Prem Diwani Aatma - 8 in Hindi Love Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | प्रेम दीवानी आत्मा - भाग 8

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प्रेम दीवानी आत्मा - भाग 8

नंदू की आत्मा अंकिता को मकान की तीसरी मंजिल से नीचे फेंक देती है और नंदू की आत्मा अपने शरीर से निकलते ही सिद्धार्थ भी अंकिता के पीछे अपने घर की तीसरी मंजिल से नीचे कूद जाता है।

दोनों के छत से नीचे गिरते ही आस पड़ोस के लोग वहां से आने जाने वाले लोग शोर मचा कर दोनों के परिवार वालों को बुलाते हैं और फिर आस पड़ोस के लोगों की मदद से अंकिता सिद्धार्थ के माता-पिता सिद्धार्थ अंकिता को अस्पताल पहुंचते हैं।

अंकिता की मां गुस्से में अपने पति बेटी सीमा से बिना पूछे सिद्धार्थ के खिलाफ पुलिस कंप्लेंट कर देती है कि सिद्धार्थ ने हत्या के इरादे से मेरी बेटी को अपने घर की छत से नीचे फेंका है।

अंकिता की मां की इस बचकानी हरकत से सीमा अंकिता केे पिता अंकित की मांं से बहुत नाराज होतेेे है।

अंकिता को छत सेे फेंकने की नंदू की आत्मा कि इस हरकत सेे दुखी होकर सिद्धार्थ कि मां अपने बेटे नंदू की आत्मा से कहती है "मैं भगवान से दुख दुआ करती हूं, ऐसा बेटा किसी को ना देना जो अपने ही परिवार का दुश्मन हो मैं दुनिया की पहली ऐसी मां हूं, जिसकी अपने बेटे को श्राप देने की इच्छा हो रही है कि जब तक दुनिया रहे तेरी आत्मा ऐसे ही बेचैन होकर भटकती रहे।'

मां की कड़वी बातों से दुखी होकर कमरे में रखी नंदू की बचपन की तस्वीर से आंसू बहने लगते हैं, नंदू कि बचपन की तस्वीर के आंसू बहते देख कर उसकी मां नंदू कि तस्वीर के आंसू अपने पल्लू से पोछ कर तस्वीर को सीने से लगाकर रोने लगती है।

तभी नंदू के कमरे के अंदर रखी अलमारी तेज आवाज के साथ खुद खुलती बंद होती है और जब नंदू की मां अलमारी की आवाज सुनकर अलमारी ठीक से बंद करने नंदू के के कमरे में जाती है, तो नंदू की मां के कदमों में नंदू की अलमारी से एक चिट्ठी उड़कर गिरती है, सबके अस्पताल जाने की वजह से घर में अकेली नंदू की मां की नजर चिट्ठी पर जाती है, तो वह नंदू के ही पलंग पर बैठ कर चिट्ठी पड़ती है, चिट्ठी में लिखा था, मेरे प्यारे मां बाबू जी मैं ऐसी लड़की के प्रेम में पागल होकर आत्महत्या करने की सोच रहा हूं, जो मेरे से नफरत करती है और किसी और से प्यार मुझे पता है, वह लड़की अपनी जगह पर बिल्कुल सही है, क्योंकि प्यार किया नहीं जाता है, हो जाता है। मैं सब कुछ समझ कर आत्महत्या करके अपने परिवार को जीवन भर का दुख देने की गलती करने की सोच रहा हूं और उस बेकसूर लड़की का नाम इस चिट्ठी में लिख रहा हूं, वह लड़की हमारे पड़ोस में रहने वाली सीमा है, इस चिट्ठी में तो मैं सीमा का नाम लिख रहा हूं, लेकिन आत्म हत्या करने के बाद जो चिट्ठी आपको मिलेगी उस चिट्ठी में सीमा का नाम नहीं लिखा होगा, क्योंकि जबरदस्ती अपने से प्यार करने के लिए किसी खूबसूरत लड़की को आत्म हत्या की धमकी देना गुना और सबसे बड़ा पाप है, इसलिए मेरी आखिरी इच्छा है, मेरी मौत के बाद सीमा की किसी भी हालत में बदनामी नहीं होनी चाहिए और हां शायद मैं आत्महत्या नहीं करता अगर सीमा जैसी कोई और दूसरी लड़की मेरे जीवन में आ जाती जैसे अंकिता।

नंदू की मां ने उसकी यह चिट्ठी कई बार पड़ी थी, लेकिन चिट्ठी की आखिरी लाइन उसे झंकझोर कर रख देती है, क्योंकि मां अपनी संतान को जितना अच्छी तरह जानती है, शायद ही कोई और दुनिया में जानता होगा, इसलिए नंदू की मां को पता था कि नंदू जिस चीज की जिद पकड़ लेता है, उसे हासिल किए बिना उसका पीछा नहीं छोड़ता है उसे अंकिता में सीमा दिखाई दे रही है, इसलिए वह भगवान के कहने से से भी अंकिता को नहीं छोड़ेगा, वह अंकिता की जान लेकर अपने साथ लेकर जरूर जाएगा।

इस चिंता में नंदू की मां नंदू के पिता से फोन करके पहले अंकिता के फिर सिद्धार्थ के हाल-चाल पूछती है? और यह सुनकर बहुत घबरा जाती है कि सिद्धार्थ की सेहत में तो धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, लेकिन अंकिता की हालत लगातार नाजुक होती जा रही है और अंकिता की मां ने सिद्धार्थ के खिलाफ अंकिता की हत्या करने की कोशिश की पुलिस में कंप्लेंट कर दी है तो वह और दुखी हो जाती है।

कुछ देर बाद कोई दरवाजे पर दस्तक देता है, सिद्धार्थ की मां सोचती है मुझे घर पर अकेला दुखी समझ कर शायद बेटी मंजू अस्पताल से घर वापस आ गई है, परंतु दरवाजे पर अंकिता सीमा की मां बहुत गुस्से में अपने तांत्रिक भाई के साथ खड़ी हुई थी और गुस्से में ही कहती है "नंदू का इस्तेमाल किया हुआ कोई कपड़ा जल्दी से लाकर दो वरना मैं सिद्धार्थ के साथ तूझे भी जेल कि हवा खिला दूंगी।"

"ठीक है लाकर देता हूं।" और नंदू की सबसे ज्यादा पसंद की कमीज अंकिता की मां को लाकर दे देती है

और फिर अंकिता की मां के जाने के बाद महादेव से प्रार्थना करती है "हे भगवान मेरे मृत जीवित दोनों बेटों की रक्षा करना।" क्योंकि एक बेटे सिद्धार्थ को अंकिता सीमा की मां जेल भिजवाना चाह रही थी और नंदू की आत्मा को अपने तांत्रिक भाई की मदद से कैद करवाना चाह रही थी।

और संतान के दुख से दुखी मां कि ईश्वर प्रार्थना सुन लेते हैं।

क्योंकि उसकी बेटी मंजू फोन करके कहती है "मां सिद्धार्थ अंकिता को होश आ गया है, अंकित ने अपना बयान सिद्धार्थ के हित में देखकर सिद्धार्थ को पुलिस के झमेले से बचा दिया है।" फिर मंजू से फोन लेकर उसके पिता कहते हैं "तुम खाना खाकर बे चिंता सो जाओ, मंजू और मैं सुबह जल्दी घर आ जाएंगे।"

सिद्धार्थ की मां फोन पर बात करने के बाद जैसे ही भगवान को धन्यवाद करने घर के मंदिर के पास जाती है, तो अंकिता के घर के एक कमरे से तेज आग की लपटे और अंकिता की मां तांत्रिक मामा की बचाव बचाव की चीख-पुकार सुनकर घबरा जाती है।

और तुरंत दौड़कर अंकिता के घर जाती है, तो उसे पता चलता है कि महादेव की प्रतिमा के सामने जलाई अगरबत्ती की एक चिंगारी तेज हवा से उड़कर खिड़की के परदे पर गिरने से घर के उस कमरे में आग लग गई है, जहां अंकिता का तांत्रिक मामा पूजा करने वाला था और नंदू की वह कमीज भी जल कर राख हो गई है, जिसकी मदद से अंकिता का तांत्रिक मामा नंदू की आत्मा को कैद करता।

यह सब अपना होश हवास खोए हुए अंकिता की मां चिल्ला चिल्ला कर सिद्धार्थ की मां और पड़ोसियों को बता रही थी।