एक जंगल के पास लालू और कालू दो भाई रहा करते थे। इन दोनों में से जो बड़ा भाई लालू था , वो बहुत ही ख़राब बर्ताव करता था छोटे भाई के साथ । जैसे की वो प्रतिदिन छोटे भाई का सब खाना खा लेता था, और साथ में छोटे भाई के नए कपड़े भी खुद पहन लेता था। छोटा भाई जंगलों से सुखी लकड़ियां, काट कर बाजार में बेच आया करता था। उसे एक सुनेहरा आम का पेड़ मिला वो उस पेड़ को नहीं काटता है। और पेड़ उसे एक सुनेहरा आम का देता है। वो उसे बाजार में बेच कर बहुत सारे पैसे ले आते हैं। बड़े भाई लालू को जब पता चला की पास की जंगल में कोई सुनेहरा पेड़ है। तो उसने तय किया की वो पास के जंगल में जाकर कुछ लकड़ियाँ लायेगा । जिसे की वो बाद में बाज़ार में बेच देगा कुछ पैसों के लिए। जबकी उसके मन में वो जादुई आम के पेड़ का खयाल रहता है।
जैसे ही वह जंगल में गया वहां, वो बहुत से पेड़ काटे फ़िर ऐसे ही एक के बाद एक पेड़ काटते हुए, वह आखिर अंत में उस जादुई पेड़ के पास पहुंच गया
जैसे ही पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाता है । पेड़ अरे नहीं मुझे नहीं काटो मुझ पर मेहरबानी करो कृपया मेरी शाखाएं मत काटो। अगर तुम मुझे छोड़ दो तो मैं तुम्हें एक सुनहरा आम दूंगा । वह उस समय सहमत हो गया, लेकिन उसके मन में लालच जागृत हुआ । उसने पेड़ को धमकी दी कि अगर उसने उसे ज्यादा आम नहीं दिया तो वह पूरा धड़ काट देगा।
ऐसे में जादुई पेड़, बजाय बड़े भाई को आम देने के, उसने उसके ऊपर सैकड़ों सुइयों की बौछार कर दी। इससे बड़े भाई दर्द के मारे जमीन पर लेटे रोने लगा।
अब दिन धीरे धीरे ढलने लगा, वहीँ छोटे भाई को चिंता होने लगी। इसलिए वह अपने बड़े भाई की तलाश में जंगल चला गया।उसने उस पेड़ के पास बड़े भाई को दर्द में पड़ा हुआ पाया, जिसके शरीर पर सैकड़ों सुई चुभी थी। उसके मन में दया आई, वह अपने भाई के पास पहुंचकर, धीरे धीरे हर सुई को प्यार से हटा दिया। और फिर कालू बोलता है भईया आप ठीक तो हैं। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। जिस पेड़ ने हमे सब कुछ दिया है आप उसे ही काट रहे थे। हम तो सुखी डालियों को काट कर बेचा करते थे। परन्तु आप तो हरे पेड़ पौधों को ही काटने चले थे।
यह सब देख कर । बड़े भाई को अपने पर गुस्सा आ रहा था। अब बड़े भाई ने उसके साथ बुरा बर्ताव करने के लिए छोटे भाई से माफी मांगी और बेहतर होने का वादा किया । पेड़ ने बड़े भाई के दिल में आए बदलाव को देखा और उन्हें वह सब सुनहरा आम दिया जितना की उन्हें आगे चलकर जरुरत होने वाली थी।
To doston kabhi bhi lalach nahin karni chahiye. Jitna mile utne me khush hona chahiye.
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