Dani's story - 44 in Hindi Children Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दानी की कहानी - 44

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दानी की कहानी - 44

दानी की कहानी

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"आज स्कूल से आते ही क्या हो गया ? क्यों झगड़ते आ रहे हो ?"

दानी की आदत थी, कोई और हो या न हो लेकिन वे बच्चों के स्कूल जाने के समय और उनके आने के समय गेट पर ऐसे तैनात हो जाति थीं | बेशक उनके पैर दुखते लेकिन पेड़ की छाँव तले एक कुर्सी रखी ही रहती थी | फिर वे बेचैनी से उधर की ओर देखती रहतीं जिधर से बच्चों का ऑटोरिक्षा आता है | 

अक्षत आज काफ़ी नाराज़ लग रहा था | उसने दानी बात का उत्तर नहीं दिया और अपने कमरे में जाकर अपने आपको बंद कर लिया | दानी बच्चों के आने और उनके साथ खाने का इंतज़ार कर रही थीं | अच्छा लगता था दानी को बच्चों के साथ मिलकर कहना खाना | बड़े बच्चे तो शाम को आते थे लेकिन इन दोनों के स्कूल की छुट्टी साढ़े बारह होती थी और घर पहुंचते हुए अक्षत यानि अक्षु और अक्षरा यानि अक्षी को लगभग एक बज जाता था | 

दानी वैसे तो बरामदे में ही अपनी झूलने वाली आराम कुर्सी पर बैठकर कुछ न कुछ पढ़तीं रहतीं | उन्हें पुराने गानों गज़लों का बहुत शौक था | उनके बेटे ने उन्हें एलेक्सा ला दिया था जिससे दानी जब अकेली होतीं उनका मन लगा रहता | उन्हें लगता उनका कहना मानने वाला एक बंद उनके पास हर समय बना रहता है जिसे अपने कमरे में रखकर वे कुछ भी फ़रमाइश करती रहती हैं| बच्चों के स्कूल से आने के समय वे गेट के सामने अपने बरामदे में पड़ी केन की झूलने वाली कुर्सी पर झूला खाती रहतीं | कभी कुछ पढ़तीं, कभी आने-जाने वालों को देखती रहतीं | पड़ौस में सबसे बड़ा होने के कारण सब उनका बहुत सम्मान करते और 'कैसी हैं आप ?"पूछना न भूलते | 

दानी काफ़ी शिक्षित भी थीं इसलिए वे पड़ौस के बच्चों के ही नहीं कभी उनकी मम्मियों के काम भी आती रहती थीं | किसी को कुछ समझ में न आए तो दानी के पास बिना किसी संकोच के आराम से पहुँच जाता था | अधिकतर मुहावरों और कहावतों की दुनिया में बच्चे और उनकी मम्मियाँ खो जाते थे तो उन्हें दानी की याद आती | 

दानी को तो भूख लग रही थी, उन्होंने मोहना से खाना गर्म भी करवा लिया था और उसको कहा भी था कि बच्चों को बुलाकर ले, अभी तक तो कपड़े बदल लिए होंगे | लेकिन न अक्षु आया, न ही अक्षी सो दानी को खुद जाना पड़ा और उन्होंने मुँह फूलकर बैठे हुए बच्चों से पूछा कि भाई क्या बात हो गई है ?

फिर भी दोनों चुप बने रहे फिर दानी थोड़ी सी बिगड़ीं और उन्होंने बच्चों से कहा कि वे कपड़े बदल लें और टेबल पर आ जाएं, उनके लिए एक कहानी है | कहना खाते खाते सुनाएंगी | 

बच्चों ने मुँह उठाकर एक-दूसरे की ओर देखा फिर मुँह फुलाए हुए ही कपड़े हाथ मुँह धोने और बदलने चले गए और आकर चुपचाप टेबल पर बैठ गए | 

मोहन भी बच्चों के संवादों का खूब आनंद लेता था | उसने सबका खान लगा दिया और वहीं काम करता घूंट रहा | दानी ज़रूर कोई अच्छी सी बात बताने वाली है, उसने सोच | 

"क्या हुआ है ?"दानी ने पूछा और खान खाने का इशातर किया | 

"दानी ! आज भईया ने कहा कि वो आपकी आँखों का तारा हैं | " अक्षी रूठी हुई थी | 

"तो ---सच ही तो कहा, है न आँखों का तारा ---" दानी ने अपने हाथ से टुकड़ा तोड़कर अक्षी के मुँह, में दिया जिसका मुँह फूल हुआ था | 

"और मैं ?" उसने रूआँसे स्वर में पूछा | 

"तुम भी ---" दानी ने मुस्कराकर कहा | 

"दानी, इसने कहा कि यह मेरी खून की प्यासी है क्योंकि मैं आपकी आँखों का तारा हूँ | "मुँह का ग्रास चबाते हुए अक्षु ने भी शिकायत की | 

"पर, दोनों ही मेरे आँखों के तारे हो फिर कोई किसीके खून का प्यासा क्यों होना चाहिए ?"

"मतलब, हम दोनों ही आपकी आँखों के तारे हैं ?" अक्षी ने पूछा | 

"मेरी आँखों के तारे तो सभी बच्चे हैं | "

"मैंने तुम्हें कुछ दिन पहले ये मुहावरे सिखाए थे लेकिन इनका ऐसे प्रयोग करने के लिए तो नहीं --| " दानी हँसीं। साथ ही मोहना भी | 

"बेटा !@बिना समझे मुहावरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए | इनको जितना प्रयोग करोगे, उतना ही सही प्रयोग कर सकोगे | चलो, आज फिर से इनको दोहराएंगे --" दानी ने कहा और मिनट भर में दोनों बच्चे खिलखिलाने लगे | 

"देखा मोहना, कैसी गलतीफ़हमी पाल लेते हाईन बच्चे !"

उस दिन शाम को दानी ने इन दोनों बच्चों के साथ पड़ौस के सभी बच्चों को कुछ नए मुहावरे प्रयुक्त करने सिखाए और बच्चों ने हँसते हुए उनको बहुत सुंदर वाक्यों में प्रयोग किया | 

इस तरह दानी खेल खेल में बच्चों को बहुत सी बातें सिखाती रहती हैं | 

 

डॉ. प्रणव भारती