रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 23
[गरिमा जी की गंभीर हालत]
जब विनीत जी ने दामिनी जी को सारी बात बतायीं तो पहले तो वो जैसे किसी सदमे में ही चली गईं फिर उन्होंने खुद को संभाला और जल्दी से वो हॉस्पिटल के लिए निकल गईं।
हॉस्पिटल में आकर जब उन्होंने विनीत जी को देखा तो उनका जितना भी धैर्य था उसने जवाब दे दिया… विनीत जी बिना किसी भाव के हॉस्पिटल की बेंच पर बैठे हुए थे। उनसे थोड़ी दूरी पर रश्मि जी भी ऐसी ही हालत में थी। दामिनी जी के आंसू तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे पर फिर भी उन्होंने अपने आंसुओं को पोंछा क्योंकि विनीत जी को संभालने के लिए पहले उन्हें खुद को संभालना पड़ेगा। खुद को सामान्य करके वो विनीत जी के पास आईं।
दामिनी जी ने विनीत जी के कंधे पर हाथ रखा और बोलीं, "विनीत!"
विनीत जी ने अपनी गर्दन उठाकर उनकी तरफ देखा और रोते हुए उनके गले लग गए। उनके रोने की देखकर दामिनी जी भी अपने आंसुओं को रोक नहीं पाईं पर गले लगे होने की वजह से विनीत जी को उनके आंसू नहीं दिखे।
विनीत जी रोते हुए ही बोले, "मां! मैं हार गया, मैं आपकी कही हुई बात को पूरा नहीं कर पाया। आपने कहा था कि गरिमा को कोई भी तकलीफ ना होने दूं पर मेरे होते हुए भी उसे इतना भयानक दर्द झेलना पड़ा… मैं कुछ भी नहीं कर पाया, कुछ भी नहीं।"
दामिनी जी ने अपने आंसू पोंछकर उन्हें खुद से अलग किया और उनके आंसू पोंछते हुए बोलीं, "नहीं, बेटा! तुम रोओ मत। तुम्हारी कोई गलती नहीं है।"
"नहीं, मां! मेरी…", विनीत जी अपनी बात पूरी कर पाते उससे पहले ही गरिमा जी जिस कमरे में थीं उससे कुछ आवाज़ें आने लगीं दोनों ही उन आवाजों को सुनकर पहचान गए कि वो गरिमा जी ही थीं।
विनीत जी, दामिनी जी और रश्मि जी तीनों ही कमरे के अंदर आए तो उन्होंने देखा सारे डॉक्टर्स गरिमा जी को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे थे पर वो अपने बिस्तर से उठकर भागने की कोशिश कर रही थीं।
तीनों ही ये दृश्य देखकर डर गए। गरिमा जी खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थीं, उनके चहरे से साफ पता चल रहा था कि उन्हें कितनी तकलीफ हो रही थी। जैसे ही उनकी नज़र विनीत जी पर पड़ी उन्होंने उनकी तरफ इशारा किया।
विनीत जी फुर्ती से उनके पास आ गए और उन्होंने उन्हें संभाला। गरिमा जी उनके गले लगे फफक पड़ीं। हर कोई ये देखकर तड़प गया।
गरिमा जी विनीत जी से अलग होकर छोटे बच्चे की तरह रोते हुए बोलीं, "विनीत जी! आप… आपको पता है उस… उस हैवान ने मेरे… मेरे पूरे शरीर को कितनी बुरी तरह से नोचा, मेरे सारे कपड़े… मेरा शादी का जोड़ा सब उसने फाड़ दिए; उसने मेरे शरीर को ही नहीं बल्कि आत्म तक को घायल कर दिया… वो… वो मेरा बलात्कार कर रहा था और वो लड़के… वो मेरी हालत को देखकर ज़ोर–ज़ोर से हँस रहे थे। मुझे अब भी ऐसा लग रहा है जैसे इसके घिन्होंने हाथ मेरे ऊपर हैं, मेरा सारा शरीर तड़प रहा है, विनीत जी! मैं… मैं मर जाऊंगी, मैं इस तरह नहीं जी पाऊंगी, मुझे बचा लीजिए। प्लीज मुझे बचा लीजिए।"
