Wo Maya he - 84 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 84

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वो माया है.... - 84



(84)

दिशा दिल्ली वापस आ गई थी। शांतनु की कोशिश से उसके और मनीषा के बीच जो मतभेद था वह खत्म हो गया था। मनीषा को दिशा का नज़रिया समझ आ गया था। दिशा भी समझ गई थी कि उसकी मम्मी ने जो कुछ किया था वह उसके बारे में सोचकर किया था। गाज़ियाबाद से चलते समय दिशा ने अपनी मम्मी को समझाया था कि वह उसे लेकर परेशान ना हों। उसे बस कुछ समय चाहिए। उसके बाद वह वही करेगी जो वह चाहती हैं। मनीषा ने भी उससे कहा था कि अपनी ज़िंदगी का फैसला वह अच्छी तरह से सोच समझकर ले। वह उस पर किसी तरह का दबाव नहीं डालेंगी।

अदीबा दिशा के साथ एक दिन बिताकर गई थी। अपनी रिपोर्ट्स की सीरीज़ लिखते समय‌ भी उसकी कई बार दिशा से बात हुई थी। विशाल के बारे में जो भी प्रेस कांफ्रेंस में सामने आया था वह अदीब ने ही दिशा को बताया था। दोनों में दोस्ती ना सही पर एक दूसरे के लिए अच्छी समझ पैदा हो गई थी। इसलिए दिशा अब कभी कभी उसके साथ अपने मन की बात कर लेती थी।
रात के नौ बज रहे थे। अदीबा अपने कमरे में लैपटॉप लेकर बैठी थी। वह विशाल के केस के बारे में रिपोर्ट तैयार कर रही थी। पुष्कर की हत्या की साज़िश रचने के मामले में कोर्ट का फैसला आ गया था। विशाल, कौशल, पवन और इस्माइल को इस संबंध में सज़ा‌ हो गई थी। विशाल पर कुसुम और मोहित को ज़हर देने का इल्ज़ाम भी था। वैसे तो विशाल ने इस गुनाह को कबूल किया था पर बद्रीनाथ ने याचिका दायर की थी कि यह गुनाह उनके बेटे ने अपनी मानसिक बीमारी के चलते किया था। कोर्ट में अब इस बात का मुकदमा चलने वाला था कि क्या सचमुच विशाल डिसोसिएटिव पर्सनालिटी डिसऑर्डर का शिकार है। अदीबा इस सबके बारे में रिपोर्ट तैयार कर रही थी तभी दिशा का फोन आया। लैपटॉप रखकर वह उससे बात करने लगी।
दोनों के बीच करीब बीस मिनट बात हुई। दिशा से बात करने के बाद अदीबा सोच में पड़ गई। आज पहली बार दिशा ने उससे इस तरह बात की थी जैसे कि दोनों बहुत समय से सहेलियां रही हों। बाकी तो सब सामान्य बातें ही हुई थीं। पर अंत में दिशा ने एक ऐसी बात की जो उसके दिल के दर्द को बयान करती थी। दिशा ने उससे कहा कि उसने बहुत कोशिश की है कि अब बीते हुए को भूलकर आगे देखे। कई बार उसे ऐसा लगता भी है कि अब ज़िदगी की गाड़ी नई पटरी पर दौड़ने लगी है। लेकिन अचानक ऐसा कुछ हो जाता है कि सब बेमानी लगने लगता है। दिल अजीब से खालीपन से भर जाता है। वह पुष्कर का नाम लेकर रोने लगती है।
जब अदीबा उसके घर गई थी तब उसने उसकी आँखों में इस खालीपन को महसूस किया था। एक टीस सी उसके मन में उठी थी। इस समय भी वह ऐसी ही टीस महसूस कर रही थी। दिशा उसे अपने मन की बात बता रही थी तब वह बस सुन रही थी। कुछ कह नहीं पाई थी। अब उसे लग रहा था कि उसे दिशा को तसल्ली देनी चाहिए थी। उसने सोचा कि अपना फोन उठाकर एक मैसेज लिख देती है। दिशा के कॉन्टैक्ट पर जाकर उसने मैसेज टाइप करने की कोशिश की। पर उसे लग रहा था कि अपनी भावनाओं को दिखाने के लिए उसे सही शब्द नहीं मिल रहे हैं। जब कुछ नहीं सूझा तो उसने इमोजी का सहारा लेकर उसे बताया कि वह उसके बारे में सोचती है।
इमोजी भेजने के बाद वह लैपटॉप उठाकर अपनी रिपोर्ट टाइप करने लगी। रिपोर्ट पूरी करने के बाद उसने एकबार रिपोर्ट को पढ़ा। कुछ एक संसोधन करके फाइल अखलाक को ईमेल कर दी। उसे भूख लग रही थी। अपने कमरे से निकल कर वह किचन में गई। अमीरन उसके लिए खाना बनाकर अपने कमरे में चली गई थीं। अदीबा ने एक प्लेट उठाई और खाना परोसने लगी। तभी पीछे से अमीरन की आवाज़ आई,
"हमें बुला लिया होता....."
अदीबा ने मुस्कुरा कर कहा,
"कोई बात नहीं है चाची। आप जाकर आराम करिए।"
"हम कौन सा दिन भर पहाड़ तोड़ते हैं। लाओ हमें दो....."
अमीरन ने अदीबा के हाथ से प्लेट ले ली। अदीबा अपने कमरे में चली गई। उसने अपना फोन देखा तो दिशा का मैसेज था। उसने थैंक यू लिखा था। अमीरन ने प्लेट लगाकर उसे आवाज़ दी। वह डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाने लगी।

सब इंस्पेक्टर कमाल सूरज पाल को उसके गांव से लेकर आया था। सूरज का कहना था कि उसे बहुत डर लगता था। उसका मानना था कि पुष्कर और चेतन की हत्या में किसी अदृश्य शक्ति का हाथ है। उसका डर दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था। इसलिए वह अपना चलता हुआ ढाबा बंद करके चला गया था। वह कोई और काम करने के बारे में सोच रहा था।
चेतन की हत्या के संबंध में उससे कड़ी पूछताछ की गई। पर उसने यही कहा कि उसका चेतन की हत्या में कोई हाथ नहीं है। वह उसके साथ सख्ती बरतता था। उसने उस पर हाथ भी उठाया था। लेकिन उसकी हत्या करने की ना तो उसे कोई ज़रूरत थी और ना ही उसमें हिम्मत थी। उस दिन वह यह सोचकर उसके पीछे गया था कि उसे पुलिस स्टेशन जाने से रोक सके। वह नहीं चाहता था कि चेतन पुलिस को बताए कि उसने स्केच वाले आदमी को किसी से पुष्कर की हत्या के बारे में बात करते हुए सुना था। साइमन ने उससे कहा था कि वह अच्छी तरह याद करके बताए कि उसने उस दिन रास्ते में ऐसा कुछ देखा था जो बताने लायक लगे। पहले तो सूरज ने इस बात से इंकार कर दिया कि उसने उस रात बताने लायक कुछ देखा था। पर ज़ोर देने पर उसने कुछ याद करने की कोशिश की तो एक बात याद आई।
सूरज पाल ने बताया कि वह चेतन को रोकने के इरादे से अपनी मोटरसाइकिल पर पुलिस स्टेशन की तरफ जा रहा था। सर्दी की उस रात बहुत अधिक धुंध थी। उसे चेतन को रोकना भी था इसलिए अपनी मोटरसाइकिल धीमे चला रहा था। जिस जगह चेतन की लाश पाई गई थी उससे कुछ पहले उसने सड़क किनारे एक बाइक खड़ी देखी थी। सवार शायद किसी काम से रुका था। बाइक की हेडलाइट नहीं जल रही थी। अपनी मोटरसाइकिल की लाइट में उसने उसे देखा था। सवार ने हेलमेट पहन रखा था। उसने पीछे की तरफ देखा। उसके बाद बाइक स्टार्ट करके आगे बढ़ गया। पूछने पर सूरज ने बताया कि उसे बाइक का मॉडल या कलर तो याद नहीं है। पर उसकी हेडलाइट पर उसने एक स्टिकर चिपका देखा था। उसने बताया कि वह स्टिकर अजीब सा था। मानव खोपड़ी बनी हुई थी जैसे किसी कंकाल की होती है।
जब सूरज से पूछा गया कि उसने पहले यह बात क्यों नहीं बताई तो सूरज ने कहा कि वह बहुत परेशान था और यह बात उसके दिमाग से निकल गई थी। जब उन लोगों के कहने पर उसने दिमाग पर ज़ोर डाला तो उसे याद आ गई। यह एक महत्वपूर्ण बात थी। सूरज ने बाइक उस जगह से कुछ आगे देखी थी जहाँ चेतन की हत्या हुई थी।
साइमन अपने केबिन में था। इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल दोनों उसके सामने बैठे थे। तीनों सूरज से मिली जानकारी के बारे में बात करने के वहाँ मौजूद थे। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"सर इस तरह के स्टिकर कई लोग अपनी बाइक पर चिपकाते हैं। ऐसे में बाइक तलाश कर पाना मुश्किल होगा।"
साइमन ने कहा,
"मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं है। कम से कम हमें आगे बढ़ने के लिए कोई सुराग तो मिला है। अब यह सूचना अपने खबरियों को दो। उनसे कहो कि इस तरह के स्टिकर वाली कोई भी बाइक मिलने पर उसका नंबर नोट करके सूचना दें।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"जी सर मैंने पहले ही अपने खबरियों को सचेत कर दिया है।"
साइमन किसी सोच में था। सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"सर आपके दिमाग में कोई और बात भी है।"
"हाँ.... मैं सोच रहा था कि स्टिकर वाली बात इस्माइल को भी बताई जाए। हो सकता है कि पुष्कर की हत्या वाले दिन उसने ऐसी कोई बाइक देखी हो। उसे याद आ जाए।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"हाँ सर यह ठीक रहेगा। बल्की मैं तो सोचता हूँ कि कौशल से भी इस विषय में पूछा जाए।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने भी कुछ सोचकर कहा,
"इस बारे में दिशा से भी पूछा जाना चाहिए। वह भी वहाँ थी। इस विचित्र स्टिकर के बारे में सुनकर हो सकता है कि उसे कुछ याद आ जाए।"
साइमन ने मुस्कुरा कर कहा,
"देखा एक छोटी सी बात पता चली और हमारे दिमाग अपने काम पर लग गए। अब बस ऐसे ही अपने दिमाग चलाते रहना है। इन तीनों को स्टिकर के बारे में बताकर पूछो। शायद कुछ पता चल जाए।"
इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल आदेश का पालन करने चले गए। साइमन केस के बारे में सोचने लगा। उस पर अब ऊपर से दबाव आ रहा था। उससे कहा गया था कि अब वह जल्दी उन दो हत्याओं की गुत्थी सुलझाए जिनके लिए उसे विशेष जांच अधिकारी के तौर पर भेजा गया था। स्टिकर वाली बाइक पहला ऐसा सूत्र थी जिसे पकड़ कर आगे बढ़ा जा सकता था। साइमन सोच रहा था कि उसे इस संबंध में कोई अच्छी सूचना मिले जिससे इस केस को जल्दी सॉल्व किया जा सके।
स्टिकर के बारे में सोचते हुए उसका दिमाग उन दोनों हत्याओं के तरीके पर गया। हत्याएं ऐसे धारदार हथियार से की गई थीं जो पंजेनुमा था। उसके दिमाग में आया कि कहीं यह काम किसी शैतानी मानसिकता रखने वाले गिरोह का तो नहीं है। यह विचार मन में आते ही उसे एक और उम्मीद की किरण नज़र आई।