Prem Gali ati Sankari - 94 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 94

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प्रेम गली अति साँकरी - 94

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अल्बर्ट और आना को अच्छी हिन्दी बोलनी सिखा दी थी अंतरा ने | पहले बातें अँग्रेज़ी में होती रहीं फिर जब पापा ने देखा कि अल्बर्टन अच्छी खासी हिन्दी बोल लेते हैं, पापा अपनी प्यारी हिन्दी पर उतर आए | पापा ज़बरदस्त हिन्दी प्रेमी थे, उन्हें अल्बर्ट को हिन्दी बोलते देखकर बहुत अच्छा लगा था | फ़र्क था केवल उच्चारण का जो स्वाभाविक था | अल्बर्ट वाकई में बड़ा सरल, अच्छे स्वभाव का था | थोड़ी ही देर में वह सबमें ऐसे घुल-मिल गया जैसे न जाने कब से दोस्ती हो सबसे | 

पापा और मौसा जी भी अल्बर्ट के साथ उसको संस्थान दिखाने चल दिए थे | 

“वेदान्त! तुमने तो बहुत चेंजेज़ कर दिए, कमाल है यार----”मौसा जी ने कमरे से बाहर निकलते हुए पापा को प्रशंसनीय दृष्टि से देखते हुए कहा | 

“ये मेरा कमाल नहीं है, कालिंदी का है---”पापा मुस्कराए | 

हमारे परिवार में एक और मजे की बात यह थी कि कोई भी किसी बात का क्रेडिट अपने को नहीं देता था बल्कि एक-दूसरे की प्रशंसा करते रहते थे | इससे होता यह था कि सब एक-दूसरे की परवाह करते, ध्यान रखते थे | ऐसी स्थिति में या तो लोग कुछ सीखते हैं या फिर ईर्ष्या पाल लेते हैं | यह उनकी बुद्धि और सोच पर निर्भर होता है | 

पापा और मौसा जी अल्बर्ट को लेकर कमरे से बाहर निकल गए थे | मैं दूर से उन्हें बाहर जाते हुए देख रही थी | अंतरा मुझे न जाने कहाँ कहाँ की बातें सुनाती जा रही थी और हर बार की तरह मेरा अपना ही भीतर का संवाद चल रहा था | क्या हुआ होगा उत्पल के साथ ?अभी तक तो मैं उसे अलमस्त लड़के की श्रेणी में ही समझती थी, वह बात अलग है कि उसके व्यवहार से मैं भीगी हुई थी और एक प्रयास में लगी रहती थी कि उससे दूर जा सकूँ | कितनी उलझन!विचारों में कितनी उथल-पुथल ! जिनसे ओतप्रोत मैं जाल में उलझी ही तो रह गई थी | 

“क्या सोच रही हो दीदी?” अचानक अंतर को महसूस हुआ कि मैं उसके साथ रहते हुए भी उसके पास नहीं हूँ | 

“अरे!तुमसे बातें ही तो कर रही हूँ | ऐसा क्यों कह रही हो तुम?” मैंने खिसियाकर उससे पूछा | सच ही पकड़ा था उसने मुझे | 

“सच सच बताओ, शादी के बारे में सोचना छोड़ दिया क्या?”फिर बोली;

“दीदी ! सच में एक बार रिलेशनशिप जीकर तो देखो, पता चलेगा लाइफ़ इज़ सो ब्यूटीफुल—”

“नहीं, अंतु छोड़ा कुछ नहीं है | बस। लगता है अभी समय ही नहीं आया है | ” मैंने मुस्कराकर उसे उत्तर दिया | 

“तो आखिर कब दीदी?एक-एक दिन करते जीवन कब जाकर कगार पर खड़ा हो जाएगा, पता भी नहीं चलेगा | ”उसने अपने जीवन का अनुभव बाँटने का प्रयास किया | उसकी दृष्टि मेरी ढलती आयु पर थी, मैं समझ रही थी लेकिन मेरे पास उसे समझने के लिए शब्द कहाँ थे?एक झूठी, उलझी मुस्कान चेहरे से होती हुई आँखों में बस जाने की कोशिश कर रही थी लेकिन---

मैं क्या यह सब कुछ जानती, समझती नहीं थी?उसे कहाँ मालूम था कि ज़िंदगी के किस त्रिकोण पर खड़ी हूँ मैं!मैंने बनावटी मुस्कान से अपने चेहरे के विषाद को ढक जो रखा था | यही तो करती आई थी मैं ताउम्र !

“दीदी!आय एम सीरियस ---बताइए, क्या सोचा है?”उसने ज़िद करने की कोशिश की | 

इससे पहले उसने कभी भी मुझसे इस प्रकार खुलकर बात नहीं की थी | मैं अजीब सी हो रही थी कि अचानक सामने से आते हुए उत्पल ने मुझे अंतरा के इस कठिन प्रश्न से उबार लिया | 

“हाय---”उत्पल आ पहुँच था | 

‘शैतान को सोचो, शैतान हाज़िर!’मैंने धड़कते दिल से सोचा | 

अंतरा अपने बारे में बता ही रही थी कि अल्बर्ट और उसकी कहानी कैसे शुरू हुई ? उसकी और अल्बर्ट की जीवन-यात्रा कैसी चल रही है ? वह बहुत ही खुश, संतुष्ट व भीतर से भरी हुई दिखाई दे रही थी | पता चल रहा था कि उसके और अल्बर्ट के बीच की कैमेस्ट्री बहुत सटीक थी | अच्छा ही लगा था जानकर, महसूस कर पा रही थी मैं | वह कोई दिखावटी संबंध नहीं महसूस हुआ था | 

प्रेम न किसी चारदीवारी में कैद है, न ही किसी के कहने से बंधन में बांधता है | वह खुले आकाश में उड़ता पंछी है!सागर की लहर से लेकर सागर की गहराई है, वह आँखों में भरी आँसु की एक बूंद है तो दिल की धड़कन भी! फिर भी प्रेम गली इतनी साँकरी?क्या मेरे ही लिए?

“हाय अंतरा—आफ्टर सो मैनी इयर्स” वह बिलकुल पास आ गया था और अब उसने अंतरा को अपने आलिंगन में ले लिया था | 

“दीदी ! डिनर तैयार है—“ महाराज ने अपने असिस्टेंट को भेज दिया था | 

अम्मा और मौसी दोनों एक कोने में खुसर-फुसर कर रहे थे | उनके पास बहुत सी बातें थीं, चिंताएं थीं शेयर करने के लिए ! शायद उन चिंताओं से निकलने के लिए रास्ते भी वे दोनों मिलकर तलाश कर सकती थीं | 

“अम्मा !डिनर तैयार है—” मैं उत्पल और अंतरा को बातों में छोड़कर अम्मा के कॉर्नर में पड़े सोफ़े पर पहुँच गई थी | 

“और सब लोग कहाँ हैं बेटा?” अम्मा को शायद बीच में बात रोकना पसंद नहीं आया था | 

“वे सब वहीं पहुँच रहे हैं, डाइनिंग में--, ”मैं वहाँ से हटकर फिर से उत्पल और अंतरा के पास आ गई थी | वे दोनों बातों में मशगूल थे, आखिर एक ही एज ग्रुप के थे | 

“चलें?”मैंने उन दोनों से कहा | 

“सब लोग वहीं पहुँच जाएंगे | ”हम तीनों बात करते हुए वहाँ से चल दिए | 

मैं तो क्या, वो दोनों बातों में मग्न थे और मैं विचारों में---और हम कमरे से निकल आए | 

डाइनिंग में महाराज की व्यवस्था देखकर सबका दिल खुश हो गया | क्या क्रॉकरी और कटलरी सजाई थी महाराज ने और बीयर के शौकीन अल्बर्ट बीयर की व्यवस्था देखकर खुश हो गया था | सब आ चुके थे और उनके चेहरे प्रसन्नता से भरे हुए थे | 

अंतरा अपने पति और बिटिया से उत्पल का परिचय कराने में मशगूल थी और मैं उत्पल को सोचने में |