Ye Tumhari Meri Baate - 2 in Hindi Short Stories by Preeti books and stories PDF | ये तुम्हारी मेरी बातें - 2

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ये तुम्हारी मेरी बातें - 2

"नहीं, मैं मान ही नहीं सकता!"

" तुम्हारे मानने या ना मानने से मुझे फर्क नहीं पड़ता।"

" वो तो मुझे क्या ,मोहल्ले वालों तक को पता है, कि मिश्राइन; मिश्रा साहब को अपने जुत्ते की नोक पर रखती हैं।"

" ये ज़्यादा हो गया, थोड़ा कम फेंको तो हज़म भी कर लूं, यही एक आदत तुम्हारी सबसे ख़राब है, बाकी काम चलाऊ हैं।"

" अरे अरे, सबसे ख़राब बस एक ही आदत है? अभी प्यार के दो मीठे बोल बोल दूं तो उसके लिए भी यही कहोगी कि बस यही आदत सबसे ख़राब है, ऐसे कहते कहते मेरी हर आदत को सबसे खराब कह चुकी हो तुम, जानती हो ना!"

"जब असलियत जानते हो, तो अपनी आदतें बदलते क्यों नहीं?"

" तुम्हारे लिए तो मैं पूरा का पूरा बदलने को तैयार हूं, तुम एक मर्तबा इशारा तो करो मिश्राइन!"


अभिषेक!
प्रतिमा!

"नाम है, नाम से पुकारो, ये क्या मोहल्ले की आंटी बन बोलते हो।"

" हां हां, मैं दुनिया का हर वो इंसान हूं जो तुम्हें पसंद नहीं, पसंद आने के लिए क्या करना होगा ये भी राज़ खोलो! वो सब कुछ करूंगा, जो तुम चाहती हो, बस एक मौका दे दो रानी!"

" छी, तुम कभी सुधर नहीं सकते ना, मेरा नाम प्रतिमा है, प्रतिमा बुला सको तो ठीक वरना"

" वरना, 'ए जी'कहके बुलाऊं तुम्हें? तुम तो कहने से रही, मेरा सपना अधूरा का अधूरा रह जाने वाला है, तुम्हारा ही पूरा कर दूं, आज से तुम मेरे लिए मेरी ' ए जी '!"

" सिवाय मसखरी के तुम्हें कुछ नहीं सूझता, है ना!"

" ए जी, सुनती हो! चाय बनाऊं? पियोगी? "

( प्रतिमा अपने पति को नज़रंदाज़ करते हुए घर के बाहर सब्ज़ी लेने के लिए निकल जाती है, जहां पांडे कॉलोनी की सारी औरतें एक ठेले वाले को रोक कर सब्ज़ियां ले रहीं थीं। इस बात से अनजान कि अभिषेक उसके पीछे ही चल रहा था )

घर के बाहर , मोहल्ले की गली में:

"अरे आओ आओ प्रतिमा, बड़े दिन बाद दिखी! आज वकील बाबू लगता है व्यस्त हैं, जो तुम सब्जी लेने आई हो!"
(ठेले के पास खड़ी शुक्लाइन ने टांग खींचते हुए कहा)

"नहीं, ऐसा कुछ नहीं है Mrs Shukla, बस मन हुआ तो लेने आ गई, स्वाति कैसी है? दिखती नहीं आज कल।"

इसके पहले कोई कुछ कहता, पीछे से एक आवाज़ गूंजी,

" ए जी सुनती हो! चाय बनाऊं? पियोगी??"

हांथ में पकड़ा करेला ठेले पर फेकते हुए प्रतिमा ने अभिषेक को कत्ल करने वाली आंखों से घूरा और घर के अंदर जाने लगी, वहीं मोहल्ले की जितनी औरतें वहां सब्जियां ले रहीं थीं, खिलखिला कर हंस दी, सब्जी वाले के साथ।

"तुम्हें क्या मिल जाता है ये सब करके?"

" एक तो तुम्हारा जोरू का गुलाम बनना मैंने ख़ुद से स्वीकार किया है, क्योंकि बाकी बीवियों की तरह मुझे उंगली पर तुम नचाती नहीं, जबकि मैं नाचना चाहता हूं तुम्हारे इशारे पर, नचाओ ना, मुझे जोरू का गुलाम बनाओ ना!"

"अभिषेक!"
"प्रतिमा!"

"वैसे ही मेरी इमेज सबके सामने ऐसी ही है, उसपर तुम्हारी हरकतें सबका शक पुख़्ता करती हैं, सुधरने का क्या लोगे?"

" तुम्हारे हांथ की बनी एक कप चाय!"

"पक्का! उसके बाद ये सारी हरकतें बंद कर दोगे तुम!"

"चाय पीने के बाद फैसला होगा! तुम्हें हमेशा इतना ही पावरफुल फील होता है ना, जैसा आज पहली बार मुझे फील हो रहा! है ना!"

"बातें मत घुमाओ, प्रोमिस करो चाय पीने के बाद तुम अपनी ये मसखरी हरकतें बंद कर दोगे और नॉर्मल हो जाओगे ! वादा करो , जल्दी से!"

" अदरक, इलाइची, थोड़ी सी काली मिर्च और हां, गुलाब डालना मत भूलना!"

" यूं गई और यूं आई चाय लेके, तुम बस इसी मूड में रहना बाबा!"

प्रतिमा ने अपने जीवन में आज से पहले इतने मन से शायद कभी चाय नहीं बनाई थी, जितने मन से आज बना रही थी। अभिषेक की फरमाइश के अनुसार उसने सब कुछ चाय में डाला, अच्छे से पकाया और ट्रे में दो कप चाय (हां चाय भी भला अकेले मज़ा देती है क्या, वैसे तो प्रतिमा बना भी देती थी एक कप चाय कभी कभी,लेकिन आज वो कोई चांस नहीं लेना चाहती थी। कहीं अभिषेक ने फिर कोई शर्त रख दी तो! मूड बदल गया तो! इन्हीं सब ख्यालों से लबरेज़ प्रतिमा ने आज सारी एहतियात बरतते हुए २ कप चाय बनाई )लेके कमरे में चली गई, जहां अभिषेक बैठा था।

चाय पीने के बाद:

" मैं चाहे जितनी अपनी तारीफ कर लूं, लेकिन तुम्हारे हाथों की चाय जैसी चाय कभी नहीं बना सकता। मन खुश कर दिया तुमने बीवी! थैंक यू ।"

" तारीफें नहीं चाहिए, जो बोला था वो प्रोमिस करो!"

" ओह हां, बोलो पेंसिल!"

" क्या?"

" बोलो तो सही!"

" पेंसिल!"

" मेरी कही सारी बात कैंसिल!"

(अपनी कही आखिरी लाइन के बाद अभिषेक की नज़रें सीधे प्रतिमा के चेहरे पे जा चिपकी, जहां गुस्से से आग बबूला होता प्रतिमा का चेहरा आज अभिषेक को पहली बार बहुत मज़ेदार लग रहा था।)

अभिषेक!!!!!!!

आई लव यू टू प्रतिमा!!!!!! ( कहता हुआ अभिषेक कमरे से बाहर भागने लगता है, क्योंकि पीछे प्रतिमा ट्रे हाथों में उठाए उसे मारने के लिए जो दौड़ चुकी थी)


Disclaimer : पत्नी के सामने कभी भी ओवर स्मार्ट बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जैसा अंजाम अभिषेक का होने वाला है, वैसा आपका भी हो सकता है।

धन्यवाद