Sukh Ki Khoj - Part - 8 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सुख की खोज - भाग - 8

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सुख की खोज - भाग - 8

नौ माह तक एक बच्ची को अपनी कोख में रखना उसे जन्म देना और उसके बाद अपनी छाती से लगाकर स्तन पान कराना यह इतना सुंदर एहसास था जिसे छोड़ कर चले जाना कल्पना के लिए इतना आसान ना था।

डबडबाई आँखों से उसने स्वर्णा की बेटी की एक तस्वीर अपने सूटकेस में रखते हुए कहा, "स्वर्णा मुझे यदि इसकी याद आएगी तो मैं कभी-कभी यहाँ तेरे पास आ सकती हूँ ना?"

"कल्पना यह क्या पूछ लिया तूने? यह कैसा प्रश्न था? इस बच्ची पर जितना हक़ मेरा है उतना ही तेरा भी तो है। नौ माह तक अपने शरीर के अंदर पाल पोस कर इसे तूने दुनिया में जन्म देकर लाई है। एक ऐसे दर्द को सहन किया जो किसी और के बच्चे के लिए सहन करना हर किसी के बस की बात नहीं है। मैं तेरा यह एहसान ज़िन्दगी भर नहीं भूलूंगी। कल्पना तू जानती है मेरी बच्ची के लिए मेरे मन में सिर्फ़ और सिर्फ़ तेरा ही ख़्याल क्यों आया?"

"क्यों स्वर्णा?"

"क्योंकि मैंने हमेशा तुझ में एक नेक दिल को महसूस किया है। बचपन से मैं तुझसे हमेशा प्रभावित रही। स्कूल में सबसे अलग, सरल, सादगी और नम्रता जो तुझ में देखी किसी और में नहीं, मुझ में भी नहीं। इसलिए मैं चाहती थी मेरी बेटी के लिए सबसे सही और अच्छा स्थान तेरी कोख है। तूने, अंकल, आंटी और रौनक ने मेरी मदद करके ..."

"बस स्वर्णा अब और कुछ मत बोलना वरना मैं फूट-फूट कर रोने लगूंगी," कहते हुए दोनों गले लग गईं।

फिर कल्पना जाने के लिए निकली लेकिन फिर से पलट कर स्वर्णा की तरफ़ आई और कहा, "स्वर्णा प्लीज मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। तू मेरे अकाउंट में कुछ भी पैसे ट्रांसफर मत करना। तू हमारी दोस्ती को दोस्ती ही रहने देना, उसे किसी एहसान का मोहताज ना बनाना।"

"चुप हो जा कल्पना, आगे कुछ भी मत कहना। मैं चाहे अपनी सारी दौलत भी तेरे नाम कर दूं तब भी इसकी क़ीमत अदा नहीं कर सकती, क्योंकि यह तो अनमोल है कल्पना। लेकिन हाँ मुझे इतना हक़ तो दे-दे कि मैं तेरी तकलीफ को थोड़ा-सा कम कर सकूं।"

"बोलूंगी स्वर्णा यदि ऐसी कोई तकलीफ हुई जिसका निपटारा मैं और रौनक मिलकर भी ना कर पाए तो मैं ज़रूर तुझे आवाज़ दूंगी। मैं जानती हूँ मेरी आवाज़ तुझ तक ज़रूर पहुँचेगी।"

उसके बाद कल्पना अपने घर वापस लौटी, एक प्यारे से एहसास के साथ। मीठी-मीठी यादों को लेकर अपनी दोस्ती को और अधिक मजबूती देकर।

जैसे ही कार घर पर आकर रुकी रौनक, उसके माता-पिता और कल्पना के पापा-मम्मी भी सब बेसब्री से आज के इस दिन का इंतज़ार कर रहे थे जब कल्पना की वापसी होगी। कल्पना अपने पूरे परिवार को देखकर सब से मिलकर बहुत ख़ुश हो रही थी।

उसने अपने ससुर के पांव छूते हुए कहा, "थैंक यू पापा, यदि आप अनुमति नहीं देते तो मैं यह नहीं कर पाती।"

उसके बाद उसने रौनक की तरफ़ प्यार से देखते हुए आँखों ही आँखों में उसे भी थैंक यू कहा; फिर अपने पापा मम्मी के पास जाकर कहा, "पापा मैं बहुत ख़ुश हूँ कि स्वर्णा ने जीवन में पहली बार मुझसे कुछ मांगा और आप दोनों के साथ के कारण वह मैं उसे दे पाई। मम्मी, स्वर्णा की बेटी बहुत सुंदर है बिल्कुल स्वर्णा की तरह और स्वर्णा भी बहुत ख़ुश है राहुल भी।"

फिर उसने रौनक से कहा, "रौनक मैं एक बहुत सुंदर एहसास को जी कर आई हूँ। स्वर्णा की मदद करके मैं बहुत ख़ुश हूँ। मैं उससे कह कर आई हूँ कि स्वर्णा प्लीज हमारी दोस्ती को दोस्ती ही रहने देना। उस पर एहसान की चादर मत चढ़ाना। मेरे अकाउंट में तू कुछ भी मत डालना। मैंने उसे क़सम दी है।"

"कल्पना तुमने उसे क़सम देने में बहुत देर कर दी।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः