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नमस्कार
स्नेही मित्रों
चंदन हर समय दुखी क्यों बना रहता है, मुझे अच्छा नहीं लगता था | मैं उसे समझाती रहती लेकिन उसे महसूस होता कि मैं ऐसे ही उसकी बात को हवा में उड़ा देती हूँ | ऐसा नहीं था, मैं अक्सर उसे समझाती कि उसका नाम तो चंदन है और चंदन का काम है हवा में भी अपनी सुगंध फैलाना | उसे अपने नाम की तरह सबमें सुगंध फैलाकर आनंदित रहना चाहिए लेकिन उसके कण पर जूँ नहीं रेंगनी थी तो रेंगी ही तो नहीं |
आज की दुनिया में हर कोई सुख लेना तो चाहता है परंतु किसी को देना नही चाहता है। क्या सुख मांगने से मिल सकता है ? जैसे प्यार मांगने से मिल सकता है क्या? अगर लोग समझते हैं कि मांगने से मकिलता है तो यह गलतफ़हमी है, जितनी जल्दी इसे हटा दिया जाए उतना ही अच्छा है |
सुख लेने की चीज नहीं, देने की चीज है। अगर हम सुख चाहते हैं तो सुख बाटें ओर अगर दुख कभी चाहते ही नहीं तो कभी किसी को दुखी न करें भला ? सुख दुख का कारण बाहर नहीं हमाफ़रे भीतर ही तो है| यह सब हमारे मन की सोच है। हम यह सोच बदल कर दुख में भी सुख की अनुभूति कर सकते हैं। दुःख का गहरा मित्र है असन्तोष, ईर्ष्या, स्वार्थ, लोभ, द्वेष, ओर इन सबका दुश्मन है संतोष। संतोष का दामन थामते ही असन्तोष भाग जाएगा ओर अपने साथ दुखो को भी ले जाएगा। पीछे बचेगा तो सुख केवल सुख !
प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर की शक्ति और ज्ञान को बढ़ाते रहना चाहता है क्योंकि उसी की सामर्थ्य से वह अपने कार्य और अपने शरीर का ठीक प्रकार से निर्वाहन कर पाता है। शब्दकोश के अनुसार शक्ति शब्द का तात्पर्य है कि वह कोई भी साधन जिससे कोई भी व्यक्ति कुछ भी करने में समर्थ हो पाता है। जो देवी प्राणियों में शक्ति के रूप में विद्यमान हैं उन्हीं के नौ स्वरूपों की उपासना का त्योहार है नवरात्रि!
नवरात्रि में रात्रि शब्द का मतलब अंधकार, अज्ञान, तमोगुण, या मोह, यह इन्हीं संवेदनाओं को प्रदर्शित करता है। इन नौ दिनों में देवी की उपासना से ज्ञान रूपी दीपक से अज्ञान रूपी अंधकार को अपने जीवन से दूर करने का जागृतवस्था व समय है।
नवरात्रि शब्द के नव के दो अर्थ हैं एक है नया या नवीन। दूसरा है नौ की संख्या। यह नौ दिन, नौ रात तक चलने वाला देवी का पूजन है। दूसरे अर्थों में यह दिव्य ज्ञान, दैवी गुणों, ओर देवीय शक्तियों के आव्हान की नई रातें हैं। उस समय मानव के मन, बुद्धि, ओर संस्कारों में सतोगुण का बीजारोपण होता है। हमारे अंदर अदृश्य शक्ति का विकास होता है,मन में माँ से वरदान प्राप्त करने की कामना बस जाती है और वह भीतर के दानवीय दुर्गुणों से उत्पन्न समस्त मानवीय दुखों का नाश करने वाली है। इन दानवी प्रवृत्तियों के विनाश से मानव जीवन में सद्गुण और श्रेष्ठ संस्कारों का विकास होता है। इसी से सुख, शांति समृद्धि और खुशहाली का वातावरण कायम होता है।
सही मायने में नवरात्रि रजो गुण की तमो के ऊपर ओर सतो प्रवृत्ति की रजो के ऊपर विजय का उत्सव है।
अब जब हमारे मन की तलहटी में प्राप्ति की कामनाएं उत्पन्न होती हैं तो सभी को इसका लाभ लेना भी चाहिए और जहाँ आवश्यकता हो वहाँ देना भी आवश्यक होता है |
चंदन व और मन के भीतर नकारात्मक भावों को एकत्रित करने वालों को मैं यही समझाना चाहती थी कि जीवन के अँधेरों से निकलकर ईश्वर प्रदत्त शक्ति एकत्रित करके उसको सबमें फैलाने से स्वयं में भी नकारात्मा की घुटन का ह्रास होगा और जब हमारे पास ईश्वर प्रदत्त गुणों का विकास होगा, उसे सबमें बाँटने से हम और भी अधिक समृद्ध होंगे |
ज्ञान, प्रसन्नता, आनंद बाँटने से और भी अधिक विस्तार देता है और हमारे व्यक्तित्व की सुगंध हमारे मन-तन सबमें पसरकर हमें तो दुख के स्थान पर सुख देती ही है, हमसे जुड़े हुओं को भी आनंदित करती है | हम अंधकार से प्रकाश की ओर जाते हैं और जीवन आँड से जीने योग्य होता जाता है |
तो आइए, हम सब अंधकार से प्रकाश की ओर चलें,दुख से सुख की ओर चलें, लेने से देने की ओर चलें | इन नौ दिनों में माँ की अनुकंपा ने हमें इस योग्य बनाया है कि हम सबमें आनंद की मुस्कान बाँट सकें | पूरे वर्ष इस मानसिक चेतना का आनंद लेकर हम सब अलौकिक सुख के झरने में स्नान करते रहें |
आमीन !
आप सबकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती