kapde ka guldasta in Hindi Comedy stories by sunil Jadhav books and stories PDF | कपड़े का गुलदस्ता

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कपड़े का गुलदस्ता

लेखक -डॉ.सुनील जाधव 

मो.९४०५३८४६७२ 

 

यह उस दिन की बात है, जब एक शहर के, एक.. फेमस कॉलेज के, एक.. फेमस प्रधानाचार्य जी के नाम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश, अमरीका से एक पत्र आया | जैसे ही पत्र महाविद्यालय के द्वार पहुँचा ‘डी. जे.’ की आवाज में महाराष्ट्र के फेमस फिल्म का गीत झींग – झींग  झींगाट पर  सारा परिसर नृत्यमय हो गया था | इस अवसर का फायदा खासकर नृत्य प्रेमी छात्रों ने उठाया था | विगत कई वर्षों से महाविद्यालय में नृत्य का स्नेह-सम्मेलन अर्थात गैदरिंग नहीं हुई थी | सो उस दिन सारे नृत्य प्रेमियों, छात्रों और छात्राओं की इच्छायें पूरी हो चुकी थी | इस में छात्र, अध्यापकों, सेवकों के साथ दूर-दूर से आकर्षित हुए लोग भी इसका हिस्सा बन चुके थे | देखते ही देखते परिसर में लाखों लोग जुड़ गये थे | जहाँ-तहाँ जश्न का माहोल था | पत्रकार, संवाददाता और मीडिया चमत्कृत रूप से महाविद्यालय में प्रकट हो चुके थे | उन्होंने आँखों देखा और नहीं देखा, सारा जीवित प्रसारण  का बीड़ा अपने कोमल एवं मखमली कंधे पर उठा लिया था | पत्र अमरीका से आने की खबर आग में घी की तरह फैल चुकी थी | खबर की सौंधी खुशबू से सारा वातावरण महक उठा था | सब पत्र आने से खुश थे | किन्तु किसी के मन में अब तक यह सवाल नहीं उठा था कि यह पत्र है किसका? और किस लिए भेजा गया?

मीडिया का छटा इन्द्रिय जागृत अवस्था में था | उसके मन में इस प्रश्न ने बेचैनी निर्माण कर दी थी | सो यह बेचैनी का दर्द वह अकेले कैसे सह सकता था | उसने समस्त भारत वासियों को अपने बेचैनी वाले दर्द में शामिल कर दिया था | अब बेचैनी वाले दर्द से मीडिया के साथ सारा भारत कराह उठा था | इस प्रश्न का समाधान जल्द से जल्द होना अनिवार्य था | बात देश के प्रधानमंत्री तक पहुँच चुकी थी | उन्होंने भविष्य के खतरे को भांप लिया था | यह मामला अगले साल के चुनाव के लिए खतरा हो सकता था | इसीलिए जल्द से जल्द इस का समाधान अवश्य था | इसीलिए प्रधानमंत्री ने डायरेक्ट ‘एक खत’ हेलिकॉप्टर के जरिये भेज दिया था | हेलिकॉप्टर सीधे प्रधानाचार्य के केबिन की छत पर उतर चूका था | बात की गंभीरता को फेमस कॉलेज के फेमस प्रधानाचार्य ने जान लिया था | वे जिस अवस्था में बैठे थे| उसी अवस्था में गेट की और दौड़ पड़े थे | उनका केबिन से महाविद्यालय के द्वार तक का दौड़ना.. एक्शन रिप्लाय में, मीडिया में दिखाया जा रहा था | इस एक्शन रिप्लाय में प्रधानाचार्य किसी फ़िल्म स्टार से कम नहीं लग रहे थे | मीडिया ने उन्हें कुछ ही पलों में फेमस कॉलेज के फेमस प्रधानाचार्य को फेमस स्टार बना दिया था |

पत्र लेकर द्वार पर खड़े डाकिया अर्थात पोस्टमेन  का पुष्प के अभाव में शब्द सुमनों से स्वागत किया गया | और पत्र को ट्रे में रखकर बड़े आदर के साथ केबिन में लाया गया | वे पत्र खोलने ही वाले थे कि किसी ने उन्हें ‘कान मंत्र’ दिया कि किसी पंडित के हाथों से पूरे विधि विधान के साथ इस पत्र को खोला जाना चाहिए | पण्डित जी का मात्र स्मरण करने से वे भी बाकी सारी डेट्स को कैंसल कर तुरंत प्रकट हो चुके थे | पण्डित जी ने समय की नजाकत को समझ लिया था | बिना समय गँवाए... उन्होंने परम शक्तिशाली मंत्र पड़ा और पत्र को खोलने की अनुमति प्रदान कर दी | यह बात सुनना ही था कि चारों  और ख़ुशी और जिज्ञासा ने अपने पैर जमा लिए  | पत्र प्रधानाचार्य के हाथों खोला गया | पत्र में लिखा था |

