स्वर्णा अपनी दोस्त कल्पना से जो बात करना चाह रही थी यकीनन वह बात यूँ ही कह देना इतना आसान नहीं था। लेकिन उसे कहना तो था।
तब उसने किसी तरह अपने होठों को आवाज़ दी उसने कहा, "यार कल्पना हम दोनों को अब बच्चा चाहिए लेकिन मुझे मेरा शरीर बिगड़ जाने का बहुत डर लगता है। आजकल तो इसके कारण मेरे और राहुल के बीच बहुत बार झगड़ा भी हो जाता है। उसे बच्चे की बहुत जल्दी है। वह अब और इंतज़ार नहीं कर सकता। कल्पना तू यदि तेरी कोख में हमारे बच्चे को स्थान दे-दे तो..."
"स्वर्णा तू यह क्या कह रही है? बच्चे को जन्म देना, अपनी कोख में रखना, तो हर नारी के लिए वरदान स्वरूप मिला भगवान का दिया उपहार होता है। वह तो हमारा सौभाग्य होता है।"
"जानती हूँ कल्पना, सब कुछ जानती हूँ; फिर भी मैंने यह निर्णय लिया है और इसके लिए राहुल भी तैयार हो गया है। यदि तू मान जाएगी तो मैं तेरा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी।"
कुछ देर के लिए कल्पना शून्य में चली गई। क्या करे, क्या जवाब दे स्वर्णा को, उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। लेकिन स्वर्णा के एहसानों के बोझ तले दबी कल्पना उसे खुले शब्दों में इनकार करने के विषय में सोच भी नहीं सकती थी। आख़िर स्वर्णा उसकी सबसे प्रिय सखी जो थी, उसके सुख दुख की साथी। वह सोच रही थी कि आज पहली बार स्वर्णा उससे कुछ मांग रही है। वह भी कितने प्यार से और कितनी प्यारी चीज। कल्पना ने सोचा आख़िर इसमें बुराई ही क्या है, उसे अपनी दोस्त की मदद ज़रूर करनी चाहिए। यह सोचते ही उसे उसके पति और परिवार का ख़्याल आ गया। एक प्रश्न वाचक चिह्न भी सामने दिखाई देने लगा कि क्या वे सब मानेंगे?
तभी स्वर्णा की आवाज़ आई, कल्पना प्लीज कुछ तो बोल? तू चुप क्यों है? यदि तू मना कर देगी तो भी मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा।
कल्पना अपने ख़्यालों से वापस लौटी और उसने कहा, "स्वर्णा मैं तेरे लिए यह करने को तैयार हूँ लेकिन अब मैं अकेली नहीं हूँ। मुझे इसके लिए सबसे पहले मेरे पति रौनक से पूछना पड़ेगा। मैं अकेली इतना बड़ा निर्णय नहीं ले सकती।"
"हाँ तू ठीक कह रही है कल्पना। मैं तेरे जवाब का इंतज़ार करूंगी। तब तक मैं भगवान से प्रार्थना करती रहूँगी कि रौनक मेरी मजबूरी को समझे और तुझे हाँ कह दे।"
उसी रात को असमंजस की स्थिति में पड़ी कल्पना ने रौनक को उठाते हुए कहा, "रौनक तुम मेरी दोस्त स्वर्णा को जानते हो ना?"
"अरे कल्पना इतनी रात गए यह कैसा सवाल है और तुम्हारी स्वर्णा को कौन नहीं जानता। इतनी मशहूर खूबसूरत हीरोइन है, कामयाब है।"
"रौनक मज़ाक मत करो, आज अभी-अभी उसका फ़ोन आया था।"
"अच्छा शादी में ना आने के लिए माफ़ी मांग रही होगी।"
"माफ़ी की बात जाने दो रौनक। वह फ़ोन तो वह पहले ही कर चुकी है। आज बात कुछ और ही है। आज उसने जो मांग लिया, वह मैं तुमसे पूछे बिना उसे नहीं दे सकती।"
"ऐसा तो क्या मांगा है उसने? वह तो ख़ुद ही करोड़पति है, हम उसे क्या दे सकते हैं?"
"मैं दे सकती हूँ रौनक और देना भी चाहती हूँ। आख़िर यही तो समय है जब मैं उसकी मदद कर सकती हूँ; बाक़ी तो हमेशा उसने ही मेरी मदद की है।"
"अच्छा बताओ क्या बात है?"
"स्वर्णा बच्चा चाहती है रौनक।"
"हाँ तो उसमें हम क्या कर सकते हैं? यह तो उसे राहुल से कहना चाहिए।"
"रौनक शांति से मेरी पूरी बात तो सुन लो।"
"हाँ-हाँ बोलो।"
"रौनक उसे उसके बच्चे के लिए मेरी कोख चाहिए।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः