Wo Maya he - 85 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 85

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वो माया है.... - 85



(85)

खोपड़ी वाला स्टिकर लगी बाइक की जानकारी इस्माइल, कौशल और दिशा तीनों को दी गई थी। दिशा ने कहा कि टैक्सी से उतर कर वह सीधे ढाबे में चली गई थी। तब उसने आसपास के माहौल पर ध्यान ही नहीं दिया था। जब वह ढाबे से बाहर आई तो पुष्कर को लेकर परेशान थी। उसके बाद पुष्कर की लाश मिलने से वह इस हालत में ही नहीं रह गई थी कि कुछ देख समझ सके। इस्माइल और कौशल ने भी यही कहा कि उन्होंने ऐसी कोई बाइक नहीं देखी। पुलिस को अपने खबरियों से इस संबंध में कोई पुख्ता जानकारी मिलने का इंतज़ार था।
साइमन के दिमाग में जो विचार आया था उसने उसके आधार पर आगे बढ़ने का निश्चय किया। साइमन ने पिछले कुछ समय में हुए हत्या के ऐसे केसेज़ की जानकारी एकत्र करनी शुरू की जिनमें हत्या का तरीका या कोई और बात विचित्र तरह की हो। इसके लिए उसने पुलिस में दर्ज़ केसेज़ की रिपोर्ट्स पढ़ना शुरू कर दिया। उन केसेज़ में से उसने चार हत्याओं को चुना था जिनमें उसे कुछ अलग बात नज़र आ रही थी। गेस्टहाऊस के अपने कमरे में बैठा वह इन केसेज़ की स्टडी कर रहा था।
चारों हत्याओं में लाश खुली जगहों पर मिली थीं। जांच में पाया गया कि उन लाशों को कहीं और से लाकर उस जगह पर नहीं फेंका गया था। बल्की हत्या लाश मिलने की जगह या उससे बस कुछ ही दूरी पर की गई थी। एकबार और थी। पहली दो हत्याएं एक शहर के आसपास के इलाके में हुई थीं। दूसरी दो हत्याओं में भी यही देखा गया था। पहली दो हत्याओं में हत्या का तरीका एक जैसा था। सर को किसी भारी चीज़ से बुरी तरह कुचला गया था। बाद की दो हत्याओं में किसी पतले तार से गला घोंटा गया था। पर चारों हत्याओं में गर्दन के पास वार करने के निशान ठीक वैसे ही थे जैसे पुष्कर और चेतन की गर्दन पर थे।
उन चारों हत्याओं में एक पैटर्न था। सभी हत्याएं किसी खाली पड़े मैदान में की गई थीं जहाँ पेड़ और झाड़ियां थीं। मतलब उनके पीछे हत्यारा घात लगाकर बैठ सकता था। एक क्षेत्र में हत्याएं करके कातिल दूसरी जगह चला जाता था। वहाँ फिर दो हत्याएं करता था। दो हत्याओं में मारने का तरीका एक जैसा होता था। पर दो हत्याओं के बाद वह अपना तरीका बदल लेता था।‌ ठीक यही शाहखुर्द में भी हुआ था। साइमन ने अंदाज़ा लगाया कि इन दो हत्याओं के बाद कातिल किसी नए इलाके में चला गया होगा। नए तरीके से दो और लोगों को मारने के लिए।
साइमन ने रिपोर्ट्स को पढ़कर जो प्वाइंट समझ आए थे वह लिख लिए थे। उन्हें लिखने के बाद साइमन गर्दन पर लगे वार के निशान पर विचार करने लगा। वह सोच रहा था कि गर्दन पर इस तरह वार करने का क्या मतलब हो सकता है ? सभी मृतकों की गर्दन पर एक जगह एक जैसा वार करने का कोई ना कोई मकसद अवश्य होगा। साइमन ने पुष्कर और चेतन की गर्दन पर लगे निशान के बारे में उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पढ़ा। रिपोर्ट में लिखा था कि गर्दन पर हेमोटोमा का निशान है। यह गर्दन की मांसपेशी स्टर्नोक्लेडोमैस्टॉइड पर एक प्रेशर प्वाइंट पर वार करने के कारण है। ऐसा मरने वाले को बेहोश करने के लिए किया गया होगा। रिपोर्ट में तीन शब्दों ने उसका ध्यान खींचा। यह शब्द थे हेमोटोमा, प्रेशर प्वाइंट और स्टर्नोक्लेडोमैस्टॉइड उसने अपने लैपटॉप पर इनके बारे सर्च किया। सब पढ़ने के बाद उसे चीज़ें कुछ हद तक स्पष्ट हो गईं। कातिल नहीं चाहता था कि उसका शिकार किसी तरह का प्रतिरोध कर पाए। इसलिए उसे बेहोश कर देता था।
अभी तक किसी भी हत्या में कातिल पकड़ा नहीं गया था। साइमन सोच रहा था कि भले ही उसने जगह के हिसाब से हत्या करने का तरीका बदला हो फिर भी उन हत्याओं में एक पैटर्न है। इसका अर्थ है कि यह हत्याएं एक ही व्यक्ति ने की हैं। पिछली चार हत्याओं में मृतकों के बारे में कोई जानकारी रिपोर्ट में नहीं थी। वह मृतकों के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहता था। इससे उसे केस सॉल्व करने में बहुत मदद मिल सकती थी।‌ उसने तय किया कि वह अपने सीनियर्स से बात करके इन हत्याओं के बारे में और अधिक जानकारियां जुटाएगा।
साइमन अपने कमरे से निकल कर बाहर आया। मनोज बैठा पढ़ रहा था। साइमन को देखकर उसने कहा,
"सर अब तो खाना खाने के लिए तैयार हैं ?"
"हाँ..... भूख लगी है। तुमने खाया ?"
"इतने दिनों के बाद तो मौका आया है कि आपके साथ खाना खा सकूँ। आपका इंतज़ार कर रहा था।"
मनोज ने किताब बंद कर दी। खड़े होकर बोला,
"अब गार्डन में मत चले जाइएगा। मैं किताब अंदर रखकर खाना लगाता हूँ।"
मनोज अंदर जाने लगा तो साइमन ने कहा,
"मनोज थोड़ा और रुक जाओ।"
मनोज ने आश्चर्य से पूछा,
"क्यों ? अभी तो कह रहे थे कि भूख लगी है।"
साइमन ने कहा,
"आज मौका मिला है तो सोच रहा हूँ कि नैंसी से भी बात कर लूँ।"
नैंसी साइमन की बेटी थी। मुंबई के एक कॉलेज में पढ़ रही थी। अपने पापा से उसकी बात कम हो पाती थी। इसलिए मनोज से बात करके हालचाल ले लेती थी। मनोज ने मुस्कुरा कर कहा,
"नैंसी बेबी से बात करनी है तो मुझे कोई जल्दी नहीं है। मैं कुछ देर और पढ़ लेता हूँ। आप आराम से बात करिए।"
मनोज वापस अपनी जगह पर बैठकर किताब पढ़ने लगा। साइमन अपनी बेटी से बात करने के लिए अपना फोन लेकर गार्डन में चला गया।

विशाल को पुष्कर की हत्या की साज़िश रचने के लिए सज़ा हो गई थी। उसे जेल भेज दिया गया था। उसके जेल जाने के बाद से उसके परिवार से कोई भी उससे मिलने नहीं आया था। विशाल इस बात से बहुत दुखी था। इस वक्त उसे अपने परिवार के साथ की बहुत ज़रूरत महसूस हो रही थी। जेल की ज़िंदगी बहुत तकलीफों से भरी थी। उसे ऐसे माहौल में रहने की आदत नहीं थी। अब उसके लिए इस तरह रहना बहुत कठिन हो रहा था। दिन तो जैसे तैसे गुज़र जाता था। पर रात काटना मुश्किल होता था। अपने इर्द गिर्द लेटे अपराधियों के बीच उसे अजीब सा लगता था। वह सोचता था कि अपने गुस्से में उसने एक ऐसा कदम उठा लिया था जो बहुत गलत था‌। आज उसके कारण ही उसका यह हाल है। उसने पुष्कर को मरवाने की साज़िश रची थी इस बात का उसे बहुत पछतावा था।
वह अपनी सेल में फर्श पर बिछे बिस्तर पर लेटा था। उसके आसपास जितने भी कैदी थे सब इस माहौल के अभ्यस्त हो गए थे। इसलिए आराम से सो रहे थे। लेकिन उसकी आँखों में रोज़ की तरह नींद नहीं थी। नींद ना आने का कारण असुविधाजनक माहौल तो था ही। लेकिन उससे बड़ा कारण था उसके मन में उठने वाले विचारों का बवंडर। दिन में वह कोशिश करता था कि अपने आप को इतना थका ले कि लेटते ही बाकी लोगों की तरह सो जाए। शरीर थका हुआ होता भी था। पर आँखें बंद करते ही एक दृश्य उभरने लगता था। वह परेशान होकर आँखें खोल देता था। उसके बाद देर रात तक सो नहीं पाता था। उसे दिखाई पड़ता था कि वह कुसुम और मोहित की लाश के पास खड़ा हंस रहा है‌। आज भी वह जागा हुआ था। आज तो आँखें बंद करने की भी ज़रूरत महसूस नहीं हुई थी। लेटते ही उस दृश्य का खयाल मन में आ गया था। उसने अपनी पत्नी और बच्चे को खुद ज़हर दिया था यह सोचकर वह विचलित हो गया था।
इस बात की जानकारी मिलने के बाद कि उसके भीतर उसका ही एक ऐसा रूप था जिसने उसकी पत्नी कुसुम और चार साल के मासूम मोहित को ज़हर देकर मार दिया था, विशाल हैरान था। अपने व्यक्तित्व के एक हिस्से की उस हरकत से दुखी था। उसे वह दिन याद था जब माया उसके पास आई थी। सबके सामने उससे कह रही थी कि घरवाले नहीं मानेंगे। इसलिए उसका हाथ पकड़ कर ले चले। पर वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था। उस दिन उसे लग रहा था कि उसके भीतर कोई उसे धिक्कार रहा है। उसे लगता था उस दिन से ही उस रूप ने उसके अंदर जन्म ले लिया था। वह अक्सर उसे अपनी उपस्थिति का एहसास कराता था। लेकिन विशाल कुछ समझ नहीं पाता था।
लेटे हुए वह कुसुम और मोहित की हत्या के बारे में सोच रहा था। उसके लिए हैरानी की बात यह थी कि कुसुम और मोहित को ज़हर देने की बात उसे याद ही नहीं थी। वह उसे माया के श्राप का असर ही समझता था। जब वह कुसुम और मोहित को अस्पताल ले गया था तो डॉक्टर ने ज़हर वाली बात कही थी। तब उसके मन में आया था कि इस बात को बाहर लाना मुश्किलों को बढ़ाना होगा। माया ने सपने में उसकी खुशियां छीनने की बात कही थी और उसने ऐसा कर दिखाया। इसलिए मामले को यहीं दबा देना ठीक होगा। उसने डॉक्टर से कहा कि वह मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहता है। उस समय डॉक्टर भी आसानी से मान गया था।
सच्चाई पता चलने के बाद अब उसे लगता था कि कुसुम और मोहित के मामले को पुलिस तक ना ले जाने के लिए उसे उसके दूसरे रूप ने ही उकसाया था। इंस्पेक्टर हरीश ने जब उन दोनों की मौत की जांच करने की बात की थी तो उसे बहुत गुस्सा आया था। वह गुस्सा भी उसके उसी रूप का था। पर वह उससे अनजान था।
यह खयाल उसे बहुत परेशान करता था कि उसने ही अपनी पत्नी और बच्चे को मारा था। भले ही उसने यह अपनी मानसिक बीमारी के कारण किया था पर उसे बहुत पछतावा था।