अपनी bicycle उस वेन की ओर बढ़ाई और चिल्लाते हुए कहा "heyy,You Basterds गाड़ी राेको" मेरी आवाज़ सुनकर उनमें से एक आदमी ने पीछे देखा और कार की रफ्तार तेज़ बढ़ा दी।
 
 
Ven तेज़ी से चल रही थी इसलिए मैं अपनी पूरी ताकत से उसकी तरफ बढ़ रहा था।हम उस इलाके से निकलते हुए city colony मैं आ गए थे।मेरा ध्यान उस वेन पर ही टिका हुआ था ट्रिश के मुंह पर कपड़ा बांध हुआ था ताकि वो कोई आवाज ना कर सके और उनमें से दो आदमियों ने ट्रिश को पकड़ा हुआ था पर ट्रिश उस वेन से निकलने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रही थी पर उस लोगो की ताक़त के अगर सब बेकार था उन सब के बीच मैं हाथा पाई चल रही थी तभी मैने गौर किया की हम लोग ट्रिश के घर के पास ही आ गए है,उन्होंने अपनी वेन ट्रिश के घर की और बढ़ा दी।मैं अभी कुछ सोच पता उससे पहले एक आदमी ने ट्रिश के सर पर वार किया और वेन का दरवाजा खोलकर उसे चलती वेन से धक्का दे दिया।
 
 
यह देखकर मेरे मुंह से चीख निकल गई "ट्रिश..." और वो लोग तेज़ी से वहा से निकल गए।धक्का लगने की वजह से ट्रिश सड़क पर कुछ दूर जाकर गिरी।मैने bicycle से उतरकर दौड़ते हुए ट्रिश के पास पहुंच गया।मेरे चीखने की वजह से ट्रिश के मोम डेड और कॉलोनी के कुछ लोग अपने घर से बाहर निकल आए थे।गिरने की वजह से ट्रिश बेहोश हो गई थी पर मैंने गौर किया तो जैसे मेरी सांसे ही थम गई।उसके चेहरे पर कई निशान थे मुंह के पास से खून निकल रहा था,उसके हाथो और पैरो पर सुजन थी,साथ ही दो तीन जगह पर गहरे घाव थे जैसे किसी ने नुकीली चीज से वार किया हो और उसके कपड़े भी कई जगह से फटे हुए थे।ट्रिश की ऐसी हालत देखकर मेरा शरीर जैसे सुन्न पड़ा गया हो पर मैंने आसपास देख तो कई लोग इकट्ठा हो गए थे और ट्रिश की और घूरतू हुए बाते कर रहे थे इसलिए मैं दौड़ते हुए ट्रिश के घर मैं गया और एक चद्दर लेकर बाहर आया।
 
 
मैने सबसे पहले ट्रिश को ढक दिया।मेरा ध्यान ट्रिश के पापा कर गया,जो सड़क के किनारे खड़े होकर यह सब तमाशा देख रहे थे उनके चेहरे पर ट्रिश के लिए कोई भी हमदर्दी या फिक्र नजर नहीं आ रही थी जैसे उन्हे ट्रिश की बिलकुल परवाह ही ना हो।यह देखकर मेरा गुस्सा बढ़ गया और मैं उनके पास पहुंचा,उनके हाथ से कार की चाबी को और उन्हें घूरते हुए वापिस चला गया।मैने सबसे पहले ट्रिश को कार मैं बिठा दिया।मैने देखा की ट्रिश की मोम का रोने की वजह से बुरा हाल था जिसकी वजह से उन्हे सांस लेने मैं भी तकलीफ हो रही थी।मैं उनके पास बैठा और कहा "आंटी शांत हो जाईए और संभालिए अपने आप को अगर ट्रिश को जल्दी से हॉस्पिटल नही पहुंचाया तो पता नही क्या होगा?"मेरी बात सुनकर उन्होंने जैसे तैसे अपने आप को शांत किया और ट्रिश के बगल मैं बैठ गई।मैने कार स्टार्ट की और जैसे ही निकलने वाला था की ट्रिश के पापा मुझे घूरते हर Front Seat पर आकर बैठ गए।मैने उनकी तरफ देखा और तेज़ी से कार को हॉस्पिटल की तरफ बढ़ा दिया।
 
 
To be continued......