वाजिद हुसैन की कहानी- प्रेमकथा
देश में जिमिंदारी प्रथा का बोलबाला था। नवीन का परिवार गरीब था पर समझदार था। उसके पापा ने जिमिंदारों के बहुत दंश झेले थे। अत: वह बेटे को पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाना चाहता था ताकि सिर उठाकर जी सके। नवीन छह वर्ष का हो गया तो उसने नवीन का एडमिशन सरकारी स्कूल में करा दिया, जो उसके गांव से अच्छी खासी दूर था। वह उसे साईकिल से स्कूल ले जाता था।
मिडिल पास करने के बाद नवीन शहर के कॉलेज में पढ़ने जाने लगा। नवीन घर से काॅलेज तक की लंबी दूरी साईकिल से तय करके लौटता, रात्रि भोज करता। कुछ देर बांसुरी बजाता, फिर पढ़ने लगता, जब तक की आंखें मिचने न लगती थी।
उसने यूनीवर्सिटी में टाॅप किया तो काॅलेज ने उसके स्वागत के लिए एक समारोह का आयोजन किया जिसमें उसके पिता को भी आमंत्रित किया था। काॅलेज के प्रिंसिपल ने उनसे कहा, 'आपके बेटे में आई.सी.ए्स बन्नेे की विलक्षण प्रतिभा लहक रही है पर यह तभी संभव है, जब यह शहर में रहकर कोचिंग करें ताकि गांव से शहर आने-जाने में समय व्यर्थ न हो।'
वह गांव से निकला तो उसके संबंधियों ने इतने पैसे जमा कर दिए थे कि शहर जाकर कोचिंग की फीस भर सके और पार्ट टाइम वर्क मिलने तक अपने रहन-सहन का ख़र्च वहन कर सके। उसके संबंधियों में एक दादी नातियों वाली थीं। हालांकि उनका विवाह नहीं हुआ था फिर भी गांव वाले उन्हें दादी कहते थे। उसका कारण था, वह भविष्य वक्ता थीं, अपने तजुर्बे से लोगों का भाग्य बताती थी। उन्होंने चलते समय नवीन से कहा, 'लला गांव की चुड़ैलें मरघट में रहती है, शहरी चुड़ैलों का ठौर-ठिकाना नहीं, खटिया तलक में घुस जाती है। उनके चक्कर में फंसा तो न घर का रहेगा न घाट का।'
नवीन कलेक्टर बनकर गांव लौटा तो उसके संबंधियों ने ढोल-नगाड़े बजाकर उसका स्वागत किया। स्वागत समारोह में उसने उन्हें गांव से शहर तक का व्रतांत सुनाया-
जब मैं शहर पहुंचा, गलियों में बाज़ारो में किराए का कमरा तलाशता रहा, पर कम किराये का नाम सुनते ही, मकान मालिक घर का दरवाज़ा इस तरह भेड़ते जैसे खुजली वाला कुत्ता दरवाज़े पर खड़ा है। निराश होकर शाम को वापस लौटने के लिए तांगा स्टैंड गया। वहां मुझे जुम्मन चचा सवारियों का इंतिजार करते मिले। वह मेरे गांव में रहते थे और अपने तांगे से गांव वालों को शहर लाते-लेजाते थे। वह मेरे बारे में बस इतना जानते थे, जो गांव वालों से सुना था। उनके पूछने पर मैंने ग़मगीन लहजे में उन्हें किराये का कमरा न मिलने के बारे में बताया और वापस गांव ले चलने को कहा।
उन्होंन किसी सगे की तरह ढारस बंधाया, फिर कहा, 'चलो कमरा ढूंढते हैं, नहीं मिला तो रात तांगे में गुज़ारेंगे।' मैंने हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया कहा और तांगे में बैठ गया।
वह मुझे आउटस्कर्ट में मटमैले रंग के पत्थरों की बनी इमारत ले गए जिसे लोग रईस ख़ाना कहते थे। इसका गेट नक़्क़ाशीदार लकड़ी का बना था, जिसे दीमक ने इस तरह चट किया कि यह बंद होना भूल गया और बिना फाटक वाले रेलवे क्रासिंग में बदल गया था। मैं लम्बा-चौड़ा कैम्पस पार करता हुआ ख़स्ताहाल इमारत पहुंचा। दरवाज़ा खटखटाया तो एक ख़ूबसूरत, लड़की बाहर आई, जिसके हाथ में बेसन सना था। उसने मुझे बरांडे में बिछी पुरानी कुर्सियों पर बैठने को इशारा किया, फिर कहा, 'पकौड़ी का घान निकाल कर आई।' तब तक उसकी दादी छड़ी के सहारे बाहर आ चुकी थी। कुछ देर में वह पकौड़ी लेकर आई और प्लेट मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा, 'खाकर बताइए कैसी बनी है?'
मैं कनखियों से उसके सौंदर्य को निहारता रहा अपलक। फिर लगा, 'कहीं पकौड़ी वाली चुड़ैल तो नहीं है?' डरते डरते एक-आध पकौड़ी खाई, जो बहुत स्वादिष्ट थी, पर तारीफ का एक भी शब्द मेरे मुंह से नहीं फूटा।'
मैंने एक फरियादी की तरह दादी को अपनी राम कथा सुनाई। वह भावुक होकर बोलीं, 'बेटा, जहां चाहो ठहर जाओ, पर ऐसा कोई काम मत करना जिससे हमारी इज़्ज़त पर बट्टा लगे। किराया पूछने पर दादी ने कहा, 'तुमसे किराया क्या लेना, यह समझो, हमारी दुसराहत हो जाएगी। फिर आह भरते हुए कहा, 'एक ज़माने में तो लगभग आधा इलाक़ा हमारा था, काग़ज़ों पर आज भी है। संबंधियों ने घर और जायदात कबज़िया ली और हमें इस वीराने में रहने पर मजबूर कर दिया है। उसके बाद दादी ने नम आंखें साड़ी के पल्लू से पोछीं और पोती सीमा से कहा, ' नवीन आई.सी.एस. की कोचिंग के लिए आए हैं। इनके ठहरने का किसी अच्छे से क्वार्टर में इंतिज़ाम कर दो।'
सीमा ने गेट के पास सिक्योरिटी गार्ड के लिए बने क्वार्टर में मेरे रहने की व्यवस्था कर दी।
रात हो चुकी थी, जुम्मन चचा गेट के बाहर खड़े मेरा इंतिज़ार कर रहे थे। मैंने उन्हें बिना किराये का कमरा मिलने के बारे में बताया, तो उनके चेहरे की खुशी देखने लायक थी फिर उन्होंने उम्मीद भरी निगाहों से मुझे देखा और चले गए।
जुम्मन चचा के जाने के बाद मैं अपने कमरे में पहुंचा। सीमा ने लालटेन जला दी थी और मेरे लिए बिस्तर लगा दिया था। उसने मुझे कुछ किताबें दी फिर कहा, 'यह किताबें मैंने आई.सी.एस. की तैयारी के लिए ख़रीदी थी। मम्मी पापा की एक्सीडेंट में मृत्यु के बाद सब कुछ बिखर गया। यह किताबें आपके काम की हों तो ले लीजिए।'
मैंने गमगीन लहजे में कहा, 'क्या आपके मम्मी-पापा ...नहीं...।' और किताबों के लिए शुक्रिया कहा।
मैं रईसख़ाने की बग़ल वाली सड़क से होता हुआ नीचे ढाबे में खाना खाने चला गया। खाना खाकर लौटा, अल्मारी से किताबें निकाली़ और कुर्सी पर पढ़ने बैठ गया। नीचे वादी में बादल गरजने लगे थे। और नमी से लदे हुए झोंके रईसखाने के पेड़ों से लिपटे हुए आते और मेरी किताब के पन्ने उलट देते, मेरे बालों को माथे पर गिरा देते और लालटेन भड़भड़ाने लगती। मैं लालटेन को बुझने से बचाने के लिए दोनों हथेलियों से हवा को रोकता रहा। बारिश रुक चुकी थी, आसमान तारो से घिर गया था, झींगुर सीटियां बजा रहे थे और बाहर से मेंढकों के टर्राने की भयावह आवाज़ आ रही थी।
मैं घबराकर क्वार्टर के दीमक खाए दरवाज़े की कुंडी को बंद करने का निरर्थक प्रयास कर रहा था। तभी मुझे घनघोर अंधेरे में एक साया दिखा जिसने इंसानी शक्ल इख़ित्यार कर ली थी। वह मेरी ओर बढने लगा तो हृदय की धड़कन एकदम बढ़ गई। कुछ छण बाद वह मेरे कमरे के पास से गुज़रा, तो नाइट गाउन पहने लड़की लगी जिसका रंग झक सफेद, बदन संगमरमर की तरह तराशा हुआ, आंखें बंद और चेहरे पर बाल बिखरे हुए थे। वह दुनिया से बेखबर चलती रही, फिर वापस चली गई।
मै इतना डर गया था कि एक पल भी सो न सका। सवेरे घर वापस जाने के लिए खड़ा था। तभी दादी पूजा के लिए फूल लेने बाहर के हाते में आई। मुझे इस तरह देखकर चौक गई। मैंने उन्हें रात का सारा वृतांत सुनाया।
उन्होंने नम आंखों और रूंधे गले से कहा, 'सीमा को नींद में चलने की बीमारी है।'
मैंने गंवारू लहजे में पूछा, 'ईलाज नहीं करवाया आपने?'
डाॅक्टर कहते है, 'इस बीमारी का कोई इलाज नहीं, स्वयं ही ठीक हो जाएगी। एक और मुश्किल है, चलते समय कोई रोका-टोकी कर दे, तो नींद में चलने वाला गिर सकता है। तुम घर के सदस्य जैसे हो, इस बात का ध्यान रखना कि वह किसी परेशानी में न पड़ जाए या घर से बाहर न चली जाए।'
उसके बाद से मैं रातभर पढ़ता रहता, कहीं सीमा किसी परेशानी में न पड़ जाए। एक रात सीमा को गेट से बाहर निकलता देख व्याकुल हो गया। उसे रोकना जोखिम भरा था, 'कितना असहाय था मैं!' फिर मुझे एक उपाय सूझा, बांसुरी बजाने लगा। अजब तासीर थी, बांसुरी की दर्द भरी आवाज़ में, सीमा नींद से जाग गई और मेरे कमरे के बाहर खड़ी होकर बांसुरी सुन्ने लगी। मैं बांसुरी पर दर्द भरी धुने बजाता रहा और दरवाज़े के झरोखे में से उसके हुस्न का दीदार करता रहा।
उसके बाद मेरी कैफियत मजनू की सी हो गई थी, जो लैला की एक झलक पाने के लिए न जाने क्या-क्या जतन करता था। शायद मेरे अंदर प्रेम का बीज अंकुरित हो चुका था। मैं रोमियो बनकर गांव लौटता अगर नातियो वाली दादी ने चलते समय न कहा होता, 'लोगों ने पाई- पाई जोड़कर, तुझे कलेक्टर बन्ने भेजो है, मजनू बनके मत लौटयो।'
मैंने बांसुरी को तो टीन के बक्से में बंद कर दिया और न छूने की सौगंध खाई पर दिल को बंद करने के लिए ऐसा लाकर नहीं मिल रहा था, जिसमें से वह बाहर न निकल सके। मेरा मन पढ़ाई से उचट गया और सीमा की एक झलक पाने के लिए कुलाचें भरता रहता था। मैंने उसके बेपनाह हुस्न के दीदार करने के लिए सारे हथकंडे अपनाए पर विफल रहा। अंत में मैंने अपने दिल से यह कहकर कंट्रोल कर लिया, सीमा ने अपने को कालकोठरी में बंद करके चाबी दरिया में डाल दी और अपने को पढ़ाई में समर्पित कर दिया।
आई.ए.एस में चयनित होने के बाद मैं दादी का आशीर्वाद लेने घर में गया। दादी ने सीमा को पुकारा, 'अरी अब तो बाहर निकल आ, नवीन कलेक्टर बन गया।'
यह सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए, 'वास्तव में सीमा एकांतवास में चली गई थी!' दादी के पुकारने पर सीमा कमरे के बाहर आई। उसका शरीर युद्ध जीतकर लौटे हुए सिपाही की तरह निढाल था, पर चेहरे पर विजयी मुस्कान थी।
मैंने उससे कहा, 'आपने हमारे लिए इतना बड़ा त्याग किया, हम आपके हैं कौन?'
उसने कहा, 'मुझे नींद में चलने की बीमारी थी, यदि मैं आपकी कोई नहीं लगती थी, तो आप मेरे लिए रातभर क्यों जागते थे?' आप मुझसे प्रेम करने लगे थे न? आपकी मासूमियत ने मुझे आपसे प्रेम करने पर विवष कर दिया। फिर मैंने सोचा सारे गांव ने एक होनहार लड़के को अपने सपने पूरे करने शहर भेजा है, कहीं मेरे कारण उसके सपने टूट न जाएं। मुझे आपके प्रेम में डूबे मन को वष में करने का एक उपाय सूझा- 'एकांतवास' और मैंने अपने को एक कोठरी में कैद कर लिया।'
उसका रियल रोमांस देख मेरी आंखें भर आई। मैंने उससे बस इतना कहा, 'सीमा, मैं अपनी कामयाबी का श्रेय तुम्हें देता हूं। मैं तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहता हूं पर इस समय मेरी परिस्थिति विवाह योग्य नहीं है, क्या तुम मेरा इंतिजार करोगी?' और मेरा गला रूंध गया।
'मरते दम तक।' उसने कहा। मैंने उसके हाथ चूमे और चल पड़ा।' वह नम आंखों से गेट पर खड़ी मुझे देखती रही, जब तक मैं उसकी आंखों से ओझिल नहीं हो गया।
मैं सरकारी गाड़ी में बैठा सोच रहा था, 'काश दुनिया के लोग, मेरे माता-पिता, संबंधियों, सीमा, दादी और जुम्मन चचा जैसे होते तो धरती पर स्वर्ग होता।
यह कहानी सुनकर सभी ने एक स्वर में कहा, 'वह लड़की साक्षात लक्ष्मी है, उसका स्थान हमारे मन मंदिर में है। नातियो वाली दादी बोलीं, 'मैं उसकी दादी के आगे झोली फैलाकर उसे तेरे लिए मांग लूंगी।' यह सुनकर सभी के चेहरे खिल उठे। और जुम्मन चचा का आशीर्वाद लेने चल पड़े।
348 ए, फाइक एंक्लेव,फेस 2, पीलीभीत बाईपास बरेली (उ प्र) 243006, मो : 9027982074, ई मेल wajidhusain963@gmail.com