भाग - ३
बुधिया युं हि अपने खयालो में उलझी हुई अपने घर पर पहुंची थी. उसका दिल कुछ कह रहा था और दिमाग कुछ और. वह कभी यह सोचती कि गलत नंबर लग गया होगा, तो कभी सोचती चाची कि बात सही तो नही है. बेचारी दिन भर उस बात से परेशान होकर रह गयी. शाम को जब चाची खेत से घर लौट आयी तो बुधिया चाची के घर पर गयी. वहां जाकर उसने चाची को पुकारा, “ चाची ओ चाची,” घर के भीतर से चाची ने आवाज लगाई, “ हा बीटीया आयी.” कहकर चाची घर के बाहर आयी. बाहर आकर चाची ने पुछा, “ क्या बात है बीटीया, क्या हो गया !”. बुधिया वही खोई खोई दिख रही थी, उसे समझ में नही आ रहा था के कैसे चाची से वह बात बताऊ . फिर भी वह हिचकीचाते हुये चाची से बोली, “ चाची मुझे तुझसे एक बात करनी है.” तब चाची बोली, “ तो बोल ना बेटा मै तेरी बात और तू मेरी बात सूनने के लिये हि तो है और बता यह तेरे चेहरे पर बारा क्यों बजे है किसीने कुछ बोल दिया क्या तुम्हे.” तब बुधिया बोली, “ नही चाची, किसीने कुछ नही बोला, वो मै ” कहकर बुधिया हकलाने लगी. तब चाची बोली, “ यह क्या मै मै कर रही है, साफ साफ बोल क्या हुआ है, बेटा.”
चाची को कूछ महसूस हुआ और उसने बुधिया को अपने पास बुलाया और उसके सिर पर हात फेरते हुये उससे पुछा, “ क्या हुआ मेरी लाडली बीटीया, अपने मां से भी कहने के लिये तू हिचकीचा रही है. ऐसी क्या बात हो गयी जो तू मुझसे सीधे सीधे कह नही पा रही थी. सुबह तो मुझे बहोत ज्ञान दे रही थी कि मै तुम्हारे और तुम्हारे पती के बारे में हक से बात कर सकती हुं, तो फिर तू भी तो मेरी बीटीया है तू भी तो हक से अपनी मां से कह सकती है, इसमें काहे का संकोच है बेटी.” चाची कि बात सुनकर बुधिया के दिल को शांती मिली और उसमें बात कहने कि हिम्मत आयी. फिर बुधिया ने चाची से कहा, “ चाची मै आज सुबह नुक्कड पर गयी थी. वहा जाकर मैने इनको फोन लगाया था.” इतना कहकर बुधिया शांत हो गयी. तब चाची बोली, “ यह तो अच्छी बात है बेटा, फिर क्या हुआ !” तब बुधिया बताने लगी के उधर से फोन पर और वह लडखडाने लगी. चाची फिर बोली, “ फिर क्या, अरे बोल बेटी मेरी बेचैनी मत बढा.” बुधिया ने बताया, “ चाची मेरी बात नही हुई, उस दुकानवाले भैया ने फोन लगाकर दिया था. उन्होने पहले बात कि तो उधर से एक औरत बोली के वह घर पर नही है काम पर गये है. घर पर आने पर मै आपका संदेसा उनको दे दुंगी. तबसे चाची, मेरा सोच सोचकर बुरा हाल हुये जा रहा है, कि वह औरत कौन हो सकती है. कही आपकी बात सच तो नही है.”
वहा पर थोडे देर के लिये शांती सी छा गयी थी कोई कुछ नही बोल रहा था. कुछ देर के बाद चाची बोली, “ बेटी मेरा तजुर्बा कहता है कि तुम्हे इस बात का पता लगाना चाहिये. सुबह कि तरह मै अब भी कहती हुं, मर्द चाहे घर का हो या बाहर का उसपर आंख मुंदकर भरोसा नही करना चाहिये.” तब बुधिया चाची से कहती है, “ तो अब चाची क्या किया जाये.” फिर चाची कहती है, “ किसी को शहर में जाकर पता लगाना चाहिये. लेकीन शहर जायेगा कौन?” अब बुधिया के तन मन में भी हिम्मत जाग रही थी, तो वह झट से बोली, “ मै जाऊंगी चाची पता लगाने, क्या झूठ है और क्या सच है ?” फिर चाची कहती है, “ बेटा तू अकेली कैसे जायेगी, अनजान शहर है उपर से तुम नादान हो. तुम्हे मै अकेला भेजने कि सोच नही सकती, फिर किसके साथ जाओगी.... ” थोडी देर चाची शांत हो गयी और बुधिया चाची के चेहरे को देखती रह गयी. फिर चाची एकदम से बोली, “ मिल गया जवाब मुझे, चल बेटा कल सुबह हि तू शहर जायेगी जाने कि तयारी कर ले.” लेकीन बुधिया के दिलों दिमाग में जो सवाल था उसका जवाब उसको नही मिला था. तो उसने चाची से पुछा, “ हा चाची ! लेकीन किसके साथ? ” तब चाची ने कहा, “ किसके साथ मतलब, मेरे साथ. मै तुम्हारे साथ शहर में जाऊंगी. जैसे इन बुढि हड्डीयो ने तुम्हे यहाँ सम्हाला है वैसे हि उस अनजान शहर में भी मै तुम्हारा सहारा बनकर तुम्हे तुम्हारी मंजिल से मिलाउंगी. चल तयारी कर हमे कल सुबह जो गाडी मिले उससे शहर जाना है.”
सुबह होते हि दोनों शहर जाने के लिये निकलते है, स्टेशन पर जाकर चाची पुछती है, “ साहब, यह शहर जाने के लिये कोनसी गाड़ी है.” तब वह व्यक्ती कहता है, “अभी आधे घंटे में एक गाड़ी है. आप तिकीट निकाल लीजिये गाड़ी आ रही होगी. ” फिर चाची ने उनसे पुछा, “ साहब, गाडी शहर में कब तक पोहचेगी.” तब उन्होने बताया गाडी शाम को शहर पोहोचेगी. उसके बाद में चाची ने दोनों कि तिकीट निकल ली और गाड़ी के आने का इंतजार करने लगी. दोनों मां बेटी बतीयाती रही और गाड़ी आ गयी. दोनो हि गाड़ी मै बैठ गयी और गाड़ी शहर कि तरफ निकल पडी.
शेष अगले भाग में ......