Prem Diwani Aatma - 5 in Hindi Love Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | प्रेम दीवानी आत्मा - भाग 5

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प्रेम दीवानी आत्मा - भाग 5

इस बात को अच्छी तरह समझने के बाद सीमा नंदू की बेचैन भटकती आत्मा से बचने के लिए अपने पति विशाल को फोन करके उससे मदद मांगती है।

विशाल अपने बिजनेस के सिलसिले में शहर से बाहर गया हुआ था, वह सीमा की सारी बात सुनकर समझ कर तुरंत अपनी मां को फोन करके
मां के साथ अपने परिवार के गुरु जी को सीमा के पास घर भेजता है। विशाल की मां उस समय गुरु जी के आश्रम में ही थी, विशाल के पिता का दो साल पहले स्वर्गवास हो चुका था।

गुरु जी सीमा के घर में घुसते ही समझ जाते हैं कि इस लड़के सिद्धार्थ पर किसी बेचैन भटकती बहुत ही खतरनाक शक्तिशाली आत्मा का साया है और तभी गुरु जी के घर में घुसते ही कुछ देर बाद सिद्धार्थ नॉर्मल हो जाता है।

फिर गुरु जी सिद्धार्थ सीमा से सिद्धार्थ के बड़े भाई नंदू की मौत की पूरी कहानी सुनकर सबको बताते हैं कि "सिद्धार्थ के किसी गलत कार्य की वजह से उसके भाई नंदू की आत्मा और ज्यादा बेचैन अशांत हो गई है और वह सीमा को पाने के लिए सिद्धार्थ का सहारा ले रही है।"

सिद्धार्थ को पता था कि मैंने गलत काम अंकिता से प्यार करके किया है, क्योंकि जब से मैंने अंकिता और अंकिता के परिवार से मेलजोल बढ़ाया है, उस दिन से ही मेरे साथ यह घटनाएं हो रही है।

और अंकिता भी यही बात सोच रही थी कि सिद्धार्थ मुझसे मेरे परिवार से संबंध जोड़ना चाह रहा है, इसलिए ही उसके नंदू भैया की आत्मा और ज्यादा बेचैन अशांत हो गई है।

यह बात सुनकर सिद्धार्थ और अंकिता को समझ आ गया था कि अगर हम दोनों ने प्रेम विवाह किया तो नंदू की भटकती आत्मा और ज्यादा बेचैन हो जाएगी, इसलिए हम दोनों का प्रेम प्रेम नहीं बल्कि प्रेम का खौफ बनकर रह जाएगा।

सिद्धार्थ को उसी समय से चिंता हो जाती है कि मां कैसे बर्दाश्त कर पाएगी कि नंदू भैया की आत्मा अभी भी अशांत होकर भटक रही है।

सिद्धार्थ को उदास चिंतित देखकर अंकिता सिद्धार्थ से बोलती है "रात बहुत हो गई है, अब सो जाओ सुबह जल्दी उठकर घर भी जाना है, और घर जाकर इस समस्या का हाल भी ढूंढना है।"

"घर जाने का किस का मन कर रहा है, मैं तो सोच रहा हूं, घर जाने की वजह मैं वृंदावन या हरिद्वार चला जाऊं, मन की शांति के लिए।" सिद्धार्थ कहता है

"ऐसा क्यों सोच रहे हो।" अंकिता पूछती है?

"बाबू जी मंजू तो शायद बर्दाश्त कर ले, लेकिन भावुक नरम दिल की मां कैसे बर्दाश्त करेगी कि नंदू भैया की आत्मा अभी भी अशांत भटक रही है।" सिद्धार्थ कहता है

अंकित कुछ सोच समझ कर कहती है "इस समस्या का सीधा सा हाल है, जब तक मां को कुछ मत बताओ जब तक नंदू की आत्मा को शांति नहीं मिल जाती है।" अंकित की सारी बात को समझ कर सिद्धार्थ कहता है "यही ठीक रहेगा।"

और दूसरे दिन अंकिता के माता-पिता अपनी बेटी सीमा की नंदू की बेचैन भटकती खतरनाक आत्मा से रक्षा करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं, लेकिन सिद्धार्थ के पिता नहीं चाहते थे कि दोबारा वही दुख देने वाली बेटे नंदू की मौत की सारी बातें दोहराई जाए।
और जब गुरु जी उन्हें समझाते हैं कि "एक बेटा तो हाथ से निकल गया है, आपकी जिद की वजह से आपके दूसरे बेटे सिद्धार्थ की जान को भी खतरा हो सकता है।"

तो इस डर की वजह से सिद्धार्थ के पिता तैयार हो जाते हैं, लेकिन इस शर्त पर की इस बात को कोमल दिल वाली सिद्धार्थ की मां को कोई नहीं बताएगा।

यह सारी बातें गुरु जी अंकिता के घर पर बैठकर अंकिता और सिद्धार्थ के परिवार को समझा रहे थे।

दोनों परिवार जब नंदू की बेचैन भटकती आत्मा की शांति के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं तो तब गुरु जी सबको समझते हुए कहते हैं "आत्मा शांति के लिए पूजा पाठ दिवाली की अमावस्या की रात 12:00 बजे उसी श्मशान घाट में होगा जहां नंदू का अंतिम संस्कार किया गया था और सबसे जरूरी बात आत्मा शांति की पूजा होने तक दोनों परिवारों को घनिष्ठ संबंध बनाए रखना होगा चाहे दिखावे का झूठा ही सही, क्योंकि बेचैन भटकती आत्मा को ऐसा नहीं लगना चाहिए की सीमा का परिवार उसके परिवार से बहुत दूर और बिल्कुल अलग हो गया है, इससे नंदू की आत्मा और ज्यादा बेचैन हो जाएगी और दोनों परिवारों के किसी भी सदस्य को अत्यधिक क्रोधित हो कर नुकसान पहुंचा सकती है, सबसे ज्यादा खतरा सीमा और सिद्धार्थ को है।"

सीमा अंकिता के पिता पूछते हैं "गुरु जी दोनों परिवारों को किस प्रकार का घनिष्ठ संबंध बनाना होगा। "

"अंकिता सिद्धार्थ का विवाह का नाटक करके क्योंकि बेचैन भटकती आत्मा आपकी बेटी सीमा से प्रेम विवाह करके आपका दामाद बनना चाहती थी, अपने छोटे भाई को आपका दामाद बनता देख आत्मा हमारी शांति पूजा करने तक बिल्कुल शांत रहेंगी, इस बात का मैं पूरा विश्वास आपको दिलाता हूं, इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है और नंदू की आत्मा बहुत ज्यादा क्रोधित है, मुझे नंदू की आत्मा को शांत करने के लिए अपने गुरु जी की मदद लेनी पड़ेगी।"

गुरु जी की यह बात सुनकर सिद्धार्थ के पिता बहन मंजू को कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि वह पहले ही चाहते थे कि सिद्धार्थ की शादी अंकिता जैसी लड़की से ही हो अंकिता सिद्धार्थ की शादी का नाटक करने की क्या जरूरत है, अगर सच में ही शादी हो जाए तो कितना अच्छा होगा। वह दोनों ऐसा सोच रहे थे।

परंतु गुरु जी की बात सुनकर अंकिता की मां अपने क्रोध पर काबू नहीं रख पाती है और गुस्से में कहती है "इन लोगों को इसी समय यहां से भगा दो, यह परिवार मेरी बेटियों का दुश्मन है, इस आदमी के बेटे मरने के बाद और जिंद मेरी बेटियों के पक्के दुश्मन बने हुए हैं, कौन सा लड़का उसका परिवार अंकिता की शादी को नाटक मान कर उससे शादी करेगा।"

तभी वहां विक्रम आकर कहता है "मैं और मेरा परिवार अंकिता की झूठी शादी को नाटक ही मानेगा, क्योंकि मैं सिद्धार्थ को ना चाहते हुए भी सीमा की ससुराल पहुंचा कर नंदू की आत्मा की शक्ति को महसूस कर चुका हूं, इसलिए मैं अपने परिवार की मर्जी और अपनी खुशी से अंकिता से शादी करूंगा।"

विक्रम में वह सब कुछ गुण थे, जैसे हर एक बेटी के माता-पिता अपने दामाद में देखना चाहते हैं जैसे कि विक्रम पढ़ा लिखा सुंदर अमीर इज्जतदार परिवार का लड़का था।

विक्रम की यह बात सुनकर सिद्धार्थ के चेहरे पर गहरी उदासी छा जाती है, सिद्धार्थ के चेहरे पर उदासी देखकर अंकिता वहां से उठकर अपने कमरे में चली जाती है और एक बात उसे बार-बार परेशान कर रही थी कि इस शादी के नाटक को करते-करते कहीं सिद्धार्थ को उससे प्यार हो गया तो सिद्धार्थ कैसे अपने आप को संभालेगा और सिद्धार्थ सोच रहा था, इस शादी के नाटक के बाद विक्रम अंकिता की शादी जल्दी से जल्दी होनी चाहिए ताकि अंकिता शादी के बाद मेरी नजरों से दूर हो जाए, अंकिता के घटिया परिवार से दूर रहने के बाद ही मेरे परिवार की सुख शांति बनी रहेगी और दोनों को यह अच्छी तरह पता था कि अपनी सोच पर अमल करना बहुत ही मुश्किल है, क्योंकि दोनों के दिलों में एक दूसरे के लिए हमदर्दी के साथ-साथ कहीं ना कहीं एक दूसरे के लिए प्रेम भी था।