दोनों की बातें सुनने के बाद मैं सोच रहा था कि मैं वहाँ रूकूँ या वहाँ से चला जाऊँ,फिर सोचा रूक जाता हूँ और तुलसीलता से ये पूछकर ही जाऊँगा कि मैं यहाँ क्यों ना आया करूँ और यही सोचकर मैं तुलसीलता की कोठरी के पास खड़ा होकर कोठरी के दरवाजे खुलने का इन्तजार करने लगा....
कुछ देर बाद कोठरी के किवाड़ खुले,लेकिन मुझे वहाँ देखकर उसने फौरन ही किवाड़ बंद कर लिए और भीतर से ही बोली....
"तू अभी तक यहाँ खड़ा है,गया क्यों नहीं"
"मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी",मैंने कहा...
"लेकिन मैं तुमसे कोई बात नहीं करना चाहती",तुलसीलता बोली....
"लेकिन क्यों",मैंने परेशान होकर पूछा....
"नहीं करनी मुझे तुमसे बात,एक बार का कहा सुनाई नहीं देता क्या"?,तुलसीलता बोली...
तुलसीलता का रुखा व्यवहार देखकर मेरे दिल को बहुत ठेस लगी और मैं उसी वक्त वहाँ से चला आया और घर आकर छत पर पड़ी चारपाई पर जाकर लेट गया,अब दिन डूब चुका था और अँधेरा गहराने लगा था, आसमान में तारे भी टिमटिमाने लगे थे तभी छाया मुझे ऊपर छत पर रात का खाना खाने के लिए बुलाने आई और मुझसे बोली....
"सत्या भइया! चलो! माँ खाना खाने के लिए बुला रही है",
"छाया! जा! चाची से जाकर कह दे कि मुझे भूख नहीं है",मैंने छाया से कहा....
"भइया! आज माँ ने तुम्हारी मनपसंद तरकारी बनाई है कमलककड़ी की तरकारी, इसलिए जल्दी से रसोई में खाना खाने पहुँचो" छाया बोली....
"मैंने कहा ना ! भूख नहीं है मुझे",मैं बोला...
"क्या हुआ भइया! तबियत ठीक नहीं है क्या तुम्हारी"?,छाया ने पूछा....
"तबियत तो ठीक है बस यूँ ही मन नहीं कर रहा",मैने छाया से कहा..
"तो मैं नीचे जाकर माँ से क्या कहूँ"?,छाया ने पूछा....
"कह दे कि मैं थोड़ी देर में नीचे आता हूँ",मैने छाया से कहा....
"ठीक है भइया!", और ऐसा कहकर छाया नीचे चली गई....
फिर मैं कुछ देर बाद नीचें गया और हाथ धोकर रसोई में खाना खाने के लिए पहुँचा तो चाची बोली....
"छाया कह रही थी कि तेरा आज खाना खाने का मन नहीं था",
"हाँ! चाची! आज मन कुछ खट्टा सा हो गया था",मैंने कहा...
"वो क्यों भला"?,चाची ने पूछा...
"बस ऐसे ही",मैं बोला....
"लेकिन क्यों? खुलकर बता मुझे कि क्या बात है"?,चाची ने पूछा...
"अगर मैं तुमसे सब सच सच बता दूँ तो तुम नाराज़ तो नहीं होगी ना!",मैने चाची से कहा...
"पहले बोल तो सही कि क्या बात है",चाची बोली....
"वो मैं शाम को उससे मिलने गया था",मैं बोला....
"अरे! किससे मिलने गया था"?,चाची ने पूछा...
"उसी से,जिसे कल रात चाचा हवेली में लेकर आएं थे",मैंने चाची से कहा...
"उस तुलसीलता से,यही नाम बताया था ना तूने उस देवदासी का",चाची बोली...
"हाँ! मैं शाम को उसी से मिलने गया था",मैने चाची से कहा....
"तेरे लक्षण भी अब तेरे चाचा और दादा जैसे होते जा रहे हैं,मुझे तुझसे तो ऐसी आशा बिलकुल भी नहीं थी", चाची बोली....
"तुम गलत समझ रही हो चाची! ऐसी कोई बात नहीं है",मैने कहा...
"तो फिर कैसी बात है,भला तुझे क्या जरूरत पड़ गई उस देवदासी के पास जाने की",चाची बोली....
"वो मुझे बहुत भली लगी थी इसलिए उससे मिलने का मन हो आया,उसने मुझे लड्डू भी दिए थे,वो दिल की बुरी नहीं है",मैने चाची से कहा...
"तू मुझे ज्यादा मत सिखा कि वो कितनी भली है,अगर इतनी ही भली होती तो परपुरूषों को अपने रुप के जाल में ना फाँसती",चाची बोली....
"क्या कह रही हो चाची"? मैं बोला...
"सच ही तो कह रही हूँ,परपुरूषों को अपने रुप के जाल में फाँसना यही उसका पेशा है",चाची बोली....
तब मैं बोला....
"लेकिन उसने तो मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं किया,वो तो शाम को मुझसे बोली कि यहाँ मत आया कर,ये जगह तेरे लिए ठीक नहीं है,उसने मुझे देखकर अपनी कोठरी के किवाड़ भी बंद कर लिए थे,इसलिए मैं वहाँ से चला आया,तब से मेरा मन बहुत खराब है कि उसने मुझे वहाँ आने से मना क्यों किया"
"क्या वो ऐसा बोली"?,चाची ने पूछा....
"हाँ! चाची! उसने मुझे सख्त मना किया है वहाँ आने के लिए",मैने कहा....
"तब तो वो बहुत भली लगती है",चाची बोली....
"अब जो भी हो लेकिन मैं अब वहाँ कभी नहीं जाऊँगा",मैंने चाची से कहा....
"हाँ! तुझे वहाँ नहीं जाना चाहिए",चाची बोली....
और फिर उस रात मैनें फैसला किया कि मैं कभी भी तुलसीलता के पास नहीं जाऊँगा,लेकिन एक हफ्ते बाद कुछ ऐसा हुआ कि ना चाहते हुए भी मेरी उससे मुलाकात हो गई और ये सब हुआ मेरे दादाजी शिवबदन सिंह की वजह से,हुआ यूँ कि दादाजी ने देवदासी तुलसीलता की सुन्दरता और नृत्य की लोगों के मुँह से इतनी तारीफ़ सुनी कि उनका मन भी उसे देखने को लालायित हो उठा और उसे बुलाने के लिए उन्होंने एक दिन अपने एक लठैत को उसके पास भेजा,लठैत वहाँ जाकर तुलसीलता से बोला....
"ऐ...तू ही देवदासी तुलसीलता है",
"क्यों? तू कौन होता है मेरे बारें में पूछने वाला",तुलसीलता बोली....
"मुझे ठाकुर शिवबदन सिंह ने भेजा है तुझे बुलाने के लिए,वो जो तालाब के पास हवेली है,वो उन्हीं की है",लठैत बोला...
"लेकिन वहाँ तो ठाकुर सुजान सिंह रहते हैं",तुलसीलता बोली...
"सुजान सिंह उन्हीं के बेटे हैं",लठैत बोला....
"तो बुढ़ऊ का रसियापना इस उम्र में भी बरकरार है",तुलसीलता बोली....
"ऐ....बुढ़ऊ किस को बोलती है,एक बार उन्हें खुश करके तो देख ,मालामाल कर देगें तुझे",लठैत बोला...
"और यदि मैं हवेली में जाने से इनकार कर दूँ तो",तुलसीलता बोली....
"तो तू उन्हें जानती नहीं ,रातोंरात उठवा लेगें तुझे",लठैत बोला....
"तब तो मैं बिलकुल नहीं जाऊँगीं,अगर उन्हें मेरी जरूरत है तो वो खुद मेरे द्वार पर आकर मुझसे हवेली में चलने की गुजारिश करें तभी जाऊँगीं मैं उनकी हवेली में",तुलसीलता बोली....
"दो कौड़ी की देवदासी और ऐसे तेवर",लठैत बोला....
"मैं दो कौड़ी की ही सही लेकिन मेरे तेवर जरूर करोड़ो के हैं,तभी तो अच्छे अच्छे नाक रगड़ते हैं मेरे द्वार पर",तुलसीलता बोली...
"इतना घमण्ड तो तवायफों को भी नहीं होता",लठैत बोला....
"मैं तवायफ़ नहीं देवदासी हूँ",तुलसीलता बोली....
"तो तू हवेली नहीं जाएगी",लठैत बोला...
"जिसे मुझे हवेली में बुलवाने का शौक है वो खुद मेरे द्वार पर आएं",तुलसीलता बोली...
"तूने ठाकुर साहब की अवहेलना की है,अब इसके अन्जाम के लिए तैयार रहना",लठैत बोला....
"तुलसीलता ऐसी धमकियों से डरने वाली नहीं",तुलसीलता बोली....
"वो तो वक्त ही बताएगा देवदासी!, अब तू अपनी दुर्दशा की खुद ही जिम्मेदार होगी",
लठैत जाते जाते तुलसीलता से ये सब कह गया तो पास में खड़ी किशोरी जाकर तुलसीलता से बोली....
"ये तूने ठीक नहीं किया तुलसी! अब ना जाने ठाकुर तेरे साथ क्या करेगा?"
"क्या करेगा? ज्यादा से ज्यादा मेरी इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगा,जो अब बची ही नहीं है,इज्जत तो उनकी कहलाती है जो अनछुई होतीं हैं,मेरे बिस्तर पर तो हर रात परपुरुष होता है",तुलसीलता बोली....
"लेकिन तब भी मुझे डर लग रहा है",किशोरी बोली....
"तू क्यों इतना डर रही है,मैं सब सम्भाल लूँगीं",तुलसीलता बोली....
"तू कहती है तो ठीक है,लेकिन अपना ख्याल रखना"
और ऐसा कहकर किशोरी वहाँ से चली गई....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....