Sharadi Navratri in Hindi Spiritual Stories by Sudhir Srivastava books and stories PDF | शारदीय नवरात्रि

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शारदीय नवरात्रि

आलेख
शारदीय नवरात्रि
शारदीय नवरात्रि देवी पूूजा को समर्पित एक हिन्दू त्योहार है, जो शरद ऋतु में मनाया जाता है। हिन्दू परम्परा में नवरात्रि का त्योहार, वर्ष में दो बार प्रमुख रूप से मनाया जाता है । प्रथम चैत्र मास में वासन्तिक नवरात्रि और द्वितीय आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि।
हम सभी जानते हैं कि शारदीय नवरात्रि के उपरान्त दशमी तिथि को विजयदशमी (दशहरा) पर्व मनाया जाता है।
शारदीय नवरात्रि हिंदुओं के प्रमुख त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान के रूप में बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है।साथ ही इसका का महत्व इसलिये भी है कि इसी समय देवताओं ने दैत्यों से परास्त होकर आदिशक्ति शक्ति की प्रार्थना के बाद, फिर उनकी पुकार के देवी माँ का आविर्भाव और उनके प्राकट्य से दैत्यों के सँहार करने पर देवी माँ की स्तुति देवताओं ने की थी। जिसकी पावन स्मृति में ही शारदीय नवरात्रि का महोत्सव हर्षोल्लास के साथ मां की पूजा आराधना और अनुष्ठान के साथ मनाया जाता है।
शारदीय नवरात्रि का एक अन्य नाम-वार्षिकी नवरात्रि भी है, जिसके अनुयायी-हिन्दू और उद्देश्य धार्मिक निष्ठा, पूजा, उत्सव है। उत्सव का आशय देवी माँ की आकृति बनाना, सार्वजनिक दुर्गा पूजा, आरती, भोज है। जिसके पूजा अनुष्ठान में देवी आराधना, दुर्गा पूजा एवं आरती; कन्या पूजन आदि सम्मिलित है।
शारदीय नवरात्रि आश्विन मास शुक्ल प्रतिपदा तिथि
से नवमी तक मनाया जाता है, शारदीय नवरात्रि का व्रत अनुष्ठान भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिये किया था। उन्होंने पूर्ण विधि-विधान से महाशक्ति की पूजा उपासना की थी। महाभारत काल में पाण्डवों ने श्रीकृष्णजी के परामर्श पर शारदीय नवरात्रि की पावन बेला पर माँ दुर्गा महाशक्ति की उपासना विजय के लिये की थी। तब से तथा उसके पूर्व से शारदीय नवव्रत उपासना का क्रम चला आ रहा है। यह नवरात्रि इन्हीं कारणों से बड़ी नवरात्रि, महत्त्वपूर्ण एवं वार्षिकी नवरात्रि के रूप में मनायी जाती है। बंगाल प्रांत में इसी नवरात्रि को दुर्गापूजा का सबसे बड़ा महोत्सव होता है। बंगाल में सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी की विशेष पूजा का विशेष महत्त्व माना जाता है।
नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा से पहले कलश स्थापित किया जाता है. इस दिन सुबह जल्दी उठें और स्नानादि के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें. इसके बाद पूजा स्थल की साफ-सफाई करें, जहां कलश में जल भरकर रखा जाता है।
नवरात्र हिंदुओं के लिये महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्र होती हैं इसमे दो गुप्त नवरात्रि और दो चैत्र ,और अश्विन की।अश्विन मास की नवरात्रि प्रमुख मानी जाती है। इसे शारदीय नवरात्र भी कहते हैं।
आध्यात्मिक गुरु माता अमृतानन्दमयी के अनुसार कुछ लोग नौ स्वरूपों की उपासना करते हैं तो कुछ पहले तीन दिन दुर्गा स्वरुप की, अगले तीन दिन लक्ष्मी जी की और अंतिम तीन दिन सरस्वती जी का पूजन अर्चन करते हैं देवी के ये तीन रुप तीन गुणों तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण के क्रमश: प्रतीक हैं। जीवन में सफलता के लिए सुख- सुऔर प्रसन्नता के लिए इन तीन गुणों का संतुलन आवश्यक है।
नवरात्र दुर्गा की उपासना का त्योहार है। प्रथम दिन इनकी स्थापना और समापन पर विसर्जन करते है। नौ दिन चलने वाले पर्व में हर दिन अलग अलग देवी को समर्पित है।
(1) माँ शैलपुत्री -देवी दुर्गा के नौ रूप में पहले स्वरूप में जानी जाती हैं।ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है। माँ शैलपुत्री सब रोगों से मुक्ति दिलाती है।

(2) माँ ब्रह्मचारिणी-माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। यह जानकारी भविष्य पुराण से ली गई हे। माँ ब्रह्मचारिणी लम्बी आयु और सौभाग्य का वरदान देती है।

(3) माँ चंद्रघंटा -माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है। लोकवेद के अनुसार माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं। माँ चंद्रघंटा साधक के समस्त पाप और बाधाएं नष्ट करती हैं।

(4) माँ कुष्मांडा देवी- नवरात्रि के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए। माँ कुष्मांडा आयु यश में वृद्धि का वरदान देती हैं।

(5)माँ स्कंदमाता -नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।

(6)माँ कात्यायनी- नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं।माँ कात्यायनी के आशीर्वाद से रोग,शोक,संताप, भय नष्ट हो जाते हैं।

(7) माँ कालरात्रि -माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी - काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री , धूम्रवर्णा कालरात्रि मां के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं। मां कालरात्रि सदैव शुभ फल देने वाली,शत्रु बाधा से मुक्ति दिलाने वाली हैं।

(8) माँ महागौरी-नवरात्र‍ि के आठवें द‍िन महागौरी की पूजा की जाती है, महागौरी की उपासना से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, मां महागौरी का ध्यान करने से अलौक‍िक शक्त‍ियां प्राप्त होती हैं. इनके पूजन से सभी नौ देव‍ियां प्रसन्न होती है. देवी का रंग गौर होने के कारण इनका नाम महागौरी पड़ा. देवी महागौरी की चार भुजाएं तथा वृषभ इनका वाहन है। महागौरी को ही नारी, शक्ति, ऐश्वर्य और सौन्दर्य की देवी कहा जाता है।गौर वर्ण वाली माँ महागौरी अपने भक्त की समस्त इच्छाये पूर्ण करती है

(9) माँ सिद्धिदात्री -दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।माँ सिद्धदात्री सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं।
और इसके बाद दसवें दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन कर विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है।इस दिन दुर्गा की मूर्तियों को नियमानुसार विधिविधान से जल में विसर्जित किया जाता है। बंगाल, गुजरात राज्य में इस त्योहार की सबसे ज्यादा रौनक देखने को मिलती है। नवरात्रि का पर्व हमे जीवन में परिश्रम, स्वच्छता और मन की पवित्रता का भाव सिखाता है, ताकि हम अपनी अंदरूनी शक्ति को पहचान कर अपनी बुराइयों को त्याग करने का निश्चय कर अपने और अपनों के खुशहाल जीवन का पथ प्रशस्त कर सकें।
(विभिन्न स्रोतों से साभार)

आलेख/प्रस्तुति
सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश