Fathers Day - 71 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | फादर्स डे - 71

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फादर्स डे - 71

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 71

मंगलवार 31/08/2004

अमित चंद्रकान्त सोनावणे केस में सुनाई गई फांसी की सजा और संकेत सूर्यकान्त भांडेपाटील केस में उम्र कैद के खिलाफ लहूकुमार रामचन्द्र ढेकणे ने मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

न्यायाधीश हेमन्त गोखले और न्यायाधीश एएस अग्यार की पीठ ने दोनों सुनवाइयों का फैसला सुनाया। पुणे जिले के पुरंदर तहसील के नीरा गांव स्थित अमित चंद्रकान्त सोनावणे के अपहरण और हत्या प्रकरण के संबंध में लहू को दी गई मृत्युदंड की सजा को रद्द कर दी गई। मृत्यु दंड के स्थान पर उसे केवल बीस साल की सख्त कैद की सजा दी गई। न्यायालय में ये सुनकर अनेक लोगों के मन खिन्नता से भर गए। सूर्यकान्त को उत्सुकता लगी हुई थी कि संकेत के केस में अब क्या होगा? और उसको आश्चर्य का धक्का लगा। क्योंकि मुंबई उच्च न्यायालय ने शिरवळ संकेत अपहरण और हत्याकांड में आरोपी लहू रामचन्द्र ढेकणे की जन्मकैद की सजा न केवल रद्द कर दी, बल्कि पूरे घटनाक्रम में आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूतों के अभाव में निर्दोष साबित कर दिया गया।

सूर्यकान्त को पहले से ही जिस बात का डर था, वही हुआ। प्रतिभा और घर क अन्य सदस्य रुंआसे हो गए। संकेत के नसीब में मौत के बाद भी शांति नहीं?न्याय नहीं? पूरे शिरवळ गांव में शांति पसर गई।

परंतु पुलिस ने इन दोनों मामलों में उच्च न्यायालय में जाने अपील करने का फैसला किया। इस नरपिशाच के प्रति किसी के भी दिल में दया नहीं थी। सूर्यकान्त ने लेकिन मुट्ठी भार के प्रण किया।

“मेरे मासूम संकेत की हत्या करने वाले निर्दोष छूटने नहीं दूंगा। किसी भी रास्ते से उसे कठोर दंड मिलना ही चाहिए।”

अब सुप्रीम कोर्ट जाना या फिर ईश्वरीय चमत्कार का इंतजार करना-ये दो ही विकल्प उसके सामने खुले थे।

रात को सूर्यकान्त ने खाना नहीं खाया। आधी रात बीत गई फिर भी वह संकेत केस में की गई प्रमुख टिप्पणियों, छोटी-छोटी जांचों, कानूनी कागज-पत्र और अखबारों के समाचारों को पढ़ते रहा। उन पर विचार करने लगा। अचानक उसने आलमारी से रिवॉल्वर निकाल ली। नेपकिन से साफ की और हाथ में पकड़ी हुई रिवॉल्वर का बारीकी से निरीक्षण करने लगा। हाथ में दूध का ग्लास लेकर वहां पहुंची प्रतिभा सूर्यकान्त के हाथ में रिवॉल्वर देख कर ठिठकी। वह कौन सा विचार करके बैठा होगा-इस ख्याल से डर गई।

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सोमवार 29/04/2004

फिर वही काला सोमवार उदित हुआ। इसी दिन ने संकेत को सभी लोगों से दूर कर दिया था। उसकी पांचवी पुण्यतिथि। इस दिन को संकेत की स्मृति में यादगार बनाए रखने के लिए एक निर्णय सूर्यकान्त और सौरभ ने लिया था। विचार जोखिम भरा था फिर भी भांडेपाटील परिवार ने पिता-पुत्र का एकमत से पूरा समर्थन किया।

संकेत की स्मृति की याद बनाए रखने के लिए और उसकी याद को अजर-अमर रखने की आधी बाजी तो सौरभ और सूर्यकान्त ने जीत ली थी। इरादा ऐसा था कि इसे सिद्ध करने के लिए सौरभ और सूर्यकान्त ने एक दिन पहले ही उफनते समुद्र में तैरना शुरू किया था। दोनों ने ही एक पल के लिए भी न रुकते हुए धरमतर से गेट वे ऑफ इण्डिया और गेट वे इण्डिया से वापस धरमतर तक का प्रवास अरब सागर की उफनती लहरों पर तैरकर पूरा किया था। विश्व में किसी पिता-पुत्र ने सागर पर ऐसा जोखिम नहीं उठाया था। अरब सागर की उफनाती लहरों पर सौरभ और सूर्यकान्त लगातार सत्तर किलोमीटर तैर रहे थे। महाराष्ट्र के ग्रामीण भाग में रहने वाले ये दोनों ‘प्रोफेशनल स्विमर’ नहीं थे, न ही उन्होंने तैरने की ‘प्रोफेशनल कोचिंग’ ही पाई थी। लेकिन संकेत के प्रति अथाह प्रेमवश सौरभ  और सूर्यकान्त ने सामान्य इंसान के लिए असंभव काम को संभव कर दिखाया था।

इस जमीन पर विचरते लोग उनके बारे में क्या कहते हैं इसकी किंचित मात्र परवाह न करते हुए सूर्यकान्त और सौरभ को महाभारत के अर्जुन के समान सिर्फ पक्षी की आंख की तरह धरमतर से गेट वे ऑफ इण्डिया के बीच की समुद्री दूरी ही दिखाई देती थी। संकेत के चेहरे पर खिली खुशी दिखाई देती थी। सूर्यकान्त और सौरभ, संकेत की स्मृतियों को दोहराते हुए असीम फैले हुए सागर की उफनती लहरों पर अपनी पूरी शक्ति से हाथों से हिलोरे लेते और पैरों का जोर आजमाते हुए रत्नाकर को पछाड़ते हुए आगे तैरते-बढ़ते जा रहे थे।

अंततः, समुद्र में इक्कीस घंटे चवालीस मिनट लगातार तैरने का विश्व रेकॉर्ड गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में सूर्यकान्त भांडेपाटील और सौरभ सूर्यकान्त भांडेपाटील ने दर्ज कराया। आज तक इस रेकॉर्ड को कोई भी ध्वस्त नहीं कर पाया है।

विश्व रेकॉर्ड बनाकर जब दोनों पिता-पुत्र सागर किनारे पहुंचे तब उनकी और वहां मौजूद लोगों की आंखों में आनंद के असंख्य आंसू थे। उस रात को प्रतिभा, सूर्यकान्त और सौरभ, संकेत के फोटो के सामने बैठकर उसका प्यारा चेहरा अपनी नजरों में समा रहे थे। आज संकेत बाकी दिनों की अपेक्षा अधिक प्यारा दिखाई दे रहा था। सूर्यकान्त ने ममता भरा अपना दाहिना हाथ सौरभ के सिर पर फेरा और उसके मन में एक विचार कौंधा। उसने पक्का प्रण कर लिया लेकिन मन मे द्वंद्व मच रहा था कि कहीं प्रतिभा और सौरभ ने उसके इस निर्णय को मानने से इंकार कर दिया तो....नहीं...नहीं...मैं किसी भी तरह उनको समझाऊंगा लेकिन इस कठोर फैसले को उसके अंजाम तक अवश्य पहुंचाऊंगा...

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.साल 2006

सूर्यकान्त ने अपनी जिद पूरी कर ली। उसका एक महत्वपूर्ण मुद्दा था कि सौरभ को तैराकी की विधिवत व्यावसायिक ट्रेनिंग दिलवाई जाए। इसके लिए श्रेष्ठ मार्गदर्शन और कुशल प्रशिक्षक शिरवळ में मिलेगा नहीं। अतः हम पुणे जाकर बसेंगे। अपने गांव से दूर, अपने लोगों से दूर, दोस्तों से दूर होने की इच्छा भला किसको होगी? उस पर शिरवळ में संकेत की अनगिनत यादें बसती थीं, परंतु सूर्यकान्त की जिद भी नाजायज नहीं थी। इसलिए परिवार को एकमत होने के लिए अधिक समय नहीं लगा। क्योंकि अब संकेत था नहीं, सौरभ के भविष्य का विचार करना भी जरूरी था।

अगले मई महीने में भांडेपाटील परिवार पुणे में रहने के लिए आ गया। सूर्यकान्त ने शिरवळ का भवन निर्माण व्यवसाय पुणे में भी जारी रखा। वैसे भी, उसके जिगरी दोस्त प्रेम जी भाई पटेल 2003 में ही पुणे आकर बस गए थे। उनका प्लायवुड का काम अच्छा चल रहा था। प्रेम जी पटेल और सूर्यकान्त पुणे में भवन निर्माण काम में बिजनेस पार्टनर बन गए।

पुणे आने का सूर्यकान्त का फैसला योग्य साबित हुआ। पश्चिम बंगाल की भागीरथी नदी में आयोजित की जाने वाली एक बड़ी तैराकी प्रतियोगिता सौरभ ने पूरी करके दिखाई। अब, सौरभ और सूर्यकान्त दोनों धरमतर से गेट वे ऑफ इण्डिया के बीच हर साल तैरने लगे थे। भांडेपाटील परिवार को सौरभ पर गर्व था लेकिन अपनी उपलब्धियों का सारा श्रेय वह संकेत को देता था। भले ही शिरवळ पीछे छूट गया हो, लेकिन घर के सारे साजो-सामान के साथ संकेत की यादें और प्यार भी पुणे के नए घर में आया ही था। सूर्यकान्त का परिवार अब खुश था। अच्छे दिन सुनहरा प्रभात लेकर आते थे। समय आनंद के साथ व्यतीत हो रहा था।

लेकिन, अचानक सामने एक नया मोड़ फिर आकर खड़ा हो गया। एक दिन प्रेम जी भाई पटेल मुलाकात करने आए। उस समय किसी को भी मालूम नहीं था कि जीवन एक अलग पलटनी खाने वाला है। प्रेम जी भाई के सातारा निवासी चचेरे भाई का हार्डवेयर, लकड़ी टाल और प्लायवुड का व्यवसाय बड़ी कामयाबी के साथ चल रहा था। इस चचेरे भाई का नाम-चंदू भाई पटेल। तो, इस भाई को फिरौती के लिए फोन कॉल आने लगे।

“एक करोड़ दो, नहीं तो तुम्हारा काम तमाम, समझ लो। तुम्हारे परिवार और तुम्हारी सभी हलचल पर हमारी नजर है...समझ लेना....”

चंदू भाई ने पुणे आकर प्रेम जी भाई को इसके बारे में बताया। सूर्यकान्त से मिलने आए प्रेम जी ने पूरी बात बताई। चंदू भाई ने पुलिस में कम्प्लेंट लिखवा दी थी लेकिन पुलिस ने एफआईआर लिखने की जगह साधारण एनसी दर्ज की थी। पुलिस ने इस बात को बहुत हल्के में लिया था क्योंकि अभी तो केवल फोन ही आया था न....!!

सूर्यकान्त को मामला गंभीर मालूम हुआ। वह तुरंत प्रेम जी भाई को साथ लेकर सातारा पुहंचा। चंदू भाई को जिस नंबर से फोन कॉल्स आते थे उनकी पड़ताल करने पर मालूम हुआ कि नंबर औरंगाबाद जिले में दर्ज है। जिला अलग होने के कारण जांच में अड़चन आना संभव था। सूर्यकान्त और प्रेम जी ने सातारा पुलिस एसपी प्रकाश मुटियाल से मुलाकात की। सूर्यकान्त ने समझाइश के मुताबिक प्रेम जी ने उनसे साफ शब्दों में पूछा कि सिर्फ एनसी लिख लेने का क्या फायदा? अपहरण होने के बाद पुलिस एफआईआर लिखेगी क्या? अपराध होने की राह देखना है क्या? इसी साथ, आगे क्या करना चाहिए इस बारे में प्रेम जी भाई बताने लगे। इस कारण एसपी प्रकाश मुतियाल ने आपा खो दिया और वह चिल्लाए,

“मुझे सिखाने वाले आप कौन होते हैं?”

सूर्यकान्त, प्रेम जी भाई को लेकर वहां से निकल गया। नीचे आकर उसने प्रेम जी भाई को समझाया,

“पुलिस को छोड़ दो, क्या करना है अब हम देखेंगे।”

औरंगाबाद से आए हुए फोन कॉल के नंबर का रजिस्ट्रेशन वाशिम में मिला। सातारा से गाड़ी तुरंत वाशिम की ओर निकली। पता खोजकर, जिस आदमी का नंबर था उससे मिलने पर मालूम हुआ कि फोन का मालिक तो एक साधारण किसान है। लेकिन, कहते हैं न जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं है, इसलिए आदमी फंसता है...सूर्यकान्त ने उस किसान से कुछ सवाल किए तो उसमें से पता चला कि इस आदमी का स्कूटर लाइसेंस गुम गया था। सूर्यकान्त समझ गया कि गुमे हुए लाइसेंस का आइडेंटिटी कार्ड दिखाकर एक नया सिम कार्ड इस आदमी के नाम से खरीदा गया होगा।

अब उसने वाशिम के मोबाइल और सिमकार्ड बेचने वाली दुकानों में पूछताछ की ओर अपना मोर्चा बढ़ाया। पांच-छह दुकानें थीं। हर दुकान में पूछताछ करने पर एक दुकानदार ने इस नंबर की बिक्री की बात कही। दुकानदार को खरीदने वाले व्यक्ति का हुलिया याद नहीं था।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह