"सौ मर्तबा कहा होगा तुमसे कि कपड़े फैलाते वक्त कपड़ों की क्लिप का भी इस्तेमाल किया करो, लेकिन छत पर नज़रें और ध्यान कपड़ों पर कहां रह जाता है, है ना वकील बाबू!"
"सुनो, तुम ना गाली दे दिया करो, ये वकील बाबू ना बुलाया करो। ज़ुबान से डंडा मार देती हो कसम से! और रही बात हमारा ध्यान भटकने की तो, वो दस साल पहले भटका था, तबसे भटका ही हुआ है।"
" बस, एक यही काम आता है तुम्हें, बात क्या हो रही होती है, उसे कहां लेके चले जाते हो। मैं तुम्हारी मुवक्किल नहीं हूं, जो बातों के जाल में फंस जाऊंगी, समझे वकील बाबू! खूब समझती हूं ये तुम्हारी हरकतें। काम से पल्ला कैसे झाड़ा जाए, इसकी क्लासेज़ ओपन कर लो तुम! वकालत से ज़्यादा पैसे बन जायेंगे।"
" अरे तुम मुवक्किल थोड़े हो, तुम तो अपने में हाई कोर्ट हो! हमारे प्यार की अर्जी लगा लगा के थक जा रहे हैं हम, दस साल से फैसला पेंडिंग ही है!"
"अभिषेक!"
"प्रतिमा!"
"सीधे सीधे मना कर दिया करो, अगर काम नहीं करना होता है, नुकसान तो नहीं झेलना पड़ेगा ना।"
" सीधे सीधे मना कर तो दूं, उसके बाद तुम्हारा गुस्सा जो झेलना पड़ेगा उसका क्या? उसके आगे नुकसान तो बहुत छोटा जान पड़ता है। ये बर्दाश्त हो भी जाता है, तुम्हारा गुस्सा नहीं हो पाता, अब बताओ क्या उपाय है इसका?"
" आज घर में कचहरी खोलने का मन है? इतना मिस करते हो कोर्ट जाना तो चले ही जाया करो संडे को भी। वहीं बैठे रहा करो, कम से कम ये बेमतलब, बेसिरपैर की दलीलों से तो बच जाऊंगी मैं!"
(सही समझे, आज संडे है, यानी रविवार। वकील बाबू उर्फ हमारे अभिषेक जी आज घर पर हैं, मिश्राइन उर्फ प्रतिमा जी ने हमारे प्यारे अभिषेक बाबू को घर के कामों में हांथ बटाने को कहा और अब पछता रहीं हैं, क्यों? आइए जानते हैं)
" इतनी सी छोटी सी बात पर गुस्सा करके बैठ गई हो। क्यों टेंशन लेती हो, इतना भी बड़ा नुकसान नहीं हो गया है जिसकी भरपाई ना हो सके। हां अगली बार से केयरफुल रहूंगा। अब ये आंखों से भस्म करना बंद करो, डर लगने लगा है मुझे!"
" मैं आंखों से भस्म कर रही हूं?? हां हां मेरी आंखें आग का गोला और शुक्लाइन बर्फ का गोला नज़र आती हैं न, जिनको देख ठंडी आहें निकल जाती हैं तुम्हारी!"
" ये शुक्लाइन कहां से आ गईं बीच में? कह रहा हूं, दूर रहा करो उस औरत से, तुम्हारे दिल दिमाग पर कब्ज़ा करके बैठ गई है। मुझसे ज़्यादा उसका नाम लेने लगी हो तुम। अब कौन बात को कहां से कहां ले जा रहा , ये नहीं कहोगी? बस हर गलती का ठीकरा मेरे सिर फोड़ना अच्छा लगता है ना, मैं बेचारा छोटी सी गलती..."
"छोटी सी गलती! तुमने आज जो किया है वो छोटी सी गलती है! तुम्हें लगता है मैं बेवजह गुस्सा कर रही हूं?"
" ना ना तुम कोई काम बेवजह थोड़ी करती हो, वजह मैं देता हूं तब जाकर तुम्हारा ज्वालामुखी प्रज्वलित होता है और फूट कर बहता है, ना मैं माचिस लगाऊं ना आग लगे, गलती मेरी ही होती है भाग्यवान! तुम तो शांति की मूरत हो, मूरत!"
"मार लो ताने, जब असली बात पता चलेगी तब सॉरी सॉरी कहते पीछे मत आना, आज मैं एक नहीं सुनने वाली! "
" खाली हांथ थोड़े आऊंगा, चाय लेके आऊंगा सौंफ वाली! बात नहीं सुनना लेकिन चाय ज़रूर पी लेना, बाकी मैं सब संभाल लूंगा! ऐसी धमकी मत दो देवी! अचानक से खुद को जेल के अंदर महसूस करने लगा हूं मैं! ऐसा भी क्या कर दिया मैंने ?"
" जब तुम ही सब भुला बैठे हो तो मैं क्यों जी जला रही अपना! जाने दो, जो हुआ सो हो है गया है। अब क्या फायदा दुःखी होने से। जाओ तुम चाय बना कर तीस मार खान बन जाओ, मैं बिल्कुल नाराज़ नहीं हूं, सही कहा तुमने, चाय भी पी लूंगी। जाओ, चाय बना लाओ।"
" यार! अब वाकई डर लग रहा मुझे। तुम जब तक गुस्सा होती रहती हो, मेरे पास चांस होता है सिचुएशन हैंडल करने का, ये अब आउट ऑफ कंट्रोल जैसी सिचुएशन हो गई है। क्या अनर्थ हो गया जाने अंजाने मुझसे? बता भी दो! ऐसे मत करो बीवी! मेरा दिल डर के मारे सच्ची बैठा जा रहा! एक तो तुमने शादी के फेरों में कौन सी कसम खा ली है, कि कोई भी बात एक बार में सीधी सीधी नहीं बोलोगी, बात निकलवाने में मेरा तेल निकल जाता है। बता भी तो मिश्राईन, काहे सूली पे टांग रही हो!"
" अब चाय पी चर्चा होगी, वरना नहीं होगी!"
"अभी लेके आया सरकार!"
वकील बाबू, जो अपनी अच्छी याददाश्त के लिए कोर्ट में फेमस थे, आज उनकी हालत पतली थी, ऐसा क्या था जो वो भूल गए थे और उनकी अर्धांगिनी उनसे रुष्ट हो गईं हैं।इतना कौन सा बड़ा गुनाह हो गया , वकील बाबू की श्रीमती ने आज तक कभी पैसों को अपने जीवन में तरजीह नहीं दी थी, ये बात हमारे अभिषेक जी बहुत अच्छे से जानते थे; तो आज इतनी सी बात पर उखड़ जाना उनका, वकील बाबू को समझ नहीं आ रहा था।
"छत पर चाय पीने का अपना अलग मज़ा है ना! क्यों सही कह रहे हैं न मिश्राइन!"
" देखो, चाय का मज़ा किरकिरा मत करो हमको मिश्राइन
बुला कर, तसल्ली से चाय पीने दो!"
" माफ़ी सरकार, माफ़ी। पी लीजिए, उसके बाद जो सज़ा
सुनाएंगी वो भी मंज़ूर होगी। जीवन के कुछ अंतिम क्षण सुकून के, चाय की चुस्की लेते हुए हम भी व्यतीत कर लें आपके संग।क्या मालूम फिर कब मौका मिले ,है ना!?"
" तुम ना कसम से हद्द कर देते हो, सुनो
हमें इस बात का दुःख नहीं कि हमारा सूट हवा से उड़ कर खो गया, हमें दो बातों का दुःख है। पहला- वो सूट तुम्हारा हमें दिलाया गया सबसे पहला सूट था, दूसरा -तुम ये बात तक भूल गए।"
मुंह में गया आखिरी चाय का घूंट वकील बाबू के हलक़ से नीचे नहीं उतर सका। उन्हें खांसी आ गई। आज तक उन्हें लगता था उनकी श्रीमती उनसे खुल कर मोहब्बत का इज़हार नहीं करती, जैसे वो दिल हथेली पे लिए घूमते हैं, वो वैसे क्यों उनसे प्यार नहीं करती? लेकिन आज! उनकी मिश्राइन
ने बड़ी सफाई से अपने दिल का हाल उनके सामने कह दिया था और वो इस पल के लिए तैयार नहीं थे।
"गई भैंस पानी में! इतना बड़ा गुनाह हो गया हमसे मिश्राइन
और तुम हमसे केवल रूठ के बैठी हो! चलो उठाओ बेंत और करो हमारी सुताई! इतनी बड़ी बात कैसे हमने बिसराई? बड़ी भूल हो गई सरकार, सुधरने का एक मौका कोर्ट भी देती है, तुम तो हमारा पर्सनल हाई कोर्ट हो। पहली और आखिरी गलती समझ कर माफ कर दो।"
वकील बाबू का इतना कहना था कि अब तक को आंसू सूट और उससे जुड़ी यादों के खो जाने से रोके हुए थे, सब्र का बांध तोड़ कर बह निकले, और वकील बाबू की मिश्राइन
अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा कर रोने लगीं। वो क्या है ना, हमारी प्रतिमा को रोते हुए चेहरा छुपा लेने की आदत है।
" देखो, चाहे थप्पड़ मार लो हम कुछ नहीं कहेंगे, ऐसे रो मत वरना सच में हमारा दिल धक्क से बंद हो जायेगा।"
" अभिषेक!"
" आई एम सॉरी प्रतिमा।"
"आज के बाद ऐसी बातें मत करना दुबारा समझे!"
" बोलो पेंसिल!"
" अब ये क्या नया ड्रामा है तुम्हारा?"
" बोलो तो बाबा!"
" पेंसिल!"
" तुम्हारा रोना कैंसिल!"
"उफ्फ!!"
Disclaimer : प्यार जीवन में कब किस रूप में आपको मिलेगा, ये आप ख़ुद भी नहीं सोच सकते। जैसे आज हमारे अभिषेक बाबू ने अपनी श्रीमती का एक नया पहलू देखा और एक बार फिर अपना दिल हार गए उनपे। दिल तो हारे थे, बटुआ भी वार बैठे। जिस दुकान से पहली बार सूट खरीद कर लाए थे अपनी भाग्यवान के लिए, आज उस दुकान पर अपनी श्रीमती को बैठा कर तब तक शॉपिंग करवाई, जब तक श्रीमती ने सबके सामने उन्हें बेफिजूल खर्चे के लिए डांट नहीं दिया। आज अपनी लक्ष्मी पर लक्ष्मी खर्च करके हमारे वकील बाबू अलग सुख की अनुभूति कर रहे थे।
धन्यवाद।