वो तड़पते हुए ये सब बोल रही थीं और विनीत जी का पूरा शहर जला जा रहा था उन्होंने गरिमा जी को अपने गले से लगा लिया और अपने कांपते होठों से बोले, "गरिमा! मैं… मैं छोडूंगा नहीं उसे। जिसने तुम्हारा ये हाल किया है उसको उतना ही तड़पाऊंगा जितनी तकलीफ तुम्हें हो रही है। मैं…" विनीत जी आगे कुछ कहने को हुए उससे पहले ही उन्हें एहसास हुआ कि गरिमा जी बेहोश हो चुकी थीं।
उन्होंने उन्हें बेड पर धीरे से लिटा दिया और तेज़ी से बाहर की तरफ चले गए। बाहर दीवार से हाथ टिकाकर उन्होंने अपनी आंखों में रुके सारे आंसुओं को बहा दिया। पीछे से दामिनी जी ने उनके कंधे को सहलाते हुए नम आंखों से संभाला पर ये तकलीफ तो असहनीय थी।
…
आज की रात वाकई में सबके लिए सबसे डरावनी और खौफनाक रात थी। गरिमा जी तो इंजेक्शंस की वजह से नींद में थीं पर विनीत जी, दामिनी जी और रश्मि जी की आंखों से नींदें गायब थीं। सब लोग इतना रो चुके थे कि अब उनकी आंखों से बहने के लिए एक भी आंसू बाकी नहीं था उनकी पूरी तरह से खाली हो चुकी थीं।
दामिनी जी गरिमा जी को उनके कमरे के दरवाजे के छोटे से शीशे से देख रही थीं और अपना मुंह छुपाकर रो रही थीं।
रश्मि जी अपने फोन में अपने और गरिमा जी के उस फोटो को देख रही थीं जो उन्होंने गरिमा जी के साथ उनकी शादी में क्लिक किया था। उनकी प्यारी सी मुस्कान देखकर एक बार फिर रश्मि जी की आंखों में नमी छा गई।
किसे पुछूँ?
है ऐसा क्यों ?
बेजुबान सा ये जहां है
ख़ुशी के पल,
कहाँ ढूढूं ?
बेनिशाँ सा वक़्त भी यहां है
जाने कितने लबों पे गिले हैं
ज़िन्दगी से कई फासले हैं
पसीजते हैं सपने क्यों आँखों में
लकीरें जब छूटे इन हाथों से यूँ बेवजह
जो भेजी थी दुआ
वो जाके आसमां से यूँ टकरा गयी
कि आ गयी है लौट के सदा
जो भेजी थी दुआ
वो जाके आसमां से यूँ टकरा गयी
कि आ गयी है लौट के सदा
विनीत जी बाहर सड़क की तरफ चले गए। उनको अपनी सुध ही नहीं थी सामने से आ रही एक गाड़ी से भी जैसे तैसे बचे। थोड़ी देर तक चलने के बाद वो वहीं एक पत्थर पर बैठ गए और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा फिर से बहने लगी।
साँसों ने कहाँ रुख मोड़ लिया
कोई राह, नज़र में ना आए
धड़कन ने कहाँ दिल छोड़ दिया
कहाँ छोड़े इन जिस्मों ने साए
यही बार-बार सोचता हूँ तन्हा मैं यहाँ
मेरे साथ-साथ चल रहा है यादों का धुंआ
जो भेजी थी दुआ
वो जाके आसमां से यूँ टकरा गयी
कि आ गयी है लौट के सदा
जो भेजी थी दुआ
वो जाके आसमां से यूँ टकरा गयी
कि आ गयी है लौट के सदा
…
धीरे–धीरे एक महीना यूंही गुज़र गया लेकिन गरिमा जी की हालत में कोई सुधार नहीं आया। उन्हें जब भी होश आता वो इसी तरह से बरतीं और घबरातीं। कभी कभी खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी करतीं इसलिए डॉक्टर्स को उन्हें बेहोश करना पड़ता।
इस बीते महीने में रश्मि जी हर रोज़ हॉस्पिटल आतीं। उनका बस चलता तो वो हॉस्पिटल से जाती ही नहीं लेकिन हॉस्पिटल में किसी एक ही इंसान को रुकने की परमिशन दी इसलिए विनीत जी हॉस्पिटल में रुके और उन्होंने रश्मि जी को अपने घर जाने को कह दिया लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया और बोलीं कि अभी गरिमा जी को उनकी ज़रूरत है तो वो ऐसे कैसे जा सकती हैं इसलिए वो सहगल मेंशन में रहकर दामिनी जी का ख्याल रखतीं और हर सुबह दामिनी जी के साथ हॉस्पिटल आ जातीं। वैसे भी रश्मि जी भी लगभग अनाथ ही थीं उनके चाची चाची थे जिन्होंने रश्मि जी के मां पापा के जाने के बाद कुछ सालों तक पढ़ाया लेकिन साथ में वो उनसे घर का सारा काम करवाते। इसलिए एक दिन रश्मि जी सबकुछ छोड़कर दिल्ली आ गईं और अपने कुछ पैसों से एक घर किराए पर ले लिया। घर खर्च चलाने के लिए उन्होंने बच्चो तो ट्यूशन पढ़ाना शुरू का दिया उन्हीं पैसों से वो अपना घर भी चलाती थीं और अपनी कॉलेज की फीस भी भर देती थीं। इस बात के बारे में किसी को भी पता नहीं था क्योंकि रश्मि जी ने कभी किसी को पता लगने ही नहीं दिया। विनीत जी और दामिनी जी ने उन्हें कहा भी कि इससे उनकी पढ़ाई छूट जायेगी पर उन्होंने उनकी एक भी नहीं सुनी।
आज सुबह भी वो तीनों हॉस्पिटल आ गए थे। आज गरिमा जी की रिपोर्ट आनी थीं जिसमें उनकी कंडीशन का पता चलता कि उसमें कितना सुधार आया है। उसके ही इंतज़ार में वो तीनों बैठे थे और भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि सब ठीक हो।
थोड़ी देर बाद डॉक्टर अपने केबिन से बाहर आए। उन्हें देखकर वो तीनों ही उनके पास एक घबराहट के साथ आए और विनीत जी ने पूछा, "डॉक्टर! क्या हुआ? गरिमा की रिपोर्ट्स अच्छी आई हैं ना?"
रश्मि जी ने भी एक घबराहट के साथ कहा, "वो जल्द ही ठीक हो जाएगी ना? उसकी हालत में सुधार आ रहा है ना?"
डॉक्टर कुछ भी कह नहीं रहे थे या यूं कहो कि कोई ऐसी बात थी जो वो कह नहीं पा रहे थे।
उन्हें इस तरह देखकर वो तीनों ही घबरा रहे थे।
विनीत जी ने फिर से पूछा, "डॉक्टर! बताइए ना, क्या हुआ?"
"डॉक्टर साहब! हमारा दिल बैठा जा रहा है, क्या बात है बताइए ना?", दामिनी जी हाथ जोड़कर कहा तो डॉक्टर सांस छोड़कर अटकते हुए बोले, "मिस्टर सहगल! आपकी वाइफ… वो… उनकी हालत में तो सुधार थोड़ा बहुत आ रहा है लेकिन…"
"लेकिन, क्या डॉक्टर?"
"ये एक ऐसी न्यूज है जिसे सुनकर लोग अक्सर खुश होते हैं और आपकी वाइफ के केस में ये आपके लिए सबसे ज़्यादा तकलीफ दायक है।"
"डॉक्टर! बात क्या है?"
"मिस्टर सहगल! यौर वाइफ इज़ प्रेगनेंट…", डॉक्टर ने जैसे ही कहा सबका दिल धक्क रह गया।
डॉक्टर ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा, "आपकी वाइफ में उस शख्स का बच्चा पल रहा है जिसने उनके साथ ये… घटिया और घिनहोना काम किया।"
विनीत जी तो ये सुनकर अपनी जगह पर धम्म से बैठ गए। रश्मि जी और दामिनी जी ने उन्हें संभाला। रश्मि जी डॉक्टर से बोलीं, "डॉक्टर! आप ठीक से चेक कीजिए… शायद रिपोर्ट्स में कुछ और हो और आपने कुछ गलत पढ़ लिया हो।"
"नहीं, मैंने चार बार इस रिपोर्ट को पढ़ा है। मैंने सब ठीक पढ़ा है।"
"क्या पता, ये किसी और की रिपोर्ट हो या… या गरिमा की गलत रिपोर्ट आ गई हो।"
"देखिए, ऐसा कुछ नहीं है। ये रिपोर्ट मिसेज सहगल की ही है और ये एकदम ठीक है।"
"अरे, ऐसा हो ही नहीं सकता। मेरे महादेव ऐसा नहीं होने दे सकते", दामिनी जी ने थोड़े गुस्से से कहा तो रश्मि जी ने उन्हें संभाला।
दामिनी जी फिर विनीत जी से बोलीं, "बेटा! तुम… तुम कुछ कहो ना इन्हें, बोलो इन्हें कि उनकी रिपोर्ट्स गलत हैं।" लेकिन विनीत स्तब्ध होकर बैठे हुए थे।
डॉक्टर उन्हें आश्वासन देते हुए बोले, "मैं जानता हूं कि ये सब सुनना और बर्दाश्त करना आप सबके लिए कितना पेनफुल है पर ये सच है।"
कुछ देर ठहरकर दामिनी जी बोलीं, "आप इस बच्चे को गिरा देना।"
दामिनी जी ने कहा तो विनीत जी और रश्मि जी चौंक गए।
विनीत जी खड़े होकर बोले, "मां! क्या कह रही हैं ये आप?"
"मैं क्या कह रही हूं! सही ही तो कह रही हूं। तुम क्या चाहते हो कि उस गिरे हुए इंसान का बच्चा इस दुनिया में आए?", दामिनी जी विनीत जी को देखकर अचंभे से कहा तो विनीत जी बोले, "मां! पर वो सिर्फ उसका नहीं हमारी गरिमा कभी बच्चा है और मैं अपनी गरिमा का बच्चा इनफैक्ट किसी का भी बच्चे अबॉर्ट नहीं होने दे सकता।"
"लेकिन…", गरिमा जी कुछ बोलने को हुईं कि डॉक्टर बोले, "ये पॉसिबल भी नहीं है।"
ये सुनकर सबने डॉक्टर की तरफ हैरानी से देखा तो डॉक्टर बोले, "मिसेज सहगल की हालत इतनी क्रिटिकल है कि हम चाहकर भी उनका अबॉर्शन नहीं कर सकते क्योंकि अगर हमने ऐसा किया तो उनकी जान भी जा सकती है।"
ये सुनकर सब दंग रह गए। विनीत जी फुर्ती से बोले, "नहीं, डॉक्टर! मेरी गरिमा को कुछ नहीं होना चाहिए। आप… आपको गरिमा का अबॉर्शन करने की कोई ज़रूरत नहीं है। आप दोनों को सेफ रखिए।"
डॉक्टर ने हां में गर्दन हिला दी और अंदर चल गए। उनके जाने के बाद दामिनी जी विनीत जी से बोलीं, "विनीत! ये सब क्या है?"
"मां! उस नन्ही सी जान की जान लेने का कोई हक नहीं है हमें और तब तो बिलकुल भी नहीं जब उसके इस दुनिया में आने से हमारी गरिमा को जान बच सकती हो।", विनीत जी ने दामिनी जी को कंधों से पकड़कर कहा तो दामिनी जी बोलीं, "तो तुम उस दरिंदे का बच्चा अपने घर में रखोगे?"
विनीत जी ने अपनी आंखें बंद की और फिर उन्हें खोलकर बोले, "मां! वो मेरी गरिमा का बच्चा है और उसे मैं कहीं फेंक नहीं सकता। भले ही वो मेरा खून नहीं है पर गरिमा का तो है इसलिए उसे मैं अपने बच्चे के जितना ही प्यार करूंगा।"
"विनीत!", दामिनी जी ने उन्हें कहा पर वो दूसरी तरफ चले गए।
क्रमशः