Sukh Ki Khoj - Part - 3 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सुख की खोज - भाग - 3

Featured Books
Categories
Share

सुख की खोज - भाग - 3

स्वर्णा सोच रही थी कि बच्चे को जन्म देने के बाद आकाश की ऊँचाई को छू रहा उसका कैरियर कटी पतंग की तरह नीचे आ गिरेगा। उसके चाहने वाले दर्शक जितना उसके अभिनय को पसंद करते हैं उससे कहीं ज़्यादा उसकी खूबसूरती के दीवाने हैं। इन्हीं ख़्यालों में खोई स्वर्णा एक दिन अचानक नींद से जाग कर उठ बैठी। तभी उसे कल्पना की याद आई। उसे याद आया कल्पना की शादी को अभी कुछ ही समय बीता है। उसके विवाह पर स्वर्णा भले जा ना पाई थी पर खूबसूरत फूलों के कीमती गुच्छे के साथ उसका बधाई संदेश कल्पना तक ज़रूर पहुँच गया था। उसके बाद उपहार के तौर पर एक कीमती हीरे का हार भी कल्पना को उसने भेजा था। यह सब स्वर्णा ने निःस्वार्थ भावना के साथ केवल अपनी दोस्ती के लिए ही किया था।

तब कल्पना ने उससे कहा था, "स्वर्णा इतना कीमती तोहफ़ा नहीं चाहिए था मुझे। वैसे भी तूने हमेशा मुझे दिया ही तो है, कितने एहसान करेगी तू मुझ पर? मुझे तो तेरा प्यारा-सा संदेश और महकते हुए गुच्छे से ही अपनी दोस्ती की भीनी-भीनी ख़ुशबू आ रही है।"

तब स्वर्णा ने कहा था, "कल्पना यह उपहार तेरे पास हमेशा रहेगा मेरी यादों की तरह।"

यह सब बातें स्वर्णा को आज याद आ रही थीं लेकिन आज जब वह अचानक उठ बैठी थी तब उसे यह ख़्याल आया था कि क्यों ना वह किसी की कोख उधार ले-ले, मांग ले और यह ख़्याल मन में आते ही उसे सबसे पहले जो चेहरा दिखाई दिया वह चेहरा था कल्पना का। यह सोचते ही उसने यह भी सोच लिया कि कितने अच्छे संस्कार, कितने अच्छे विचार हैं कल्पना के पास और उसके बच्चे के लिए वही सही स्थान है। यह सोचकर उसने उसी समय कल्पना को फ़ोन लगाया।

इतनी रात को अचानक स्वर्णा का फ़ोन देखकर कल्पना उठ बैठी और कमरे से बाहर जाकर उसने फ़ोन उठाया।

"हाय स्वर्णा कैसी है तू? इतनी रात को फ़ोन कर रही है, सब ठीक तो है ना?"

"अरे डरने की कोई बात नहीं है, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। तू कैसी है, शादीशुदा ज़िन्दगी कैसी चल रही है?"

"सब अच्छा है स्वर्णा, मेरे पति बहुत अच्छे हैं। दोनों मिलकर मेहनत करते हैं। तू जानती है अम्मा, बाबूजी की जवाबदारी भी मुझ पर ही है और मेरे पति रौनक भी उसमें मेरी मदद करते हैं। मैं बहुत ख़ुश हूँ, सास ससुर भी बहुत अच्छे हैं। अच्छे से सब मैनेज हो जाता है। अब तू बता तेरी ज़िन्दगी कैसी चल रही है? मैं तेरी हर फ़िल्म देखती हूँ।"

"कल्पना मुझे अचानक आज एक विचार आया है और यदि उसे कोई पूरा कर सकता है तो केवल और केवल तू है। क्या तू मेरी मदद करेगी? उसके लिए मैं तुझे बहुत ..." इसके आगे का वाक्य वह पूरा ना कर सकी।

"तू कहना क्या चाह रही है, खुल कर बोल बिना संकोच किए। मैं तेरी वही पुरानी कल्पना हूँ।"

"कल्पना पैसे की ज़रूरत किसे नहीं होती? मुझे पैसों का ज़िक्र तो करना ही नहीं चाहिए लेकिन पैसा तो जितना भी हो कम ही होता है।"

"स्वर्णा क्या बात है तूने आज तक मुझसे कुछ भी कहने में कभी कोई भूमिका नहीं बाँधी, फिर आज ऐसी क्या बात है जिसके लिए तू इस तरह संकोच कर रही है?"

"कल्पना तू जानती है ना मैं ग्लैमर से भरी इस दुनिया का चमकता सितारा हूँ। ऐसी उड़ान भरने का मौका सबको कहाँ मिलता है लेकिन मुझे मिला है और मैं इसमें ब्रेक नहीं लगाना चाहती। मुझे तुझसे कहने में बहुत हिचकिचाहट हो रही है, डर भी लग रहा है कि कहीं तू नाराज़ ना हो जाए। यदि तुझे मेरी बात पसंद ना आए तो प्लीज हमारी दोस्ती पर उसका कोई असर मत होने देना। हमारी दोस्ती वैसे ही बरकरार रखना।"

"अरे तू बोल ना स्वर्णा, आज तक मैंने कभी भी किसी भी बात का बुरा माना है? कितने एहसान हैं तेरे मुझ पर, तूने ही तो मेरी ज़रूरतों को पूरा किया है। यदि मैं तेरे किसी भी काम आती हूँ तो वह तो मेरा सौभाग्य होगा।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः