Fathers Day - 72 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | फादर्स डे - 72

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फादर्स डे - 72

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 72

साल 2006

अचानक सूर्यकान्त मन में एक विचार कौंधा। इसी गुमे हुए लाइसेंस की फोटोकॉपी का उपयोग नया सिमकार्ड खरीदने के लिए तो किया नहीं गया होगा? दूसरा नया सिमकार्ड खरीदा गया था। कॉल रेकॉर्ड्स की जांच करने पर पता चला कि एक सिमकार्ड का उपयोग फिरौती मांगने के लिए किया गया था और दूसरे का उपयोग पर्सनल कामों के लिए हो रहा था। स्मार्टमैन। लेकिन सूर्यकान्त उससे अधिक स्मार्ट था। फिरौती के लिए उपयोग की गई सिम से सातारा के चंदू भाई को बहुत सारे फोन कॉल किए गए थे। उस नंबर के सभी कॉल रेकॉर्ड लेकर जांचने पर मालूम पड़ रहा था कि उस सिम कार्ड से एक खास नंबर पर सबसे ज्यादा कॉल किए जा रहे थे। उस नंबर की भी जानकारी ली गई। इन सभी नंबर वाले आदमी आपराधिक गतिविधियों में भले ही शामिल न हों, परंतु मुख्य अपराधी तक उनके संबंध अवश्य जुड़े हुए थे।

वाशिम से निकलकर सातारा इलाके में कुल अठारह लोगों से मुलाकात की गई। इनमें से एक आदमी चार साल पहले चंदू भाई पटेल के की टाल में काम करता था-ऐसा मालूम पड़ा। इस आदमी के बारे में चंदू भाई सहित सभी लोगों ने अपनी-अपनी तरफ से मौखिक प्रमाणपत्र दे दिया,

“नहीं, नहीं ...साबले कभी-भी ऐसा नहीं करेगा। साबले एकदम सीधा आदमी है।”

सूर्यकान्त मन ही मम में कुछ नोट कर लिया। इस फिरौती प्रकरण की जांच करते समय प्रेम जी भाई फुरसत के पलों में इंटरनेट खंगालते बैठते थे। प्रायवेट डिटेक्टिव एजेंसी के बारे पढ़कर जानकारी लेकर बार-बार सूर्यकान्त और चंदू भाई को उनकी मदद मांगने के लिए कहते थे। परंतु सूर्यकान्त को बीच में ही ऐसा कोई नया प्रयोग करके अपने किए-कराए पर पानी फेरने की बिलकुल इच्छा नहीं थी। उसने उन अठारह लोगों को बुलवाया। नए-नए पीएसआई बने अमित काले और एक कॉन्स्टेबल को साथ लिया। अमित काले को इस बात में रुचि थी कि सूर्यकान्त किस तरीके से जांच करता है, या कौतूहलवश साथ हो लिए या फिर मौजजमस्ती के लिए- वही जानें।

सूर्यकान्त एक कमरे में उन अठारह लोगों को बिठाया। दूसरे कमरे में वह खुद और अमित काले और कॉन्स्टेबल तैयारी करके बैठे हुए थे। सूर्यकान्त ने कॉन्स्टेबल को निर्देश दिया कि अपने हाथ में पट्टा तैयार रखकर मेरे आदेश का इंतजार करना। लोगों को एक के बाद एक बुलाकर सवालों की झड़ी शुरू हो गई। नाम क्या है? कहां रहते हो? मोबाइल कौन सा इस्तेमाल करते हो?अमुक दिन कहां पर थे? सवाल खत्म होने के बाद उसको तीसरे कमरे में बिठा देता था?इस वजह से आगामी संदेहास्पद व्यक्ति को किसी भी सवाल-जवाब के बारे में पता नहीं चल रहा था।

यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद सूर्यकान्त ने उन अठारह में से दो को दोबारा बुलवाया। साबले और एक दूसरा व्यक्ति। सूर्यकान्त ने अमित काले को पूछा,

“बताइए, इनमें से अपराधी कौन है?”

पीएसआई अमित काले चकरा गए। उन्हें चल रही इस प्रक्रिया से कुछ समझ में नहीं आया था।

“थोड़ी ही देर में पिक्चर क्लियर हो जाएगा, देखते रहिए।”

ऐसा कहते हुए सूर्यकान्त ने साबले के अलावा जो व्यक्ति था उसे सब कपड़े उतारने का आदेश दिया। फिर उसकी नजरों से नजर मिलाकर सूर्यकान्त ने पास खड़े हुए कॉन्स्टेबल को आदेश दिया,

“थोड़ी दूर जाओ, वहां से तेजी से चलते हुए आओ और इस आदमी को चमड़े के पट्टे से मारना शुरू करो। जब तक यह सच नहीं बोल देता तब तक इसे उस पट्टे से मारते रहो। बिलकुल भी रुकना नहीं।”

कॉन्सटेबल दूर जाने लगा। उसके लौटकर वापस आने से पहले साबले ने सूर्यकान्त के पैर पकड़ लिए,

“साहेब, सब सच-सच बताता हूं। मैं कबूल करता हूं कि मैंने चंदू सेठ की जानकारी दी थी। पूरा आइडिया मेरा भी नहीं था। मैंने बताया कि वहां से अच्छा माल मिलेगा। आराम से पैसा देने वाली पार्टी है।”

सूर्यकान्त ने उस बिना कपड़े के आदमी से कपड़े पहनने के लिए कहा। सच कहें तो सूर्यकान्त को साबले पर पहले से ही संदेह था। लेकिन उसे डराने के लिए उसने दूसरे आदमी को पीटने का खोटा खेल रचा था। अमित काले को यह सब बड़ी हैरानी से देख रहा था।

सूर्यकान्त को एक और मुश्किल पेश हो रही थी। फोन कॉल करने वाले से साबले की आवाज मेल नहीं खा रही थी। लेकिन पूछने से पहले ही साबले ने कॉल करने वाले का नाम और पता बता दिया-निकम, श्री क्षेत्र माहुली का रहने वाला यानी सूर्यकान्त की ससुराल का था।

इस समय रात के दो बज रहे थे। पुलिस वाले कहने लगे कि केस अब सुलझ गई है तो कल श्री क्षेत्र माहुली जाकर अपराधी को पकड़ लाएंगे। सूर्यकान्त ने साफ मना कर दिया।

“चार दिन हो गए इस केस के पीछे भटक रहा हूं। कल क्या होगा, किसको पता? तुमको कल जाना हो तो कल जाओ, मैं तो अभी जाऊंगा। ”

उसने श्री क्षेत्र माहुली के मित्रों को कॉल करके निकम की जानकारी इकट्ठी की। थोड़ी ही देर में पता चला कि निकम घर में ही है। सो रहा होगा। सूर्यकान्त ने उनको ताकीद दी कि वह भागने न पाए, इसकी सावधानी बरती जाए। मैं पहुंच ही रहा हूं।”

सूर्यकान्त की तैयारी देखकर पुलिस वाले भी उसके साथ निकल पड़े। निकम को पुलिस वालों ने नींद में ही हड़काया। गांव के लड़के को पुलिस वाले रात में उठाकर ले जा रहे यह जानकर शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने विरोध करना शुरू कर दिया। तनावपूर्ण वातावरण देखकर शिवसेना नेता को सूर्यकान्त ने वस्तुस्थिति ठीक से समझाई तो नेता का मुफ्त का हल्ला-गुल्ला थमा। निकम की बारात निकली तब सुबह हो चुकी थी।

इस प्रकरण के बाद और प्रेम जी भाई के प्रायवेट डिटेक्टिव के लगातार उल्लेख करने के कारण सूर्यकान्त के मन में सहज विचार आया कि खुद ही डिटेक्टिव एजेंसी खोल ली जाए तो?

संकेत के बाद महाराष्ट्र से कुल तेईस बच्चों का अपहरण हुआ। इस तरह के मामलों में लगातार वृद्धि होती जा रही थी। छोटे बच्चों के किडनैपिंग प्रकरणों पर खास ध्यान देने के लिए सूर्यकान्त ने ‘स्पाइ संकेत’ शुरू किया जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर था 1631000310098222

संकेत के कारण जीवन को अब एक नई दिशा मिल गई थी। सूर्यकान्त अब कई लहुओं का काल बनकर अनेक मासूम संकेतों को छुड़ाने-बचाने का प्रण लेकर बैठा था। ‘स्पाइ संकेत’ के जरिए कई संकेत बचाए जाने वाले थे।

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गुरुवार 22/08/2013

सातारा और पुणे पुलिस, शिरवळ और नीरा गांववासियों, भांडेपाटील और सोनावणे परिवार के लोगों का ध्यान दिल्ली की ओर लगा हुआ था। सर्वोच्च न्यायालय में संकेत और अमित केस में तीन अपीले दाखिल की गई थीं। मुंबई हाईकोर्ट के दोनों फैसलों के बाद राज्य सरकार ने अलग-अलग अपीलें की थीं। तीनों याचिकाओं की सुनवाई के बाद आज फैसला सुनाया जाना था।

न्यायमूर्ति चंद्रमौली कुमार प्रसाद और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ की बेंच ने अमित सोनावणे अपहरण-हत्या केस में हाईकोर्ट द्वारा दी गई उम्र कैद की  सजा को बरकरार रखा था। इस फैसले से पुलिस को भी खुशी नहीं हुई थी और भांडेपाटील परिवार को भी मानसिक संतोष नहीं मिला था। सोनावणे परिवार को तो खुश इसमें होने जैसी कोई बात ही नहीं थी।

संकेत अपहरण-हत्या प्रकरण का फैसला छह सितंबर के दिन सुनाया जाएगा ऐसा बताया गया। एक बार फिर भाग्य के हिस्से में सिर्फ प्रार्थना और प्रतीक्षा शुरू हुई।

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शुक्रवार 06/09/2013

सर्वोच्च न्यायालय ने संकेत भांडेपाटील अपहरण-हत्या प्रकरण में भरोसेमंद गवाहों के अभाव में नराधम लहू रामचंद्र ढेकणे को निर्दोष साबित करने का फैसला स्वीकार नहीं किया लेकिन लहू रामचंद्र ढेकणे निर्दोष होने के आदेश को रद्द करते हुए सातारा सेशन्स कोर्ट द्वारा लहू रामचन्द्र ढेकणे को सुनाई गई उम्र कैद की सजा को मंजूरी पर अपनी मुहर लगा दी।

लहू रामचंद्र ढेकणे के गुनाहगार साबित होने की खुशी तो अवश्य थी पर उसके मृत्युदंड से बच जाने का भयंकर अफसोस प्रतिभा, सूर्यकान्त, सौरभ और पूरे शिरवळवासियों को भी हुआ। लेकिन देश के न्यायतंत्र ने लहू का भविष्य निश्चित कर दिया था। पूरे बीस साल तक लहू को जेल में बिताना होगा। लेकिन लहू शांत बैठने वाला नहीं था। उसके नसीब में क्या लिखा था? लहू रामचंद्र ढेकणे जैसे घातक अपराधी के अपराधों पर ये आखरी परदा गिर था क्या ? लहू को ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था। कोई गलती की है, किसी को जान से मार डाला है, इस पर उसे किसी तरह का पश्चाताप नहीं हो रहा था। आखिर निर्लज्ज नराधम था वह। पूरे बीस साल कोठड़ी में बिताने हैं इस बात को लेकर उसके चेहरे पर कोई हताशा-निराशा का भाव नहीं था। निर्विकार भाव से वह दिल्ली से कोल्हापुर के लिए रवाना हुआ। कोल्हापुर कलंब सेंट्रल जेल की कोठड़ी में बैठकर खूनी लहू एकदम अलग विचार कर रहा था, बड़ा खतरनाक विचार। उसे कोठड़ी के बाहर का खुला नीला आसमान इशारे कर रहा था। पक्षियों की चहचहाहट हल्के से कभी-कभी उसके कानों पर पड़ जाती थी। उस आवाज से, उस छोटे से आकाश के टुकड़े के दर्शन से उसके मन में वास्तव में क्या विचार आ रहे होंगे? पर, उसका चेहरा एकदम निर्विकार, भावहीन।

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साल 2009

सूर्यकान्त की एक नई दिनचर्या बन गई थी। पहले चाय के कप के साथ उसकी सुबह शुरू होती थी। अब उठते साथ सबसे पहले दैनिक अखबारो को पलट कर उसमें से छपी छोटी-छोटी खबरों को अच्छे से पढ़ डालता था। प्रतिभा गरम चाय का कप लेकर आती है, लेकिन ऊब कर वापस ले जाती है। सूर्यकान्त सभी अखबारों के गट्ठे से छोटे बच्चों के अपहरण, लापता हुए छोटे बच्चे, बच्चे के अपहरण के बाद फिरौती की मांग जैसी खबरें खोजकर निकालता था, पढ़ता था,  उनको व्यवस्थित नोट करता था, उसके बाद ही चाय के साथ न्याय करता था। चाय ठंडी हो जाए तो भी चुपचाप गटक लेता था। उसके बाद खबरों में से अपह्रत बच्चे का घर, आसपास के नंबर खोजता था, दूर के किसी संबंधित व्यक्ति से अपहरण के बारे में पूछकर अच्छे से जांच करता था। घटना के संबंध में सवाल जवाब तैयार करता था। छोटी-छोटी जानकारियों को नए सिरे से नोट करता था।

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कई सालों तक लगातार लहू और संकेत के अपहरण प्रकरण के सिलसिले में अनेक प्रकरणों का गहराई से विचार करने और पढ़ाई करने के कारण अपराधी का मोडर ऑपरेंडी समझ लेता था।

कभी-कभी प्रतिभा को बहुत गुस्सा आता था। लेकिन फिर मन में विचार आता था कि सूर्यकान्त के इस काम के कारण यदि किसी मॉं को उसका बच्चा मिल जाए तो उसका सारा श्रेय मेरे संकेत को जाएगा।

संकेत के फोटो को देखकर वह थोड़ा सा हंस लेती है। धीरे से आंचल के कोने से उस फोटो को साफ करती है। ममता के दो होंठ फोटो के संकेत के चेहरे पर टिकाती है और अपने नन्हें की नजर की ओर देखकर धीरे से बुदबुदाती है,

“धन्यवाद बेटा।”

संकेत दूर कहीं नहीं गया था। वह अदृश्य स्वरूम में, बालकृष्ण के रूप में अनेक बालगोपालों की मदद कर रहा था। समाज सेवा के कार्यों की प्रेरणा दे रहा था।

सूर्यकान्त को संकेत ने नई दिशा दिखाई थी। नई उम्मीद, नया जोश, नई आशा की किरण जीवन में फैलने लगी थी। लगातार अच्छे काम करने की ओर आगे बढ़ते रहने का आनंद मन को अनुभव हो रहा था।

संकेत की स्मृति वेदना समाज उपयोगी कार्य करने के कारण हल्की होती गई। एक अद्भुत शांति महसूस की जा रही थी। इन सद्कार्यों में संकेत की लगातार उपस्थिति और साथ का अनुभव हो रहा था।

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मंगलवार  24/09/2009

सुबह वही कलेवर लेकर उदीमान हुई। टीपॉय पर रखी हुई चाय ठंडी होती जा रही थी। प्रतिभा खड़े-खड़े सूर्यकान्त को देख रही थी। वह अखबार में सिर गड़ाकर बैठा था। समुद्र में मोती खोजने का काम चल रहा हो उसी तरह अपने काम के लिए अखबार में कोई खबर छपकर आई है क्या, खोजने में वह मगन था। अचानक उसने ब्रॉडशीट मोड़ी। कुछ पढ़ा, फिर पढ़ा। बाजू में रखी डायरी में कुछ नोट किया और धड़धड़ फोन लगाना शुरू किया।

प्रतिभा कुछ पास जाकर खड़ी हो गई। एक शब्द बोले बिना ठंडी हो गई चाय का कप उठाकर ले गई। सूर्यकान्त पढ़ने लगा, ‘कल शाम को चार बजे के आसपास कृष्णा नदी के किनारे कराड के पास एक रैग्जीन बैग में छोटे बच्चे का शव मिला। सूर्यकान्त ने कराड पुलिस स्टेशन में अपने मित्र को तुरंत फोन लगाया।’

“इस मृत बच्चे की जानकारी मिलते साथ मुझे बताना।”

साथ ही मिसिंग पर्सन ब्यूरो को भी कॉल किया लेकिन लगा नहीं।

प्रतिभा चाय गरम करके ले आई।

“लीजिए गरम चाय पीजिए, फुर्ती आ जाएगी।”

सूर्यकान्त ने चिढ़ी हुई आवाज में बोल डाला,

“एक और संकेत की जान गई है। इस संकेत के लहू को मैं छोड़ूंगा नहीं।”

ये मासूम जान कौन थी? कहां की होगी?

 

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह