विवाह के दो दिन बाद पग फेरे के लिए जब छोटे लाल छुटकी और भले राम को अपने घर ले गया तब उसने अपने माँ-बाप की आपस में बात सुनी।
उसकी माँ ने कहा, "छोटे के बाबूजी एक परात में पानी रख लेते हैं। भले के पाँव धुलवा देना।"
मुन्ना लाल ने कहा, "अरे नहीं छुटकी की अम्मा, भले हमारे घर का बच्चा है। तुम यह क्या करने के लिए कह रही हो। उस दिन ज़रा-सा हाथ जोड़ लिया था तो कितना दुखी हो गया था वह। भले जैसा पहले था, अभी भी बिल्कुल वैसा ही है। शादी में कभी भी उसने दामाद बनने जा रहा है ऐसा व्यवहार नहीं किया। बस हमें भी हम जैसे पहले थे वैसे ही रहना है।"
"हाँ तुम ठीक कह रहे हो। वह लोग भी हमारे छोटे को कितना प्यार करते हैं और बेटे जैसा ही तो रखते हैं।"
"हाँ तुम अब समझीं। देखो जो दामाद जैसे रहते हैं ना उन्हें केवल ऊपरी दिखावा और ऊपरी मन से आदर मिलता है लेकिन जो दामाद होते हुए भी बेटा बनकर रहते हैं उन्हें सच्चे मन से प्यार मिलता है। मान सम्मान तो फिर भी होता ही है लेकिन दिखावा नहीं होता। भले हमारा बेटा बनकर ही रहेगा उसे दामाद वाले मान सत्कार की कोई ख़्वाहिश ही नहीं है।"
छोटे लाल अपनी दामाद गिरी दिखाने के लिए अब बहुत शर्मिंदा था। विवाह से अब तक पूरे नौ माह हो चुके थे और इस पूरे समय में वह हमेशा मान सम्मान को ही ढूँढता रहा। यहाँ तक कि उसने अपनी पत्नी तक से उसका यह दुख बयान कर दिया था।
आज वह सरोज के पास आया और कहा, "सरोज मुझे माफ़ कर दो, मैं ग़लत था। मेरे अंदर एक दामाद ने जन्म ले लिया था। लेकिन सरोज तुम्हारे भाई और मेरे दोस्त ने मुझे सही रास्ता दिखा दिया है। भले राम का व्यवहार बिल्कुल नहीं बदला। वह बिल्कुल पहले की ही तरह है। सिर्फ़ एक अच्छा दोस्त, एक सच्चा साथी। उसके कारण उसे देखकर मेरी मानसिकता भी अब बदल चुकी है।"
सरोज ने कहा, "छोटे अब मैं बहुत ख़ुश हूँ। पिछले कई महीनों से मुझे लग रहा था कि मेरी शादी एक घमंडी इंसान से हो गई है। लेकिन आज तुमने मेरी उस सोच को बदल दिया।"
इतने में केवल राम की आवाज़ आई। वह आँगन से पुकार रहे थे, "छोटे लाल बेटा ज़रा इधर आना।"
"जी बाबू जी," कहते हुए छोटे और सरोज दोनों बाहर निकले।
केवल को देखते ही छोटे लाल उनके पास आया और आज पहली बार झुक कर उनके पाँव छूते हुए कहा, "जी बाबूजी ..."
केवल ने उसे ऊपर उठाते हुए कहा, "अरे छोटे बेटा ये क्या कर रहे हो तुम?"
"मत रोकिये बाबूजी, मुझे मेरी ग़लतियों का एहसास हो गया है। आप मुझे आशीर्वाद दीजिए। मैं पहले की तरह आपका बेटा ही हूँ।"
केवल ने छोटे को अपने सीने से लगा लिया।
सरोज यह दृश्य देखकर फूली नहीं समा रही थी। आँगन में दूर खड़ा भले राम भी यह दृश्य देख रहा था। उसकी आँखें, उसके मन की तड़प को उसकी भावनाओं को उजागर कर रही थीं।
तभी छोटे की नज़र उस पर पड़ गई और वह तुरंत ही भले राम के पास आया और कहा, "यार भले थोड़े क़दम बहक गए थे। माफ़ कर सकेगा क्या?"
भले राम ने मुस्कुराते हुए कहा, "अबे जीजा भी तू और साला भी तू। माफ़ तो करना ही पड़ेगा ना वरना कान खींचने वाली एक नहीं दो-दो सामने खड़ी हैं, वह देख।"
सामने खड़ी छुटकी और सरोज मुस्कुरा रही थीं।
केवल राम, मुन्ना लाल और उन दोनों की धर्म पत्नी अपने परिवार को प्यार की मज़बूत डोरी में बंधा देखकर ख़ुश हो रहे थे और ऊपर आसमान की ओर देखकर दोनों हाथ जोड़ रहे थे। मानो भगवान से कह रहे हों हे प्रभु हमारे परिवार की एकता बस यूं ही बनाए रखना।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त