अब तुलसीलता तो मेरे चाचा सुजानसिंह के साथ हवेली चली गई फिर मेरे चाचा सुजान सिंह को ये सुध भी ना रही कि उनका भतीजा उनके साथ आया था और अब वो कहाँ हैं,उन्होंने ना मुझे ढूढ़ने की कोशिश और ना ही एक बार मेरा नाम लेकर पुकारा ,वो तो उस देवदासी तुलसीलता को देखकर बौराय गए थे और उसे अपने साथ हवेली ले जाकर ही माने,मैं यहाँ रातभर कुएँ की चारदीवारी की ओट में बैठा रहा और जब बैठे बैठे थक गया तो वहीं सो गया....
सुबह भोर हुई और चिड़ियाँ चहकने लगी तब मेरी आँख खुली और उसी वक्त मुझे किसी के पायलों की छमछम सुनाई दी,मैंने देखा तो तुलसीलता हवेली से लौट रही थी और फिर वो अपनी कोठरी में ना जाकर कुएँ के पास आई और कुएँ के पास रखी बाल्टी उठाकर वो कुएँ से पानी निकालने लगी फिर एक बाल्टी पानी निकालकर उसने खुद के सिर से डाल लिया,दूसरी बाल्टी पानी निकालकर भी उसने वही किया और जैसे ही वो वहाँ से जाने लगी तो उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और वो मुझसे बोली...
"कौन है रे! तू! और यहाँ क्या कर रहा है"?
मैं उसके सवाल को सुनकर एकदम घबरा गया और उस वक्त मेरे मुँह से कुछ निकला ही नहीं तो उसने फिर से पूछा...
"बोलता क्यों नहीं,गूँगा है क्या? कौन है तू"?
तब डर के मारे मेरे मुँह से हकलाते हुए निकला...
" मैं...मैं सत्यव्रत हूँ,जिनके साथ तुम रात को हवेली गई थी,वो मेरे चाचा हैं",
"तो क्या तूने हमलोगों की सारी बातें सुन लीं थीं",तुलसीलता ने पूछा...
"हाँ", मैंने आँखें नीची करके जवाब दिया...
"अच्छा!चल मेरे साथ कोठरी में चल और बता कि तूने क्या क्या सुना था कल रात",तुलसीलता बोली...
और तभी एक और देवदासी कुएँ पर पानी भरने आई और तुलसीलता से बोली...
"क्यों री! तुझे क्या कोई बाँका छैला जवान मिला जो इस दुधमुँहे बच्चे को फँसा लाई",
"चुप कर री! तू गलत समझ रही है,ये तो यहाँ रातभर से छुपा है,मैं इससे यही तू पूछ रही थी कि ये है कौन"?, तुलसीलता बोली...
"तो कुछ जवाब दिया इसने",दूसरी देवदासी ने पूछा...
"हाँ! ये सुजान सिंह का भतीजा है",तुलसीलता बोली...
"तू इसे अपनी कोठरी में क्यों ले जा रही थी,कहीं पुजारी ने देख लिया तो जुलुम हो जाएगा",दूसरी देवदासी बोली...
"अरे! मैं तो इसे पूछताछ के लिए अपनी कोठरी में ले जा रही थी",तुलसीलता बोली...
"अच्छा!जा तू अपनी कोठरी में जाकर पहले ये गीले कपड़े बदल ले,मैं तब तक इसे यहीं पर खड़ा करके रखती हूँ",दूसरी देवदासी बोली...
और मैं उस दूसरी देवदासी के पास कुछ देर तक कुएँ के पास खड़ा रहा और वो मुझसे बातें करती रही उसका नाम किशोरी था,वो भी विपदा की मारी थी,उसके माँ बाप बहुत गरीब थे और पाँच छोटी बहनें थीं ,इसलिए उसके माँ बाप ने उसे देवदासी बनाकर मंदिर में भेज दिया था,ये बातें मुझे बाद में तुलसीलता ने बताईं थीं....
कुछ देर में तुलसीलता कपड़े बदलकर बाहर आई और मुझसे बोली...
"सुन! आजा भीतर,मुझे तुझसे कुछ बातें करनी हैं",
और मैं उसके बुलाने से उसकी कोठरी में पहुँचा,वो कोठरी इतनी छोटी थी कि उसमें केवल एक चारपाई ही आती थी,ना उस कोठरी में कोई खिड़की थी और ना कोई रोशनदान,मैं थोड़ी देर वहाँ बैठा था और मेरा वहाँ दम घुटने लगा था,फिर उसने मुझे चारपाई पर बैठने को कहा और मैं चारपाई पर बैठ गया,फिर वो मुझसे बोली.....
"अब बोल क्या क्या सुना तूने"?
"जी! सबकुछ",मैं बोला...
"तू अब छोटा तो है नहीं,जो तू ऐसी बातें ना समझता हो,पन्द्रह सोलह साल का तो होगा तू",तुलसीलता बोली...
"हाँ!सोलह का होकर सत्रहवीं में लगा हूँ",मैंने कहा...
"हाँ! तब तू जवान हो गया है, तेरा भी किसी लड़की के साथ उठना बैठना है क्या"?,तुलसीलता ने पूछा...
"नहीं! मुझे ये सब पसंद नहीं",मैंने कहा...
"ओहो....चाचा हवस का पुजारी और भतीजा दूध का धुला,ऐसा कहीं हो सकता है भला!",तुलसीलता अपनी आँखें बड़ी करते हुए बोली...
"मैं सच कह रहा हूँ,मैं अपने चाचा जैसा नहीं हूँ",मैंने कहा...
"अगर तू ऐसा नहीं है तो फिर देवदासियों का नृत्य देखने क्यों आया था",तुलसीलता ने पूछा...
"वो तो चाचा अपने संग लिवा लाए थे इसलिए आ गया था",मैं बोला...
"चाचा संग लिवा लाए और तू उनके संग आ भी गया",तुलसीलता बोली...
"तो क्या करता,मुझे उनकी बात माननी पड़ती है,नहीं तो फिर वें मुझे बहुत मारते हैं ",मैने कहा...
"वो तुझे मारते हैं तो तेरा बाप उसे रोकता नहीं तूझे मारने से",तुलसीलता ने पूछा...
"मेरे पिता जी नहीं हैं",मैने कहा...
"और माँ! वो तो होगी ना!",तुलसीलता ने पूछा...
"नहीं! वो भी नहीं है",मैंने कहा...
"ओह...इसका मतलब तू भी मेरी तरह अनाथ है",तुलसीलता बोली...
"हाँ! दादी और चाची हैं,उन्हीं दोनों ने पाला है मुझे",मैने कहा...
"अच्छा! लड्डू खाएगा",तुलसीलता ने पूछा...
"लेकिन अभी तो मैनें दातून नहीं की",मैने कहा...
"अरे! शेर कहीं मुँह धुला करते हैं,मैं अभी तेरे लिए लड्डू निकालती हूँ",
इतना कहकर उसने एक मिट्टी की छोटी सी हाँण्डिया से एक तश्तरी में चार लड्डू निकालकर मेरे सामने रख दिए और बोली...
"चल खा ले",
और फिर उसके कहने पर मैं लड्डू खाने लगा और मुझसे केवल दो लड्डू ही खाएं गए और फिर उसने सुराही से एक गिलास में पानी उड़ेलकर गिलास मेरे हाथ में थमा दिया और बोली...
"ये दोनों लड्डू तू रख ले ,इन्हें बाद में खा लेना और अभी तू हवेली जा ,तेरी चाची और दादी तुझे रात भर से ढूढ़ रहीं होगीं और बहुत परेशान हो रहीं होगीं...
और फिर मैं वो बचे हुए दो लड्डू लेकर वापस आ गया,हवेली पहुँचा तो दादी और चाची एकदम गुस्से से लाल होकर आँगन में खड़ीं थीं,फिर दादी बोली....
"अब तू भी अपने दादा और चाचा के जैसे औरतों के साथ मुँह काला करने लगा है क्या? हाँ! क्यों नहीं करेगा ऐसा,जवान जो हो रहा है"
तब चाची दादी को रोकते हुए बोली...
"कैसीं बातें कर रही हो अम्मा! पहले उससे पूछ तो लो कि क्या बात हो गई थी जो ये रात को घर ना लौटा,तुम तो सीधा बच्चे पर बरस पड़ीं,कुछ तो सोचा करो कि बच्चों से कैसीं बातें करनी चाहिए",
"क्या करूँ जनकदुलारी ! अपने खसम और लड़के के ,जीवन भर से यही ढंग देखते चली आ रही हूँ,सो मुँह से गुस्से में निकल गया",दादी बोलीं...
तब चाची ने मुझसे प्यार से पूछा...
"कहाँ रहा रातभर तू,देख हमलोग यहाँ कितने परेशान हो रहे थे",
"चाची! सब बताता हूँ,जरा साँस तो लेने दो", मैने कहा..
" ठीक है तू नहा धो ले,फिर खाना खाने रसोई में आ जइओ,वहीं खाना खाते खाते रात भर की कहानी सुना देना",
और फिर मैं चाची के कहने पर नहाने चला गया....
क्रमशः...
सरोज वर्मा...