उस रात तुलसीलता जीजी का मंदिर के भव्य प्राँगण में नृत्य था और उस रात जब नृत्य करके वो अपनी कोठरी में पहुँची तो मेरे चाचा सुजान सिंह तुलसीलता की कोठरी के पास पहुँचे और किवाड़ों पर लगी साँकल खड़काई,साँकल के खड़काने की आवाज़ सुनकर तुलसीलता जीजी कोठरी के भीतर से ही बोली....
"कौन...कौन है"?
"मैं हूँ ठाकुर सुजान सिंह", चाचा कोठरी के बाहर से ही बोलें...
"ओह...ठाकुर साहब! जरा ठहरिए,मैं अभी किवाड़ खोलती हूँ",तुलसीलता भीतर से बोली...
और फिर कुछ वक्त के बाद तुलसीलता ने किवाड़ खोलते हुए चाचा से कहा....
"माँफ कीजिए ठाकुर साहब!,किवाड़ खोलने में जरा देर हो गई,मैं श्रृंगार उतार रही थी,आइए...भीतर आइए",
"कोई बात नहीं",
और ऐसा कहकर चाचा कोठरी के भीतर आ गए फिर तुलसीलता से बोले....
"चलो! अभी हवेली चलो,तुम्हारी इस छोटी सी कोठरी में मेरा दम घुटता है"
"अगर कल आऊँ तो",तुलसीलता बोली...
"नहीं! आज ही चलो,याद रखो अगर उस रात मैं तुम्हें अपने पिता के चंगुल से ना बचाता तो फिर तुम कहीं की ना रहती",चाचा बोलें....
और फिर मजबूर होकर तुलसीलता को उनके साथ हवेली में आना ही पड़ा, फिर वो रात भर चाचा के साथ रही और भोर होते ही हवेली से निकल गई,उसे हवेली से निकलते हुए चाची ने अपने कमरें की खिड़की से देखा और तुलसीलता ने भी ऊपर गरदन उठाकर चाची को भी देखा लेकिन बोली कुछ नहीं और अपने पल्लू में मुँह छुपाकर वो बड़े बड़े कदमों से वहाँ से निकल गई और जब सोमवार को साँझ के समय शिवबाबा के मंदिर में चाची की मुलाकात तुलसीलता से हुई तो तुलसीलता शर्म से अपनी आँखें नहीं उठा पा रही थी और वो चाची से बोली....
"मुझे माँफ कर दो ठकुराइन! मैं उनके साथ नहीं जाना चाहती थी,वें मुझे जबरदस्ती अपने साथ हवेली ले गए थे",
"तुम क्यों माँफी माँग रही हो तुलसीलता! जब अपने दाम खोटे हो तो फिर क्या किया जा सकता है,तुम्हारा इसमें कोई दोष नहीं",चाची बोली....
"मैं तुम्हारा घर नहीं तोड़ रही ठकुराइन! तुम ऐसा कुछ भी मत समझना" तुलसीलता बोली...
घर....ये कहकर चाची जोर से हँसी और फिर बोली....
"तुम कौन से घर की बात कर रही हो तुलसीलता! उस घर की जिसमें टूटने लायक कुछ बचा ही नहीं है,यहाँ घर और दिल टूटे नहीं बल्कि रौदें जा चुके हैं,हवस की आँधी तो कब का उस घर को उजाड़ चुकी है और तृष्णा की आग भी समझो लग ही चुकी है,जिस दिन मैं और अम्मा उस घर को छोड़ देगें तो फिर उस दिन उस हवेली में कुछ भी शेष नहीं बचेगा,इसलिए तुम मेरा घर उजड़ने की बात मत करो",
"मुझे लगा तुम मुझसे बहुत खफ़ा होगी",तुलसीलता बोली....
"ऐसा तो मैं सालों से देख रही हूँ,ये कोई नई बात नहीं है मेरे लिए",चाची बोली...
"तुम ये सब सहन कैसें कर लेती हो ठकुराइन"?,तुलसीलता ने पूछा....
"जब दिल पत्थर का हो जाता है ना तो उस दिल पर किसी चींज का कोई असर नहीं पड़ता,ना खुशी का और ना ही ग़म का,मैं तो बस अम्मा,सत्या और अपनी बेटियों के लिए जी रही हूँ,सत्या पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बन जाए और बेटियाँ अपने मनपसन्द वर से ब्याह जाएंँ तो मेरी जिम्मेदारी पूरी हो जाएंँ,फिर ईश्वर उठा ले तो कोई चिन्ता ना होगी",चाची बोली....
"कितना दर्द भरा है तुम्हारे भीतर",तुलसीलता बोली....
"मेरी छोड़ो,तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे कि तुम बहुत खुश हो",चाची बोली....
"ठकुराइन! ये दुख तो कभी हम स्त्रियों का पीछा नहीं छोड़ेगा,चलो ना ये सब छोड़कर दो घड़ी कुछ अच्छी बातें कर लें",तुलसीलता बोली....
"चल सत्या! अब हम दोनों चिड़ियाँ देखने चलते हैं,अब ठकुराइन और तुलसीलता का दरबार होगा और हम दोनों को दरकिनार कर दिया जाएगा",किशोरी बोली....
फिर किशोरी की बात सुनकर सब हँस पड़े और तब चाची बोली....
"नहीं किशोरी! ऐसी बात नहीं है,आ तू भी हम दोनों के साथ बैठ ना!",
" नहीं ठकुराइन! मैं तो मज़ाक कर रही थी,तुम लोग बातें करो मैं और सत्या यहीं टहलते हैं"
और फिर मैं और किशोरी साथ में टहलने लगे और वें दोनों बातें करने लगी और यह सिलसिला हर सोमवार की साँझ चलने लगा और फिर बातों ही बातों में एक रोज़ तुलसीलता ने हम सबको बताया कि यही कोई तीन चार साल पहले एक शरीफ़ लड़के को मुझसे प्यार हो गया था,वो मुझसे ब्याह करना चाहता था और जब ये बात उसके घरवालों को पता चली तो उन्होंने उसे पढ़ने के लिए विलायत भेज दिया,पहले तो उसने एक दो बार चिट्ठियांँ भेजीं,चिट्ठियांँ मंदिर के पते पर आतीं थीं इसलिए इस बात से पुजारी जी को भी एतराज़ हो गया कि कहीं मैं मंदिर छोड़कर ना भाग जाऊँ,सो उन्होंने ना जाने उसकी आने वाली चिट्ठियों के साथ क्या किया,मुझे अब पता ही नहीं कि वो कहाँ है?
और ये कहते कहते तुलसीलता की आँखें भर आईं.....
"बहुत चाहता था वो तुलसीलता को,इसके बारें में सबकुछ जानते हुए भी ब्याह करने की बात भी कहता था", किशोरी बोली.....
"क्या तुम उसके किसी जान पहचान वाले को जानती हो?",चाची ने पूछा....
"नहीं! वो यहाँ अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ आया था,यहाँ का रहने वाला नहीं था वो"तुलसीलता बोली...
"काश! वो फिर आ जाए",किशोरी बोली....
"तो क्या करेगी तू"?,तुलसीलता ने पूछा....
"मैं उससे तेरी शादी करवा दूँगीं,कोई तो इस कैद से आजाद हो",किशोरी बोली....
"फालतू के सपने मत दिखाया कर किशोरी! पाप पड़ेगा तुझे,वो अब वापस नहीं लौटने वाला",तुलसीलता बोली....
"वैसे नाम क्या था उसका"?,चाची ने पूछा....
"उदयवीर.... उदयवीर सिंह नाम था उसका",किशोरी बोली.....
"अगर उसका प्यार सच्चा होगा ना तो वो जरूर लौटेगा",चाची बोली....
"तुम इतने यकीन के साथ कैसें कह सकती हो"?,तुलसीलता ने पूछा....
"मेरा दिल कहता है कि वो जरूर लौटेगा",चाची बोली....
"ठकुराइन! हम जैसियों के नसीब में सच्चा प्यार नहीं लिखा होता,ज्यादा गलतफहमी मत पालो", तुलसीलता बोली...
"तो फिर रख लो शर्त",चाची बोली....
"ठीक है रख ली",तुलसीलता बोली....
और फिर ऐसे ही बातें होतीं रहीं सबके बीच, फिर हम सब अपनी अपनी जगह लौट गए और फिर एक दिन पता चला कि किसी वकील ने अँग्रेज़ी हूकूमत की मदद से मंदिर पर केस कर दिया है,उसने सरकारी कागजात में ये लिखा है कि मंदिर में देवदासियों को रखना गैरकानूनी है,अगर मंदिर के पुजारी ने सभी देवदासियों को रिहा ना किया तो पुजारी को जेल हो सकती है....
ये बात पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई कि कौन है वो, जो ऐसा अधर्म करना चाहता है,देवदासी बनना तो धर्म का कार्य है,ईश्वर को स्वयं को सौंप देना ये कोई गैरकानूनी काम नहीं है,ऐसे अधर्मियों को पाप पड़ेगा पाप,जो धर्म के कार्यों में हस्तक्षेप करेगें,
लेकिन वो वकील बिलकुल नहीं माना और पुजारी से बोला कि वो देवदासियों से बात करना चाहता है,अगर देवदासियाँ उससे ये कह दें कि वो अपनी मर्जी से ये कार्य कर रहीं हैं तो फिर वो बिलकुल भी हस्तक्षेप नहीं करेगा,लेकिन देवदासियों से मजबूरी में ये काम करवाया जा रहा है तो फिर इसका बहुत बुरा अन्जाम होगा......
क्रमशः.....
सरोज वर्मा....