सिद्धार्थ खुद नहीं समझ पा रहा था कि अंकिता के प्यार में, मैं इतना पागल कैसे होता जा रहा हूं कि मैं अंकिता के दिल की बात जाने बिना उससे अपने प्रेम का इजहार करने के लिए बेकरार हो रहा हूं, किंतु सिद्धार्थ जितना भी अपने पर नियंत्रण कर रहा था, उतना ही उसकी बेचैनी बढ़ रही थी कि मैं जल्दी से जल्दी अंकिता से कहूं कि "मैं तुमसे बेइंतहा मोहब्बत करता हूं और अगर आप मुझे नहीं मिली तो मैं अपनी जान दे दूंगा।"
तभी छत के सन्नाटे भरे माहौल में अचानक एक तेज हवा का झोंका सिद्धार्थ के पास से तेजी से गुजरता है और उसे ऐसा महसूस होता है कि उसका बड़ा भाई नंदू उसके पास से गुजरा है और पास से गुजरते हुए उससे कहकर गया हो कि "नहीं मेरे भाई ऐसी गलती कभी नहीं करना।"
भाई नंदू की मौत के बाद पहली बार सिद्धार्थ को अपने भाई नंदू की उपस्थिति महसूस हुई थी, इसलिए वह अंकिता को अपनी छत पर अकेला छोड़कर चुपचाप अपने कमरे में आकर लेट जाता है और पलंग पर लेटते ही उसे गहरी नींद आ जाती है।
गहरी नींद आने केेेे बाद उसके सपने में उसका स्वर्गवासी भाई नंदू आकर उससे कहता है "मां बाबू जी मंजू की जिम्मेदारी मेरे भाई तेरे ऊपर है।" और यह कहकर उसका स्वर्गवासी भाई नंदू रोने लगता है।
और तभी भाई के सपने में खोए हुए सिद्धार्थ के कानों में अपनी मां की आवाज गूंजने लगती है कि "बिना खाना खाए ही सो गया जल्दी चल सब तेरा खाना खाने के लिए इंतजार कर रहे हैं।"
अपने नंदू भैया के सपने में खोए हुए सिद्धार्थ के कानों में अपनी मां की आवाज गूंजने लगती है, तो जैसे ही सिद्धार्थ नींद से जाकर अपनी मां के गले लगा कर कहता है कि "मां आपने मुझे नींद से जगा दिया, मैं नंदू भैया का सपना देख रहा था।" तो तभी उसे अपनी मां के पीछे अंकिता खड़ी हुई दिखाई देती है।
सिद्धार्थ की यह बात सुनकर उसकी मांं की आंखोंं मैं अपने बड़े बेटे नंदू को याद करके आंसू आ जाते है, सिद्धार्थ कि मां अपने आंसू पोंछ कर सिद्धार्थ से खाना खाने के लिए जल्दी आने कि कह कर उसकेेे कमरे से बाहर चली जाती है।"
सिद्धार्थ कि मां के जाने के बाद अंकिता उसके भाई नंदू की बात सुनकर भावुक होकर सिद्धार्थ से कहती है "मैं भी चाहती थी कि तुम्हारे नंदू भैया मेरे जीजू बने।"
"चलो पुरानी बातें छोड़ो सब मिलकर खाना खाते हैं।" सिद्धार्थ कहता है "नहीं घर पर मां पिता जी इंतजार कर रहे होंगे, मैं तो घर जाकर ही खाना खाऊंगी, नहीं तो मां नाराज हो जाएगी।" अंकिता कहती है
और सिद्धार्थ के कमरे से निकलते वक्त अंकिता के सर पर सिद्धार्थ के कमरे की छत पर रेंगती हुई छिपकली आकर गिर जाती है और अंकिता छिपकली से डर कर सिद्धार्थ के सीने से चिपक जाती है। न जाने कब और कैसे सिद्धार्थ अंकिता को अपनी बाहों में कस कर जकड़ लेता है, और अंकिता सिद्धार्थ की बहो से छूटने की जगह चुपचाप उसकी बाहों में जकड़ी रहती है और जब सिद्धार्थ काफी देर तक अंकिता को नहीं छोड़ता है तो अंकिता कहती है "क्या कमरे के बाहर तक मुझे ऐसे ही बाहों में भरकर ले जाने का इरादा है।"
तो फिर सिद्धार्थ धीरे से अंकिता को छोड़कर कहता है "बाहर तक नहीं पूरी जिंदगी ऐसे ही बाहों में जकड़े रहने का इरादा है मेरा।"
अंकिता सिद्धार्थ को कुछ भी जवाब दिए बिना अपने घर चली जाती है।
मां बाबू जी बहन मंजू के साथ खाना खाते हुए सिद्धार्थ अपने मन में सोचता है "अंकिता कह रही थी कि मैं नंदू भैया को अपना जीजू बनाने में बहुत खुश थी और जब अंकिता को मैंने अपनी बाहों में भरा तब भी उसने मेरा विरोध नहीं किया शायद अंकिता को भी मुझ से प्यार हो गया है।"
इसलिए सिद्धार्थ अंकिता को अपने घर की छत पर चढ़ते हुए फोन करके कहता है कि "तुमसे मुझे इशारे में कुछ कहना है और तुम्हें समझ कर मुझे अपनी छत पर खड़े होकर फोन पर जवाब देना है।"
अंकिता से फोन पर बातें करते-करते सिद्धार्थ अपने घर की छत पर पहुंच जाता है।
चांदनी रात ऊपर से पारिजात के फूलों की खुशबू से पूरी छत महक रही थी, गुलाबी ठंड तुलसी के नीचे जलता हुआ दीपक बहुत खूबसूरत वातावरण सामने उसकी प्रेमिका अंकिता अपनी छत पर खड़े होकर ऐसी लग रही थी, जैसे कोई अप्सरा या परी उससे मिलन का इंतजार कर रही हो और जैसे ही सिद्धार्थ इस खूबसूरत माहौल में अंकिता की तरफ अपने प्यार का इजहार करने के लिए इशारा करने वाला ही होता है कि 'मैं तुमसे प्यार करता हूं।" तभी वही हवा का झोंका उसके कानों के पास से यह कहता हुआ गुजरता है कि "मेरा कहना मान मेरे भाई।" और उसी समय सिद्धार्थ के सर में बहुत तेज दर्द होने लगता है।
इसलिए अंकिता को गुड नाइट का इशारा करके तुरंत वह अपनी छत से अपने कमरे में आकर पलंग पर लेट जाता है।
और उसके पलंग पर लेटते ही उसके कमरे की अलमारी के ऊपर रखी पुरानी किताबों में से एक किताब उसके पलंग के पास आकर गिरती है और उस किताब के अंदर से एक पेपर जिस पर लाल रंग से कुछ लिखा हुआ था, किताब से निकल कर सिद्धार्थ के पलंग के पास गिरता है।
सिद्धार्थ उस पेपर को उठाकर पढ़ता है तो वह उसके नंदू भैया का खून से लिखा अंकिता की बहन सीमा के लिए प्रेम पत्र था।
उस प्रेम पत्र में लिखा था कि मैंने आपके दुपट्टे को पकड़ कर चुम्मा, तो आपने अपना दुपट्टा ही गंगा नदी में फेंक दिया, ऐसा करके अपने मुझे बहुत दुख पहुंचाया है, आपका सिर्फ आपका नंदू।
गंगा नदी सिद्धार्थ अंकिता की कॉलोनी से थोड़ा सा दूर बहती थी, अपनी कॉलोनी के पास से बहने वाली गंगा नदी में ही नंदू के पिता ने नंदू की अस्थियों का विसर्जन किया था।
सिद्धार्थ की मां को जब भी अपने बड़े बेटे नंदू की याद आती थी, तो वह अपनी छत पर बैठकर या खड़े होकर घंटो बहती गंगा मैया को देखती रहती थी।
इस वजह से सिद्धार्थ के पिता सिद्धार्थ की बड़ी बहन और खुद सिद्धार्थ अपनी मां को छत पर अकेले नहीं जाने देते थे।