प्रिय प्रधानाचार्य,

फेमस महाविद्यालय, शहर फेमस,

आपको यह पत्र लिखते हुए हमें बड़ी प्रसन्नता हो रही हैं | हमने आपके महाविद्यालय में स्थित गुलदस्ते की महिमा को सूना और हमारे मन में एक जिज्ञासा प्रकट हो गयी | हमने जब से उस गुलदस्ते की बात सुनी हैं, तब से हमारे रातों की नींद और दिन का चैन उड़-सा गया हैं | अब मेरा यहाँ किसी काम में मन नहीं लगता | मैं रात और दिन यही सोचता रहता हूँ कि कब - कब मैं आपके शहर पहुंचूँ | बस अब इन्तजार हैं कि मैं आपके फेमस शहर के फेमस महाविद्यालय में आऊँ |

मैं चाहता हूँ कि आप मुझे अपने फेमस महाविद्यालय में अतिथि के रूप में आमंत्रित करें और उसी फेमस गुलदस्ते से मेरा स्वागत-सत्कार करें | ताकि मेरा जीवन निहाल हो जाएँ | हमारे देश में मैं भी फेमस हो संकू |

आपके गुलदस्ते का चहेता

अमरीका देश का राष्ट्रपति

 

यह संदेश पढ़ा ही था कि,  प्रधानाचार्य के ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा था | अब मीडिया की बेचैनी का दर्द मिट चूका था | देश अब खुश था | प्रधानमंत्री भी समस्या के समाधान से प्रसन्न थे | उन्होंने क्विक एक्शन लिया था | मीडिया ने उनके इस कदम की जमकर प्रशंसा भी की थी |

अब एक नई चर्चा का विषय सामने आ रहा था | आखिर उस गुलदस्ते का क्या इतिहास हैं | उसके जन्म की क्या कथा हैं | हर कोई उसके रहस्य को सुनना चाहता था |

उसके जन्म की भी अपनी एक अजब-गजब कहानी थी | यह कहानी कई-कई साल पुरानी हैं | फेमस कॉलेज की स्थापना हाल ही में हुई थी | महाविद्यालय में साल भर कई गतिविधियाँ ली जाती थी | महाविद्यालय का वह पहला ही कार्यक्रम था | साल में एक बार हिन्दी को याद करने वाला दिन 14 सितंबर का सुअवसर था | हिन्दी दिवस महाविद्यालय द्वारा मनाया जाना था | कार्यक्रम की तैयारियाँ जोर-शोरों पर चल रही थी | हिंदी दिवस मनाएं जाने की खबर सारे शहर में फैल चुकी थी | पहली बार शहर में किसी महाविद्यालय द्वारा हिंदी दिवस मनाया जा रहा था | लोगों के लिए यह उस वक्त नई बात थी | उन्हें पता नहीं था कि आखिर यह हिंदी दिवस होता क्या हैं | मनाया कैसे जाता हैं | महाविद्यालय को सजाया-सँवारा गया | सबने विशेष पोशाक पहनना तय किया | अतिथि का भी चयन किया गया | अतिथि देश के जाने-माने हास्य-व्यंग्य और कभी-कभी गम्भीर कवि थे | अर्थात उनकी मानसिक स्थिति जैसी होती वे वैसी ही कविता सुनाते | जिस दिन खुश होते उस दिन हास्य कविता सुनते थे | और  जिस दिन अपनी पत्नी से झगड़ा कर लिया, गुस्से में अपनी पत्नी पर व्यंग्य कविता सूना देते | देश की चिंता होती तो गम्भीर कविता सुना देते | कविता उनके बाय मुड़ पर निर्भर होती | उनका एक पेटर्न उन्होंने बना लिया था | वे पेटर्न पर अडिग रहते थे | उनका और एक पेटर्न था, वे स्वयं का बड़ा रिस्पेक्ट करते थे | कार्यक्रम सफल हो या न हो किन्तु वे स्वयं अपना रिस्पेक्ट  जरूरी समझते थे | इसी रिस्पेक्ट के चक्कर से  ही तो एक नया चक्र चल पड़ा था |

आखिर साल में एक बार हिंदी को याद करने का दिन ‘हिंदी दिवस’ आ ही गया था | मंच पर फेमस महाविद्यालय के अध्यक्ष, प्रधानाचार्य, अतिथि, हिंदी अध्यापक स्थान ग्रहण कर चुके थे | स्वच्छ और सुंदर वस्त्रों से सभी ने अपने शरीर को लेस कर लिया था | मंच सजाया गया था | मंच के सम्मुख रंगोली पर हिंदी दिवस की शुभकामनाएं वाला सन्देश लिखा गया था | सभागार में खचा-खच  महाविद्यालय के छात्र, फेमस शहर के प्रश्न चिन्हक, हिंदी प्रेमी भारी मात्रा में उपस्थित थे | कार्यक्रम के बैगराउंड में शहनाई की आवाज गूंज रही थी |सभी हिंदी प्रेमी अपना दिल थामे आगे होने वाले कार्यक्रम की प्रतीक्षा में थे |

आखिर कार्यक्रम शुरू हुआ | प्रतिमा पूजन के उपरांत, स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया | सभागार के साथ अतिथि भी स्वागत गीत के स्वर से निहाल हो गये | उनका सामान्य परिचय दिया गया | किन्तु अतिथि ने महसूस किया कि उनका स्वागत गीत से तो स्वागत किया गया किन्तु अब तक उनका स्वागत पुष्प गुच्छ देकर नहीं किया गया |  उन्होंने कार्यक्रम के सूत्रधार को सूचित किया | किन्तु उनका समाधान नहीं हो पाया | बड़ी देर बाद एक गुलदस्ता मंच पर महाविद्यालय के सिपाही के जरिये पहुँच ही गया | जब अध्यक्ष जी ने गुलदस्ता देकर अतिथि का स्वागत करना चाहा तब अतिथि ने गुलदस्ता लेने से मना कर दिया | उन्होंने कहा, “ अरे अध्यक्ष जी, इस गुलदस्ते में गुल कहाँ हैं ? मेरा मतलब पुष्प कहाँ हैं ? सिर्फ किसी पेड़ की पत्तों वाली टहनी रखी हैं |  यह तो गुलदस्ता नहीं हो सकता | आप चाहे जो समझे मैं तो यह टहनी दस्ता नहीं स्वीकार करूंगा | जबतक गुलदस्ते से मेरा स्वागत  नहीं होगा | यह कार्यक्रम आगे नहीं बड़ेगा | क्योंकि मैं अपना रिस्पेक्ट चाहता हूँ | समझे ..?  नौ रिस्पेक्ट.. नौ कार्यक्रम !”

अध्यक्ष जी ने तुरंत सिपाही को खरी खोटी सूना दी | “ क्यों बे सिपाही, तुझे इसी लिए यहाँ नौकरी पर रखा हैं कि तुम घर आये मेहमान और हमारा अपमान कर सके | यह कतई नहीं हो सकता | हम तुम्हें इस बात के लिए मेमो दे रहे हैं | जाओ कहीं हम तुम्हें दूसरा मेमो न दे दे | इससे पहले गुलदस्ता यहाँ हाजिर हो जाना चाहिए |”

सिपाही ने कहा, “ साहब मुझे मेमो मत दीजिए | मेरे सिर्फ पांच बच्चे हैं और दो बीवी हैं |  मैं इनका पालन पोषण कैसे करूंगा | इस बार मुझे माफ  कर देना | ... रही बात गुलदस्ते की अध्यक्ष जी सारा शहर छान मारा पर कहीं भी पुष्प नहीं मिलें | इसीलिए मुझे यह व्यवस्था करनी पड़ी |” इस पर अध्यक्ष जी ने सुनाया, “अबे तो अपने बागीचे से पुष्प तोड़ लाता | टहनियाँ लेकर आ गया | मांगा था आम.. गुट्लियाँ लेकर आ गया | जा अभी अपने बागीचे से पुष्प लेकर आ |” सिपाही ने उत्तर देते हुए कहा, “ अध्यक्ष जी, दरअसल बात यह हैं कि, हमारे बागीचे में भी पुष्प नहीं हैं |”

अध्यक्ष – “पुष्प नहीं हैं? तो पुष्प गये कहाँ ? शहर में, नहीं बगीचे में नहीं |”

सिपाही – “साहब आज शहर में नेता के बेटे की शादी हैं | सो सारे शहर के पुष्प उन्हीं के शादी में शोभा बढा रहे हैं | हाँ एक बात हो सकता हैं कि, मैं सीधे किसी फूलों की खेतों से ही.. फूल लेकर आजाऊं |”  कोई उपाय नहीं था | अतिथि बिना गुलदस्ते के व्याख्यान देना नहीं चाहते थे और गुल शहर से गायब हो चूका था | ऐसे में सिपाही की बात माननी ही थी | सिपाही फूलों के खेतों की और चल पड़ा था | सभागार में लोग सारी घटना को घटित होते देख रहे थे | किन्तु वे भी अतिथि का व्याख्यान सुने बिना घर नहीं जाना चाहते थे | वे असली श्रोता थे | आज के युग में ऐसे श्रोता मिलना मुश्किल ही नहीं.. नामुमकिन -सा  हैं | सुबह से श्याम होने आ चुकी थी किन्तु सिपाही का कोई अता-पता  नहीं था | कार्यक्रम कैंसल भी नहीं किया जा सकता था | कई दिनों की तैयारी और पैसे भी खर्च हो चुके थे | सिपाही का इंतजार करते-करते श्याम से रात हो आयी थी | सभागार में बिजली के बल्ब चमक उठे थे कि एकाएक किसी ने सूचना दे दी कि सिपाही लौट आया हैं | और हाथों में गुलदस्ता हैं |

सिपाही गुलदस्ता लेकर आया और अध्यक्ष की और बढ़ा दिया | गुलदस्ता अब अतिथि के हाथों में जाने के लिए उतावला था | अध्यक्ष ने बड़े ही प्रसन्नता के साथ गुलदस्ता अतिथि की और बढ़ा दिया | पर फिर से अतिथि ने गुलदस्ता लेने से मना करते हुए कहा, “ अरे, अध्यक्ष जी यह कैसा गुलदस्ता हैं| इसमें तो नकली पुष्प हैं | और यह क्या कपड़े से बने हुए हैं | अध्यक्ष जी आप ने हमें यहाँ बुलाया किन्तु आप हमारा अपमान कर रहे हैं | सुबह से रात हो चुकी हैं | हम इन्तजार करते रहे कि गुलदस्ता आएगा- गुलदस्ता आएगा और हमारा रिस्पेक्ट होगा | पर ...|” अध्यक्ष ने फिर से सिपाही को डांटते हुए कहा, “ अबे साले सिपाही, अब तुझे दूसरा मेमो मिल गया समझ ले | सुबह गया तो अब आया हैं | वह भी कपड़े का गुलदस्ता लेकर ..|”

सिपाही – “अध्यक्ष जी मुझे क्षमा करें, मेरे सिर्फ पांच बच्चे और दो ही बीवियाँ हैं |उनका क्या होगा ? मैं तो गुल ही ढूंढने गया था किन्तु खेतों में भी फूल नहीं थे | नेता ने आसपास के गाँव से भी फूल मंगवा लिए हैं | इसीलिए मैं दुखी और हताश होकर लौट ही रहा था कि एक गरीब बच्चा मेरे सामने शहर भर के लोगों के कपड़ों से बचे चिंदियों से बने फूलों का गुलदस्ता लेकर आया | मैंने सोचा कुछ ना होने से अच्छा हैं कि इसे लेकर आ जाऊं | पर्यावरण के लिए यह पोषक भी हैं|”

अध्यक्ष – बात तो.. तू ठीक ही कह रहा हैं | अतिथि को कैसे समझाऊँ |”

सिपाही – “ अध्यक्ष जी, वह आप मुझ पर छोड़ दीजिये |”

सिपाही ने अतिथि के कानों में ऐसी फूंक मारी जैसे कोई जादूगर फूँक मारकर अगले वाले को वश में कर देता हैं | वह फूँक काम में आ गयी |  अतिथि पुष्प लेने के लिए तैयार हो गया | अध्यक्ष इस सोच में पड़ गया कि आखिर सिपाही के पास ऐसी कौन सी फूँक हैं, जो मेरे पास नहीं |  और इसी पुष्प को लेकर अतिथि अगले आधे घण्टे तक बात करते रहे | उसकी महिमा का बखान होता रहा,  “ सज्जनों, हमें आज से प्रत्येक कार्यक्रम में असली पुष्प की बजायें ऐसे ही कपड़ों की चिंदियों से बने गुलदस्ते का प्रयोग करना चाहिए | इससे पर्यावरण का नुकसान भी नहीं होगा | पुष्प भी पौधों पर बने रहेंगे | और बागीचे मुसकुराएंगे |

            इसका नतीजा यह हुआ कि अब सारे बागीचे दुखी हैं | फूल वाले नाराज हैं | फूल अब कोई खरीदता नहीं | पूरे शहर में अब वह एक ही कपड़े का गुलदस्ता हर कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहा हैं |