Ek thi Nachaniya - 22 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | एक थी नचनिया - भाग(२२)

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एक थी नचनिया - भाग(२२)

जब मोरमुकुट सिंह उनकी मदद के लिए तैयार हो गया तो रामखिलावन बोला...
"तो डाक्टर बाबू! आप भी हमारे साथ चल रहे हैं ना!",
"मेरा अभी आपलोगों के साथ जाना जरा मुश्किल है भइया!",मोरमुकुट सिंह बोला...
"वो क्यों भला"?,रामखिलावन ने पूछा...
"वो इसलिए कि अभी मुझे छुट्टी की दरख्वास्त देनी होगी और कस्तूरी को भी तो समझाना पड़ेगा कि मेरे यहाँ से जाने के बाद वो समय पर दवा लें,ठीक से खाएं पिए और किसी को परेशान ना करें",मोरमुकुट सिंह बोला...
"तो फिर आप कब तक पहुँचेगें कलकत्ता"?,रामखिलावन ने मोरमुकुट सिंह से पूछा...
"जी! आप लोग पहुँचे ,बस आप लोगों के पीछे पीछे एकाध दो दिनों में मैं भी पहुँच जाऊँगा",मोरमुकुट सिंह बोला...
"ठीक है तो अब हम दोनों चलते हैं,हमें आपके आने का भी इन्तज़ार रहेगा",रामखिलावन बोला...
"आप बेफिक्र रहें,मैं भी जल्द ही कलकत्ता पहुँच जाऊँगा",मोरमुकुट सिंह बोला...
और फिर रामखिलावन और मालती वहाँ से चले आए और इधर मोरमुकुट सिंह कस्तूरी के पास जाकर उससे बोला...
"कस्तूरी! एक बात कहूँ तुमसे",
"हाँ! बोलो",कस्तूरी बोली....
"अगर मैं दो चार दिनों के लिए कहीं चला जाऊँ तो तुम अपना ख्याल रख लोगी ना!", मोरमुकुट सिंह ने कस्तूरी से पूछा...
"तुम कहाँ जा रहे हो डाक्टर बाबू?",कस्तूरी ने पूछा....
"किसी से मिलने जाना है",मोरमुकुट बोला...
"किस से मिलने जा रहे हो"?,कस्तूरी ने फिर से पूछा....
"एक दोस्त कलकत्ता में रहते हैं उनसे मिलने",मोरमुकुट सिंह बोला....
"क्या उनकी भी मेरी तरह तबियत खराब है? तुम उनका इलाज करने जा रहे हो" कस्तूरी ने पूछा...
"हाँ! ऐसा ही कुछ समझ लो",मोरमुकुट सिंह बोला...
"तुम अपने दोस्त के पास चले जाओगे तो फिर मेरा इलाज कौन करेगा"?, कस्तूरी ने भोलेपन से पूछा....
"मैं वहाँ ज्यादा दिनों के लिए नहीं जा रहा हूँ कस्तूरी!,कुछ ही दिनों में यहाँ लौट आऊँगा", मोरमुकुट सिंह बोला...
"अगर उसे भी मेरी तरह तुम्हारे इलाज की जरूरत है तो फिर चले जाओ,मैं तुम्हें ना रोकूँगी",कस्तूरी बोली...
"तुम मेरे जाने पर गुस्सा तो नहीं करोगी",मोरमुकुट सिंह ने पूछा....
"नहीं! मैं गुस्सा नहीं करूँगी",कस्तूरी बोली....
"सच कह रही हो ना!",मोरमुकुट सिंह ने पूछा...
"हाँ! बिल्कुल सच,गंगा कसम!",कस्तूरी बोली...
"कसम-वसम खाने की कोई जरूरत नहीं है,मुझे पता है कि तुम ऐसा कोई भी काम करोगी ,जिससे मुझे तकलीफ़ पहुँचे",मोरमुकुट सिंह बोला....
"तुम बहुत अच्छे हो ना! इसलिए मैं तुम्हारा कहा मानती हूँ, मैं तुम्हें कभी भी कोई तकलीफ़ नहीं पहुँचाऊँगी", कस्तूरी बोली...
"तो फिर वादा करो,मेरे यहाँ से जाने के बाद तुम नर्स को बिलकुल भी परेशान नहीं करोगी",मोरमुकुट सिंह बोला....
"हाँ! मैं उस चुड़ैल को बिलकुल भी परेशान नहीं करूँगी",कस्तूरी बोली...
"चुड़ैल नहीं ललिता .... ललिता नाम है नर्स का,तुम चुड़ैल नहीं ललिता नर्स बोलोगी",मोरमुकुट सिंह बोला...
"वो मुझे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती इसलिए मैं उसे चुड़ैल बोलती हूँ", कस्तूरी बुरा सा मुँह बनाते हुए बोली....
"वो तुम्हें क्यों अच्छी नहीं लगती"?,मोरमुकुट सिंह ने पूछा....
तब कस्तूरी बोली....
"वो एक दिन हरी चूड़ियाँ पहनकर आई थी,बिलकुल नई थीं चमक रहीं थीं उसकी चूड़ियाँ,मुझे उसकी वो हरी चूड़ियाँ बहुत अच्छी लगीं तो मैने उससे कहा कि मुझे दे दो अपनी ये हरी चूड़ियाँ,मुझे बहुत पसंद हैं, तो वो मुझसे बोली कि मेरे पति ने दिलवाईं हैं,तू भी अपने पति से खरीदवा लें,मैं तुझे अपनी हरी चूड़ियाँ क्यों दूँ और उस चुड़ैल ने मुझे अपनी हरी चूड़ियाँ नहीं दीं"
"बस इतनी सी बात",मोरमुकुट सिंह बोला...
"लेकिन मुझे उसकी हरी चूड़ियाँ चाहिए थी जो उसने मुझे नहीं दीं",कस्तूरी बोली....
तब मोरमुकुट सिंह बोला....
"कोई बात नहीं कस्तूरी! ललिता ने तुम्हें चूड़ियाँ नहीं दीं तो मैं तुम्हारे लिए कलकत्ता से हरी चूड़ियाँ और हरी चूनर लाऊँगा,ललिता की हरी चूड़ियों से लाख गुना सुन्दर और फिर जब तुम अपनी हरी चूड़ियाँ पहनकर और हरी चूनर ओढ़कर ललिता के सामने जाओगी तो वो जलकर राख हो जाएगी",
"सच कहते हो डाक्टर बाबू! ललिता जलकर राख हो जाएगी",कस्तूरी ने पूछा....
" हाँ! बिल्कुल और फिर तुम ताली बजा बजाकर उसका खूब मज़ाक उड़ाना",मोरमुकुट सिंह बोला...
"हाँ! तब कितना मज़ा आएगा,जब वो दुखी हो जाएगी",कस्तूरी बोली....
"हाँ! फिर उसे दुखी देखकर हम दोनों खूब हँसेगें",मोरमुकुट सिंह बोला...
"लेकिन डाक्टर बाबू तुम तो मेरे पति नहीं हो तो तुम मेरे लिए चूडियांँ क्यों लाओगें"?, कस्तूरी ने पूछा....
"तो क्या हुआ कस्तूरी? मैं तुम्हारा दोस्त तो हूँ",मोरमुकुट सिंह बोला...
"तो क्या दोस्त चूडियाँ ला सकते हैं?",कस्तूरी ने पूछा....
"हाँ! क्यों नहीं",मोरमुकुट सिंह बोला....
"तब ठीक है",कस्तूरी बोली....
"तो मेरे जाने पर तुम दुखी नहीं होगी,समय पर अपनी दवाई खाओगी,ललिता को बिल्कुल भी परेशान नहीं करोगी और जो भी वो खिलाएं तो आराम से खा लोगी,कोई शैतानी नहीं करोगी और किसी से झगड़ा तो बिल्कुल भी नहीं करोगी,बोलो मानोगी ना! मेरी ये सभी बातें",मोरमुकुट सिंह ने कस्तूरी से पूछा....
"हाँ! तुम्हारी सभी बातें मानूँगी मैं ! समय पर खाऊँगी,समय पर दवाई लूँगी,ना किसी से झगड़ूगीं और ललिता को भी परेशान नहीं करूँगी, लेकिन एक बात कहूँ",कस्तूरी बोली....
"हाँ! कहो कस्तूरी"!",मोरमुकुट सिंह बोला...
"मुझे तुम्हारे वगैर यहाँ बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा,जल्दी लौट आना",कस्तूरी बोली....
"और मुझे भी तुम्हारे बिना वहाँ बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा क्योंकि तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो" मोरमुकुट सिंह बोला...
"क्या सच में मैं तुम्हारी सबसे अच्छी दोस्त हूँ?",कस्तूरी ने पूछा...
"तुम्हें मेरी बात पर भरोसा नहीं है क्या"?,मोरमुकुट सिंह ने पूछा...
"भरोसा है डाक्टर बाबू!तभी तो मैं तुम्हारी सब बातें मान लेती हूँ",कस्तूरी बोली....
"तुम तो बहुत समझदारी वाली बातें करने लगी हो,मुझे ऐसा लगता है कि अब तुम ठीक होने लगी हो", मोरमुकुट सिंह बोला...
"मैं ठीक नहीं होना चाहती डाक्टर बाबू! ",कस्तूरी बोली....
"लेकिन क्यों कस्तूरी"?,मोरमुकुट सिंह ने पूछा....
"वो इसलिए कि मैं ठीक हो जाऊँगी तो तुम मुझे मेरे घर भेज दोगे,जैसे उस कमला के ठीक होने के बाद उसका बेटा उसे अपने घर ले गया था,ठीक उसी तरह",कस्तूरी बोली...
"तो तुम अपने घर क्यों नहीं जाना चाहती"?,मोरमुकुट सिंह ने पूछा...
"मुझे अपने घर इसलिए नहीं जाना क्योंकि फिर तुम मुझे वहाँ नहीं मिलोगे",कस्तूरी बोली....
"ठीक है तो तुम ठीक होकर मेरे घर चलना",मोरमुकुट सिंह बोला...
"सच! तुम मुझे अपने घर ले जाओगे",कस्तूरी खुश होकर बोली....
"हाँ! मैं तुम्हें अपने घर ले चलूँगा,अब तो ठीक होगी ना तुम!",मोरमुकुट सिंह बोला....
"हाँ! अब मैं ठीक होना चाहती हूँ",कस्तूरी बोली...
"तो फिर एक दो दिन में ही मैं कलकत्ता के लिए रवाना हो जाऊँगा और शायद इस दौरान मैं तुमसे मिलने ना आ पाऊँ तो तुम मुझ पर गुस्सा मत करना और अपना ख्याल रखना,ठीक है ना!",मोरमुकुट सिंह बोला....
"हाँ! ठीक है और तुम भी अपना ख्याल रखना",कस्तूरी बोली....
और दोनों यूँ ही बातें करते रहे फिर कुछ देर बाद मोरमुकुट सिंह अपनी छुट्टी की अर्जी देकर अस्पताल से बाहर आ गया और अपने कमरें जाकर कलकत्ता जाने की तैयारी करने लगा और एक दो दिन में वो रेलगाड़ी में बैठकर कलकत्ते के लिए रवाना भी हो गया फिर वो कलकत्ते के रेलवे स्टेशन पर पहुँचा और रामखिलावन के बाताए हुए पते के लिए उसने एक टैक्सी पकड़ी और वो उस पते पर चल पड़ा.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....